Last Updated on 22 January 2024 IST | Parakram Diwas 2024 [Hindi]: आज की युवा पीढ़ी भले ही आजादी के महत्व से अनभिज्ञ हो, परंतु जिन महान सपूतों ने भारत की आजादी के लिए अपने प्राणों की आहुति दी है, उन्हें यह अच्छे से पता था कि स्वराज क्या होता है और देश की आजादी का क्या मतलब होता है। ऐसे अनेक वीर हुए जिन्होंने भारत माता को गुलामी की बेड़ियों से आजाद करवाने के लिए अपना तन मन धन समर्पित कर दिया। भारतवर्ष के स्वतंत्रता संग्राम के महान सेनानियों में से एक सेनानी नेताजी सुभाष चंद्र बोस की 127वीं जयंती (Subhash Chandra Bose Jayanti) 23 जनवरी के दिन पूरे देश में मनाई जाएगी।
Parakram Diwas 2024 (Subhash Chandra Bose Jayanti) के मुख्य बिन्दु
- ‘पराक्रम दिवस (Parakram Diwas)’ के तौर पर मनाई जाएगी सुभाष चंद्र बोस की जंयती (Subhash Chandra Bose Jayanti)।
- सभी विश्वविद्यालयों और अन्य उच्च शिक्षा संस्थानों में आयोजित होंगे कार्यक्रम।
- सुभाष बाबू की निस्वार्थ सेवा के लिए किया जाएगा उनको सम्मानित ।
- राष्ट्र सेवा के साथ परमात्मा की प्राप्ति करना भी मनुष्य जीवन का उद्देश्य है।
भारत सरकार ने Subhash Chandra Bose Jayanti को Parakram Diwas के रूप में मनाने की घोषणा कब की?
गौरतलब है कि महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानी सुभाषचन्द्र बोस (Netaji) के खास योगदान को ध्यान में रखते हुए नेताजी के जन्मदिवस को ‘पराक्रम दिवस’ (Parakram Diwas) के रूप में भी मनाया जाता है। दरअसल, भारत सरकार ने नेता जी की 124वीं जयंती अर्थात 23 जनवरी 2021 को पराक्रम दिवस के रूप में मनाने का निर्णय लिया था।
क्या है पराक्रम दिवस (Parakram Diwas)?
राष्ट्र के प्रति नेताजी सुभाष चंद्र बोस की अदम्य भावना और निस्वार्थ सेवा को सम्मान देने और याद रखने के लिए, भारत सरकार ने देश के लोगों, विशेष रूप से युवाओं को प्रेरित करने के लिए, वर्ष 2021 से हर साल 23 जनवरी को उनके जन्मदिन को ‘पराक्रम दिवस’ के रूप में मनाने का निर्णय लिया था।
पराक्रम दिवस (Parakram Diwas) मनाने का क्या है उदेश्य?
भारत सरकार ने नेताजी के जन्मदिन 23 जनवरी को “पराक्रम दिवस” के रूप में मनाने के निर्णय के पीछे उद्देश्य हैं-
- राष्ट्र के प्रति सुभाष बाबू की अदम्य भावना और निस्वार्थ सेवा को सम्मान देना
- उनके समर्पण को स्मरण करना
- देश के लोगों विशेषकर युवाओं को प्रेरित करना
- विपत्ति में धैर्य के साथ काम करने का जज्बा नेताजी से सीखना
- देशभक्ति की भावना का संचार करना
पराक्रम दिवस (Parakram Diwas) से संबंधित बातें
- प्रतिवर्ष 23 जनवरी को पराक्रम दिवस मनाया जाता है।
- पराक्रम दिवस नेताजी सुभाष चंद्र बोस की याद में मनाया जाता है।
- पराक्रम दिवस को मनाने की घोषणा नरेंद्र मोदी जी ने वर्ष 2024 में नेताजी की 127वीं जयंती पर की थी।
- पराक्रम दिवस को सुभाष चंद्र बोस की जन्म जयंती (Subhash Chandra Bose Jayanti) भी कहा जाता है।
- पराक्रम दिवस को शौर्य दिवस भी कहा जाता है।
- ममता बनर्जी ने पराक्रम दिवस को देशनायक दिवस के नाम से मनाने की घोषणा की थी।
पराक्रम दिवस (Parakram Diwas) कैसे मनाया जाता है?
