आज हम इस ब्लॉग के माध्यम से आप को मांस खाने के नुकसान के बारे में तथा मांस खाना परमात्मा के विधान के अनुसार महापाप है, के बारे में विस्तार से बताएंगे। तो आइये शुरू करते है।
क्या आप जानते हैं-मांस खाना अपराध है
आप नोनवेज (मांसाहारी) भोजन क्यों खाते हैं। जवाब: ताकि प्राकृतिक संतुलन बना रहे। यह बहुत ज़रूरी है। मांस और अंडा खाने से शरीर को ज़रूरी आहार मिलता है और वातावरण के लिए भी यह आवश्यक है । लेकिन आप चाहे मांस खाने और जीव हत्या करने का कोई भी मनघड़ंत उत्तर दें इसका सेवन करने का प्रतिफल बहुत भयानक है। मानव जीवन प्राप्त प्राणी को अन्य जीवों पर दया दृष्टि रखनी चाहिए। मानव आहार जानवर की चीखों, रूदन और बीमारियों से रहित होना चाहिए।
मांस खाने वाले पापियों से परमात्मा कोसों दूर है
■ विश्व भर में भोजन के लिए खाए जाने वाले जानवरों की संख्या और हत्या के आंकड़े अत्यधिक चौंकाने वाले हैं। कुछ विशेष दिनों को छोड़कर मनुष्य अंडे, चिकन, बीफ, मटन, कीमा , सांप, मछली, काकरोच, विभिन्न जाति की मछलियां , मेंढक और कछुआ खाने से भी हिचकिचाते नहीं हैं। घोडे़, ऊँट, तीतर, खरगोश तक खा जाते हैं और भक्ति बंदगी भी करते हैं।
■ ऐसे (कुकर्मी) पापी से परमात्मा (अल्लाह) सौ कोस (एक कोस तीन किलोमीटर का होता है) दूर है। माँस खाते हो, जीव हिंसा करते हो, फिर भक्ति भी करते हो। यह गलत कर रहे हो। परमात्मा के दरबार में गले में फंद पड़ेगा यानि दण्डित किए जाओगे। अच्छा शाकाहार करो। बासमती चावल पकाओ। उसमें घी तथा खांड (मीठा) डालकर खाओ और भक्ति करो। (कूड़े काम) बुरे (पाप) कर्म त्याग दो।
■ (फुलके) पतली-पतली छोटी-छोटी रोटियों को फुल्के कहते हैं। ऐसे फुल्के बनाओ। धोई हुई दाल पकाओ। हलवा, रोटी आदि-आदि अच्छा निर्दोष भोजन खाओ। हे काजी! सुनो, माँस ना खाओ। परमात्मा की साधना करने के उद्देश्य से (रोजे) व्रत रखते हो, (तसबी) माला से जाप भी करते हो। फिर खून करते हो यानि गाय, मुर्गी-मुर्गा, बकरा-बकरी मारते हो। यह परमात्मा के साथ धोखा कर रहे हो।
जानवरों को मारकर खाना मानव का नहीं, राक्षसों का आहार है
रावण सौ मटका शराब और कई बकरों का मांस खाता था राक्षस कहलाया। आज के समय में सभी धर्मों के लोग जीभ के स्वाद को परमात्मा का आदेश बता कर जीव हत्या करके मांस खाते हैं। अरे मूर्ख प्राणी! क्या कभी तूने राम और कृष्ण को किसी जानवर या मुर्गी की हड्डी चबाते देखा है । तुझे कौन से स्वप्न में गुरू नानक देव जी और मोहम्मद जी मांस खाते दिख गए। मानव तू तो जानवर से भी नीचे गिर गया। मानव जीवन कर्म बनाने के लिए मिला है तू तो नित दिन कर्म बिगाड़ रहा है।
जैसा खाओगे अन्न वैसा हो जाएगा मन
- जीव हत्या कर उसका सेवन करने वालों में दया भाव नहीं रहती तभी तो जीव हत्या करने वाला कसाई और खाने वाला मांसाहारी प्राणी कहलाता है।
- जो व्यक्ति माँस भक्षण करते हैं, समझाने से भी नहीं मानते, वह तो महापाप के भागी हैं तथा घोर नरक में गिरेंगे क्योंकि माँस चाहे गाय, हिरनी तथा मुर्गी आदि किसी प्राणी का है जो व्यक्ति मांस खाते हैं वह नरक के भागी होते हैं।
