September 11, 2025

International Gita Mahotsav 2023 Video | गीता मनीषियों को गीता का ज्ञान नहीं !!

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International Gita Mahotsav 2023 Video | प्रतिवर्ष गीता जयंती के अवसर पर हरियाणा के कुरुक्षेत्र जिले के ब्रह्मसरोवर में कई दिनों तक अंतर्राष्ट्रीय गीता महोत्सव का आयोजन किया जाता है। इस अवसर पर इस वीडियो के माध्यम से जानते हैं कि जगतगुरु तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज, महामंडलेश्वर गीता मनीषी स्वामी श्री ज्ञानानंद जी महाराज और इस्कॉन मंदिर के स्वामी जी महाराज के विचार कि आखिर वास्तविक गीता का ज्ञान किसे है?

स्वामी श्री ज्ञानानंद जी महाराज का कहना है कि हमारे इष्ट अखिल कोटि ब्रह्माण्ड नायक जगतगुरु भगवान श्रीकृष्ण हैं। श्री कृष्ण भगवान पूर्ण अवतार हैं। स्वयं परमात्मा श्री कृष्ण हैं। विष्णु भगवान को जब हम नारायण के रूप में लेते हैं, तो वहाँ भगवान कृष्ण नारायण के ही अवतार हैं। उस रूप में वहाँ एकरूपता है। वहाँ की भिन्नता कहीं भेद नहीं है। यह पूछे जाने पर क्या ब्रह्मा जी, विष्णु जी, महेश जी की जन्म और मृत्यु होती है? स्वामी श्री ज्ञानानंद जी कहते हैं, “जन्म और मृत्यु शब्द तो नहीं लगा सकते उनके साथ। लेकिन ये निश्चित है कि कहीं ना कहीं उनकी आयु सीमा है।“ इस कथन से ही सिद्ध है कि जब आयु सीमा है तो मतलब उनका जन्म मृत्यु होता है।

इस्कॉन मंदिर के स्वामी जी महाराज ने भी अपना इष्ट देव भगवान श्री कृष्ण को ही बताया। वे मानते है कि जितने भी अवतार हैं उनके अवतारी भगवान कृष्ण हैं। विष्णु ब्रह्मा महेश भी भगवान कृष्ण के अवतार हैं। उनका मानना है कि ब्रह्मा की मृत्यु होती है लेकिन विष्णु और शंकर जी अमर हैं तथा ये तीनों भगवान श्री कृष्ण का स्मरण करते हैं।

जगतगुरु तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज जी शास्त्रों का प्रमाण देकर बताते हैं कि “ब्रह्मा, विष्णु और शिव, ये तीनों ब्रह्म काल और देवी दुर्गा के पुत्र हैं और गीता अध्याय 8 श्लोक 16के अनुसार ब्रह्म काल के 21 ब्रह्मांडों में रहने वाले सभी प्राणी यानि देवी देवता, अवतार, जीव जंतु, मनुष्य सभी नाशवान हैं। जिसका प्रमाण पवित्र देवी पुराण, शिव पुराण, विष्णु पुराण और मार्कंडेय पुराण में भी मिलता है।“ गीता अध्याय 15 श्लोक 1-4 और 16-17 में उल्टे लटके हुए संसार रूपी वृक्ष का उल्लेख किया गया है। इस पेड़ की जड़ें पूर्ण परमात्मा यानी परम अक्षर पुरुष/उत्तम पुरुष की ओर इशारा करती हैं। इस वृक्ष का मोटा तना अक्षर पुरुष यानि परब्रह्म का प्रतिनिधित्व करता है।

सबसे बड़ी शाखा क्षर पुरुष यानि ज्योति निरंजन ब्रह्म-काल है। तीन छोटी शाखाएँ काल ब्रह्म के तीन पुत्रों रजगुण-ब्रह्मा, सतगुण-विष्णु और तमगुण-शिव का प्रतिनिधित्व करती हैं और पत्ते संसार के लोगों का प्रतिनिधत्व करते हैं। श्री देवी महापुराण (गीता प्रैस गोरखपुर से प्रकाशित) के तीसरे स्कन्ध, अध्याय 5 पृष्ठ 123 पर श्री विष्णु जी ने अपनी माता दुर्गा की स्तुति करते हुए कहा है कि हे माता! आप शुद्ध स्वरूपा हो, सारा संसार आप से ही उद्भाषित हो रहा है, हम आपकी कृपा से विद्यमान हैं, मैं (विष्णु), ब्रह्मा और शंकर तो जन्मते-मरते हैं, हमारा तो जन्म तथा मृत्यु हुआ करता है, हम अविनाशी नहीं हैं।

इससे स्पष्ट है कि गीता मनीषी ज्ञानानन्द जी और इस्कॉन के उपदेशक गलत उपदेश कर रहे हैं कि ब्रह्मा, विष्णु और महेश ये तीनों देवता श्रीकृष्ण की पूजा करते हैं। पाठकों को समझने की जरूरत है कि जब श्री कृष्ण स्वयं भगवान विष्णु के अवतार हैं तो ये तीनों देवता श्री कृष्ण की पूजा कैसे करेंगे? इस्कॉन का यह सिद्धांत अतार्किक है। उन्हें गीता जी का भी कोई ज्ञान नहीं है। वे पूरे मानव समाज को भ्रमित कर रहे हैं। देखिये पूरा वीडियो

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