चंडीगढ़, 3 सितंबर 2025: Sant Rampal Ji Maharaj Latest News in Hindi: न्याय और सत्य की राह में आज एक ऐतिहासिक दिन है। पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने एक अभूतपूर्व फैसला सुनाते हुए संत रामपाल जी महाराज को FIR संख्या 429 में निचली अदालत द्वारा दी गई आजीवन कारावास की सजा को निलंबित कर दिया है और उन्हें जमानत पर रिहा करने का आदेश दिया है। यह निर्णय न केवल कानूनी दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह उन लाखों अनुयायियों के विश्वास को भी मजबूत करता है जो संत रामपाल जी महाराज जी से जुड़े हुए हैं। जस्टिस गुरविंदर सिंह गिल और जस्टिस दीपिंदर सिंह नालवा की खंडपीठ ने इस मामले में अभियोजन पक्ष के सबूतों में गंभीर विरोधाभासों और गवाहों के मुकर जाने को आधार बनाते हुए यह राहत दी है।
“हम पाते हैं कि आवेदक/अपीलकर्ता की वर्तमान आयु लगभग 74 वर्ष है और उसने 10 वर्ष और 27 दिन की सजा भोग ली है। साथ ही यह तथ्य कि मृतक के पति और सास ने अभियोजन पक्ष का समर्थन नहीं किया है, इसे ध्यान में रखते हुए हम इसे एक ऐसा मामला मानते हैं जिसमें मुख्य अपील लंबित रहने तक आवेदक/अपीलकर्ता की सजा निलंबित की जा सकती है,” न्यायालय ने कहा।
यह आदेश FIR 430 में 28 अगस्त 2025 को मिली सजा निलंबन के ठीक बाद आया है, जिससे संत रामपाल जी महाराज के खिलाफ दर्ज दोनों प्रमुख मामलों में उन्हें बड़ी कानूनी विजय मिली है। आइए, इस पूरे मामले की पृष्ठभूमि, हाईकोर्ट के फैसले के गहन विश्लेषण, और संत रामपाल जी के सामाजिक कार्य, शिक्षाएं और संघर्ष को विस्तार से कवर करेंगे।
मुख्य बिंदु: हाईकोर्ट के फैसले की बड़ी बातें
- FIR 429 में उम्रकैद पर रोक: हत्या (IPC 302), आपराधिक साजिश (IPC 120-B) और अवैध कैद (IPC 343) जैसे गंभीर आरोपों में मिली आजीवन कारावास की सजा को मुख्य अपील के निपटारे तक निलंबित कर दिया गया है।
- जमानत मंजूर: हाईकोर्ट ने संत रामपाल जी महाराज को तत्काल जमानत पर रिहा करने का आदेश दिया है।
- FIR 430 में भी राहत: इससे पहले 28 अगस्त 2025 को, FIR 430 से जुड़े एक अन्य मामले में भी उनकी सजा को निलंबित किया जा चुका है।
- सबूतों में गहरा विरोधाभास: कोर्ट ने माना कि अभियोजन पक्ष द्वारा पेश किए गए सबूत “गंभीर रूप से विवादास्पद” हैं और यह बहस का मुद्दा है कि मौतें हत्या थीं या नहीं।
- पलट गए मुख्य गवाह: मृतकों के परिजन, जो अभियोजन पक्ष के मुख्य गवाह थे, उन्होंने मौतों का कारण पुलिस की बर्बर कार्रवाई को बताया।
- मानवीय आधार पर राहत: संत रामपाल जी महाराज की 74 वर्ष की आयु और उनके द्वारा पहले ही काटी जा चुकी 10 साल 8 महीने 21 दिन की लंबी सजा को भी कोर्ट ने ध्यान में रखा।
बरवाला घटना की सच्चाई: सत्य को दबाने की सुनियोजित कोशिश
