पारसी नववर्ष 2025 (Parsi New Year 2025 (Hindi) भारत में गुरुवार, 15 अगस्त को मनाया जाएगा। इस दिन पारसी लोग अपने पारंपरिक पोशाक पहनते हैं, अपने घरों को सजाते हैं, स्वादिष्ट भोजन तैयार करते हैं। इस दिन वे अग्नि मंदिर जाते हैं और चंदन चढ़ाते हैं, दान धर्म करते हैं।
Parsi New Year 2025 (Hindi): मुख्य बिन्दु
- पारसी नववर्ष 2025 भारत में गुरुवार, 15 अगस्त को मनाया जाएगा।
- पारसी भाषा के शब्द नवरोज का अर्थ है नया दिन, इसी दिन से नए साल की शुरुआत होती है।
- नवरोज को जमशेदी नवरोज, नौरोज, पतेती आदि नामों से भी जाना जाता है।
- नवरोज की शुरुआत होती है ‘एक्किनाक्स’ (‘एक समान’) जिसमें दिन और रात एक समान होता है।
- सतज्ञान जानकर सतभक्ति करके अपना जीवन सार्थक करें लोग।
क्या है पारसी नववर्ष और कैसे मनाते हैं?
Parsi New Year 2025 (Hindi): इस दिन पारसी लोग अपने पारंपरिक पोशाक पहनते हैं, अपने घरों को सजाते हैं, स्वादिष्ट भोजन तैयार करते हैं। पारसी समुदाय के लोग इस दिन घर के सबसे बुजुर्ग के पास मिलने जाते हैं उसके बाद वह सदस्य बाकी सबके घर जाता है। इस दिन सभी लोग एक जगह एकत्र होकर कई प्रकार के व्यंजन और मिष्ठानों का आनंद लेते हैं। सभी मिलकर आतिशबाजियाँ भी करते हैं। मिलने जुलने का सिलसिला पूरे महीने चलता है। पारसी नव वर्ष पर पारसी समुदाय के लोग सतज्ञान प्राप्त कर और सतभक्ति अपनाकर अपने मानव जीवन के वास्तविक उद्देश्य को सार्थक करें—इसी संदेश के साथ यह उत्सव और भी मंगलमय बनता है।
नवरोज, जमशेदी नवरोज, नौरोज, पतेती
Parsi New Year 2025 (Hindi): पारसी न्यू ईयर फारसी भाषा के शब्द नवरोज का हिंदी रूपांतरण है जिसका अर्थ होता है नया दिन। इसी दिन से नए साल की शुरुआत हो जाती है। नवरोज को और भी कई नामों से जाना जाता है जैसे जमशेदी नवरोज, नौरोज, पतेती आदि। यह पारसी समुदाय का एक त्योहार है।
Parsi New Year in Hindi | नवरोज कब मनाते हैं?
नवरोज या पारसी न्यू ईयर का फेस्टिवल पारसियों द्वारा मनाया जाता है। हर धर्मों में अलग अलग तिथि और समय में नव वर्ष मनाने की परंपरा रही है। इसके लिए पारसियों द्वारा भी एक खास तिथि से नववर्ष की शुरुवात की जाती है। पारसी नवरोज की शुरुवात ‘एक्किनाक्स’ से होती है जिसका अर्थ होता है ‘एक समान’। यह वह दिन होता है जिसमें दिन और रात एक समान होते हैं। इस वर्ष यह त्योहार 15 अगस्त को मनाया जा रहा है। पूरे विश्व में, पारसी लोग यह पर्व पारसी पंचांग के पहले महीने के पहले दिन को मनाते हैं। जबकि भारत में पारसी लोग शहंशाही पंचांग का अनुसरण करते हैं। इस वर्ष यह 20 मार्च को मनाया गया था।
दो नववर्ष- क्यूँ और कैसे?
पारसी समुदाय के भीतर अलग-अलग कालगणनाएँ प्रयोग होने के कारण दो अलग तारीखों पर नववर्ष मनाया जाता है — एक (Fasli/इन्हीं सिस्टम से जुड़ा) वसंत विषुव (spring equinox) पर और दूसरी शहंशाही /कदमी जैसी पारंपरिक पारसी कैलेंडरों के अनुसार। भारत के पारसी अक्सर शहंशाही कैलेंडर का अनुसरण करते हैं, जो लीप वर्ष को नहीं जोड़ता; इसलिए भारतीय पारसी समुदाय में नववर्ष अक्सर मार्च के बजाय जुलाई/अगस्त में भी मनाया जाता है — इसे कई बार जमशेदी नवरोज़ (Jamshedi Navroz) के रूप में देखा जाता है। इसका परिणाम यह है कि कुछ पारसी मार्च में (वैश्विक नवरोज़) और कुछ जुलाई/अगस्त में (भारतीय पारसी परंपरा के अनुसार) नववर्ष मनाते हैं।
सारांश: वैश्विक Nowruz आम तौर पर वसंत विषुव (19–21 मार्च) पर होता है; जबकि भारत में पारंपरिक कैलेंडर के कारण कुछ समुदाय इसे जुलाई/अगस्त में मानते हैं।
क्या है नवरोज का इतिहास?
