June 18, 2025

Shravana Putrada Ekadashi 2024 : जानें संतान सुख जैसे सर्व लाभ कैसे सम्भव हैं?

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हिन्दू पंचाग के अनुसार प्रतिवर्ष श्रावण (सावन) मास की शुक्लपक्ष की एकादशी तिथि को श्रावण पुत्रदा एकादशी (Shravana Putrada Ekadashi 2024) मनाई जाती है। वर्षभर में दो पुत्रदा एकादशी मनाईं जाती हैं, एक पौष माह में व दूसरी श्रावण (सावन) मास में। ऐसी लोकमान्यता है कि जो महिलाएं दांपत्य जीवन में संतान सुख से वंचित हैं या जिन माताओं की संतानें हैं वह अपनी संतान की दीर्घायु व सुख के लिए इस एकादशी पर पूजा अर्चना करती हैं व व्रत रखती हैं, संतान सुख से वंचित महिलाओं के लिए सावन पुत्रदा एकादशी बहुत ही महत्वपूर्ण मानी जाती है, परन्तु पवित्र सद्ग्रन्थों में इसका कोई उल्लेख नहीं है कि इस एकादशी व्रत साधना को करने से संतान सुख मिलेगा ही या संतान दीर्घायु होगी। प्रिय पाठकजनों का यह जानना भी अत्यंत आवश्यक है कि वह सर्वशक्तिमान पूर्ण परमात्मा कौन है जो संतान सुख जैसे सर्व लाभ व पूर्ण मोक्ष देने में सक्षम है?

Table of Contents

  • इस वर्ष श्रावण पुत्रदा एकादशी 16 अगस्त, शुक्रवार को मनाई जाएगी
  • सालभर में दो बार मनाई जाती है पुत्रदा एकादशी एक पौष माह में व द्वितीय श्रावण मास में
  • संतान सुख की कामना से महिलाएं इस एकादशी पर भगवान विष्णु की आराधना करती हैं, परन्तु भगवान विष्णु नहीं हैं सर्वशक्तिमान परमेश्वर 
  • व्रत इत्यादि कर्मकांड को पवित्र श्रीमद्भगवत गीता जी में निषेध बताया है तथा इसे शास्त्रविरुद्ध साधना से परिभाषित किया गया है
  • शास्त्रविरुद्ध साधना से कोई लाभ नहीं है अपितु सिर्फ मनुष्य जन्म के मूल्यवान समय की बर्बादी है
  • तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज जी से जानें शास्त्र प्रमाणित सतभक्ति विधि जिससे संतान जैसे सर्व लाभ व पूर्ण मोक्ष सम्भव हैं

 वैसे तो सारी एकादशी तिथि भगवान विष्णु को समर्पित होती है। वहीं सावन (श्रावण) माह भगवान शिव का मास कहा जाता है। ऐसे में सावन पुत्रदा एकादशी का महत्व विशिष्ट हो जाता है। इस दिन भगवान विष्णु की आराधना की जाती है। इसके साथ ही श्रीकृष्ण भगवान के बाल स्वरुप की पूजा करते हुए संतान की कामना की जाती है। इसे पुत्र रत्न देने वाली एकादशी भी कहते हैं। इसी लिए जो लोग दांपत्य जीवन में संतान सुख से वंचित हैं, उन लोगों के लिए सावन पुत्रदा एकादशी बहुत ही महत्वपूर्ण मानी जाती है। हिन्दू धर्म में ऐसी लोक मान्यता है कि इस एकादशी व्रत को करने से संतान की प्राप्ति होती है। परन्तु सर्वशक्तिमान पूर्ण परमेश्वर कविर्देव जी ही अपने साधक को संतान सुख से लेकर सर्व लाभ देते हैं व पूर्ण मोक्ष भी प्रदान करते हैं।

