आए दिन गूगल (Google) किसी न किसी ख़ास पर्व और लोगों से जुड़ी ख़ास घटनाओं को यादगार बनाएं रखने के लिए अपने होमपेज पर आकर्षक रंग-बिरंगे डूडल बनाकर हमारे समक्ष पेश किया ही करता है। हाल ही में गूगल ने 15 जनवरी रविवार के दिन आज़ाद भारत के मशहूर कुश्ती पहलवान खाशाबा दादासाहेब जाधव (Khashaba DadaSaheb Jadhav) को उनके 97वें जन्म दिवस पर डूडल बनाकर किया याद।
अपने छोटे कद से बड़े – बड़े पहलवानों को कुश्ती में धूल चटा देने वाले मशहूर केडी जाधव (KD Jadhav) को लोग आज भी ‘पॉकेट डायनमो’ के नाम से जानते हैं। साल 1952 में अमेरिका के हेलसिंकी, फिनलैंड में समर ओलंपिक आयोजित किया गया था। जिसमें केडी जाधव ने फ्रीस्टाइल कुश्ती श्रेणी में हिस्सा लेकर कांस्य पदक हासिल कर नया इतिहास कायम किया और भारत को गौरवान्वित किया था। आइए जानते हैं इस लेख के माध्यम से उनके जीवन से जुड़ी कुछ खास बातें।
Khashaba DadaSaheb Jadhav Google Doodle [Hindi] | महत्वपूर्ण बिंदु
- Google ने Doodle बनाकर खाशाबा जाधव को किया सम्मानित।
- सन 1992-93 में महाराष्ट्र सरकार ने केडी जाधव को मरणोपरांत छत्रपति पुरस्कार से किया था सम्मानित।
- KD Jadhav को सम्मानित करने के लिए 2010 में दिल्ली राष्ट्रमंडल खेलों के नवनिर्मित स्थलों का नाम उनकी उपलब्धि पर रखा गया था।
- सन 2000 में केडी जाधव को मरणोपरांत अर्जुन पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया था।
- हमारे जीवन के सच्चे मार्गदर्शक गुरु ही होते हैं।
- मानव जीवन का मूल उद्देश्य केवल सतभक्ति करना है।
कौन थे खाशाबा जाधव (Khashaba DadaSaheb Jadhav)?
केडी जाधव (KD Jadhav) उन पहलवानों में से एक हैं जिन्होंने पूरी दुनिया को बताया कि एक सफल पहलवान बनने के लिए हट्टा-कट्टा शरीर नहीं बल्कि जज्बा और तकनीक ज्यादा मदद करती हैं। छोटे कद और बड़े काम करने वाले इस दिग्गज पहलवान ने दुनिया के बड़े बड़े सुरमाओं को कुश्ती में धूल चटा दी। उन्होंने भारत के लिए 1952 ओलंपिक में पहला व्यक्तिगत मेडल जीतकर नया इतिहास रच दिया था।
इस वजह से पहलवानों को उनसे लगता था डर!
Khashaba DadaSaheb Jadhav का जन्म 15 जनवरी 1926 को सतारा जिला महाराष्ट्र में हुआ था। पांच भाईयो में वे सबसे छोटे होनहार थे। 10 वर्ष की आयु में अपने छोटे कद और फुर्तीले शरीर से पहलवानो को धूल चटा देने वाले KD Jadhav एक अच्छे धावक और तैराक भी रहे हैं। छोटी आयु में अपने पिता से पहलवानी उन्हे विरासत में मिली है। KD Jadhav कुश्ती के हर दाव पेंच से वाकीफ थे। उनकी हेड लॉकिंग तकनीक इतनी बेहतर थी कि प्रतिद्वंद्वी की जरा सी चूक होने पर उन्हें उठाकर ज़मीन पर पटक देते थे। बचपन से ही फुर्तीले शरीर के जाधव पिच पर ऐसे भागते थे जिन्हे पकड़ना बेहद ही मुश्किल होता था। 5 फीट 6 इंच के जाधव अपने साथ के पहलवानों से बेहतर तकनीक जानते थे।
Khashaba DadaSaheb Jadhav: Wrestling Career की शुरूआत
इनके पिता जी स्वयं पहलवान वा कुश्ती कोच थे। 5 साल की उम्र से ही खशाब को कुश्ती प्रशिक्षण दिया जानें लगा। इन्हे बेहतरीन प्रशिक्षण के लिए एक कॉलेज में प्रवेश दिलाया गया। जहां इन्होंने गुरु बाबूराव बलावड़े और बेलापुरी गुरुजी के सामने अच्छे ग्रेड प्राप्त किए थे। इनके जीवन में अच्छे प्रशिक्षण और गुरुओं का अहम योगदान रहा। साल 1948 में कुश्ती की शुरुआत करते हुए पहली बार लंदन ओलंपिक में सुर्खियों मे आए थे जब वह 6वें स्थान रहे थे।
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1948 समर ओलंपिक
खशाब को बड़े ओलंपिक का अनुभव 1948 में आयोजित लंदन ओलंपिक में हुआ था। उनका कैरियर कोल्हापुर के महाराजा द्वारा वित्त घोषित करने से हुआ। लंदन में उन्हें संयुक्त राज्य अमरीका के पूर्व लाइटवेट विश्व चैंपियन रिस गार्डनर द्वारा प्रशिक्षण दिया गया। अपने दाव पेंच के जरिए कुछ ही मिनटों में ऑस्ट्रेलियाई पहलवान बर्ट हेरिश को हराकर दर्शको को चौंका दिया था किंतु मेट पर ज्यादा अनुभव न होने के कारण ईरान के मंसूर से हार गए थे।
1952 समर ओलंपिक
मैराथन कुश्ती में शामिल हुए Khashaba DadaSaheb Jadhav को माम्मदबेयोव से लड़ने के लिए कहा गया था। खेल के नियमों के अनुसार 30 मिनट आराम करने की आवश्यकता सभी पहलवानो को होती है और आराम के समय पूरे शरीर को अच्छे से दबाकर आराम दिया जाता है। लेकिन वहां कोई भी भारतीय मौजूद न होने के कारण हारे थके KD Jadhav कुश्ती में अधिक समय तक टिकने में विफल रहे। लेकिन फिर भी उन्होंने कनाडा, जर्मनी, मेक्सिको के पहलवानो को हराकर जुलाई 1952 में कांस्य पदक जीता और स्वतंत्र भारत के पहले पदक विजेता बने।
इस वजह से चूक गए गोल्ड मेडल!