बरवाला में हुई इस घटना को समझने के लिए हमें उन परिस्थितियों पर नजर डालनी होगी, जिन्होंने इसे एक त्रासदी में बदल दिया। यह कोई सामान्य पुलिस कार्रवाई नहीं थी, बल्कि एक सुनियोजित हमला था, जिसका उद्देश्य संत रामपाल जी और उनके आश्रम को बदनाम करना था।
- हिंसक कार्रवाई: पुलिस ने बिना किसी ठोस सबूत या उचित नोटिस के आश्रम पर हमला किया। आंसू गैस के गोले, लाठियां, और वाटर कैनन का उपयोग भक्तों को डराने और तितर-बितर करने के लिए किया गया।
- बुनियादी सुविधाओं पर रोक: स्थानीय प्रशासन ने आश्रम की बिजली और पानी की आपूर्ति काट दी। इससे वहां मौजूद लोगों को भोजन, पानी, और चिकित्सा जैसी मूलभूत सुविधाओं से वंचित होना पड़ा।
- एम्बुलेंस पर प्रतिबंध: पुलिस ने आश्रम के गेट पर एम्बुलेंस को रोका, जिसके कारण कई लोगों को समय पर चिकित्सा सहायता नहीं मिली। यह लापरवाही मृत्यु का एक प्रमुख कारण बनी।
- मीडिया की एकतरफा कहानी: मुख्यधारा की मीडिया ने इस घटना को सनसनीखेज बनाकर पेश किया। आश्रम में “हथियारबंद समर्थकों” और “बंधकों” की झूठी कहानियां गढ़ी गईं, जबकि सच्चाई यह थी कि वहां मौजूद लोग शांतिपूर्ण भक्त थे।
साजिश के पीछे कौन?
1. धार्मिक संगठनों का डर
- संत रामपाल जी ने जब धार्मिक पाखंड और अंधविश्वास के खिलाफ आवाज उठाई, तो आर्य समाज जैसे संगठनों की साख को गहरी चोट पहुंची।
- उनकी शिक्षाओं ने इन संगठनों के अनुयायियों की संख्या और चंदे पर असर डाला, जिसके कारण वे संत रामपाल जी को अपना सबसे बड़ा खतरा मानने लगे।
- 2006 में करौंथा आश्रम पर हमला और 2014 में बरवाला कांड इन संगठनों की शह पर रची गई साजिश का हिस्सा था।
2. मीडिया की गैर-जिम्मेदाराना भूमिका
- मुख्यधारा की मीडिया ने सत्य की जांच करने के बजाय, पुलिस और सरकार की कहानी को सनसनीखेज बनाकर पेश किया।
- आश्रम में “हथियारबंद समर्थकों” और “बंधकों” की झूठी कहानियां गढ़ी गईं, जो बाद में कोर्ट में झूठी साबित हुईं।
- मीडिया ने भक्तों की शांतिपूर्ण प्रतिरोध और उनकी पीड़ा को पूरी तरह नजरअंदाज किया।
साजिश का परिणाम
बरवाला हमले में पुलिस की बर्बरता के कारण 6 लोगों की मृत्यु हुई, लेकिन इसका दोष संत रामपाल जी पर मढ़ा गया। मीडिया ने इसे “आश्रम में हिंसा” के रूप में पेश किया, जबकि सच्चाई यह थी कि हिंसा पुलिस की ओर से शुरू की गई थी। यह साजिश सत्य को दबाने और संत रामपाल जी के मिशन को नष्ट करने की कोशिश थी।
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FIR 429: आरोपों का जाल
बरवाला घटना के बाद पुलिस ने संत रामपाल जी महाराज और उनके कुछ अनुयायियों के खिलाफ FIR नंबर 429 दर्ज की। इस FIR में निम्नलिखित गंभीर आरोप शामिल थे:
- धारा 302 IPC (हत्या): पांच लोगों की हत्या का आरोप।
- धारा 343 IPC (अवैध कैद): श्रद्धालुओं को आश्रम में बंधक बनाकर रखने का आरोप।