Parsi New Year in Hindi: पारसी लोग तीन हजार साल से ये पर्व परंपरानुसार मनाते आ रहे हैं। मान्यता है कि फारस के राजा जमशेद की याद में यह पर्व मनाया जाता है। कहते हैं कि राजा जमशेद ने पारसी कैलेंडर की स्थापना की। इस दिन राजा जमशेद ने सिंहासन भी ग्रहण किया था। उसी दिवस के रूप में नवरोज मनाया जाता है। ऐसा भी कहते हैं कि नवरोज मनाने की परंपरा राजा जमशेद के शासन काल से जुड़ी एक घटना विशेष से जुड़ी है। राजा जमशेद ने सम्पूर्ण मानव जाति को ठण्ड के कहर से बचाया था। अन्यथा समस्त मानव जाति का विनाश तय था। ईरानी लोकवेद कथाओं के अनुसार राजा जमशेद ने देव दूतों की मदद से स्वर्ग में एक रत्न जड़ित सिंहासन का निर्माण करवाया था। जमशेद उस पर सूर्य की तरह दीप्तिमान होकर बैठ गए थे। तभी से इस दिन को नौरोज कहा जाने लगा।
Parsi New Year 2025 (Hindi): क्या है पारसी धर्म का इतिहास?
Parsi New Year 2025 (Hindi): नौरोज पारसी धर्म के मानने वालों द्वारा मनाया जाता है। यह काफी प्राचीन धर्म है। वर्तमान में इनके मानने वालों की संख्या विश्व भर में महज एक लाख ही रह गई है। इस धर्म के संस्थापक संत जरथुस्त थे इसका उदय इस्लाम धर्म के पहले हुआ था। 7 वीं सदी में अरब के मुस्लिमों के द्वारा ईरान को युद्द में हरा दिया था जिसके बाद मुस्लिमों के द्वारा जरथुस्त के अनुयायियों को प्रताड़ित करके जबरदस्ती धर्म परिवर्तन कराया गया।
■ Read in English | All About Parsi New Year (Navroj)
जिनको धर्म परिवर्तन स्वीकार नहीं था वे सभी जल मार्ग द्वारा भारत चले आये। भारत में इनकी सबसे ज्यादा संख्या गुजरात और महाराष्ट्र राज्यों में है। इतनी कम जनसँख्या के बावजूद नौरोज का काफी उत्साह नजर आता है। पारसियों की उपस्थिति पूरे विश्व मे ईरान, कजाकिस्तान, अफगानिस्तान, अरबैजान, इराक, जार्जिया उज्बेकिस्तान, पाकिस्तान जैसे देशों में दिखाई देती है।
क्यों पारसी नव वर्ष पर सतभक्ति अपनाना ज़रूरी है
पारसी नव वर्ष जहां सांस्कृतिक उल्लास और पारंपरिक रीति-रिवाजों का प्रतीक है, वहीं यह हमें जीवन के वास्तविक उद्देश्य पर भी विचार करने का अवसर देता है। संत रामपाल जी महाराज के अनुसार, केवल बाहरी उत्सव मनाना ही पर्याप्त नहीं, बल्कि सतज्ञान प्राप्त कर सही भक्ति करना ही मानव जीवन की सच्ची उपलब्धि है।
कबीर साहेब कहते हैं –
कबीर, मानुष जन्म दुलर्भ है, मिले न बारं-बार।
तरवर से पत्ता टूट गिरे, बहुर ना लागे डार।।
मानुष जन्म की प्राप्ति दुर्लभ है 84 लाख योनियों के बाद प्राप्त होती है। इसे केवल भोग-विलास में गंवाना व्यर्थ है। जो व्यक्ति सतगुरु से नाम दीक्षा लेकर भक्ति करता है, वही जन्म-मरण के चक्र से मुक्त होकर परम शांति प्राप्त करता है। इसलिए इसे सार्थक बनाने का प्रयास करते रहना मानव का मूल कर्तव्य है। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए सतगुरु की शरण में जाना जरूरी है।
वह पूर्ण संत कौन है और उसे कैसे पहचाना जाए?