हिन्दू पंचांग के अनुसार, श्रावण पुत्रदा एकादशी व्रत (Shravana Putrada Ekadashi Vrat) श्रावण मास की शुक्लपक्ष की एकादशी तिथि को रखा जाता है। हिंदू कैलेंडर के अनुसार, इस साल सावन शुक्ल एकादशी 15 अगस्त को सुबह 10:26 से शुरू होकर 16 अगस्त को सुबह 9:39 पर समाप्त होगी। उदयातिथि के अनुसार, पुत्रदा एकादशी व्रत 16 अगस्त को रखा जाएगा।

परंतु आप को बता दें कि व्रत करने से कोई लाभ संभव नहीं है, बल्कि यह गीता अध्याय 6 के श्लोक 16 के अनुसार शास्त्र विधि को त्याग कर मनमाना आचरण है । आपकी जानकारी के लिए बता दें कि एक वर्ष में कुल 24 एकादशी तिथि होती हैं। लोक मान्यताओं के अनुसार एकादशी तिथि भगवान विष्णु को अतिप्रिय मानी जाती है। 

द्वापर युग में महीजित नाम का राजा था जो बड़ा ही शांति एवं धर्म प्रिय था, परन्तु उसकी कोई संतान नहीं थी जिस वजह से वह परेशान रहता था। राजा के शुभचिंतकों ने राजा की परेशानी महामुनि लोमेश को बताई तो उन्होंने बताया कि राजन पूर्व जन्म में एक अत्याचारी वैश्य था। एकादशी के दिन वो दोपहर के समय पानी पीने जलाशय पर पहुंचा, जहां उसने गर्मी से पीड़ित एक प्यासी गाय को पानी पाने से रोककर स्वयं पानी पीने लगा। राजा का ऐसा करना धर्म के अनुरूप नहीं था। अपने पूर्व जन्म के पुण्य कर्मों के फलस्वरूप वह इस जन्म में राजा तो बना लेकिन उसके एक पाप के कारण वह संतान विहीन हैं।

■ Also Read: Devshayani Ekadashi: देवशयनी एकादशी पर जानिए पूर्ण परमात्मा की सही पूजा विधि

महामुनि ने बताया कि राजा के सभी शुभचिंतक अगर श्रावण शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को व्रत रखें और उसका पुण्य राजा को दे दें तो राजा को संतान रत्न की प्राप्ति हो जायेगी। मुनि के निर्देशानुसार प्रजा के साथ-साथ जब राजा ने भी यह व्रत किया तो इस व्रत के पुण्य प्राप्त से कुछ समय बाद राजा को एक तेजस्वी पुत्र की प्राप्ति हुई। तभी से श्रावण एकादशी को श्रावण पुत्रदा एकादशी के नाम से जाना जाने लगा। यह कथा सिर्फ लोक प्रचलित कथा है पवित्र शास्त्रों में इस कथा का कहीं भी कोई उल्लेख नहीं है इसलिए इस कथा के आधार पर ही साधक समाज इस एकादशी पूजन करने का विचार न करे, अपितु सद्ग्रन्थों का अध्ययन कर जानें कि पवित्र सद्ग्रन्थ किस साधना को करने का प्रमाण दे रहे हैं जिससे सर्व लाभ यथा समय प्राप्त होंगे।

पुत्रदा एकादशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। इस दिन सुबह स्नानादि कार्यों को पूरा करके भगवान नारायण की पूजा की तैयारी की जाती है। घी का दीपक जलाया जाता है और व्रत करने का संकल्प लिया जाता है। भगवान को फल, फूल, तिल व तुलसी चढ़ाएं जाते है। विचारणीय विषय यह है कि शास्त्रों में इस प्रकार की साधना का कोई वर्णन नहीं है साधक समाज को चाहिए कि पूर्ण संत के मार्गदर्शन में पवित्र शास्त्रों का अध्ययन कर जाने की शास्त्र किस साधना की ओर संकेत कर रहे हैं तथा साधन समाज किस साधना को कर रहा है।