- धारा 120-B IPC (आपराधिक साजिश): इन अपराधों को अंजाम देने के लिए साजिश रचने का आरोप।
इस मामले की सुनवाई हिसार की विशेष अदालत (स्पेशल कोर्ट, सेंट्रल जेल-I) में हुई। 11 अक्टूबर 2018 को कोर्ट ने संत रामपाल जी महाराज को इन धाराओं में दोषी करार दिया और 17 अक्टूबर 2018 को उन्हें निम्नलिखित सजा सुनाई:
- धारा 343 IPC के तहत: 2 साल का कठोर कारावास और ₹5,000 का जुर्माना।
- धारा 302 IPC के तहत: आजीवन कारावास (बिना किसी छूट के) और ₹1,00,000 का जुर्माना।
- धारा 120-B IPC के तहत: आजीवन कारावास (बिना किसी छूट के) और ₹1,00,000 का जुर्माना।
इसी फैसले को संत रामपाल जी महाराज ने पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट में चुनौती दी थी, जिस पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने अब यह ऐतिहासिक राहत प्रदान की है।
हाईकोर्ट के फैसले का कानूनी आधार: क्यों मिली संत रामपाल जी को राहत?
हाईकोर्ट का यह फैसला भावनाओं पर नहीं, बल्कि ठोस कानूनी तर्कों, सबूतों के विश्लेषण और न्याय के सिद्धांतों पर आधारित है। खंडपीठ ने अपने आदेश में उन सभी कमजोरियों को उजागर किया, जिनके आधार पर अभियोजन पक्ष ने अपना केस बनाया था। आइए, उन प्रमुख बिंदुओं को समझते हैं जिन्होंने इस फैसले की नींव रखी:
1. अभियोजन पक्ष के गवाहों का मुकर जाना
किसी भी आपराधिक मामले में गवाहों की भूमिका सबसे महत्वपूर्ण होती है। इस केस में अभियोजन पक्ष की कहानी पूरी तरह से उन गवाहों पर टिकी थी जो मृतकों के परिजन थे। पुलिस का दावा था कि इन लोगों को आश्रम में बंधक बनाया गया और उनकी हत्या की गई। लेकिन जब यही गवाह अदालत में पेश हुए, तो उन्होंने पुलिस की कहानी को सिरे से खारिज कर दिया। यह इस मामले का सबसे बड़ा टर्निंग पॉइंट साबित हुआ।
“यहाँ तक कि प्रत्यक्षदर्शी, जो मृतक के रिश्तेदार हैं, उन्होंने भी अभियोजन पक्ष का साथ नहीं दिया और इसके विपरीत यह बयान दिया कि आँसू गैस के गोले फेंके जाने के कारण दम घुटने की स्थिति उत्पन्न हुई थी,” न्यायालय ने 2 सितंबर को पारित आदेश में कहा।
मृतक और उनके परिजनों के बयान जिन्होंने अभियोजन का समर्थन नहीं किया:
- मृतक – संतोष: इनके परिजनों ने अदालत में बयान दिया कि उनकी मौत पुलिस द्वारा चलाए गए आंसू गैस के गोलों और भगदड़ के कारण हुई, न कि किसी साजिश या कैद के कारण।
- मृतक – आदर्श: इनके पिता और चाचा, जो अभियोजन के गवाह थे, अपने बयान से मुकर गए। उन्होंने कहा कि आदर्श पहले से बीमार थीं और पुलिस की कार्रवाई के दौरान इलाज न मिल पाने और दम घुटने से उनकी मृत्यु हुई।
- मृतक – राजबाला: इनके बेटे ने अभियोजन की कहानी का समर्थन नहीं किया और बताया कि उनकी माँ की मौत आश्रम में हुई भगदड़ और घुटन के कारण हुई थी।
