Last Updated on 17 August 2024 IST: Subhash Chandra Bose Death [Hindi]: हम स्वतंत्र भारत में जी सकें इसके लिए सुभाषचन्द्र बोस ने अपना सर्वस्व दे दिया था स्वतंत्रता का इतिहास सैनानियों, देशभक्तों और शहीदों के बहुमूल्य बलिदान और योगदान से जुड़ा है। स्वतंत्रता दिवस के दिन यदि सुभाषचन्द्र बोस को याद न किया तो स्वतंत्रता का जश्न अधूरा मानिए।
सुभाषचन्द्र बोस एक जोशीले ,कर्मठ और जांबाज देशभक्तों में गिने जाते हैं। भारत को आज़ादी दिलाने में इस महान नायक का योगदान सराहनीय रहा है परंतु उनकी गुमशुदगी की गुत्थी से आज तक पर्दा न उठ सका और नेताजी की मृत्यु को लेकर आज भी विवाद है। जापान में प्रतिवर्ष 18 अगस्त को उनका शहीद दिवस धूमधाम से मनाया जाता है वहीं भारत में रहने वाले उनके परिवार के लोगों का आज भी यह मानना है कि सुभाष की मौत 1945 में नहीं हुई। वे उसके बाद रूस में नज़रबन्द थे। आइए सुभाषचन्द्र के बारे में जानते हैं।
महान स्वतंत्रता सेनानी सुभाष चंद्र बोस का जीवन परिचय
आजाद हिंद फौज के सुप्रीम कमांडर, भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के अग्रणी सेनानी “नेताजी सुभाष चंद्र बोस (Subhash Chandra Bose)” का जन्म 23 जनवरी 1897 को कटक उड़ीसा के एक बंगाली परिवार में हुआ। उनके पिता का नाम ‘जानकीनाथ बोस’ और उनकी माता का नाम प्रभावती देवी था।
दुनिया के महान क्रांतिकारियों में से एक नेताजी सुभाष चंद्र बोस (Subhash Chandra Bose) जिन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा कटक के रेवेंशॉव कॉलेजिएट स्कूल में ग्रहण की। तथा उच्च शिक्षा कोलकाता के प्रेसिडेंसी कॉलेज और स्कॉटिश चर्च कॉलेज से ग्रहण की। नेताजी सुभाष चंद्र बोस के पिताजी जानकीनाथ बोस कटक शहर के मशहूर वकील थे और उनकी कुल 14 संताने थी जिनमें 6 लड़कियां और 8 लड़के थे और नेताजी उनकी नौवीं संतान थे।
Subhash Chandra Bose: नेताजी सुभाष चंद्र बोस की मृत्यु कब हुई?
माना यह जाता है कि 18 अगस्त 1945 को टोक्यो जाते वक्त ताइवान के पास हवाई दुर्घटना के कारण नेताजी सुभाष चंद्र बोस की मृत्यु हो गई थी, जो कि आज तक एक गहरा विवाद बना हुआ है। हालांकि उनकी मौत को लेकर अभी तक स्पष्टीकरण नहीं हुआ है, लेकिन उनका शहीद दिवस 18 अगस्त को ही मनाया जाता है।
नेताजी सुभाष चंद्र बोस और महात्मा गांधी का उद्देश्य एक ही था
सन 1921 से लेकर 1940 तक सुभाष चंद्र बोस ने राजनीतिक यात्रा का सफर तय किया। 1921 में राजनीतिक गतिविधियों के तेज होने के कारण नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने सिविल सर्विस की पढ़ाई छोड़ दी और वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के साथ जुड़ गए। कांग्रेस पार्टी में महात्मा गांधी उदार दल के नेता थे, जबकि नेताजी सुभाष चंद्र बोस (Subhash Chandra Bose) जोशीले क्रांतिकारी दल के नेता थे। इसलिए महात्मा गांधी की अहिंसा वाली प्रवृत्ति सुभाष चंद्र बोस को अच्छी नहीं लग रही थी, लेकिन नेताजी यह बखूबी जानते थे कि, उद्देश्य दोनों का एक ही है “देश की आजादी”। सर्वप्रथम नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने ही महात्मा गांधी को राष्ट्रपिता कह कर संबोधित किया था।
पूर्ण स्वराज की मांग को लेकर नेताओं की विचारधारा में था मतभेद