व्रत करना गीता में वर्जित है। एकादशी आदि सभी शास्त्र विरुद्ध व्रत हैं जो शास्त्रों में वर्जित हैं। गीता अध्याय 6 के श्लोक 16 में बताया है कि बहुत खाने वाले का और बिल्कुल न खाने वाले का, बहुत शयन करने वाले का और बिल्कुल न सोने वाले का उद्देश्य कभी सफल नहीं होता है। अतः ये शास्त्र विरुद्ध क्रियाएं होने से व्रत आदि क्रियाएं कभी लाभ नहीं दे सकती हैं।

न, अति, अश्नतः, तु, योगः, अस्ति, न, च, एकान्तम्, अनश्नतः,

न, च, अति, स्वप्नशीलस्य, जाग्रतः, न, एव, च, अर्जुन।।

गीता अध्याय 6 श्लोक 16

संख्या न. 359 सामवेद अध्याय न. 4 के खण्ड न. 25 का श्लोक न. 8 

पुरां भिन्दुर्युवा कविरमितौजा अजायत। इन्द्रो विश्वस्य कर्मणो धर्ता वज्री पुरुष्टुतः ।।

पुराम्-भिन्दुः-युवा-कविर्-अमित-औजा-अजायत-इन्द्रः-विश्वस्य-कर्मणः-धर्ता-वज्री- पुरूष्टुतः।

भावार्थ है कि जो कविर्देव (कबीर परमेश्वर) तत्वज्ञान लेकर संसार में आता है। वह सर्वशक्तिमान है तथा काल (ब्रह्म) के कर्म रूपी किले को तोड़ने वाला है वह सर्व सुखदाता है तथा सर्व के पूजा करने योग्य है।

पूर्ण परमेश्वर कविर्देव जी के लिए कुछ भी असम्भव नहीं है, क्योंकि वेद इस बात की गवाही देते हैं कि सर्वशक्तिमान परमात्मा अपने साधक के सर्व दुःखों का हरण करने वाले हैं व अपने साधक को मृत्यु से बचाकर शत (100) वर्ष की सुखमय आयु प्रदान करते हैं, तो फिर ये संतान सुख देना तो पूर्ण परमात्मा के लिए एक छोटी सी बात है। जैसे एक पिता अपनी संतान को सर्व कष्टों से दूर रखने का हर प्रयत्न करता है ठीक उसी प्रकार हम सर्व जीव, चाहे वह मनुष्य हों या अन्य योनियो के जीव-जंतु उस पूर्ण परमात्मा कविर्देव जी की ही संतानें हैं वह परमात्मा भी हम सबकी रक्षा एक पिता तुल्य ही करता है।

पूर्ण परमात्मा कविर्देव जी स्वयं संत रूप में इस समय इस मृत्युलोक (पृथ्वीलोक) में हम जीवों के दुखों को दूर करने व पूर्ण मोक्ष देने के लिए तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज जी के स्वरूप में आये हुए हैं। अपना कल्याण चाहने वाली पुण्यात्माएं ऐसे तत्वदर्शी संत से निःशुल्क नाम दीक्षा लेकर अपने सर्व पापों को कटवा कर इस मृत्यु लोक में सर्व सुख प्राप्त कर समय होने पर पूर्ण मोक्ष प्राप्त करें। तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज की सतज्ञान वर्षा और सतनाम/सारनाम कृपा से गुरु मर्यादा का पालन करते हुए सांसारिक दुखों से छुटकारा पाकर अपना और परिवार का कल्याण कराएं। 

शास्त्रविरुद्ध साधना व शास्त्रानुकूल साधना में विस्तार से भिन्नता जानने के लिए सतलोक आश्रम यूट्यूब चैनल पर आकर सत्संग श्रवण करें तथा तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज जी द्वारा लिखित पुस्तक अंध श्रद्धा भक्ति खतरा-ए-जानको अवश्य पढ़ें।

प्रश्न 1: श्रावण पुत्रदा एकादशी 2024 कब मनाई जाएगी?

