Last Updated on 23 June 2025 IST | माह-ए-मोहर्रम, (Muharram Date 2025 India in Hindi): अल्लाहु अकबर, आशादू अल्लाह इलाहा इल्लल्लाह ‘माह-ए-मोहर्रम ‘ इस्लामिक कैलेंडर के पहले महीने का नाम है। इसी महीने के पहले दिन से इस्लाम का नया वर्ष प्रारंभ होता है। इस महीने की 10 तारीख को रोज-ए-आशुरा (Day Of Ashura) कहा जाता है। मुहर्रम/ मोहर्रम इस्लामिक कैलेंडर का पहला महीना है, जिसे महत्वपूर्ण महीना माना जाता है। 1341 वर्ष पहले मुहर्रम महीने की 10वीं तारीख को पैगंबर मोहम्मद के नाती हज़रत हुसैन का कत्ल किया गया था। इसी कारण इस्लाम में मुहर्रम के महीने को शिया और सुन्नी मुसलमानों द्वारा मातम के रूप में मनाया जाता है।
मुहर्रम (Muharram 2025): मुख्य बिंदु
- मुहर्रम महीने के 10वें दिन इस्लाम में आशुरा मनाते हैं जो इस साल 17 जुलाई को है।
- यह इस्लामिक इतिहास के सबसे निंदनीय दिनों में से एक है।
- इस दिन पैगंबर मुहम्मद के नाती इमाम हुसैन, हुसैन इब्न और उनके साथियों की शहादत को याद किया जाता है।
- इस दिन शिया मुसलमान काले कपड़े पहनकर जुलूस निकालते हैं और इमाम हुसैन ने जो इंसानियत के लिए पैगाम दिए हैं उन्हें लोगों तक पहुंचाते हैं।
- वास्तव में अल्लाह की इबादत करने के लिए कोई खास दिन नहीं होता।
- प्राचीन घटनाओं को याद करके त्योहार/ मातम मनाना भी मनमुखी साधना ही है।
Muharram Festival 2025 [Hindi] | क्या है इस्लामिक वर्ष और नववर्ष 1447 कब प्रारंभ होगा?
Muharram 2025 Hindi | नया इस्लामिक वर्ष 1447 अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार 27 जून 2025 से शुरू हुआ है। इस्लाम धर्म के अंतिम प्रवर्तक हजरत मोहम्मद की जिस दिन मक्का शहर से मदीना की ओर हिज्ऱत (प्रवास) हुई थी उस समय से इस्लामी वर्ष के प्रारंभ की मान्यता दी गई और मुहर्रम को हिजरी सन का पहला माह तय कर दिया गया। इस्लामिक वर्ष चंद्र-कालदर्शक है जिसमें एक वर्ष में बारह मास एवं 354 या 355 दिवस होते हैं। यह वर्ष सौर कालदर्शक वर्ष से 11 दिवस छोटा होता है इसलिए इस्लामी धार्मिक तिथियाँ पिछले सौर वर्ष की अपेक्षा 11 दिन पीछे हो जाती हैं। इस महीने को इस्लाम के पवित्र चार महीनों में शामिल किया गया है जिसमें 2 महीने तो मुहर्रम से पहले और दो मुहर्रम के बाद आते हैं।
Muharram 2025 Hindi | क्या मुहर्रम अल्लाह की इबादत करने का महीना है?
Muharram 2025 Hindi | मुसलमानों का यह मानना है कि मुहर्रम के इस माह में अल्लाह की खूब इबादत करनी चाहिए। पैगंबरों ने इस माह में खूब रोजे़ रखे और अपने साथियों का भी ध्यान इस तरफ आकर्षित किया। जानकारी के लिए बता दें कि अल्लाह की बन्दगी तो आठों पहर और सोते जागते करनी चाहिए। अल्लाह की बन्दगी का कोई महीना विशेष या दिन विशेष नहीं होता है। अल्लाह की बन्दगी पूर्ण तत्वदर्शी सन्त जिसे कुरान के सूरत अल फुरकान 25:59 में बाख़बर कहा है, के द्वारा बताई साधना विधि से की जाती है।
क्या अल्लाह की प्राप्ति रोज़ा रखकर मांस भक्षण करने से हो सकती है?