पराक्रम दिवस के दिन विद्यालय में विद्यार्थियों के द्वारा नाटकों का आयोजन किया जाता है, साथ ही महाविद्यालयों और विश्वविद्यालयों में नेताजी सुभाष चंद्र बोस की जिंदगी के ऊपर आधारित लेक्चर भी आयोजित होते हैं, जिसमें विद्यार्थी नेताजी सुभाष चंद्र बोस पर अपने-अपने मत प्रकट कर उनके खास योगदान का सम्मान करते हैं।
कैसा था नेताजी सुभाष चंद्र बोस जी का जीवनकाल?
सुभाष बाबू का जन्म 23 जनवरी, 1897 को उड़ीसा डिवीजन, बंगाल प्रांत में (वर्तमान में उड़ीसा प्रांत) के कटक शहर में एक कायस्थ परिवार में हुआ था। माता प्रभावती दत्त बोस और पिता जानकीनाथ बोस के 14 बच्चों वाले परिवार में वे नौवें स्थान पर थे।
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प्रारम्भिक शिक्षा के लिए भाइयों और बहनों की तरह कटक के प्रोटेस्टेंट यूरोपियन स्कूल में उन्हे जनवरी 1902 में भर्ती कराया गया था। 1909 में उन्हें रेवेनशॉ कॉलेजिएट स्कूल (Ravenshaw Collegiate School) में प्रवेश दिलाया गया। मैट्रिक परीक्षा में उन्होंने दूसरा स्थान हासिल किया और 1913 में आगे की पढ़ाई के लिए उन्होंने प्रेसीडेंसी कॉलेज कोलकाता में प्रवेश लिया लेकिन घोर राष्ट्रवादी गतिविधियों में शामिल होने के कारण उन्हें वहाँ से निष्कासित कर दिया गया।
सुभाषचंद्र बोस (Subhash Chandra Bose) ने क्यों त्याग दी भारतीय सिविल सेवा की नौकरी?
कॉलेज से निष्कासित होने के पश्चात सुभाष बाबू कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय चले गए जहां उन्होंने इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी की। वर्ष 1919 में सुभाष चंद्र ने लंदन जाकर भारतीय सिविल सेवा (Indian Civil Services- ICS) परीक्षा की तैयारी की और उस परीक्षा में उन्नत हुए। अंग्रेजी हुकूमत के साथ कार्य नहीं कर पाने के कारण उन्होंने सिविल सेवा से त्यागपत्र दे दिया।
Subhash Chandra Bose Jayanti: सुभाष बाबू के आध्यात्मिक और राजनीतिक गुरु भी थे
16 साल की उम्र में उन्हें स्वामी विवेकानंद और रामकृष्ण की शिक्षाओं ने अत्यधिक प्रभावित किया। वे स्वामी विवेकानंद को अपना आध्यात्मिक गुरु मानते थे। दूसरी ओर चित्तरंजन दास को वह अपना राजनीतिक गुरु मानते थे। वर्ष 1921 में उन्होंने चित्तरंजन दास की स्वराज पार्टी के मुखपत्र ‘फॉरवर्ड’ का संपादन कार्य भी किया। यहाँ यह जानना आवश्यक है कि 16 वर्ष की अवस्था में उनकी आत्मा ने परमात्मा मिलन का संदेश दिया था। लेकिन सुभाष बाबू उस कार्य को पूरा करने की अपेक्षा सांसारिक कार्यों में उलझ गए।
कुशल राजनीतिक ज्ञाता थे सुभाष जी