Khashaba DadaSaheb Jadhav ने कांस्य पदक हासिल करने के पश्चात स्वर्ण पदक पर अपना निशाना साधते हुए दोगुनी मेहनत प्रारंभ कर दी थी। जाधव बचपन से ही बहुत मेहनती थे वे एक बार में लगभग 1000 सिट-अप और 200-300 पुश-अप लगा देते थे। ओलंपिक से पहले उनके घुटने में अधिक चोट आ जानें के कारण वह गोल्ड से चूक गए।
Khashaba DadaSaheb Jadhav का निधन!
खेल से रिटायर्ड होने के बाद उन्होने 1955 में अपनी सेवा पुलिस बल में देना प्रारंभ कर दी। उन्होने पुलिस विभाग के अंतर्गत अयोजित सभी प्रतियोगिताओं में जीत हासिल की और खेल प्रशिक्षक के रुप में राष्ट्रीय कर्तव्यों का पालन भी किया। 27 वर्ष तक पुलिस बल में सेवा देने के बाद वह सेनानिवृत हो गए। सेनानीवृत होन के बाद उन्हें पेंशन के लिए भी संघर्ष करना पड़ा था। साल के अन्तिम दिन उनको गरीबी में व्यतीत करने पड़े और अंत में साल 1984 में सड़क दुर्घटना में उनका निधन हो गया।
सच्चे गुरु ही जीवन के मार्गदर्शक होते है
गुरु का शिष्य के जीवन में अधिक महत्व है। गुरु शिष्य के जीवन में वह व्यक्ति होता है, जो उन्हें अच्छी शिक्षा के साथ जीवन पथ पर चलने के नियमों को सिखाता है। एक गुरु अपने शिष्य के लिए बहुत अधिक मायने रखता है। वह उनके जीवन में विकास की प्रारम्भिक अवस्था से हमारे परिपक्व होने तक बहुत अधिक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। संतों ने गुरु की तुलना ईश्वर से भी बढ़कर की है।
कबीर साहेब जी अपनी वाणी में बताते है कि-
गुरु गोविंद दोनों खड़े, किसके लागूं पाय।
बलिहारी गुरु आपना, जिन गोविंद दियो मिलाय।।
गुरु बिन जीव का मोक्ष नही हो सकता।
चाहे आप कितने भी धनी पुरुष हो, गोरखनाथ जी जैसे सिद्ध पुरुष हो, अनगिनत कलाओं के स्वामी हो, समाज में मान-सम्मान प्राप्त शख्स हो, चाहे इस पृथ्वी के राजा भी क्यों न हो, अगर गुरु दीक्षा नही ली है तो स्वर्ग में भी स्थान नहीं मिलता। इस संबंध में पाठकगण सुखदेव मुनि की कथा से भलीभांति परिचित होंगे।
सर्वशक्तिमान कविर्देव सूक्ष्म वेद में बताते हैं कि
राम कृष्ण से कौन बड़ो, तीनहुँ भी गुरु कीन्ह |
तीन लोक के वे धनी, गुरु आगे अधीन ।।
हमे मानुष्य जीवन मिला है तो सतगुरु बनाकर उनकी बताई मर्यादा में रहकर सतभक्ति करना चाहिए। श्री राम और श्री कृष्ण तीन लोक के स्वामी थे। उन्होंने भी गुरु धारण किया और अपने गुरु की अनुमति से अपने सभी कार्यों को पूरा किया, भक्ति भी की और अपने मानव जन्म को अभिप्रायपूर्ण बनाया।
धरती पर विराजमान हैं पूर्ण गुरु
जी हां वर्तमान में धरती पर वह पूर्ण गुरु विराजमान हैं जिनकी बताई गई भक्ति विधि से ही जीव का पूर्ण मोक्ष होगा। वह पूर्ण गुरु जगतगुरू तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज जी है जो वर्तमान में अधिकारी संत की भूमिका निभा रहे हैं। जिनकी बताई शास्त्रानुकूल भक्ति मार्ग पर चलने से जीव का जन्म मरण का दीर्घ रोग समाप्त होगा और सदा सदा के लिए स्थाई लोक शाश्वत लोक सतलोक प्राप्त होगा जिसके बारे में गीता में वर्णन है। पाठकगणों से विनम्र निवेदन है कि अविलंब संत रामपाल जी महाराज जी से नि:शुल्क नाम दीक्षा लें और अपना जीवन सफल बनाएं।