अल्लाहु अकबर, आशादू अल्लाह इलाहा इल्लल्लाह ‘माह-ए-मोहर्रम ‘ इस्लामिक कैलेंडर के पहले महीने का नाम है। इसी महीने के पहले दिन से इस्लाम का नया वर्ष प्रारंभ होता है। इस महीने की 10 तारीख को रोज-ए-आशुरा (Day Of Ashura) कहा जाता है। मुहर्रम/ मोहर्रम इस्लामिक कैलेंडर का पहला महीना है, जिसे महत्वपूर्ण महीना माना जाता है। 1342 वर्ष पहले मुहर्रम महीने की 10वीं तारीख को पैगंबर मोहम्मद के नाती हज़रत हुसैन का कत्ल किया गया था। इसी कारण इस्लाम में मुहर्रम के महीने को शिया और सुन्नी मुसलमानों द्वारा मातम के रूप में मनाया जाता है।
Muharram History in Hindi (मुहर्रम से जुड़ा इतिहास)
इस्लामिक मान्यताओं के अनुसार कर्बला के युद्ध में 10 अक्टूबर, 680 ईस्वी और इस्लामिक कैलेंडर के अनुसार मुहर्रम महीने की 10 तारीख को पैगंबर हज़रत मोहम्मद के नाती हज़रत इमाम हुसैन एक धर्मयुद्ध में शहीद हो गए थे। कर्बला जो कि आज इराक में है, उसका खलीफा यजीद इस्लाम को अपने अनुसार चलाना चाहता था लेकिन हुसैन ने उसका ये फैसला मानने से इंकार कर दिया था। यजीद अपने वर्चस्व को पूरे अरब में फैलाना चाहता था। इमाम हुसैन अपने परिवार के साथ मदीना से इराक के शहर कुफा जा रहे थे। लेकिन रास्ते में यजीद की फौज ने कर्बला के रेगिस्तान पर इमाम हुसैन के काफिले को रोक दिया। उस दिन मुहर्रम का दिन था, जब हुसैन का काफिला कर्बला के तपते रेगिस्तान पर रुक गया।
मुहर्रम से जुड़ी कहानी (Muharram Story in Hindi)
Muharram History in Hindi: पूरा काफिला प्यास से व्याकुल था। तब उन्होंने देखा कि फरात (टिगरिस) नदी ही पानी का एकमात्र ज़रिया थी। जिस पर यजीद की फौज ने हुसैन के काफिले पर पानी के लिए रोक लगा दी थी। इसके बावजूद भी इमाम हुसैन झुके नहीं और आखिर में दोनों सेनाओं ने युद्ध का एलान कर दिया। मुहर्रम के दसवें दिन तक हुसैन अपने भाइयों और अपने साथियों के शवों को दफनाते रहे और अंत में अकेले युद्ध किया फिर भी दुश्मन उन्हें मार नहीं सके। किन्तु एक दिन शाम के समय नमाज़ पढ़ते वक्त उन्हें मौका देखकर मार दिया गया।

Muharram 2025 Hindi | कर्बला के मैदान में हुए नरसंहार में उनके 72 जानिसारों के साथ हज़रत इमाम हुसैन शहीद हुए, तभी से उनकी शहादत को याद किया जाता है। मुहर्रम का चांद नजर आते ही, अज़ादार (मुहर्रम में इमाम हुसैन का मातम मनाने वाला) अपने इमाम के ग़म में गमजदा हो जाते हैं। इस दिन ताज़िया निकाला जाता है। (ताज़िया यानि बाँस की कमाचिय़ों पर रंग-बिरंगे कागज, पन्नी आदि चिपका कर बनाया हुआ मकबरे के आकार का वह मंडप जो मुहर्रम के दिनों में मुसलमान/ शिया लोग हजरत-इमाम-हुसैन की कब्र के प्रतीक रूप में बनाते है और जिसके आगे बैठकर मातम करते और मर्सिये पढ़ते हैं।
Read in English | Muharram: Can Celebrating Muharram Really Free Us From Our Sins?
