November 23, 2024

Shani Jayanti 2022 [Hindi] : देवी-देवताओं की पूजा निरर्थक; जानिए यथार्थ सतभक्ति विधि

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Last Updated on 30 May 2022, 7:08 PM IST | Shani Jayanti 2022: हिन्दूधर्म में अनेकों देवी-देवताओं की पूजा-अर्चना की जाती है। बहुत ही श्रद्धा से श्रद्धालु अनेकों जयंतियां मनाते हैं। 30 मई जून 2022 के दिन शनि जयंती मनाई गई । हिंदू पंचांग के अनुसार, ज्येष्ठ मास की अमावस्या को हर साल शनि जयंती मनाई जाती है। सभी ग्रहों में शनिदेव को महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। मान्यताओं के अनुकूल शनिदेव को कर्म नाशक व फलदाता माना जाता है। कहा जाता है कि शुद्ध ह्रदय वाले मनुष्य पर शनिदेव की कृपा बनी रहती है, जबकि अशुद्ध ह्रदय वालों को शनिदेव दंड देते हैं। मान्यता है कि इस दिन शनिदेव की विधि-विधान से पूजा करने से शनि दोषों से मुक्ति मिलती है। पाठक जन आज जानेंगे, जो देवी-देवता स्वयं जन्म-मरण में हो, जो अपने कर्म को भी नहीं काट सकते है, क्या वह देवगण उनके उपासक के कर्म नाश करके उसे मुक्ति प्रदान कर सकते हैं?

Shani Jayanti 2022: मुख्य बिंदु

  • इस वर्ष शनि जयंती 30 मई जून 2022 गुरुवार को मनाई गई है
  • लोकवेद मान्यताओं के अनुसार शनिदेव की महत्ता पवित्र ग्रंथों वेदों, गीता के अनुसार बिल्कुल नहीं है
  • 148 वर्ष बाद शनि जयंती के दिन लगा है सूर्य ग्रहण जो एक खगोलीय घटना है  
  • श्रीमद्भगवत गीता 17:23 में दिए मंत्र जाप से सर्व सुख प्राप्त होते हैं
  • पूर्ण गुरु रामपाल जी द्वारा प्रदत्त पूर्ण परमात्मा कबीर साहेब की सतभक्ति के बिना जीवन है व्यर्थ
  • तत्वदर्शी संत रामपाल जी द्वारा नाम उपदेश से मिलते है सर्व लाभ अन्यथा मानव भूल भुलैया में फंसा जाने

जानिए शनि देव का संक्षिप्त परिचय 

शनि देवता का जन्म ज्येष्ठ माह की कृष्ण अमावस्या के दिन हुआ था। शनिदेव  को कई नामों से जाना जाता जैसे यमाग्रज, छायात्मज, नीलकाय, क्रुर कुशांग, कपिलाक्ष और पंगु इत्यादि। शनि 33 मुख्य देवताओं में से एक भगवान सूर्य और माता छाया के पुत्र बताए गए है। एक कथा के अनुसार राजा दक्ष की कन्या संज्ञा का विवाह सूर्यदेवता के साथ हुआ जो उनके तेज से परेशान थी और सूर्य देव की अग्नि को कम करने का उपाय सोचने लगी। समय बीतने के साथ संज्ञा ने वैवस्वत मनु, यमराज और यमुना नामक तीन संतानों को जन्म दिया।

संज्ञा ने तपस्या के बल पर अपनी ही तरह की एक महिला को पैदा किया जो उनकी छाया की तरह थी और उसका नाम संवर्णा रखा और उन्हीं  को छाया भी कहा गया। संज्ञा ने छाया को अपने बच्चों और सूर्यदेव की जिम्मेदारी सौंप कर कहा “यह राज सिर्फ मेरे और तुम्हारे बीच ही बना रहना चाहिए”। छाया ने सूर्यदेव को आभास नहीं होने दिया और नारीधर्म का पालन करती रही। उन दोनों के संयोग से भी मनु, शनिदेव और भद्रा (तपती) तीन संतानों ने जन्म लिया।

क्या माता की कठोर तपस्या शनिदेव के काम आई?

जब शनि गर्भ में थे तब माता छाया ने भगवान शिव की कठोर तपस्या की उसी कारण धूप-गर्मी सहने के कारण शनिदेव का रंग काला निकला। यह रंग देखकर सूर्यदेव ने छाया पर संदेह करते हुए उन्हें अपमानित किया। माता छाया के तप की शक्ति शनिदेव में भी विद्यमान थी अतः माता के अपमान से ग्रस्त उनके क्रोध के कारण सूर्यदेव काले पड़ने लगे और कुष्ठ रोग से ग्रसित हो गये। घबराकर सूर्यदेव भगवान शिव की शरण में पहुंचे तब भगवान शिव ने उन्हें गलती का अहसास करवाया। सूर्यदेव ने पश्चाताप वश क्षमा याचना की और उन्हें फिर से अपना असली रूप वापस मिला। मान्यता है यह घटना हमेशा के लिए पिता और पुत्र का संबंध खराब कर गई।

Shani Jayanti 2022 : क्या पत्नी के श्राप से बच पाए शनि देवता?

