हिसार जिले के गांव खोखा की स्थिति बीते तीन महीनों से बेहद गंभीर थी। पूरे गांव में पानी भरा हुआ था, करीब 700 एकड़ से अधिक फसलें सड़ चुकी थीं, सड़कें टूट गई थीं और ग्रामीण जीवन पूरी तरह अस्त-व्यस्त हो चुका था। खेतों में खड़ी धान की फसलें जलमग्न होकर बर्बाद हो गईं, कई घरों में पानी घुस गया और स्वास्थ्य तथा स्वच्छता का संकट गहरा गया। गांव वालों का दर्द केवल नुकसान का नहीं था, बल्कि इस बात का भी था कि प्रशासन और नेता आते तो थे, लेकिन केवल आश्वासन देकर लौट जाते थे। एक ग्रामीण ने पीड़ा व्यक्त करते हुए कहा कि “नेता पानी देखकर पजामा समेटकर वापस लौट जाते थे, पर वास्तविक मदद कोई नहीं करता था।”
इन्हीं परिस्थितियों में, जब हर दरवाजे पर उम्मीद टूट चुकी थी, तब गांव वालों ने विकास हुड्डा (सरपंच प्रतिनिधि) के साथ सभी गांव के रमुख बड़े बुजुर्गों के हस्ताक्षर सहित, संत रामपाल जी महाराज के चरणों में एक अंतिम प्रार्थना भेजी। उनके प्रार्थना पत्र को गंभीरता से लिया गया और उसी क्षण से हालात बदलने की प्रक्रिया शुरू हुई।
पंचायत ने भेजा प्रार्थना पत्र, मांगी मोटर और 12,000 फुट पाइपलाइन
ग्राम पंचायत खोखा की बैठक बुलाई गई, जिसमें पंचायत प्रतिनिधियों, बुजुर्गों और ग्रामीणों ने सामूहिक रूप से निर्णय लिया कि सहायता के लिए संत रामपाल जी महाराज के आश्रम से संपर्क किया जाए। प्रार्थना पत्र में स्पष्ट रूप से लिखा गया कि गांव में बाढ़ निकासी के लिए दो 15 एचपी मोटरों और लगभग 12,000 फुट पाइप की आवश्यकता है, ताकि पानी को तेज़ी से गांव से बाहर निकाला जा सके। पंचायत के हस्ताक्षरित इस पत्र को विधिवत रूप से आश्रम भेजा गया और आदेश का इंतजार होने लगा।
सेवादारों की ओर से आश्वासन दिया गया कि जैसे ही अनुमति प्राप्त होगी, संपूर्ण राहत सामग्री गांव तक पहुंचा दी जाएगी। ग्रामीणों को यह समझाया गया कि यहां केवल वादे नहीं किए जाते, बल्कि वास्तविक और जमीनी सहायता प्रदान की जाती है।
रातों-रात पहुंचा राहत काफिला, मोटरें और 12,000 फुट पाइप गांव को समर्पित
गांव के लिए राहत सामग्री भेजे जाने का आदेश मिलते ही देर रात बड़ा राहत काफिला खोखा गांव के लिए रवाना हुआ। राहत सामग्री में शामिल थीं दो विशाल 15 एचपी मोटरें, 12,000 फुट 8-इंची पाइप लाइन, नट-बोल्ट, फिक्स वाल्व, सुंडियां, स्टार्टर और संचालन के लिए आवश्यक सभी तकनीकी उपकरण। संत रामपाल जी महाराज जी ने यह आदेश सेवादारों को दिए कि गांव वालों को किसी भी वस्तु के लिए बाजार न जाना पड़े। सेवादारों को स्पष्ट निर्देश था कि पूरी सामग्री “ए टू ज़ेड” उपलब्ध कराई जाए, ताकि पानी निकासी का काम तुरंत शुरू हो सके।
जब राहत गाड़ियां गांव के प्रवेश द्वार पर पहुंचीं, तो हर तरफ भावुक दृश्य देखने को मिले। कई ग्रामीणों ने इसे “जीवन दान” करार दिया। महिलाओं, बुजुर्गों और युवाओं ने राहत दल का स्वागत किया और इसे गांव के लिए ऐतिहासिक क्षण बताया।
खेत जलमग्न, टूटी सड़कें और बिखरी उम्मीदें, अब बदलने लगा परिदृश्य