- मृतक – मलकीत कौर: इनके पति और बेटी, जो प्रमुख गवाह थे, ने भी पुलिस के दावों को नकार दिया। उन्होंने स्पष्ट कहा कि मलकीत कौर की मौत पुलिस की बर्बरता, आंसू गैस और समय पर चिकित्सा सहायता न मिलने के कारण हुई।
- मृतक – सरिता: इनके परिजनों ने भी अदालत को बताया कि सरिता को किसी ने बंधक नहीं बनाया था। पुलिस की कार्रवाई से मची भगदड़ में गिरने से उन्हें सिर में चोट लगी, जो उनकी मौत का कारण बनी।
जब मृतकों के अपने ही सगे-संबंधियों (बेटे, बेटी, पति, पिता और चाचा) ने एक सुर में हत्या और बंधक बनाए जाने की झूठी कहानी को खारिज कर दिया, तो अभियोजन पक्ष का पूरा मामला ताश के पत्तों की तरह ढह गया। कोर्ट ने इस तथ्य को अपने फैसले का एक बड़ा आधार बनाया।
2. मेडिकल सबूतों में गहरा विरोधाभास
पुलिस ने दावा किया कि यह एक हत्या का मामला है, लेकिन मेडिकल रिपोर्ट कुछ और ही कहानी बयां कर रही थीं। पोस्टमार्टम रिपोर्ट और डॉक्टरों के बयानों के अनुसार, मौतों के कारण इस प्रकार थे:
- संतोष और राजबाला: इनकी मौत का कारण ‘ट्रॉमैटिक एस्फिक्सिया’ (Traumatic Asphyxia) यानी दम घुटना बताया गया, जो भगदड़ या बाहरी दबाव के कारण हो सकता है।
- मलकीत कौर: इनकी मौत का कारण भी दम घुटना (suffocation) बताया गया।
- आदर्श: इनकी मौत निमोनिया (pneumonia) से हुई।
- सरिता: इनकी मौत सिर की चोट के कारण बढ़े इंट्राक्रेनियल प्रेशर (intracranial pressure) से हुई, जो भगदड़ में गिरने से लग सकती है।
कोर्ट ने पाया कि ये मेडिकल कारण अभियोजन की ‘हत्या’ की झूठी कहानी से मेल नहीं खाते। बल्कि, ये बचाव पक्ष के उन तर्कों का समर्थन करते हैं कि मौतें आंसू गैस से हुई घुटन और भगदड़ के कारण हुईं। कोर्ट ने स्पष्ट रूप से कहा कि यह एक बहस योग्य मुद्दा है कि मौतें हत्या थीं या नहीं। जब मौत का कारण ही संदिग्ध हो, तो हत्या की सजा को निलंबित करना न्यायोचित हो जाता है।
“वास्तव में मौतें उस समय हुईं जब पुलिस ने स्वयं स्वीकार किया है कि आवेदक के ‘डेरे’ पर आँसू गैस के गोले दागे गए थे, जहाँ बड़ी संख्या में शिष्य मौजूद थे। इस कारण दम घुटने की स्थिति बनी, भगदड़ मच गई और कई लोग गिर पड़े और अंततः अपनी जान गँवा बैठे,” उनके वकील ने दलील दी।
3. बचाव पक्ष की मजबूत दलीलें
संत रामपाल जी महाराज के वकीलों ने कोर्ट के सामने मजबूती से यह पक्ष रखा कि उन्हें इस मामले में झूठा फंसाया गया है। उनकी मुख्य दलीलें थीं:
- यह मामला प्राकृतिक या आकस्मिक मौतों का है, हत्या का नहीं।
- मौतों के लिए संत रामपाल जी महाराज किसी भी तरह से जिम्मेदार नहीं थे, बल्कि यह पुलिस की अव्यवस्थित और क्रूर कार्रवाई का नतीजा था।
- आश्रम में किसी को भी बंधक नहीं बनाया गया था; सभी श्रद्धालु अपनी मर्जी से वहां मौजूद थे।