उत्तर: श्रावण पुत्रदा एकादशी 2024, 16 अगस्त को मनाई जाएगी। इस दिन व्रत और भगवान विष्णु की पूजा का विशेष महत्व है जो कि पूरी तरह से शास्त्रों के विपरीत है।

प्रश्न 2: श्रावण पुत्रदा एकादशी का क्या महत्व है?

उत्तर: श्रावण पुत्रदा एकादशी को संतान प्राप्ति और संतान की दीर्घायु के लिए व्रत रखा जाता है। इसे पुत्रदा एकादशी के रूप में जाना जाता है और यह विशेष रूप से उन लोगों के लिए महत्वपूर्ण मानी जाती है जो संतान सुख की कामना करते हैं लेकिन क़िस्मत में संतान नहीं होने पर भी संतान प्राप्ति सिर्फ़ कबीर भगवान के आशीर्वाद से ही प्राप्त हो सकती है।

प्रश्न 3: क्या व्रत और पूजा से संतान सुख की प्राप्ति संभव है?

उत्तर: हिंदू धर्म में ऐसी मान्यता है कि श्रावण पुत्रदा एकादशी पर व्रत और पूजा करने से संतान सुख मिलता है, लेकिन शास्त्रों में इस बात का कोई प्रमाण नहीं है। गीता और वेदों के अनुसार, व्रत और पूजा से मनवांछित फल प्राप्त करना शास्त्रानुकूल नहीं है।

प्रश्न 4: गीता में व्रत और पूजा के बारे में क्या कहा गया है?

उत्तर: गीता अध्याय 6 के श्लोक 16 में कहा गया है कि अत्यधिक खाने, बिल्कुल न खाने, अत्यधिक सोने या बिल्कुल न सोने वाले व्यक्ति का उद्देश्य कभी सफल नहीं होता। इसलिए व्रत को शास्त्रविरुद्ध माना गया है और इससे कोई वास्तविक लाभ नहीं होता।

प्रश्न 5: श्रावण पुत्रदा एकादशी पर सही साधना क्या है?

उत्तर: श्रावण पुत्रदा एकादशी पर सही साधना के लिए शास्त्र प्रमाणित विधि का पालन करना चाहिए। तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज जी के मार्गदर्शन में शास्त्रानुकूल सतभक्ति विधि को अपनाकर ही संतान सुख, सभी प्रकार के लाभ और पूर्ण मोक्ष प्राप्त किए जा सकते हैं।

प्रश्न 6: क्या श्रावण पुत्रदा एकादशी की कथा शास्त्रों में प्रमाणित है?

उत्तर: श्रावण पुत्रदा एकादशी से संबंधित कथा केवल लोक प्रचलित है और इसका शास्त्रों में कोई प्रमाण नहीं है। इसलिए, केवल कथा के आधार पर पूजा और व्रत करना शास्त्रसम्मत नहीं माना जाता।

प्रश्न 7: क्या श्रावण पुत्रदा एकादशी का व्रत करना अनिवार्य है?

उत्तर: शास्त्रों के अनुसार, व्रत करना अनिवार्य नहीं है और इसे शास्त्रविरुद्ध माना गया है। सही साधना के लिए शास्त्रों में वर्णित विधि का पालन करना आवश्यक है, जो तत्वदर्शी संत रामपाल की महाराज के मार्गदर्शन से ही संभव है।

प्रश्न 8: पूर्ण मोक्ष और संतान सुख के लिए क्या करना चाहिए?

उत्तर: पूर्ण मोक्ष और संतान सुख के लिए शास्त्रानुकूल साधना करनी चाहिए। तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज जी के मार्गदर्शन में पवित्र शास्त्रों के अनुसार भक्ति करने से जीवन के सभी कष्टों से मुक्ति और सर्व सुख संभव हैं।

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