खोखा गांव में प्रवेश करते ही बाढ़ से हुई तबाही का दृश्य साफ दिखाई देता था। धान की पूरी फसल जमीन पर बिछ चुकी थी, सड़कें उखड़ चुकी थीं और लोगों की आजीविका पर गहरा संकट छाया था। किसानों ने बताया कि फसल बर्बाद होने के कारण मजदूरों की आय भी प्रभावित हुई, क्योंकि खेतों से जुड़ा पूरा ग्रामीण तंत्र ठप हो गया था।
राहत सामग्री पहुंचते ही पाइप बिछाने और मोटर स्थापित करने का कार्य तुरंत शुरू हो गया। चौपाल में ग्राम सभा के दौरान सरपंच और ग्रामीणों ने संत रामपाल जी महाराज के प्रति आभार व्यक्त करते हुए कहा कि “आज तक हमें केवल आश्वासन मिले, लेकिन पहली बार हमें वास्तविक सहायता मिली है।”
पूरे गांव में किसानों की आंखें कृतज्ञता से नम थीं। जब सहायता सामग्री गांव पहुँची, तो सभी ग्रामवासी एकत्रित हुए। वह दृश्य केवल राहत वितरण का नहीं, बल्कि समाज के संत रामपाल जी महाराज के प्रति गहरे प्रेम, अटूट श्रद्धा और अदम्य विश्वास का प्रतीक था, एक ऐसा क्षण, जिसकी अनुभूति वर्षों से प्रतीक्षित थी।
ग्रामीणों की भावनाएं: “यह केवल सहायता नहीं, बल्कि विश्वास की पुनर्स्थापना है”
कई ग्रामीण भावुक होते हुए बोले कि यदि यह मदद समय पर न मिलती, तो गांव पूरी तरह बर्बादी के कगार पर पहुंच जाता। एक बुजुर्ग किसान ने कहा कि “प्रशासन ने केवल औपचारिक दौरे किए, लेकिन संत रामपाल जी महाराज ने वास्तव में हमारा दर्द समझा और हमें बचाया।” लोगों ने कहा कि यह राहत केवल पाइप और मोटरों का प्रबंध नहीं, बल्कि जीवन और आजीविका को पुनर्जीवित करने का प्रयास है।

कई ग्रामीणों ने इसे “मानवीय संवेदनशीलता और सामाजिक उत्तरदायित्व का अद्वितीय उदाहरण” बताया। संत रामपाल जी महराज जी की सेवा निस्वार्थ सेवा है और उन्हें किसी राजनीतिक पद की आकांक्षा नहीं है क्योंकि वे स्वयं भगवान हैं। ऐसा अब प्रत्येक गांववासी कह रहा है। लोगों ने संत रामपाल जी महाराज जी की जयकारे लगाए।
सामूहिक जिम्मेदारी और अनुशासन, पानी निकासी के साथ भविष्य सुरक्षित करने का संकल्प
राहत सामग्री के साथ गांव को एक लिखित निवेदन पत्र भी सौंपा गया, जिसमें यह स्पष्ट किया गया कि उद्देश्य केवल वर्तमान पानी निकासी तक सीमित नहीं है, बल्कि दीर्घकालिक समाधान सुनिश्चित करना भी है। यदि और भी आवश्यकता है तो समान ले सकते हैं किंतु पानी समय से निकालना होगा अन्यथा भविष्य मन कोई सहायता प्रदान नहीं की जाएगी।
ग्रामीणों को सलाह दी गई कि पाइपलाइन और मोटरों को स्थायी रूप से स्थापित किया जाए, ताकि भविष्य में भी भारी वर्षा के दौरान तुरंत पानी निकाला जा सके और फसल को बचाया जा सके। साथ ही यह भी कहा गया कि यदि सामग्री के बावजूद समय पर पानी नहीं निकाला गया तथा फसल की बिजाई नहीं हो सकी, तो इसे ग्रामीणों की लापरवाही माना जाएगा।
पत्र में यह भी उल्लेख था कि इस पूरी प्रक्रिया की ड्रोन से वीडियो बनाई जाएगी एक पानी निकालने के पहले और दूसरी पानी निकालने के बाद और तीसरी वीडियो तब बनाई जाएगी जब खेतों में फसलें लहलहायेंगी। ताकि यह दिखाया जा सके कि दान और सेवा का उपयोग सही उद्देश्य के लिए हो रहा है। लाखों रुपए लेकर कथा करने वाले लोग सारा पैसा हज़म कर जाते हैं ऐसे समय में यदि वो आगे आते हैं तो सरकार पर भी बोझ कम पड़ेगा।
“अन्नपूर्णा मुहिम” के तहत सतत जनसेवा, किसानों और मजदूरों के जीवन में नई रोशनी