1928 में जैसे ही साइमन कमीशन भारत आया तो कांग्रेस ने इसका खुलकर विरोध किया और काले झंडे दिखाए। 1928 में कोलकाता में कांग्रेस का वार्षिक अधिवेशन हुआ जिसका नेतृत्व मोतीलाल नेहरू ने किया। इस अधिवेशन में अंग्रेज़ सरकार को ‘डोमिनियन स्टेटस’ देने के लिए एक साल का वक्त दिया गया। उस समय गांधी जी पूर्ण स्वराज की मांग से बिल्कुल भी सहमत नहीं थे।
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जबकि सुभाषचंद्र बोस (Subhash Chandra Bose death reason) और जवाहर लाल नेहरू पूर्ण स्वराज की मांग को लेकर अड़े रहे। 1930 में इंडीपेंडेंस लीग का गठन किया गया। 1930 के ‘सिविल डिसओबिडेंस’ आन्दोलन के दौरान सुभाषचंद्र बोस को गिरफ्तार करके जेल भेज दिया गया। 1931 में गांधी-इरविन पैक्ट के बाद नेताजी की रिहाई हुई। सुभाषचंद्र बोस ने गाँधी-इरविन पैक्ट का विरोध किया और ‘सिविल डिसओबिडेंस’ आन्दोलन को रोकने के फैसले से भी वह खुश नहीं थे।
महात्मा गांधी ने बोस को पार्टी से इस्तीफा देने को कहा था
1937 में ऑस्ट्रियन युवती एमिली के साथ सुभाष चंद्र बोस का विवाह हुआ, सन 1938 में बोस को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का अध्यक्ष चुने जाने के बाद उन्होंने राष्ट्रीय योजना आयोग का गठन किया, यह कमेटी गांधीवादी विचारों से बिल्कुल अलग थी जिस कारण से महात्मा गांधी ने सुभाष चंद्र बोस को पार्टी से इस्तीफा देने के लिए बाध्य कर दिया, अंततः 1940 में सुभाष चंद्र बोस ने राजनीति और कांग्रेस पार्टी दोनों से इस्तीफा दे दिया।
सुभाष चन्द्र बोस ने किया था आज़ाद हिंद फौज का गठन
21 अक्टूबर 1943 को क्रांतिकारी सुभाष चंद्र बोस ने आज़ाद हिंद फौज का गठन किया जिसका उद्देश्य द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान अंग्रेजों से मुकाबला करना तथा भारत की जनता को अंग्रेजों के चंगुल से मुक्त कराना था।
4 जुलाई 1944 को नेताजी सुभाष चंद्र बोस अपनी सेना आज़ाद हिंद फौज को लेकर बर्मा पहुंचे। वहीं पर उन्होंने अपना यह प्रसिद्ध नारा दिया।
“तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूंगा”
इस नारे से हर भारतीय की रंगो में भारत को आज़ादी दिलाने के लिए जोश भर जाता था। आज भी यह नारा हर भारतीय के दिलों को जोश और उमंग से सराबोर कर देता है। 1944 में आज़ाद हिंद फौज ने पुनः अंग्रेजों पर आक्रमण किया और कुछ भारतीय राज्यों को मुक्त करा लिया।
Subhash Chandra Bose Death: इतिहासकारों के मतानुसार
- सुभाष चंद्र बोस भारत में तब मौजूद नहीं थे जब देश ने 15 अगस्त 1947 को आजा़दी हासिल की थी और इतिहासकार आज तक इस धारणा पर अड़े हैं कि वे एकमात्र ऐसे नेता थे जो भारत को विभाजन से बचाने की क्षमता रखते थे। कहा जाता है कि वह भारत के स्वतन्त्रता संग्राम के अग्रणी तथा सबसे बड़े नेता थे।
- 1945 में जापान के हिरोशिमा और नागासाकी में हुई तबाही के ठीक बाद वह लापता हो गए थे और कई रिपोर्टों का दावा है कि उसने रणनीतिक रूप से सोवियत संघ को ब्रिटिश सेनाओं को चकमा देने के लिए अपना रास्ता बना लिया था, जहां वह बाद में साइबेरिया की ओम्स्क जेल में कैद था।
Subhash Chandra Bose Death: नेताजी सुभाष चंद्र बोस के नारे
- “जो अपनी ताकत पर भरोसा करते हैं, अक्सर वो ही आगे बढ़ते हैं”
- जिस व्यक्ति के अंदर ‘सनक’ नहीं होती वो कभी महान नहीं बन सकता”
- सफलता का दिन दूर हो सकता है ,पर उसका आना अनिवार्य है”
- 5 जुलाई 1943 को नेताजी ने “दिल्ली चलो” का नारा दिया था।