मांस खाने का आदेश परमेश्वर का नहीं है
पूर्ण परमात्मा ने माँस खाने का आदेश कभी नहीं दिया। पवित्र बाईबल उत्पत्ति विषय में सर्व प्राणियों के खाने के विषय में पूर्ण परमात्मा का प्रथम तथा अन्तिम आदेश है कि मनुष्यों के लिए फलदार वृक्ष तथा बीजदार पौधे दिए हैं जो तुम्हारे खाने के लिए हैं तथा अन्य प्राणियों को जिनमें जीवन के प्राण हैं उनके लिए छोटे-छोटे पेड़ अर्थात् घास, झाड़ियां तथा बिना फल वाले पेड़ आदि खाने को दिए हैं। (उत्पत्ति ग्रन्थ 1:29,1:28) इसके बाद पूर्ण प्रभु का आदेश न पवित्र बाईबल में है तथा न किसी कतेब (तौरत, इंजिल, जुबुर तथा कुरान शरीफ) में है। इन कतेबों में ब्रह्म (काल), उसके फरिश्तों तथा पित्तरों व प्रेतों का मिला-जुला आदेश रूप ज्ञान है।
■ प्रमाण:- 2:12,17,18 एक आत्मा किसी में प्रवेश करके बोल रही है। हम उन लोगों में से नहीं है जो परमेश्वर के वचनों में मिलावट करते।जीसस में अन्य फरिश्ता और अन्य आत्मा भी बोलते हैं जो अपनी तरफ से मिलावट करके बोलती है।
- यही कारण है कि बाईबल तथा क़ुरान शरीफ (मजीद) में मांस खाने का आदेश अन्य आत्माओं का है, प्रभु का नहीं है।
पृथ्वी पर मौजूद सभी जीव-जंतु परमात्मा की संतान हैं
विश्व के सब प्राणी परमात्मा कबीर जी की आत्मा हैं। जिनको मानव (स्त्री-पुरूष) का जन्म मिला हुआ है, वे भक्ति के अधिकारी हैं। काल ब्रह्म यानि ज्योति निरंजन ने सब मानव को काल जाल में रहने वाले कर्मों पर दृढ़ कर रखा है। गलत व अधूरा अध्यात्म ज्ञान अपने दूतों (काल ज्ञान संदेशवाहकों) द्वारा जनता में प्रचार करवा रखा है।
पाप कर्म बढ़ें, धर्म के नाम पर ऐसे कर्म प्रारंभ करवा रखे हैं। जैसे हिन्दु श्रद्धालु भैरव, भूत, माता आदि की पूजा के नाम पर बकरे-मुर्गे, झोटे (भैंसे) आदि-आदि की बलि देते हैं जो पाप के अतिरिक्त कुछ नहीं है। इसी प्रकार मुसलमान अल्लाह के नाम पर बकरे, गाय, मुर्गे आदि की कुर्बानी देते हैं जो कोरा पाप है। हिन्दु तथा मुसलमान, सिख तथा ईसाई व अन्य धर्म व पंथों के व्यक्ति कबीर परमात्मा (सत पुरूष) के बच्चे हैं जो काल द्वारा भ्रमित होकर पाप इकट्ठे कर रहे हैं।
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इन वाणियों में कबीर जी ने विशेषकर अपने मुसलमान बच्चों को काल का जाल समझाया है तथा यह पाप न करने की राय दी है। परंतु काल ब्रह्म द्वारा झूठे ज्ञान में रंगे होने के कारण मुसलमान अपने खालिक कबीर जी के शत्रु बन गए। काल ब्रह्म भी प्रेरित करके झगड़ा करवाता है।
कबीर जी ने क़ाज़ी और मुल्ला को जीव हत्या करने से मना किया।
कबीर परमात्मा मुसलमान धर्म के मुख्य कार्यकर्ता काजियों तथा मुल्लाओं को पाप से बचाने के लिए समझाया करते थे। कहा करते थे कि काजी व मुल्ला! आप गाय को मारकर पाप के भागी बन रहे हो। आप बकरा, मुर्गा मारते हो, यह भी महापाप है। गाय के मारने से (अल्लाह) परमात्मा खुश नहीं होता, उल्टा नाराज होता है। आपने किसके आदेश से गाय को मारा है?