हाईकोर्ट ने इन दलीलों को दमदार पाया, खासकर जब गवाहों के बयान और मेडिकल सबूत भी इन्हीं तर्कों का समर्थन कर रहे थे।
4. पुलिस की कार्रवाई पर सवाल
हाईकोर्ट ने पुलिस की हिंसक कार्रवाई और बुनियादी सुविधाओं को रोकने के फैसले पर गंभीर सवाल उठाए। यह स्पष्ट था कि पुलिस की कार्रवाई ने ही भगदड़ और मृत्यु की स्थिति पैदा की। एम्बुलेंस को रोके जाने और चिकित्सा सहायता न मिलने के कारण हुई मौतों को संत रामपाल जी के खिलाफ आधार बनाना पूरी तरह गलत था।
5. लंबी सजा और मानवीय आधार
न्याय का एक सिद्धांत यह भी है कि किसी व्यक्ति को अनिश्चितकाल तक जेल में नहीं रखा जा सकता, खासकर जब उसकी अपील लंबित हो और केस में गंभीर खामियां हों। कोर्ट ने इस मामले में मानवीय दृष्टिकोण को भी ध्यान में रखा:
- काटी गई सजा: संत रामपाल जी महाराज ने बिना किसी सबूत के 10 साल 8 महीने और 21 दिन की सजा पहले ही काट ली है, जो एक बहुत लंबी अवधि है।
- आयु: उनकी उम्र 74 वर्ष है, जो एक और महत्वपूर्ण कारक है।
- सह-अभियुक्तों की जमानत: इस मामले में अन्य 13 सह-अभियुक्तों को पहले ही जमानत मिल चुकी है।
“इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए कि आवेदक/अपीलकर्ता की वर्तमान आयु लगभग 74 वर्ष है और उसने 10 वर्ष, 8 महीने और 21 दिन की पर्याप्त अवधि की सजा काट ली है, हम इसे एक उपयुक्त मामला मानते हैं जिसमें मुख्य अपील लंबित रहने तक उसकी सजा निलंबित की जा सकती है,” न्यायालय ने कहा।
इन सभी तथ्यों को देखते हुए, कोर्ट ने माना कि अपील के निपटारे तक संत रामपाल जी महाराज को जेल में रखना अन्यायपूर्ण होगा।
क्या हैं जमानत की शर्तें?
हाईकोर्ट ने जमानत देते हुए कुछ शर्तें भी लगाई हैं ताकि कानून-व्यवस्था बनी रहे। ये शर्तें इस प्रकार हैं:
- संत रामपाल जी महाराज किसी भी प्रकार की “भीड़ मानसिकता” (mob mentality) को प्रोत्साहित नहीं करेंगे।
- वे ऐसे किसी भी आयोजन में भाग नहीं लेंगे जिससे कानून और व्यवस्था के लिए कोई समस्या उत्पन्न हो सकती हो।
- यदि इन शर्तों का उल्लंघन होता है, तो अभियोजन पक्ष जमानत रद्द करने के लिए आवेदन कर सकता है।
- कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि यह आदेश केवल सजा के निलंबन तक सीमित है और इसका मुख्य अपील के अंतिम निर्णय पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा।
“हालाँकि, आवेदक को निर्देशित किया जाता है कि वह किसी भी प्रकार की ‘भीड़ मानसिकता’ को बढ़ावा न दे और ऐसे किसी भी जमावड़े में भाग लेने से बचे जहाँ ‘शिष्यों’ या प्रतिभागियों में शांति, क़ानून और व्यवस्था भंग करने की प्रवृत्ति हो,” न्यायालय ने आदेश दिया।
संत रामपाल जी महाराज की उम्रकैद पर रोक: हाईकोर्ट का आदेश पढ़ें नीचे





संत रामपाल जी महाराज: एक समाज सुधारक और आध्यात्मिक गुरु