एक समय में पृथ्वी पर केवल एक पूर्ण संत होता है। पवित्र वेदों, पवित्र श्रीमदभगवदगीता और अन्य पवित्र ग्रंथों में इस बात का प्रमाण हैं कि जब भी धर्माचरण में गिरावट होती है और अधर्म की वृद्धि होती है तब भगवान या तो स्वयं इस पृथ्वी पर प्रकट होते हैं या अपने परम ज्ञानी संत को भेज कर सत्य ज्ञान के माध्यम से धर्म का पुनः उत्थान करते हैं। वर्तमान में संत रामपाल जी महाराज के रूप स्वयं परमेश्वर कबीर साहेब जी प्रकट है, सर्व मानव समाज को उन्हें पहचान कर अपने जीवन का कल्याण कराना चाहिए। संत रामपाल जी महाराज शास्त्रों के अनुसार सतभक्ति प्रदान करते हैं।
कहाँ से आया कहाँ जाओगे, खबर करो अपने तन की।
कोई सदगुरु मिले तो भेद बतावें, खुल जावे अंतर खिड़की।।
पारसी नववर्ष पर विचार करें संत रामपाल जी क्या उपदेश दे रहे हैं और क्यों?
सतगुरु संत रामपाल जी महाराज अपने सतज्ञान के धुआंधार प्रचार करने के कारण आध्यात्मिक क्रांति का कारण बने हैं। उन्होंने हर पवित्र शास्त्र से सच्चा ज्ञान प्रकट किया है। अपने अनुयायियों को भक्ति की सही विधि प्रदान कर रहे हैं। इस सतभक्ति के परिणामस्वरूप उनके सभी अनुयायियों को सही लाभ प्राप्त हो रहे हैं। लाभ दोहरा है। एक उनके भक्त किसी भी दुख, बीमारी, असंतोष आदि का संतोषजनक निराकरण पाकर जीवन जी रहे हैं, दूसरे वे पूर्ण मोक्ष के योग्य बन जाते हैं।
वास्तव में, मनुष्य जीवन का मुख्य उद्देश्य पूर्ण मोक्ष प्राप्त करना है और सांसारिक सुख इस भक्ति का उपोत्पाद (By Product ) हैं। सतगुरु रामपाल जी महाराज सत्य साधना और तत्वज्ञान रुपी हीरे, मोतियों की वर्षा कर रहे हैं और बता रहें हैं कि बच्चों ये भक्ति करो इससे बहुत लाभ होगा। सतगुरु की बात को न सुनकर लोग नकली संतों, गुरुओं, आचार्यों, शंकराचार्यों की बातों पर आरुढ़ हो चुके है और ये कंकर पत्थर इकट्ठे कर रहे हो जिनका कोई मूल्य नहीं है भगवान के दरबार में।
चारों युगों में मेरे संत पुकारें, और कूक कहा हम हेल रे।
हीरे मानिक मोती बरसें ये जग चुगता ढ़ेल रे ||
पारसी नववर्ष पर संत रामपाल जी महाराज की शरण में आकर नाम दीक्षा ले
पारसी नववर्ष पर संत रामपाल जी महाराज की शरण में आकर नाम दीक्षा लेकर जन्म और मृत्यु के दुश्चक्र को हमेशा के लिए समाप्त करें। संत रामपाल जी से जो भी नाम दीक्षा लेता है, वह श्रद्धालु अपने वास्तविक घर सतलोक (शाश्वत स्थान) तक पहुँचने के योग्य हो जाता है और उसे आवश्यक सांसारिक लाभ भी प्राप्त होते हैं। मानव जीवन के मूल उद्देश्य को प्राप्त करने का प्रयत्न मानव को जीवन के रहते कर लेना चाहिए। और इसके लिए Sant Rampal Ji Maharaj App डाउनलोड कर सतज्ञान को अध्ययन करें।
FAQs About Parsi New Year 2025 [Hindi]
Ans पारसी न्यू ईयर फारसी भाषा के दो शब्द से मिलकर बना है नव और रोज जिसका अर्थ होता है नया दिन। पारसी न्यू ईयर को जमशेदी नवरोज, नौरोजी, नवरोज आदि नामों से भी जाना जाता है।
Ans पारसी नववर्ष 2025 (नवरोज) भारत में गुरुवार, 15 अगस्त को मनाया जायेगा।
Ans कहते हैं कि राजा जमशेद ने पारसी कैलेंडर की स्थापना की। इस दिन राजा जमशेद ने सिंहासन भी ग्रहण किया था। उसी दिवस के रूप में नवरोज मनाया जाता है। ऐसा भी कहते हैं कि नवरोज मनाने की परंपरा राजा जमशेद के शासन काल से जुड़ी एक घटना विशेष से जुड़ी है। राजा जमशेद ने सम्पूर्ण मानव जाति को ठण्ड के कहर से बचाया था अन्यथा समस्त मानव जाति का विनाश तय था।
Ans भारत में पारसी लोग अधिकांशतः गुजरात और महाराष्ट्र राज्यों में है, यहीं बड़ी मात्रा में मनाया जाता है।
Ans इस धर्म के संस्थापक संत जरथुस्त थे इसका उदय इस्लाम धर्म के बहुत पहले हुआ था। 7 वीं सदी में अरब के मुस्लिमों के द्वारा ईरान को युद्द में हरा दिया था जिसके बाद मुस्लिमों के द्वारा जरथुस्त के अनुयायियों को प्रताड़ित करके जबरदस्ती धर्म परिवर्तन कराया गया।