ग्यारहवें दिन जलूस के साथ ले जाकर इसे दफन किया जाता है।) ये ताज़िया पैगंबर मोहम्मद के नवासे हजरत इमाम हुसैन और हजरत इमाम हसन के मकबरों का प्रतिरूप होते हैं। ध्यान रहे कि यह कुरान में वर्णित विधि नहीं है अतः किसी भी शास्त्र विरोधी विधि से त्योहार / मातम को मनाना मनमुखी साधना है जिससे न सुख हो सकता है और न ही मोक्ष प्राप्त हो सकता है और न ही ये अल्लाह की इबादत करने का सही तरीका है।
क्या अल्लाह की प्राप्ति रोज़ा रहकर मांस भक्षण करने से हो सकती है?
कबीर साहेब जी कहते हैं कि दिन भर रोज़ा रहने और शाम को मांस भक्षण करने से अल्लाह कभी प्रसन्न नहीं होता। अल्लाह की प्राप्ति के लिए तो बाख़बर द्वारा बताई साधना ही ज़रिया हो सकती है।
कबीर, गला काटि कलमा भरे, कीया कहै हलाल।
साहब लेखा मांगसी, तब होसी कौन हवाल।।
कबीर, दिन को रोजा रहत हैं, रात हनत हैं गाय।
यह खून वह वंदगी, कहुं क्यों खुशी खुदाय।।
मोहर्रम (Muharram) के दिनों में आशुरा क्या है?
- मुहर्रम महीने के 10वें दिन को इस्लाम में आशुरा कहा जाता है।
- यह इस्लामिक इतिहास के सबसे निंदनीय दिनों में से एक है।
- इस दिन पैगंबर मुहम्मद के नाती इमाम हुसैन, हुसैन इब्न और उनके साथियों की शहादत को याद किया जाता है।
- मुस्लिम मुहर्रम के दसवें दिन को रोज़ा रखते हैं।
- इस दिन शिया मुसलमान काले कपड़े पहनकर जुलूस निकालते हैं और इमाम हुसैन ने जो इंसानियत के लिए पैगाम दिए हैं उन्हें लोगों तक पहुंचाते हैं।
- इसी महीने के पहले दिन मुहम्मद जी मक्के से मदीना गए थे।
- अल्लाह की इबादत करने के लिए कोई खास दिन, माह या वर्ष नहीं होता।
- प्राचीन घटनाओं को याद करके त्योहार/ मातम मनाना भी मनमुखी साधना ही है।
Muharram Festival 2025 [Hindi] | क्या है इस्लामिक वर्ष और नववर्ष 1443 कब प्रारंभ होगा?
Muharram 2025 Hindi | नया इस्लामिक वर्ष 1446 अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार 7 जुलाई 2025 से शुरू हुआ है। इस्लाम धर्म के अंतिम प्रवर्तक हजरत मोहम्मद की जिस दिन मक्का शहर से मदीना की ओर हिज्ऱत (प्रवास) हुई थी उस समय से इस्लामी वर्ष के प्रारंभ की मान्यता दी गई और मुहर्रम को हिजरी सन का पहला माह तय कर दिया गया। इस्लामिक वर्ष चंद्र-कालदर्शक है जिसमें एक वर्ष में बारह मास एवं 354 या 355 दिवस होते हैं। यह वर्ष सौर कालदर्शक वर्ष से 11 दिवस छोटा होता है इसलिए इस्लामी धार्मिक तिथियाँ पिछले सौर वर्ष की अपेक्षा 11 दिन पीछे हो जाती हैं। इस महीने को इस्लाम के पवित्र चार महीनों में शामिल किया गया है जिसमें 2 महीने तो मुहर्रम से पहले और दो मुहर्रम के बाद आते हैं।
Muharram 2025 Hindi | क्या मुहर्रम अल्लाह की इबादत करने का महीना है?