संत रामपाल जी महाराज केवल एक आध्यात्मिक गुरु ही नहीं, बल्कि एक महान समाज सुधारक भी हैं। उनके मार्गदर्शन में चल रहे सामाजिक कार्य लाखों लोगों के जीवन में सकारात्मक परिवर्तन ला रहे हैं। जेल में रहते हुए भी वे मिशनों को अभूतपूर्व स्तर पर चला रहे हैं।
1. दहेज मुक्त भारत का सपना: “रमैणी विवाह”
भारत में दहेज एक सामाजिक अभिशाप है। संत रामपाल जी महाराज ने इस कुप्रथा को जड़ से खत्म करने के लिए “रमैणी विवाह” की शुरुआत की। यह एक ऐसी विवाह पद्धति है जो मात्र 17 मिनट में गुरुवाणी के पाठ के साथ संपन्न होती है। इसमें न कोई बैंड-बाजा, न बारात, न फिजूलखर्ची और न ही दहेज का कोई लेन-देन होता है। यह विवाह सभी जातियों और धर्मों के लिए एक मिसाल बन चुका है, जो सादगी और समानता का संदेश देता है।
2. नशा मुक्त समाज का निर्माण
नशा आज के युवाओं को खोखला कर रहा है। संत रामपाल जी महाराज की शिक्षाओं और नाम-दीक्षा की शक्ति से लाखों लोगों ने शराब, बीड़ी, सिगरेट, तंबाकू और अन्य घातक नशों को हमेशा के लिए त्याग दिया है। उनके अनुयायी न केवल स्वयं नशा मुक्त जीवन जीते हैं, बल्कि समाज में भी नशा मुक्ति के लिए जागरूकता अभियान चलाते हैं।
3. भ्रष्टाचार मुक्त समाज की नींव
संत रामपाल जी महाराज अपनी शिक्षाओं में रिश्वत लेने और देने को घोर पाप बताते हैं। उनके अनुयायी किसी भी सरकारी या निजी काम के लिए न तो रिश्वत देते हैं और न ही लेते हैं, जिससे एक ईमानदार और भ्रष्टाचार मुक्त समाज की नींव रखी जा रही है।
4. रक्तदान और अन्नपूर्णा मुहिम
“मानव सेवा ही प्रभु सेवा है” – इस सिद्धांत पर चलते हुए, उनके अनुयायी नियमित रूप से रक्तदान शिविर आयोजित करते हैं, जिससे हजारों जिंदगियां बचाई जाती हैं। इसके अलावा, “अन्नपूर्णा मुहिम“ के तहत गरीबों और जरूरतमंदों को मुफ्त भोजन, कपड़े और अन्य आवश्यक वस्तुएं प्रदान की जाती हैं।
5. शास्त्र-आधारित भक्ति का प्रचार
संत रामपाल जी महाराज की शिक्षाओं का आधार सभी पवित्र धर्मग्रंथ हैं – वेद, गीता, कुरान, बाइबिल और श्री गुरु ग्रंथ साहिब। वे इन सभी ग्रंथों से प्रमाण देकर यह सिद्ध करते हैं कि पूर्ण परमात्मा एक है, जिसका नाम कबीर है। वे समाज में फैले पाखंड, अंधविश्वास, मूर्तिपूजा और व्यर्थ के कर्मकांडों का खंडन करते हैं और सच्ची भक्ति का मार्ग दिखाते हैं जो शास्त्रों पर आधारित है। उनकी पुस्तकें “ज्ञान गंगा” और “जीने की राह” ने करोड़ों लोगों के जीवन को नई दिशा दी है।
6. आपदा में राहत, मानवता को राहत
बाढ़, भूकंप या किसी भी अन्य प्राकृतिक आपदा के समय, संत रामपाल जी महाराज के अनुयायी बिना किसी स्वार्थ के राहत कार्यों में जुट जाते हैं। वे पीड़ितों के लिए भोजन, पानी, कपड़े और चिकित्सा सहायता का प्रबंध करते हैं, जो मानवता की सच्ची सेवा का उदाहरण है।
7. चरित्र निर्माण और युवा सशक्तिकरण