Subhash Chandra Bose Death: सुभाष चंद्र बोस के विचार
मैं अपनी सूक्ष्म अंतर आत्मा में यह अनुभव करता हूं कि इस संसार में मुझे दुख मिले या निराशा, मैं मनुष्यत्व को सार्थक बनाने के लिए सदैव संघर्षशील रहूंगा।
मेरे जीवन की समूची शिक्षा और अनुभव ने यह सत्य सिद्धांत दिया है, कि पराधीन जाति का तब तक सब कुछ व्यर्थ है, जब तक उसका उपयोग स्वाधीनता की सिद्धि में न किया जाए।
“हमारी राह भले ही भयानक और पथरीली हो ,हमारी यात्रा चाहे कितनी भी कष्टदायक हो , फिर भी हमें आगे बढ़ना ही होगा”।
“मुझमे जन्मजात प्रतिभा तो नहीं थी ,परन्तु कठोर परिश्रम से बचने की प्रवृति मुझमें कभी नहीं रही” ।
विमोचित हो चुकी है नेताजी सुभाषचंद्र बोस पर लिखित पुस्तक
साल 2020 में भारत के स्वतंत्रता दिवस से ठीक तीन दिन पहले, भारत के पूर्व उपराष्ट्रपति, श्री एम वेंकैया नायडू ने 12 अगस्त को अंतर्राष्ट्रीय युवा दिवस पर नेता जी के जीवन पर लिखित पुस्तक ‘NETAJI: India’s Independence and British Archives’ का विमोचन किया था। पुस्तक के लेखक हैं डॉ कल्याण कुमार डे (एमएससी, पीएचडी, वनस्पति विज्ञान विभाग, बारासात सरकार)। उपराष्ट्रपति वैंकेया नायडू ने युवाओं से उनके जीवन से प्रेरणा लेने का आग्रह किया।
देशभक्ति के साथ-साथ आध्यात्मिकता भी जरूरी
यह तो सब जानते हैं कि 1947 से पहले भारत देश अंग्रेजों का गुलाम था। हम अंग्रेजों के अधीन थे, हमारे बहादुर क्रांतिकारियों ने देश की आज़ादी के लिए अपने प्राण न्यौछावर कर दिए। भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु जैसे क्रांतिकारियों को फांसी पर लटकना पड़ा, महात्मा गांधी और सुभाष चंद्र बोस जैसे स्वतंत्रता सेनानियों को जेल जाना पड़ा, लाखों सैनिक स्वतंत्रता की इस लड़ाई में वीरगति को प्राप्त हुए।
अंततः 15 अगस्त 1947 को भारत आजाद हुआ और हमें अंग्रेजों से मुक्ति मिल गई लेकिन शायद हम यह भूल रहे हैं कि हम अभी भी काल के बंधन में बंधे हुए हैं। हमें अभी भी इस ब्रह्मांड में काल भगवान ने बंदी बना कर रखा है, इसके लोक में हम जन्म मरण रूपी महान कष्ट और 84 लाख प्राणियों के जीवन में कष्ट से अत्यधिक पीड़ित हैं।
इस काल के जन्म मरण रूपी 84 लाख प्राणियों के महान कष्ट से हमें छुटकारा मिल सकता है, कबीर परमेश्वर जी वह समर्थ परमात्मा है जो हमें इस काल के चंगुल से मुक्त करा सकते हैं, हमारे इस जन्म मरण रूपी भयंकर कष्ट को सदा सदा के लिए समाप्त कर सकते हैं। मनुष्य जीवन को सफल बनाने, समस्त बुराइयों से निजात पाने तथा सुखमय जीवन जीने के लिए संत रामपाल जी महाराज जी के सत्संग सुनें और उनके द्वारा लिखित पुस्तक ज्ञान गंगा अवश्य पढ़ें।
FAQ About Subhash Chandra Bose Death Anniversary
Ans. नेताजी सुभाष चंद्र बोस का जन्म 23 जनवरी 1897 को कटक उड़ीसा के एक बंगाली परिवार में हुआ।
Ans. 18 अगस्त 1945 को टोक्यो जाते वक्त ताइवान के पास हवाई दुर्घटना के कारण नेताजी सुभाष चंद्र बोस की मृत्यु हो गई थी, परन्तु कुछ इतिहासकार इस घटना को सही नहीं मानते हैं।
Ans. हर साल 18 अगस्त के दिन।
Ans. सुभाषचंद्र बोस प्राम्भिक दिनों में महात्मा गांधी जी से प्रभावित थे बाद में चितरंजन दास ने उन्हें इतना अधिक प्रभावित किया कि उन्होंने उन्हें अपना राजनैतिक गुरु तथा मार्गदर्शक मान लिया था।
Ans. सन् 1938 में।
Ans. सुभाषचंद्र बोस के पिता का नाम ‘जानकीनाथ बोस’ और उनकी माता का नाम प्रभावती देवी था।