Muharram 2025 Hindi | मुसलमानों का यह मानना है कि मुहर्रम के इस माह में अल्लाह की खूब इबादत करनी चाहिए। पैगंबरों ने इस माह में खूब रोजे़ रखे और अपने साथियों का भी ध्यान इस तरफ आकर्षित किया। जानकारी के लिए बता दें कि अल्लाह की बन्दगी तो आठों पहर और सोते जागते करनी चाहिए। अल्लाह की बन्दगी का कोई महीना विशेष या दिन विशेष नहीं होता है। अल्लाह की बन्दगी पूर्ण तत्वदर्शी सन्त जिसे कुरान के सूरत अल फुरकान 25:59 में बाख़बर कहा है, के द्वारा बताई साधना विधि से की जाती है।
Muharram पर जानें किसे हुआ अल्लाह का दीदार
आज हम आपको मुहर्रम (Muharram) के अवसर पर बताएँगे कि किन किन महापुरुषों को हुआ अल्लाह का दीदार। हज़रत मुहम्मद को कबीर परमेश्वर जिंदा महात्मा के रूप में मिले थे एवं सतज्ञान समझाया था लेकिन हज़रत मुहम्मद जी ने जिब्राइल फ़रिश्ते के डर से ज्ञान नहीं समझा और वे सतलोक जाकर भी वहां से वापस आ गए।
हम मुहम्मद को सतलोक ले गया | इच्छा रूप वहाँ नहीं रहयो ||
उलट मुहम्मद महल पठाया | गुज बीरज एक कलमा लाया ||
रोजा, बंग, नमाज दई रे | बिस्मिल की नहीं बात कही रे ||
- बलख बुखारे शहर के मुस्लिम बादशाह अब्राहिम सुल्तान अधम और दिल्ली के बादशाह सिकंदर लोदी को परमेश्वर मिले उनको तत्वज्ञान से परिचित करवाया, उसके बाद सुल्तान अधम ने राज त्याग दिया और अल्लाह की इबादत करके मोक्ष की प्राप्ति की।
- मुस्लिम धर्म के एक सुप्रसिद्ध साधक शेखफरीद जब बारह वर्ष से कुएं में उल्टा लटक कर तपस्या कर रहे थे तब उनको अल्लाह कबीर जी मिले। उन्हें आध्यात्मिक ज्ञान से परिचित करवाया और उनको मोक्ष का रास्ता दिखाया।
- राबिया (Rabia Basri) नाम की एक साध्वी थी उसे भी परमेश्वर कबीर ने दर्शन दिए थे। राबिया उस समय 12 वर्ष की थी जब उसे अल्लाह कबीर जी मिले थे। उसने 4 वर्ष तक कबीर जी द्वारा बताई साधना की थी। फिर अपने मुसलमान धर्म वाली मनमानी/ गलत साधना करने लगी थी जो व्यर्थ थी। फिर उसका जन्म बांसुरी नाम की लड़की के रूप में हुआ। उसने मक्के में अपना शरीर भी काटकर अर्पित कर दिया था। अगले जन्म में उसे वैश्या का जीवन मिला। कबीर साहेब द्वारा बताई गई भक्ति करने के कारण उसे मनुष्य के जन्म मिलते रहे थे। अब उसका कोई मानव जीवन शेष नहीं था। पशु की योनि में जाना था। उसी समय परमेश्वर कबीर जी धर्मराज के पास गए और उसे वहां से छुड़ाकर लाए और मानव शरीर में प्रवेश कर दिया। कबीर जी की कृपा से उसे फिर से मानव जीवन मिला और उसका नाम कमाली रखा। कबीर जी ने कमाली को बेटी की तरह पाला और अपने घर पर रखा।
तैमूरलंग (Temurlang) को मिले
Muharram 2025 Hindi | तैमूरलंग और उसकी मां बेहद गरीब थे। कबीर परमेश्वर ने तैमूर लंग को सात पीढ़ी का राज वरदान में दिया था। कबीर साहेब जी ज़िंदा बाबा के रूप में आकर तैमूर लंग और उसकी मां से मिले। उनकी एक रोटी खाकर कबीर जी ने बकरी बाँधने की सांकल (बेल) लेकर उसको तैमूर लंग की कमर में सात बार मारा। फिर लात मारी तथा मुक्के मारे। माई ने पूछा कि बाबा जी! बच्चे ने क्या गलती कर दी। माफ करो, बच्चा है।

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परमात्मा बोले कि माई इस एक रोटी के बदले तेरे पुत्र को सात पीढ़ी का राज्य का वरदान दिया है इसलिए सात बार बेल (सांकल) मारी है। और जो लात तथा मुक्के मारे हैं वो इसलिए क्योंकि बाद में इसका राज्य टुकड़ों में बँट जाएगा। ऐसा ही हुआ। बाबर तैमूरलंग का तीसरा पोता था। बाबर का पुत्र हुमायूं था। हुमायूं का अकबर, अकबर का जहांगीर, जहांगीर का शाहजहां, शाहजहां का पुत्र औरंगज़ेब हुआ। सात पीढियों ने भारत पर राज्य किया। फिर औरंगजेब के बाद राज्य टुकड़ों में बँट गया।
Muharram 2025 Hindi | बहन शिमली और भाई मंसूर
Muharram 2025 Hindi | कबीर अल्लाह समसतरबेज के रूप में शिमली और मंसूर से आकर मिले थे और उन्हें यथार्थ आध्यात्मिक ज्ञान समझाया था। मंसूर ने अनल हक का नारा लगाया था।
कौन है अल्लाह एवं कैसा है उसका स्वरूप?