उनकी शिक्षाएं युवाओं को नैतिक और चारित्रिक रूप से मजबूत बनाती हैं। सत्संग सुनने वाले बच्चे और युवा चोरी, झूठ, बेईमानी और अन्य सामाजिक बुराइयों से दूर रहते हैं और एक जिम्मेदार नागरिक के रूप में अपने परिवार और देश का नाम रोशन करते हैं।
8. पाखंड और अंधविश्वास पर प्रहार
संत रामपाल जी महाराज शास्त्रों के आधार पर समाज में फैले अंधविश्वास, व्यर्थ के कर्मकांड, पाखंड और नकली गुरुओं का खंडन करते हैं। वे लोगों को सच्ची और शास्त्र-आधारित भक्ति करने के लिए प्रेरित करते हैं, जिससे समाज को अज्ञान के अंधकार से बाहर निकालने में मदद मिल रही है।
9.जेल में परिवर्तन
जेल में बंद कठोर अपराधियों ने संत रामपाल जी की शिक्षाओं को अपनाकर सत्य भक्ति का मार्ग चुना। कई कैदियों ने नाम-दीक्षा लेकर अपने जीवन को बदल लिया। कई पुलिसकर्मी और जेल कर्मचारी उनके आध्यात्मिक ज्ञान और सादगी से प्रभावित होकर उनके अनुयायी बने।
10. वार्षिक समागम और समाज कल्याण के कार्य
उनके अनुयायी बड़े पैमाने पर आध्यात्मिक समागम आयोजित करते हैं, जहां मुफ्त भंडारा, नेत्र और दंत चिकित्सा शिविर, रक्तदान शिविर, देहदान शिविर और अमर ग्रंथ साहिब का अखंड पाठ होता है। ये पहल साबित करती हैं कि संत रामपाल जी की शिक्षाएं समाज में सकारात्मक बदलाव ला रही हैं।
सत्य के लिए संघर्ष: संतों की शाश्वत परंपरा
इतिहास गवाह है कि जब भी किसी सच्चे संत ने समाज को सत्य का मार्ग दिखाया है, तो पाखंडी गुरुओं और तत्कालीन व्यवस्था ने हमेशा उनका विरोध किया है।
- कबीर साहेब को 120 वर्ष की आयु में राजा सिकंदर लोदी के धार्मिक गुरु शेख तकी ने 52 बार मारने का प्रयास किया।
- गुरु नानक देव जी को जेल में डाला गया।
- ईसा मसीह को सूली पर चढ़ा दिया गया।
- मीराबाई को जहर देकर मारने की कोशिश की गई।
संत रामपाल जी महाराज भी उसी सत्य की परंपरा को आगे बढ़ा रहे हैं। वे समाज में व्याप्त जातिवाद, पाखंड, नशाखोरी और भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाते हैं, यही कारण है कि निहित स्वार्थ वाले लोग उन्हें साजिशों में फंसाने का प्रयास करते हैं। हाईकोर्ट का यह फैसला इस बात का प्रतीक है कि सत्य को कुछ समय के लिए परेशान किया जा सकता है, लेकिन पराजित नहीं।
संत रामपाल जी महाराज का जीवन: एक सच्चे संत की प्रेरक गाथा
संत रामपाल जी महाराज का जन्म 8 सितंबर 1951 को हरियाणा के सोनीपत जिले के धनाना गांव में एक साधारण किसान परिवार में हुआ। उनके पिता भगत नंदराम और माता भगतमती इंद्रो देवी थीं। इंजीनियरिंग में डिप्लोमा प्राप्त करने के बाद, उन्होंने हरियाणा सिंचाई विभाग में जूनियर इंजीनियर के रूप में 18 वर्ष तक सेवा की।
आध्यात्मिक यात्रा की शुरुआत