शनि देवता के संबंध में कई कथाएं प्रचलित हैं । ब्रह्मपुराण की माने तो शनिदेव के पिता ने चित्ररथ की पुत्री से इनका विवाह कर दिया। शनि देवता की पत्नी परम तेजस्विनी थी। एक रात्री उन्हे पुत्र-प्राप्ति की इच्छा हुई और इस निमित्त वे अपने पति के पास गई लेकिन वे श्रीकृष्ण के ध्यान में मग्न थे। प्रतीक्षा करके पत्नी थक गई और उसका ऋतुकाल निष्फल हो गया। क्रुद्ध पत्नी ने शनिदेव को शाप दिया, “आज से जिसे तुम देख लोगे, वह नष्ट हो जाएगा”। क्रोध शांत होने पर पत्नी को पश्चाताप हुआ लेकिन श्राप प्रतीकार की शक्ति उसमें न थी। कहते हैं उस समय से शनि देवता ने अपना सिर नीचा कर लिया ताकि वह किसी को न देखें और किसी का इनके द्वारा अनिष्ट नहीं हो। पाठकों को जानना चाहिए कि जो अपने को नहीं बचा सकता वो क्या समर्थ है और वह कैसे किसी का कल्याण या अनर्थ कर सकेगा।

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Shani Jayanti 2022 : क्या है शनिदेव की क्षमता?

ऐसी भी मान्यता है कि शनि देव के सिर पर स्वर्णमुकुट, गले में माला तथा शरीर पर नीले रंग के वस्त्र और गिद्ध इनकी सवारी हैं। अपने हाथों में धनुष, बाण, त्रिशूल को धारण करने वाले शनिदेव से देवी-देवताओं और यहाँ तक कि शिवजी को भी बैल बनकर जंगलों में भटकना पड़ा था। लेकिन लंका के राजा रावण ने शनि देव को कैद में रख रखा था। यही राजा रावण तत्वदर्शी संत मुनीन्द्र जी (कबीर साहेब) से सतज्ञान लेने को तैयार नहीं हुए और लख चौरासी में गए जबकि उनकी पत्नी मंदोदरी और भाई विभीषण पार उतर गए। यानी की वास्तव में शनि देव खुद अपनी रक्षा करने में असमर्थ है। सबके वास्तविक रक्षक कविर्देव यानी कबीर साहेब है।

खगोल विज्ञान के अनुसार शनि भी एक ग्रह  है उससे अधिक कुछ भी नहीं  

खगोल विज्ञान के विधार्थी जानते हैं शनि भी एक ग्रह है जिसका व्यास 120500 किमी है। यह ग्रह 600 किमी प्रति घंटा की औसत गति से गति करता है। शनि ग्रह सूर्य से लगभग डेढ़ अरब कि.मी. की दूरी पर रहकर 29 वर्षों में सूर्य का चक्कर पूरा करता है। शनि अपनी धुरी पर घूमने में नौ घंटे का समय लगता  है। आपको बता दें कि करीब 148 वर्ष बाद शनि जयंती के दिन सूर्य ग्रहण लगा है 30 मई 2022 के दिन यह भी अंक गणितीय खगोलीय घटना है।    

Shani Jayanti 2022 : शनिदेव की पूजा अर्चना शास्त्रविरुद्ध है

मनमुखी पूजा आराधना, हवन यज्ञ एवं व्रत गीता में व्यर्थ कहे गए हैं। हम देखा देखी करके कुछ भी कर रहे हैं। गीता अध्याय 16 के श्लोक 23 के अनुसार शास्त्रविधि त्यागकर मनमाना आचरण करने वाले न सुख को प्राप्त होते हैं और न किसी गति को प्राप्त होते हैं। श्रीमद्भगवत गीता में क्या कहा है पढ़िए:

  • देवी देवताओं व तीनों गुण ( रजोगुण – ब्रह्मा, सतोगुण – विष्णु, तमोगुण – शिवजी ) की पूजा करना तथा भूत पूजा, पितर पूजा ( श्राद्ध निकालना) मूर्खों की साधना है। इन्हें घोर नरक में डाला जाएगा। प्रमाण है गीता जी के अध्याय 7 का श्लोक 12 से 15 तथा 20 से 23 व अध्याय 9 के श्लोक 25 में।
  • किसी भी देवी देवता या अन्य मनमुखी साधना पूजाएं करना व्यर्थ है। व्रत करने से भक्ति असफल ही होती है। प्रमाण है गीता जी के अध्याय 6 के श्लोक न. 16 में।
  • जो व्यक्ति शास्त्रों के अनुसार भक्ति, यज्ञ हवन आदि (पूर्ण गुरु के अनुसार ) नहीं करते है वे पापी और चोर प्राणी है। प्रमाण है गीता जी अध्याय 3 के श्लोक न. 12 में।