सेवादारों ने बताया कि यह सहायता “अन्नपूर्णा मुहिम” के अंतर्गत दी जा रही है, जिसके माध्यम से हरियाणा और अन्य क्षेत्रों के सैकड़ों गांवों में राहत कार्य किए जा चुके हैं। इस मुहिम का उद्देश्य केवल तात्कालिक संकट प्रबंधन नहीं, बल्कि ग्रामीण अर्थव्यवस्था को पुनर्प्रतिष्ठित करना है। यह सहायता “अन्नपूर्णा मुहिम” के अंतर्गत प्रदान की गई है, जिसके माध्यम से अब तक चार सौ से अधिक गांवों में राहत एवं सहयोग कार्य किए जा चुके हैं। इस मुहिम के तहत
- बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में राहत सामग्री,
- जरूरतमंद परिवारों के लिए सहायता,
- छात्रों, मरीजों और आर्थिक रूप से कमजोर परिवारों के लिए सहयोग निरंतर जारी है।
यही निस्वार्थ सेवा भाव लोगों के विश्वास को और अधिक दृढ़ करता है। किसानों ने कहा कि यदि फसल बचेगी तो मजदूरों का रोजगार भी बचेगा, घरों में चूल्हे जलेंगे और गांव फिर से अपनी पुरानी रफ्तार पकड़ सकेगा। ग्रामीणों ने इस सहयोग को “किसानों, मजदूरों और आम जन के लिए सबसे बड़ा उपकार” बताया। एक व्यक्ति के अनुसार लोग जाति पाति में उलझे रहे और महज़ आश्वासन दिया। लेकिन संत रामपाल जी महाराज जी ने जेल में बैठकर भी ग्रामवासियों की पुकार सुनी और मदद की।
खोखा गांव में लौटी उम्मीद, “अब अगली फसल बोई जाएगी, गांव फिर जिंदा होगा”
पानी निकासी की प्रक्रिया शुरू होते ही किसानों के चेहरों पर राहत और खुशी दिखने लगी। कई ग्रामीणों ने कहा कि यह सहायता उनके लिए पुनर्जन्म जैसी है। एक किसान ने कहा, “अब फिर से बुवाई होगी, घरों में चूल्हा जलेगा और मजदूर भी काम पर लौटेंगे।” दूसरे ग्रामीण ने इसे “गांव की आर्थिक धड़कन का पुनर्जीवन” बताया। यह घटना केवल राहत देने की कहानी नहीं, बल्कि उस भरोसे की कहानी है कि जब सब दरवाजे बंद हो जाएं, तब भी मानवीय संवेदना और सेवा भाव समाज को सहारा दे सकते हैं।
संकट की घड़ी में संत रामपाल जी महाराज बने सहारा
खोखा गांव की यह घटना केवल बाढ़ राहत का प्रसंग नहीं, बल्कि विश्वास, करुणा और सामाजिक उत्तरदायित्व की जीवंत गाथा है। जब किसान और ग्रामीण निराशा के अंधकार में डूब चुके थे और चारों ओर असहायता का भाव व्याप्त था, उसी क्षण समय पर मिली सहायता ने न केवल उनके जीवन में राहत पहुँचाई, बल्कि उनके टूटते मनोबल को पुनः संबल भी प्रदान किया।
संत रामपाल जी महाराज जी ने यह बिना देखें कि प्रार्थना करने आले उनके अनुयायी हैं या नहीं, तुरंत सहायता उपलब्ध करवाई है। समस्त जीव एक परमेश्वर की संतानें हैं ऐसा ना केवल वे सत्संग में बताते हैं बल्कि स्वयं भी सभी के साथ उसी तरह व्यवहार करते हैं।
संत रामपाल जी महाराज को लोग यूँ ही भगवान और परमेश्वर के रूप में संबोधित नहीं करते। उन्होंने उस कठिन समय में किसानों और गरीब परिवारों की पुकार सुनी, जब उनके पास कोई उपाय शेष नहीं था, जब बेबसी धीरे-धीरे उनके जीवन को निगल रही थी, जब अन्नदाता स्वयं हार मान चुका था और देश की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था कृषि गहरे संकट से गुजर रही थी। ऐसे विकट दौर में यह सहायता केवल सामग्री नहीं थी, बल्कि आशा, विश्वास और नए जीवन का प्रकाश थी।