- पवित्र कुरान शरीफ सूरत फुर्कानी 25 आयत नंबर 52 से 59 में स्पष्ट लिखा है कि इस संपूर्ण कायनात की रचना करने वाला वह अल्लाह ताला कबीर है जिसने 6 दिन में सारी कायनात की रचना की और सातवें दिन तख्त पर जा विराजा, वही अल्लाह इबादत के योग्य है, वही परमेश्वर पूजा के योग्य है।
- हज़रत मोहम्मद जी को भी वही अल्लाह कबीर परमेश्वर जी सतलोक से आकर मिले थे और उनको सतलोक भी दिखाया था।
- पवित्र कुरान शरीफ में लिखा है कि जिस परमेश्वर ने 6 दिन में सारी कायनात की रचना की वह अल्लाह कबीर बड़ा रहमान है। उस अल्लाह की सच्ची इबादत जानने के लिए पवित्र कुरान शरीफ का ज्ञानदाता किसी बाखबर संत (इल्म़ वाले) की शरण में जाने का संकेत कर रहा है।
जानिए कौन है कुरान का बाखबर?
पवित्र कुरान शरीफ के अनुसार वह बाखबर संत जगतगुरु रामपाल जी महाराज हैं जिन्होंने अल्लाह की सच्ची इबादत को खोजा है। पवित्र कुरान शरीफ का ज्ञान दाता भी कहता है कि अल्लाह के वास्तविक ज्ञान को समझने के लिए किसी इल्म़ वाले तत्वदर्शी बाखबर संत की तलाश कर वह बाखबर संत तुझे उस अल्लाह की इबादत करने के गूढ़ रहस्य से रूबरू करवाएगा तथा अल्लाह की प्राप्ति का सच्चा मार्ग बताएगा।
आयत 25:59: “अल्ल्जी खलकस्समावाति वल्अर्ज व मा बैनहुमा फी सित्तति अय्यामिन् सुम्मस्तवा अलल्अर्शि अर्रह्मानु फस्अल् बिही खबीरन्(कबीरन्)।।59।।”
Muharram 2025 Hindi | हज़रत मुहम्मद को कुरान शरीफ बोलने वाला प्रभु कह रहा है कि वह कबीर प्रभु वही है जिसने जमीन तथा आसमान के बीच में जो भी विद्यमान है सर्व सृष्टि की रचना छः दिन में की तथा सातवें दिन अपने सत्यलोक के सिंहासन पर विराजमान हो गया। उस सर्वोच्च अल्लाह कबीर को प्राप्त करने की विधि तथा वास्तविक ज्ञान तो किसी तत्वदर्शी संत (बाखबर) से पूछो।
पवित्र फज़ाइल-ए-अमाल में अल्लाह कबीर

● फज़ाइल-ए-ज़िक्र, आयत 1 में लिखित है कि अल्लाह कबीर है। वह पूर्ण परमात्मा/सर्वशक्तिमान कबीर ही हैं। ‘वल्लत कबीर बुल्लाह आला माह दकूबवला अल्लाह कुमदर गुरु’ हिंदी- तुम कबीर अल्लाह की बड़ाई बयां करो। इस बात पर तुम को हिदायत फरमाए ताकि अल्लाह ताला का शुक्र कर सको। वह कबीर अल्लाह तमाम पोशीदा और जाहिर चीजों को जानने वाला है। वह कबीर आलीशान रुतबे वाला है। कबीर गुनाहों से बचाने वाला है।