जगत के नकली गुरुओं से बचें

यह सर्व करना व्यर्थ इसलिए है क्योंकि हम वेदों पुराणों में वर्णित भक्ति विधि नहीं अपना रहे हैं। तत्वज्ञान के अनुसार विस्तार से जानते है कि किस पूजा विधि से पूर्ण लाभ प्राप्त कर सकते हैं। कबीर साहेब ने कहा है कि सतगुरु से सद्भक्ति पाए बिना हम कुछ भी पूजाएँ या साधनाएं करते रहे, उनसें  न सुख होता है न समृद्धि और न ही परमगति। अतः जगत के नकली गुरुओं से बचें –

गुरुवाँ गाम बिगाड़े सन्तो, गुरुवाँ गाम बिगाड़े |

ऐसे कर्म जीव के ला दिए, बहुर झड़ैं नहीं झाड़े ||

गुरु बिन काहू न पाया ज्ञाना, ज्यों थोथा भुस छड़े किसाना ||

तीर्थ व्रत अरु सब पूजा, गुरु बिन दाता और न दूजा ||

पूर्ण गुरु व पूर्ण परमात्मा की भक्ति के बिना जीवन है व्यर्थ

गीता अध्याय 15 में पूर्ण तत्वज्ञानी के बारे में बताया है कि पूर्ण संत की शरण में जाकर उनसे भक्ति साधना लेकर, समझकर भक्ति प्रारम्भ करना ही हितकारी है। धनवृद्धि और सुखशांति जो कि पूर्ण गुरु दीक्षा के रूप में मंत्र जाप करने को देते हैं जिससे लाभ व मोक्ष प्राप्ति होती है। इस मंत्र का भेद केवल तत्वदर्शी संत ही दीक्षा प्रदान करते समय बताते हैं।

सतगुरु जो चाहे सो करही,  चौदह कोटि दूत जम डरहीं ।

ऊत भूत जम त्रास निवारे, चित्र गुप्त जे कागज फारे ।।

गीता में किस मन्त्र के जाप से सर्व सुख प्राप्त होते हैं

गीता अध्याय 17 के श्लोक 23 से 28 तक पूर्ण मोक्ष मंत्र के संकेत है, पूर्ण तत्वदर्शी संत के अनुसार जाप करने से पूर्ण लाभ और मोक्ष की प्राप्ति होती है। पूर्ण परमात्मा को पाने का “ॐ-तत्-सत्” यह तीन नाम का मन्त्र हैं जो सांकेतिक हैं किंतु पूर्ण तत्वदर्शी संत इसका सही जाप बताते हैं।

संकट मोचन एवं कष्ट हरण कविर्देव हैं

सामवेद संख्या न. 822 उतार्चिक अध्याय 3 खण्ड न. 5 श्लोक न.8 में लिखा है कि सनातन अर्थात अविनाशी कबीर परमेश्वर ह्रदय से चाहने वाले श्रद्धा से भक्ति करने वाले भक्त आत्मा को तीन मंत्र उपदेश देकर पवित्र करके जन्म-मरण रहित करता है (मोक्ष देता है ) तथा उसके प्राण अर्थात जीवन-स्वासों को जो संस्कारवश अपने मित्र अर्थात भक्त के गिनती के डाले हुए होते हैं को अपने भण्डार से पूर्ण रूप से बढ़ाता है। जिस कारण से परमेश्वर के वास्तविक आनंद को अपने आर्शीवाद प्रसाद से प्राप्त करवाता है।

वर्तमान में सद्गुरु केवल तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज ही हैं

वर्तमान में पूरे विश्व में एकमात्र केवल तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज जी ही हैं जो वास्तविक तत्वज्ञान करा कर पूर्ण परमात्मा की पूजा आराधना बताते है। समझदार को संकेत ही काफी होता है। वह पूर्ण परमात्मा ही है जो हमारे धनवृद्धि कर सकता है, सुख शांति दे सकता है व रोगरहित कर मोक्ष दिला सकता है। सर्व सुख और मोक्ष केवल तत्वदर्शी संत की शरण में जाने से सम्भव है। तो सत्य को जाने और पहचान कर पूर्ण तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज से मंत्र नामदीक्षा लेकर अपना जीवन कल्याण करवाएं। अधिक जानकारी के हेतु सतलोक आश्रम यूट्यूब चैनल पर सत्संग श्रवण करें, जीने की राह पुस्तक पढ़ें और शाम 7:30 से साधना चैनल पर मंगल प्रवचन सुने। दुनिया की सबसे अधिक डाउनलोड की जाने वाली सबसे लोकप्रिय आध्यात्मिक पुस्तक जीने की राह आप भी इसे जरूर पढ़ें। 

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