संकट के निवारण के लिए जन साधारण में मनाई जाने वाली संकष्टी चतुर्थी (Sankashti Chaturthi June 2021) या संकट चतुर्थी 27 जून रविवार को मनाई गई। संकष्टी चतुर्थी में लोकवेद के अनुसार गणेशजी की पूजा की जाती है। जानें कष्ट निवारण की शास्त्रानुकूल विधि जो देगी शत प्रतिशत लाभ।
संकष्टी चतुर्थी (Sankashti Chaturthi June 2021) के मुख्य बिंदु
- संकट चतुर्थी आज। देव गणेश की आराधना का विधान प्रचलन में।
- आषाढ़ मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को मनाई जाती है संकष्टी चतुर्थी।
- गणेश जी के विभिन्न मनमुखी मंत्र नहीं है कल्याणकारी
- सन्तान प्राप्ति से लेकर सभी संकट के निवारण के लिए जानें असली संकट मोचक “कविरग्नि” की भक्ति
Sankashti Chaturthi June 2021: संकट चतुर्थी
गत दिवस रविवार को संकष्टी चतुर्थी (Sankashti Chaturthi June 2021) मनाई गई। संकट चतुर्थी पर वास्तव में लोग गणेश जी की आराधना करते हैं। कुछ लोग सन्तान प्राप्ति के लिए तो कुछ लोग संकट निवारण के लिए व्रत एवं कर्मकांड में विश्वास रखते हैं। मान्यता है कि इस दिन गणेश जी के मंत्रों का जाप भी किया जाता है। जानकारी के लिए बता दें कि सृष्टि के आरम्भ से मौजूद वेदों और गीता में इन मन्त्रों को कोई महत्व नहीं दिया गया है। ये मनमुखी मन्त्र हैं। सभी देवताओं के वास्तविक मन्त्र केवल तत्वदर्शी सन्त ही जानता है तथा एवं केवल उससे लेकर जाप करने में ही फलदायी होते हैं।
संकष्टी चतुर्थी (Sankashti Chaturthi June 2021) का महत्व गीता में
गीता में व्रत आदि कर्मकांड वर्जित हैं। श्रीमद्भगवद्गीता के अध्याय 6 के श्लोक 16 अनुसार भक्ति न तो बहुत अधिक खाने वाले की सफल होती है और न ही बिल्कुल न खाने वाले की सफल होती है। यह बहुत अधिक सोने वाले की भी सफल नहीं है और न ही बहुत अधिक शयन करने वाले की सफल होती है। अन्य बिंदु यह है कि श्रीमद्भगवद्गीता के अध्याय 7 के श्लोक 14-15 में तीन गुणों (रजगुण-सतगुण-तमगुण) के देवताओं की भक्ति करने वाले मनुष्यों में नीच, मूढ़ एवं दूषित कर्म करने वाले कहे गए हैं। भगवान गणेश, गणों के पति या स्वामी अर्थात गणपति हैं जिनकी आराधना के विषय मे श्रीमद्भगवद्गीता में कहीं भी नहीं कहा गया है लेकिन आदि गणेश कबीर साहेब है वे ही पूजा के योग्य है।
किन्तु इसका अर्थ यह नहीं कि भगवान गणेश आदरणीय नहीं हैं अपितु इसका अर्थ यह है कि उनकी साधना विधि अन्य ही है जो केवल तत्वदर्शी सन्त बता सकते हैं। गीता अध्याय 4 के श्लोक 34 में पूर्ण तत्वदर्शी सन्त की शरण मे जाने के लिए कहा गया है एवं तत्वदर्शी सन्तों को दंडवत प्रणाम करने एवं तत्वज्ञान की प्राप्ति के लिए कहा है। वास्तव में तत्वज्ञान ही है जो दुःखों से मुक्ति का मार्ग बता सकता है।
कौन है वास्तव में संकट मोचन
परमेश्वर कौन है? जो अंधे को आंख, कोढ़ी को काया, निर्धन को माया एवं बांझ को पुत्र दे सकने के सामर्थ्य रखता हो वही परमेश्वर कहलाने योग्य है। शास्त्रों के अध्ययन से ज्ञात होता है कि आदरणीय देव ब्रह्मा जी, विष्णु जी एवं शिव जी मनुष्य को केवल उतना ही लाभ दे सकते हैं जितना उनके भाग्य में लिखा है। विधि का लिखा न इन देवों के वश का है और न ही किसी अन्य देवी के। फिर भगवान कौन है? वेदों में वर्णन है कि पूर्ण परमात्मा का नाम “कविर्देव” है उसे ही कई स्थानों पर “कविरग्नि” के नाम से सम्बोधित किया है।
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पूर्ण परमेश्वर इन तीन देवों, इनके पिता कालब्रह्म, तथा देवी आदिशक्ति से अन्य हैं जो अपने परम् अविनाशी लोक “सतलोक” में निवास करते हैं। श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 8 के श्लोक 16 के अनुसार ब्रह्मलोकपर्यंत सभी लोक पुनरावृत्ति में हैं वहीं श्रीमद्भागवत पुराण, स्कंद 3, अध्याय 5 के अनुसार ब्रह्मा, विष्णु एवं शिवजी भी जन्म और मृत्यु से परे नहीं हैं। ऐसे देवता सामर्थ्यवान नहीं हैं वे तो मात्र अपने कार्यभार संभाल रहे हैं और हम शास्त्रों को न पढ़कर उन्हें सर्वेसर्वा मान लेते हैं।
संकट मोचन, कष्ट हरण, मंगल करण कबीर
वास्तव में पूर्ण परमात्मा कबीर साहेब/ कविर्देव/ कविरग्नि अविनाशी, अमर, अजन्मा, अजर, अलेख दयालु, क्षमावान, सर्वसक्षम, सामर्थ्यवान, सर्ब सृष्टि का रचनहार एवं सभी लोकों का धारण पोषण करने वाला एकमात्र परमेश्वर है जिसके ऊपर किसी अन्य की सत्ता नहीं है। वही एकमात्र सामर्थ्यवान परमात्मा है जो सबकुछ और कुछ भी कर सकता है। द्युलोक के तीसरे पृष्ठ पर विराजमान राजा के समान दर्शनीय वह परमेश्वर कबीर ही है जो सर्वेसर्वा है।
तत्वज्ञान से हमें ज्ञान होता है कि कबीर परमात्मा की भक्ति करने से मोक्ष और सुख दोनों प्राप्त होंगे और तत्वदर्शी सन्त वे नाम मन्त्र देता है जिनका वेदों और श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 17 श्लोक 23 में सांकेतिक मन्त्रों का ज़िक्र है। वर्तमान में पूर्ण तत्वदर्शी सन्त रामपाल जी महाराज हैं। वास्तविक संकट मोचन एवं सुख प्राप्ति की न केवल विधि बताते हैं बल्कि शास्त्रानुसार भक्ति भी प्रदान करते हैं जिनसे पूर्ण मोक्ष निश्चित है जिसके पश्चात हम सदा के लिए अमर लोक में पूर्ण आनंद से शोकरहित रहेंगे।