वर्ष 1923 में सुभाष बाबू के कुशल राजनीतिक समझ के कारण उन्हें अखिल भारतीय युवा काँग्रेस का अध्यक्ष और साथ ही बंगाल राज्य कांग्रेस का सचिव भी चुना गया। वर्ष 1925 में उग्र सुभाष को क्रांतिकारी आंदोलनों में शामिल होने के कारण माण्डले (Mandalay) कारागार में भेजा गया। कहते हैं उसी जेल में वह तपेदिक बीमारी से ग्रसित हुए। आगे की यात्रा जारी रखते हुए उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस के अध्यक्ष पद का चुनाव जीता। 1939 में महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi) और कांग्रेस आलाकमान के साथ अनबन होने के कारण उन्हें तुरंत हटा दिया गया।
Parakram Diwas 2024: किसी भी कीमत पर अंग्रेजों से समझौता न करने के पक्षधर थे Subhash Chandra Bose
नेताजी सुभाष चंद्र बोस प्रखर राष्ट्रवादी थे। एक ऐसे क्रांतिकारी नेता जो किसी भी कीमत पर अंग्रेजों से कोई समझौता नहीं करने के पक्षधर थे। उनका एक मात्र ध्येय भारत को अंग्रेजों की बेड़ी से स्वतंत्रता दिलाना था। वर्ष 1930 के दशक के मध्य में बोस ने यूरोप की यात्रा की। द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान अंग्रेजों के विरुद्ध युद्ध करने के लिए जापान के सहयोग से उन्होंने आजाद हिन्द फौज (Azad Hind Fauj) गठित की।
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जापान और जर्मनी से मदद लेने की कोशिश करने के कारण बोस ब्रिटिश सरकार को खटकने लगे और 1941 में उन्हें खत्म करने का आदेश दिया गया। 5 जुलाई 1943 को नेता जी सुभाष चंद्र बोस (Subhash Chandra Bose) ने ‘सुप्रीम कमाण्डर’ के रूप में सिंगापुर के टाउन हाल के सामने सेना को सम्बोधित किया और दिल्ली चलो! का नारा दिया। जापानी सेना के साथ मिलकर सुभाष ने बर्मा, इम्फाल और कोहिमा में ब्रिटिश व कामनवेल्थ सेना से एक साथ जमकर संघर्ष किया।
नेताजी सुभाष चंद्र बोस के बारे में रोचक तथ्य (Interesting Fact about Subhas Chandra Bose)
- जर्मनी के तानाशाह हिटलर ने सुभाषचंद्र बोस को नेताजी (Netaji) की उपाधि दी थी।
- नेताजी के योगदान को ध्यान में रखते हुए अंडमान निकोबार के तीनों द्वीपों रॉस द्वीप, नील द्वीप तथा हैवलॉक द्वीप के नाम क्रमशः नेताजी सुभाष चन्द्र बोस द्वीप, शहीद एवं स्वराज द्वीप कर दिया गया है।
- नेताजी की मृत्यु आज भी है रहस्यमय, क्योंकि उनके कई समर्थकों ने यह मानने से इनकार कर दिया है कि उनकी मृत्यु विमान दुर्घटना में हुई थी।
- नेताजी एक प्रगतिशील विचारक थे, वह चाहते थे कि स्वतंत्रता के इस संग्राम में हर कोई आगे आकर देश की आजादी में अपनी भूमिका निभाये।
स्वतंत्र भारत की अस्थायी सरकार गठित करने की घोषणा की
21 अक्टूबर 1943 में सुभाष चंद्र बोस ने आजाद हिंद फौज के सर्वोच्च सेनापति के रूप में स्वतंत्र भारत की अस्थायी सरकार बनाई। इस सरकार को जर्मनी, जापान, फिलीपींस, कोरिया, चीन, इटली, मान्चुको और आयरलैंड सहित 11 देशों ने मान्यता प्रदान की थी। जापान सरकार ने अस्थायी सरकार को अंडमान व निकोबार द्वीप भी दिये। सन 1944 में आजाद हिन्द फौज ने अंग्रेजों पर पुनः जोरदार आक्रमण करके भारत के कुछ क्षेत्रों को अंग्रेजी हुकूमत से आजाद करा लिया। कोहिमा का भयंकर युद्ध वर्ष 1944 में 4 अप्रैल से 22 जून तक जिसमें जापानी सेना को पीछे हटना पड़ा जो एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुआ।