सुन काजी राजी नहीं, आपै अलह खुदाय।
गरीबदास किस हुकम सैं, पकरि पछारी गाय।।
गऊ हमारी मात है, पीवत जिसका दूध।
गरीबदास काजी कुटिल, कतल किया औजूद।।
गऊ आपनी अमां है, ता पर छुरी न बाहि।
गरीबदास घृत दूध कूं, सबही आत्म खांहि।।
ऐसा खाना खाईये, माता कै नहीं पीर।
गरीबदास दरगह सरैं, गल में पडै़ जंजीर।।
परमेश्वर कबीर जी ने काजियों व मुल्लाओं से कहा कि गऊ हमारी माता है जिसका सब दूध पीते हैं। हे (कुटिल) दुष्ट काजी! तूने गाय को काट डाला। गाय आपकी तथा अन्य सबकी (अमां) माता है क्योंकि जिसका दूध पीया, वह माता के समान आदरणीय है। इसको मत मार। इसके घी तथा दूध को सब धर्मों के व्यक्ति खाते-पीते हैं।
ऐसे खाना खाइए जिससे माता को (गाय को) दर्द न हो। ऐसा पाप करने वाले को परमात्मा के (दरगह) दरबार में जंजीरों से बाँधकर यातनाएं दी जाऐंगी। परमात्मा कबीर जी ने कहा कि हे काजी तथा मुल्ला! सुनो, आप मुर्गे को मारते हो यह पाप है। आगे किसी जन्म में मुर्गा तो काजी बनेगा, काजी मुर्गा बनेगा, तब वह मुर्गे वाली आत्मा मारेगी। स्वर्ग नहीं मिलेगा, नरक में जाओगे। काजी कलमा पढ़त है यानि पशु-पक्षी को मारता है। फिर पवित्र पुस्तक कुरान को पढ़ता है। संत गरीबदास जी बता रहे हैं कि कबीर परमात्मा ने कहा कि इस (जुल्म) अपराध से दोनों जिहांन बूडे़ंगे यानि पृथ्वी लोक पर भी कर्म का कष्ट आएगा। ऊपर नरक में डाले जाओगे।
कबीर जी ने दोनों धर्मों को दया भाव रखने को कहा
कबीर परमात्मा ने कहा कि दोनों (हिन्दु तथा मुसलमान) धर्म, दया भाव रखो। मेरा वचन मानो कि सूअर तथा गाय में एक ही बोलनहार है यानि एक ही जीव है। न गाय खाओ, न सूअर खाओ। आज कोई पंडित के घर जन्मा है तो अगले जन्म में मुल्ला के घर जन्म ले सकता है। इसलिए आपस में प्रेम से रहो। हिन्दु झटके से जीव हिंसा करते हैं। मुसलमान धीरे-धीरे जीव मारते हैं। उसे हलाल किया कहते हैं। यह पाप है। दोनों का बुरा हाल होगा। बकरी, मुर्गी (कुकड़ी), गाय, गधा, सूअर को खाते हैं। भक्ति की (रीस) नकल भी करते हैं। ऐसे पाप करने वालों से परमात्मा (अल्लाह) दूर है यानि कभी परमात्मा नहीं मिलेगा। नरक के भागी हो जाओगे। पाप ना करो।
जब सदना कसाई से बकरा बोल पड़ा-सदना कसाई की कहानी
