आज हम आपको बताएँगे की जय हो बंदी छोड़ की (Jai Bandi Chhod ki) क्यों बोला जाता है, आखिर क्यों संत रामपाल जी महाराज के अनुयायी इस शब्द का प्रयोग बार बार करते है?, बंदी छोड़ का अर्थ क्या है? आदि.
जय हो बंदी छोड़ की क्यों बोला जाता है ?
परमात्मा की जय बोलना, जयकारा लगाना , महिमा का गुणगान करना, परमात्मा को याद कर उसे शब्दों में बयां करना प्रत्येक परमात्मा प्रेमी साधक करता है क्योंकि ऐसा करने से भी उसके कर्म बनते हैं और हृदय में परमात्मा के लिए कसक बनी रहती है।
बंदी छोड़ (Jai Bandi Chhod ki) का अर्थ क्या है?
बंदी छोड़ का अर्थ है हर प्रकार के बंधनों से छुड़वाने वाला और वह केवल पूर्ण परमात्मा ही है जो जीव को काल के मायाजाल से छुड़वाकर अपने निज धाम सतलोक में वास देते हैं।
गरीब, एक पापी एक पुन्यी आया, एक है सूम दलेल रे।
Sant Garib Das ji
बिना भजन कोई काम नहीं आवै, सब है जम की जेल रे।।
तीन लोक पिंजरा भया, पाप पुण्य दो जाल।
Kabir Sahib
सभी जीव भोजन भये, एक खाने वाला काल।।
यह शरीर पिंजरा है। हम इसकी कैद में फंसे बंदी हैं। हमारी सज़ा निरंतर जन्म और मृत्यु के चक्रव्यूह में गिरते रहने की है। इस चक्रव्यूह को काटने वाला पूर्ण परमात्मा कबीर कहलाता है। वह जन्म मृत्यु के बंधनों को काट कर जीव को सदा के लिए मुक्त कर देता है फिर जीव आत्मा कभी चौरासी लाख योनियों में नहीं कैद होती। मुक्त होकर आत्मा अपने परमात्मा के साथ अमर लोक सतलोक में वास करती है।
Jai Bandi Chhod ki-कौन है बंदी छोड़?
मनुष्य सबसे बड़े जन्म मरण रूपी बंधन में बंधा है जो उसे दिखाई नहीं देता और केवल पूर्ण परमात्मा रूपी सबसे बड़ा डाक्टर ही उसके इस रोग का निवारण कर भक्त को मोक्ष प्रदान कर सकता है। केवल पूर्ण परमात्मा ही काल द्वारा रची कैद से मनुष्य को छुड़वाने में सक्षम हैं तथा उसे ही बंदी छोड़ कहा जाता है।
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वह अपने साधक को धर्म ग्रंथों में वर्णित साधना एक तत्वदर्शी संत के रूप में आकर स्वयं प्रदान करके उसको हर बंधन से छुड़वा देता है और वह पूर्ण परमात्मा और कोई नहीं केवल कबीर साहेब जी ही हैं।
■ इसका प्रमाण हमारे धर्म ग्रंथो में भी मिलता है
- यजुर्वेद अध्याय 5 के श्लोक नंबर 32 में लिखा है कि जो शांतिदायक परमात्मा है, वह अपने साधक के कर्मों के बंधन को छुड़वा देता है। वह परमात्मा कोई और नहीं सिर्फ कविर्देव हैं जो सम्राट की भांति अपने निज स्थान यानि सतलोक में रहता है।
- पवित्र सामवेद संख्या नंबर 1400 में , 359 में , सामवेद अध्याय नंबर 4 के खंड नंबर 25 के श्लोक नंबर 8 में विवरण है कि पूर्ण परमात्मा अपने तत्वज्ञान को समझाने के लिए इस संसार में आता है।
- वह परमात्मा सर्व शक्तिमान है और वह काल के सभी कर्म रूपी किले ( बन्धनों ) को तोड़ने वाला है जिससे साधक का मोक्ष निश्चित है। केवल वही पूजा के योग्य है और वह कविर्देव यानी कबीर साहेब हैं परन्तु केवल वेदों में वर्णित साधना करने से ही ये सम्भव है।
जीव धर्म बोध पृष्ठ 93 (2001) पर वाणी में उल्लेख है
वेद विधि से जो कोई ध्यावै। अमर लोक में बासा पावै।
स्वस्मबेद सब बेदन का सारा। ता विधि भजैं उतरै पारा।
श्रीमद्भगवत गीता अध्याय 4 श्लोक 32 में कहा है कि पूर्ण परमात्मा यज्ञों यानि धार्मिक अनुष्ठानों का यथार्थ विस्तृत ज्ञान अपने मुख कमल से बोलकर बताते हैं, उसे तत्त्वज्ञान कहते हैं। उसको जानकर साधक सर्व पापों से मुक्त हो जाता है तथा उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है।
इसके अतिरिक्त ऋग्वेद मंडल नंबर 10 सुक्त नंबर 90 के मंत्र नंबर 15 में वर्णित है कि वह पूर्ण परमात्मा अपने साधकों को काल के द्वारा रचित कर्मों के बंधनों से मुक्ति प्रदान करता है। पूर्ण परमात्मा अपने साधक को कर्मों से मुक्त करवा कर पूर्ण मोक्ष प्रदान करता है इसलिये उस पूर्ण परमात्मा को बंदी छोड़ या बंधनों से छुड़वाने वाला कहा जाता है।
तत्वदर्शी संत की कौन है?
■ Jai Bandi Chhod ki: गीता अध्याय 4 के श्लोक 34 में कहा है उस ज्ञान को तू तत्त्वदर्शी संतों के पास जाकर समझ, उनको दण्डवत् प्रणाम करने से, कपट छोड़कर नम्रतापूर्वक प्रश्न करने से वे परमात्म तत्त्व को भली-भांति जानने वाले ज्ञानी महात्मा तुझे तत्त्वज्ञान का संदेश करेंगे और वर्तमान समय में वह बंदी छोड़ तत्वदर्शी संत केवल संत रामपाल जी महाराज जी हैं जो वेदों में वर्णित साधना बताते हैं।
संत रामपाल जी महाराज जी ने यह सभी जानकारी अपने भक्तों को प्रमाण सहित प्रदान की है इसलिये वह पूर्ण परमात्मा कबीर देव के लिये बंदी छोड़ शब्द का उपयोग करते हैं जो सर्वत्र सत्य है। वास्तव में पूर्ण परमात्मा स्वयं तत्वदर्शी संत यानि पूर्ण संत की भूमिका करने व अपने ज्ञान का प्रचार करने के लिए और भक्त समाज को मोक्ष मार्ग प्रदान कराने स्वयं ही आता है जिसकी गवाही वेद और पवित्र गीता जी भी देती है।