“अल्लाहु अकबर, आशादू अल्ला इलाहा इल्लल्लाह”
हिंदी– भगवान की शान सभी से अधिक होती है, मैं इस बात का गवाह हूं कि उस अल्लाह कबीर के सिवा कोई भगवान नहीं है।
इस्लाम में अल्लाहु अकबर (भगवान) केवल कबीर ही है
सातवीं शताब्दी ईसवी में अरब में पैगंबर मुहम्मद द्वारा फैलाया गया इस्लाम, अल्लाह को एकमात्र ईश्वर के रूप में देखता है और मुस्लिम धर्म के अनुयायी मानते हैं कि वह अल्लाह ही दुनिया का निर्माता, नियंत्रक और संयोजक है। वे कुरान शरीफ/मज़ीद को सबसे पवित्र ग्रंथ मानते हैं जो अल्लाह ने अपने पैगंबर मुहम्मद को दिया था। इस्लाम में पैगम्बर की प्रथा को समझने के लिए आदम, नूह, अब्राहम, मूसा और सुलेमान का उल्लेख करना अनिवार्य है। हज़रत मुहम्मद इस श्रृंखला में अंतिम स्थान पर आते हैं तो हम हज़रत मुहम्मद पर उतारी गई कुरान के अंश लेते हैं जहां बताया है कि अल्लाह कबीर है।

- कुरान शरीफ- सूरत फुरकान 25:55– लेकिन वे अल्लाह के अलावा किसी और की बन्दगी करते हैं। जो ना तो उनका नफ़ा कर सकता है और ना ही नुकसान और काफिर अपने रब के खिलाफ पुश्त पनाही करने वाला है। ऐसा कहा जाता है कि काफिर, अल्लाह कबीर के अलावा, किसी और की पूजा करते हैं, जो न तो उन्हें कोई लाभ प्रदान कर सकता है और न ही उन्हें नुकसान पहुंचा सकता है और काफिर हम सबके मालिक से दूर हो गए हैं, अर्थात अल्लाह कबीर से विमुख हो चुके हैं अर्थात अल्लाह कबीर के अतिरिक्त अन्य किसी भी देवी देवता की या पैगम्बर की पूजा करना शिर्क यानी पाप है।
- कुरान शरीफ – सूरत फुरकान 25:56 में कहा है कि मुहम्मद आपको और कोई काम नहीं दिया, सिवाय अच्छी ख़बर देने और एक आगाह करने वाले के। भावार्थ- क़ुरान शरीफ का ज्ञान दाता कह रहा है कि ओ पैगंबर! मैंने आपको अच्छी खबरें और उन्हें कर्मफल की चेतावनी देने के लिए भेजा है।
- कुरान शरीफ – सूरत फुरकान 25:57 – उन्हें कहो कि इसके लिए मैं तुमसे कोई अजर नहीं मांगता, मगर जो शख्स चाहे अपने रब तक रास्ता इख़्तियार कर ले। भावार्थ- उन्हें बताओ कि मैं उस अल्लाह के आदेश के लिए कोई शुल्क नहीं मांगता लेकिन जिसे भी अल्लाह चाहिए उन्हें एक रास्ता तो अपनाना ही पड़ेगा। इससे स्पष्ट हो गया है कि इस्लाम में अल्लाहु अकबर (ईश्वर) कबीर है।
अल्लाह कबीर की प्राप्ति कैसे हो सकती है?