सदना एक कसाई का नौकर था। प्रतिदिन 2 से 10 तक बकरे-बकरी, गाय-भैंसें काटता था। उसी से निर्वाह चल रहा था। एक दिन परमेश्वर एक मुसलमान फकीर जिन्दा बाबा के रूप में सदन कसाई को मिले। उसको भक्ति ज्ञान समझाया। जीव हिंसा से होने वाले पाप से परिचित कराया। सर्व ज्ञान समझकर सदन कसाई ने दीक्षा लेने की प्रबल इच्छा व्यक्त की। परमेश्वर जिन्दा ने कहा कि पहले यह कसाई का कार्य त्याग, तब दीक्षा दूँगा। सदना के सामने निर्वाह की समस्या थी। वह जिन्दा बाबा को बताई।
जिन्दा ने कहा कि आप हिंसा कम कर दो। सदना ने कहा कि बाबाजी! मैं पक्का वादा (वचन) करता हूँ कि सौ पशुओं से अधिक नहीं काटूँगा, चाहे नौकरी भी क्यों न त्यागनी पड़़े। एक दिन नगर में कई विवाह थे। साथ में नवाब के लड़के का विवाह था। उस दिन पूरे सौ बकरे काटे। सदना ने अल्लाह का धन्यवाद किया। अपना वचन खण्ड होने से बाल-बाल बचा। सब औज़ार धोकर साफ करके रख दिए। रात्रि में सदना के मालिक के घर एक बड़ा व्यापारी आया जिसे बकरे चाहिए थे। वह सदना के मालिक के घर ही रूका। उसके खाने के लिए मालिक ने सदना को बुलाया तथा एक बकरा काटकर उसके लिए भोजन तैयार करने को कहा। सदना को पसीना आ गया।
अपना वचन खण्ड होने का भय सताने लगा। उसी समय एक विचार आया कि क्यों न बकरे के अण्डकोष काटकर रसोई में भेज दूँ। मेरा वचन भी रह जाएगा और मालिक भी खुश रहेगा। एक बकरा लाकर सदना ने उसके अण्डकोष काटने के लिए छुरा उठाया। उसी समय परमात्मा ने बकरे को मनुष्य बुद्धि प्रदान कर दी तथा तत्वज्ञान की रोशनी कर दी। बकरे ने कहा कि हे सदन भाई! आप मेरी गर्दन काटो, अण्डकोष मत काटो। आप यह नया वैर शुरू ना करो। हे सदना! मैंने कसाई रूप में तेरे कई बार सिर काटे हैं जब तुम बकरे की योनि में थे।
आपने भी मेरे बहुत बार सिर काटे हैं जब मैं बकरा और तुम कसाई थे। यदि आप मेरे अण्डकोष काटोगे तो मैं सारी रात्रि तड़प-तड़पकर, रो-रो कर मरूँगा। अगले किसी जन्म में जब मैं कसाई बनूँगा, तुम बकरा बनोगे तो अल्लाह के विधान अनुसार मैं तेरे अण्डकोष काटूँगा, तुम भी तड़प-तड़पकर प्राण त्यागोगे। इसलिए यह नई दुश्मनी शुरू न कर। मेरी गर्दन काट अपना बदला ले। यहां हमें अपने किए प्रत्येक कर्म का हिसाब देना पड़ता है चाहें इसके लिए कितने जन्म लेने पडें। सदना ने बकरा नहीं काटा और औज़ार रख दिए।
मांस खाने के नुकसान-मांस खाना स्वास्थ्य के लिए भी नुकसानदायक है।
- विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट के अनुसार मांसाहार का सेवन करना हमारे स्वास्थ्य के लिए उतना ही नुकसानदायक है जितना की धूम्रपान। इस रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि पका हुआ मांस खाने से कैंसर का खतरा बना रहता है।