- 1988 में दीक्षा: संत रामपाल जी ने कबीर पंथी संत स्वामी रामदेवानंद जी से दीक्षा ली और वेद, गीता, कुरान, और अन्य ग्रंथों का गहन अध्ययन शुरू किया।
- 1995 में त्याग: उन्होंने सरकारी नौकरी छोड़ दी और अपना जीवन पूरी तरह से अध्यात्म को समर्पित कर दिया।
- 1999 में सतलोक आश्रम: रोहतक के करौंथा में सतलोक आश्रम की स्थापना की, जो आज लाखों श्रद्धालुओं के लिए आध्यात्मिक ज्ञान का केंद्र है।
विवाद और संघर्ष
- 2006 में करौंथा हमला: संत रामपाल जी ने स्वामी दयानंद सरस्वती की पुस्तक “सत्यार्थ प्रकाश” में गलतियों को शास्त्रों के आधार पर चुनौती दी, जिसके कारण आर्य समाज ने उनका विरोध किया। इस विरोध के दौरान करौंथा आश्रम पर हमला हुआ, जिसमें कई लोग घायल हुए।
- 2013 में दोहरा हमला: करौंथा आश्रम पर फिर से हमला हुआ, जिसमें 3 लोगों की मृत्यु हुई। लेकिन इस घटना में भी संत रामपाल जी को दोषी ठहराने की कोशिश की गई।
न्याय की जीत, सत्य की विजय
बरवाला घटना भारत के इतिहास का एक काला अध्याय है। यह दिखाता है कि कैसे सत्य को दबाने के लिए साजिशें रची जाती हैं। लेकिन संत रामपाल जी का मिशन इन साजिशों के बावजूद फल-फूल रहा है। यह समाज के लिए एक जागृति का क्षण है:
- सवाल उठाएं: एक शांतिप्रिय संत को आतंकवादी की तरह क्यों दिखाया गया?
- सत्य की जांच करें: मीडिया और प्रशासन की एकतरफा कहानी को आंख मूंदकर स्वीकार न करें।
- शास्त्रों को पढ़ें: संत रामपाल जी की शिक्षाओं को शास्त्रों के साथ तुलना करें और सत्य को स्वयं जांचें।
पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट का यह ऐतिहासिक फैसला सिर्फ एक कानूनी आदेश नहीं है। यह न्याय प्रणाली में आम आदमी के विश्वास की पुनःस्थापना है। यह इस बात का प्रमाण है कि यदि आप सत्य के मार्ग पर हैं, तो देर से ही सही, न्याय अवश्य मिलता है। यह फैसला उन लाखों अनुयायियों के लिए एक बड़ी राहत है जो वर्षों से इस दिन की प्रतीक्षा कर रहे थे।
हालांकि मुख्य अपील पर अंतिम फैसला आना अभी बाकी है, लेकिन सजा का निलंबन और जमानत मिलना अपने आप में एक बहुत बड़ी जीत है। यह इस बात का संकेत है कि न्याय का पहिया सत्य की दिशा में घूम चुका है। अब समाज को भी संत रामपाल जी महाराज द्वारा दिखाए जा रहे शास्त्र-आधारित ज्ञान को निष्पक्ष होकर समझने और समाज सुधार के उनके महान मिशन में योगदान देने की आवश्यकता है।
FAQs: संत रामपाल जी महाराज को हाई कोर्ट से FIR 429 में बड़ी राहत
हाईकोर्ट ने FIR 429 में उम्रकैद की सजा को निलंबित कर दिया है और उन्हें जमानत मंजूर की है।
28 अगस्त 2025 को हाईकोर्ट ने FIR 430 में सजा को निलंबित किया था।
यह मामला 2014 के बरवाला सतलोक आश्रम कांड से जुड़ा है, जिसमें 5 महिलाओं और 1 बच्चे की मृत्यु हुई थी।
गवाहों के मुकर जाने, मेडिकल रिपोर्ट में विरोधाभास और मानवीय आधार पर कोर्ट ने सजा को निलंबित किया।