Muharram 2025 Hindi | अल्लाह कबीर की प्राप्ति रोज़े रखने, जीव हत्या करने, मातम मनाने, खुद को जंजीरों से पीटने, जुलूस निकालने, ईद और मोहर्रम मनाने से नहीं होगी। बल्कि जीव हत्या करने और मांस खाने से अल्लाह रुष्ट होता है। अल्लाह कबीर और उनकी इबादत करने के सही तरीके के बारे में केवल बाख़बर यानी तत्वदर्शी सन्त ही बता सकता है। सूरत अल फुरकान 25:59 में कहा है कि छः दिन में सृष्टि रचकर सातवें दिन तख्त पर जा विराजने वाला कोई और नहीं बल्कि अल्लाह कबीर ही है उसके बारे में किसी इल्मवाले या बाख़बर से पूछ देखो।
मुस्लिम / इस्लाम धर्म के सभी अनुयायियों से अनुरोध है कि हम सभी यहां काल के लोक में फंसे हुए हैं हमारे पास यहां मातम करने के अलावा कोई चारा भी नहीं है। कबीर अल्लाह को पहचान लेने में ही भलाई है। बाख़बर संत रामपाल जी महाराज जी वास्तविक बाख़बर हैं जो तत्वज्ञान को जानने वाले हैं। उन्हें पैगम्बर समझो या अल्लाह का रूप दोनों एक ही बातें हैं उनकी शरण में जाने से ही सबका कल्याण और अल्लाह का दीदार संभव है। इस मोहर्रम कबीर अल्लाह को पहचानने के लिए बाख़बर संत रामपाल जी महाराज जी द्वारा लिखित पुस्तक ‘मुसलमान नहीं समझे ज्ञान कुरान‘ पढ़ें ताकि आप कुरान को अच्छे से समझ कर कबीर अल्लाह की सही इबादत आरंभ कर सकें और यहीं पृथ्वी पर अल्लाह से मुलाकात कर सकें। पुस्तक पढ़ने के लिए अपने मोबाइल के प्लेस्टोर से Sant Rampal ji Maharaj App आज ही डाउनलोड करें।
FAQ about Muharram Festival 2025 [Hindi]
मुहर्रम महीने के 10 वें दिन को ‘आशूरा’ कहते हैं। आशूरा के दिन हजरत रसूल के नवासे हजरत इमाम हुसैन, उनके बेटे, घरवाले और साथियों (परिवार वाले) को करबला के मैदान में शहीद कर दिया गया था।
वर्ष 2025 में अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार, मुहर्रम का महीना 27 जून से शुरू हुआ है। मोहर्रम का महीना शुरू होने के 10वें दिन आशूरा होता है, उस दिन यानी 06 जुलाई को इस वर्ष मोहर्रम मनाया जाएगा। इस्लामिक वर्ष के पहले महीने मोहर्रम का दसवाँ दिन मातम के रूप में मनाया जाता है।
हज़रत हुसैन को इस्लाम में एक शहीद का दर्ज़ा दिया जाता है। शिया मान्यता के अनुसार वे यज़ीद प्रथम के कुकर्मी शासन के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाने के लिए सन् 680 AD में कुफ़ा के निकट कर्बला की लड़ाई में शहीद हो गए थे। उनकी शहादत के दिन को आशूरा (दसवाँ दिन) कहते हैं और इस शहादत की याद में मुहर्रम (उस महीने का नाम) मनाते हैं।
हज़रत हुसैन (अल हुसैन बिन अली बिन अबी तालिब, यानि अबी तालिब के पोते और अली के बेटे अल हुसैन, 626 हि. -680 हि.) हज़रत अली रज़िअल्लाहु अन्ह के दूसरे बेटे थे और इस कारण से पैग़म्बर मुहम्मद के नाती थे। इनका जन्म मक्का में सन् 626 में हुआ था। उनकी माता का नाम फ़ातिमा ज़हरा था।
इमाम हुसैन का मकबरा शिया मुसलमानों के लिए सबसे पवित्र स्थानों में से एक है, मक्का और मदीना के बाद मुसलमान इस स्थल पर सबसे ज्यादा तीर्थ यात्रा करते हैं। हर साल, लाखों तीर्थयात्री शहर में आशुरा देखने जाते हैं, जो इमाम हुसैन की मृत्यु की वर्षगांठ का प्रतीक है जिसमें शामिल होने के लिए लगभग 45 मिलियन लोग कर्बला शहर में जाते हैं।
मुहर्रम का चांद दिखाई देते ही सभी शिया समुदाय के लोग पूरे 2 महीने 8 दिनों तक शोक मनाते हैं। इस दौरान वे लाल सुर्ख और चमक वाले कपड़े नहीं पहनते। इन दिनों ज्यादातर काले रंग के ही कपड़े पहने जाते हैं। मुहर्रम के पूरे महीने शिया मुस्लिम किसी तरह की कोई खुशी नहीं मनाते और न उनके घरों में कोई शादियां होती हैं। वे किसी अन्य की शादी या खुशी के किसी मौके पर भी शरीक नहीं होते। शिया महिलाएं भी इस दौरान सभी श्रृंगार की चीजों से दूरी बना लेती हैं।