- मांसाहारी भोजन की तुलना में शाकाहारी भोजन सबसे ज्यादा लाभदायक होता है। शाकाहारी भोजन करने से इंसान स्वस्थ, निरोग और तंदरुस्त बनाता है।
- बर्ड फ्लू और स्वाइन फ्लू जैसी महामारी का नाम आप ने सुना होगा। यह बीमारी या कहे महामारी मुर्गे और सुअरों के जरिए इंसानों तक पहुंचती है। हर साल इसकी वजह से लाखों लोग मारे जाते हैं।
- आप को जानकर हैरानी होगी की दुनिया के एक चौथाई प्रदूषण का कारण मांस ही है। अगर दुनिया के सभी लोग मांस खाना छोड़ दें तो 70 प्रतिशत तक प्रदूषण कम हो जाएगा।
मांस खाना महापाप है-संतो की वाणी
गऊ को मार ना भाई, ये मिट्टी मांस ना खायी~ संत गरीबदास जी (हरियाणा)
गरीब, एक मुल्ला मस्जिद में कूके, एक पुकारे बोका, इनमें कौन सरे(स्वर्ग) कूं जायेगा, हमकूं लग्या है धोखा~ संत गरीबदास जी (हरियाणा)
कलमा रोजा बंक निवाजा, कद नबी मोहम्मद कीन्हया,कद मोहम्मद ने मुर्गी मारी, कर्द गले कद दीन्हया॥~संत गरीबदास जी (हरियाणा)
तिल भर मछली खायके, कोटि गऊ दे दान,कासी करवट ले मरै, तो भी नरक निदान~ संत कबीर साहेब जी।
बकरी घास खाती है और मानव उसका मांस!!
कबीर साहेब जी कहते हैं: बकरी जो आपने मार डाली वह तो घास-फूंस, पत्ते आदि खाकर पेट भर रही थी। इस काल लोक में ऐसे शाकाहारी पशु की भी हत्या हो गई तो जो बकरी का माँस खाते हैं उनका तो अधिक बुरा हाल होगा। जो लोग जीव हिंसा करते हैं वह नरक में जाएंगे और कभी मुक्ति प्राप्त नहीं कर सकते
■ जरा-सा (तिल के समान) भी माँस खाकर जो व्यक्ति भक्ति करता है, वह चाहे करोड़ गाय दान भी करता है, उस साधक की साधना भी व्यर्थ है। माँस आहारी व्यक्ति चाहे काशी में करौंत से गर्दन छेदन भी करवा ले वह नरक ही जायेगा।
मांस खाना यानी अगले जन्मों में भी बार – बार और लगातार अपनी गर्दन कटाने का कांट्रेक्ट साइन कर जाना। हे मनुष्यों ऐसा न करो । हम अज्ञानी मुल्ला, काज़ियों, पादरियों, पंडितों और ब्राह्मणों के बहकाए हुए हैं जो परमात्मा के विधान से सदा अपरिचित थे। मानव समाज से प्रार्थना है कि परमात्मा स्वयं पृथ्वी पर उपस्थित हैं और अपना आदेश स्वयं सत्संगों के माध्यम से बता रहे हैं। आप भी जानें कि परमात्मा द्वारा उपलब्ध आहार पृथ्वी पर भरपूर मात्रा में विद्यमान हैं। शाकाहारी खाएं और परमात्मा के गुण गाएं। अधिक जानकारी के लिए पढ़ें पुस्तक ज्ञान गंगा और सत्संग देखें साधना चैनल पर 7.30-8.30 बजे।
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