Subhash Chandra Bose Jayanti: जय हिन्द का नारा सुभाष बाबू जी की देन
उन्होंने ‘जय हिंद‘ का नारा दिया जो आज भी भारत का राष्ट्रीय नारा है। उन्होंने ‘तुम मुझे खून दो मैं तुम्हे आजादी दूंगा‘ का नारा भी दिया जो आज भी देश के युवाओं को प्रेरित करता है। भारतवर्ष में लोग उन्हें ‘नेता जी’ के नाम से सम्बोधित कर गर्वित महसूस करते हैं। आज़ाद हिंद रेडियो पर एक प्रसारण में बोस ने 6 जुलाई, 1944 को महात्मा गांधी को ‘राष्ट्रपिता’ के रूप में संबोधित किया।
क्या सुभाष चंद्र बोस की मृत्यु रहस्यमय है ?
कुछ लोग कहते हैं कि 18 अगस्त, 1945 को जापान शासित फॉर्मोसा (Japanese ruled Formosa) (वर्तमान में ताइवान) में एक विमान दुर्घटना में सुभाष बाबू की मृत्यु हो गई थी। लेकिन यह निश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता।
सुभाष बाबू बचपन से आध्यात्मिक थे फिर सांसारिक कार्यों में क्यों उलझ गए
जीव जब भी जन्म लेता है उसकी आत्मा उसे सदैव परमात्मा की ओर जाने को प्रेरित करती है। लेकिन काल और माया उसे घेर लेते हैं और किसी अन्य कार्य में इस प्रकार उलझा देते हैं जिससे वह अपने वास्तविक लक्ष्य को भूल जाता है। सुभाष बाबू भी कोई अपवाद साबित नहीं हुए। परमात्मा की सतभक्ति करने के विरुद्ध इस लोक की नकली लड़ाई में फंस गए। हमें काल माया जाल को भली भांति समझना चाहिए।
क्या है वास्तविक उद्देश्य मनुष्य जन्म का?
मनुष्य जीवन का वास्तविक ध्येय है कि काल माया के जाल को समझें और उससे कैसे अलग रहे यह भेद भी समझे। पूर्ण परमात्मा कि खोज करने में कौन सतगुरु सहायक हो सकते हैं उन्हें चिन्हित करके उनकी शरण में जाएं। श्रीमदभगवत गीता में जिस तत्वदर्शी संत और कुरान शरीफ में जिस बाखबर के बारे में कहा गया है उसको जानें।
कौन हैं तत्वदर्शी संत वर्तमान में?
वर्तमान में पूर्ण परमात्मा कबीर साहेब जी की गुरु शिष्य प्रणाली के संत रामपाल जी महाराज जो पूर्ण परमात्मा द्वारा सूक्ष्म वेद में दिए गए ज्ञान के आधार पर सतभक्ति प्रदान करते हैं उसी से पूर्ण परमात्मा के अमरलोक सतलोक को प्राप्त किया जा सकता है और काल माया के लोक से मोक्ष प्राप्त करके जन्म मृत्यु से छुटकारा पाया जा सकता है। उनके द्वारा दिए गए तत्वज्ञान को सरल भाषा में समझने के लिए संत रामपाल जी महाराज द्वारा लिखित पवित्र पुस्तक ज्ञान गंगा और जीने की राह को पढ़ें और उनके सत्संग सतलोक आश्रम यूट्यूब चैनल श्रवण करें।
मनुष्य को क्या करना चाहिए?
मनुष्य को तत्वदर्शी संत रामपाल जी की शरण में बाल्यकाल में ही आ जाना चाहिए और नाम दीक्षा लेकर पूर्ण मर्यादा में रहकर अपना कल्याण कराना चाहिए।
Parakram Diwas 2024 (Subhash Chandra Bose Jayanti) QUOTES: नेताजी सुभाष चंद्र बोस के उद्धरण
- भारत बुला रहा है, खून खौल रहा है उठो हमारे पास खोने का समय नहीं है।
- तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूंगा।
- एक व्यक्ति एक विचार के लिए मर सकता है, लेकिन वह विचार उसकी मृत्यु के बाद एक हजार जन्मों में जीवित रहेगा।
- अगर कोई जोखिम नहीं उठाता है तो जीवन का अपना आधा हिस्सा खो देता है।
- यह न भूलें कि घोर अपराध अन्याय और गलत के साथ समझौता करना है।
- शाश्वत नियम याद रखें यदि आप पाना चाहते हैं तो आपको अवश्य देना चाहिए।
- इतिहास में कभी भी सिर्फ विचार-विमर्श से कोई वास्तविक परिवर्तन नहीं हो सकता
- हमें अपने जीवन को सत्य के सिद्धांतों पर खड़ा करना होगा।
- आज हमारे पास बस एक ही इच्छा होनी चाहिए ताकि भारत जीवित रह सके।
- सैनिक जो हमेशा अपने जीवन को न्योछावर करने के लिए तैयार रहते हैं, वे अजेय होते हैं।
सुभाष चंद्र बोस के विचार (Subhash Chandra Bose Thoughts)
- “मैं अपनी सूक्ष्म अंतर आत्मा में यह अनुभव करता हूं कि इस संसार में मुझे दुख मिले या निराशा, मैं मनुष्यत्व को सार्थक बनाने के लिए सदैव संघर्षशील रहूंगा।”
- “मेरे जीवन की समूची शिक्षा और अनुभव ने यह सत्य सिद्धांत दिया है, कि पराधीन जाति का तब तक सब कुछ व्यर्थ है, जब तक उसका उपयोग स्वाधीनता की सिद्धि में न किया जाए।”
- “हमारी राह भले ही भयानक और पथरीली हो, हमारी यात्रा चाहे कितनी भी कष्टदायक हो, फिर भी हमें आगे बढ़ना ही होगा।”
- “मुझमे जन्मजात प्रतिभा तो नहीं थी, परन्तु कठोर परिश्रम से बचने की प्रवृति मुझमें कभी नहीं रही।”
नेताजी सुभाषचंद्र बोस के नारे (Subhash Chandra Bose Slogans)
- “जो अपनी ताकत पर भरोसा करते हैं, अक्सर वो ही आगे बढ़ते हैं”
- जिस व्यक्ति के अंदर ‘सनक’ नहीं होती वो कभी महान नहीं बन सकता”
- सफलता का दिन दूर हो सकता है, पर उसका आना अनिवार्य है”
FAQs about Subhash Chandra Bose Jayanti (Hindi)
उत्तर:- नेताजी सुभाष चंद्र बोस जी की जयंती 23 जनवरी को है ।
उत्तर:- सुभाष चंद्र बोस जी की जयंती को पराक्रम दिवस के नाम से जाना जाता है।
उत्तर:- सुभाष चंद्र बोस जी का जन्म 23 जनवरी, 1897 को उड़ीसा डिवीजन, बंगाल प्रांत में (वर्तमान में उड़ीसा प्रांत) के कटक शहर में एक कायस्थ परिवार में हुआ था।
उत्तर:- सुभाषचंद्र बोस को नेताजी (Netaji) की उपाधि जर्मनी के तानाशाह हिटलर ने दी थी।