Last Updated on 9 June 2024 | Guru Arjan Dev Ji Shaheedi Diwas: सिख धर्म के पांचवे गुरु, गुरु अर्जुन देव जी की शहादत, धार्मिक सहिष्णुता, और मानवता की महानतम मिसालों में से एक है। गुरु अर्जुन देव जी की शहादत को ‘शहीदी दिवस’ के रूप में मनाया जाता है, जो हर साल जून के महीने में आती है। इस वर्ष शहीदी दिवस 10 जून को है। यह दिन हमें उनकी शिक्षा, उनके बलिदान और उनकी अद्वितीय धार्मिक सहनशीलता की याद दिलाता है। वर्ष 2024 में यह दिन विशेष महत्व रखता है, क्योंकि हम उनके बलिदान को चार सौ से भी अधिक वर्षों से याद कर रहे हैं। इस दिन लोग एक दूसरे को प्रेरणादायक संदेश (quotes) और संदेश साझा कर गुरु अर्जुन देव जी और उनके अपार योगदान को याद करते हैं।
Guru Arjan Dev Ji Shaheedi Diwas: मुख्य बिंदु
- सिक्ख समुदाय में गुरु परम्परा के 5वें गुरु थे गुरु अर्जुन देव जी
- इस वर्ष गुरु अर्जुन देव का 417वां शहीदी दिवस मनाया जा रहा है
- गुरु अर्जुन देव शहीदी दिवस को सिक्ख समुदाय छबील (मीठा शर्बत) दिवस के नाम से मनाता है
- गुरु अर्जुन देव जी को शहीदों के सरताज व शांतिपुंज आदि नामों से सुशोभित किया जाता है
- गुरु अर्जुन देव को बचपन से ही थे बहुभाषी, गुरुमुखी के साथ फारसी-संस्कृत का भी ज्ञान था
- गुरु अर्जुन देव जी को सिक्ख धर्म के प्रथम शहीद का दर्जा प्राप्त है
जानिए कौन थे गुरु अर्जुन देव (Guru Arjan Dev)?
गुरु अर्जुन (अर्जन) देव का जन्म सिख धर्म के चौथे गुरु, गुरु रामदासजी व माता भानीजी के घर वैशाख वदी सप्तमी, (विक्रमी संवत 1620 में 15 अप्रैल 1563) को गोइंदवाल (अमृतसर) सोढ़ी खत्री परिवार में हुआ था। श्री गुरु अर्जुन देव साहिब सिख धर्म के 5वें गुरु है। वे शिरोमणि, सर्वधर्म समभाव के प्रखर पैरोकार होने के साथ-साथ मानवीय आदर्शों को कायम रखने के लिए आत्म बलिदान करने वाले एक महान आत्मा थे।
गुरु अर्जुन देव जी की निर्मल प्रवृत्ति, सहृदयता, कर्तव्यनिष्ठता तथा धार्मिक एवं मानवीय मूल्यों के प्रति समर्पण भावना को देखते हुए गुरु रामदासजी ने 1581 में पांचवें गुरु के रूप में उन्हें गुरु गद्दी पर सुशोभित किया। मुगल बादशाह जहांगीर की यातनाओं को सहते-सहते गुरु अर्जुन देव ने 30 मई 1606 को बलिदान दे दिया।
Guru Arjan Dev Ji Shaheedi Diwas जाने उनकी शिक्षा-दीक्षा कैसे हुई?
अर्जुन देव जी का पालन-पोषण गुरू अमरदास जी जैसे गुरू तथा बाबा बुड्ढा जी जैसे महापुरूषों की देख-रेख में हुआ था। उन्होंने गुरू अमरदास जी से गुरमुखी की शिक्षा हासिल की थी, जबकि गोइंदवाल साहिब जी की धर्मशाला से देवनागरी, पंडित बेणी से संस्कृत तथा अपने मामा मोहरी जी से गणित की शिक्षा प्राप्त की थी। इसके अलावा उन्होंने अपने मामा मोहन जी से “ध्यान लगाने” की विधि सीखी थी।
Guru Arjan Dev Ji Shaheedi Diwas: गुरु अर्जुन देव जी का गृहस्थ जीवन कैसा था?
अर्जुन देव जी का विवाह 1579 ईसवी में मात्र 16 वर्ष की आयु में जालंधर जिले के मौ साहिब गांव में कृष्णचंद की बेटी माता “गंगा जी” के साथ संपन्न हुआ था। उनके पुत्र का नाम हरगोविंद सिंह था, जो गुरू अर्जुन देव जी के बाद सिखों के छठे गुरू बने।
युद्ध के साथ-साथ कलम के सिपाही भी थे गुरु अर्जुन देव जी
अर्जन देव जी की रचनाएं – गुरु अर्जुन देव जी द्वारा रचित वाणी ने भी संतप्त मानवता को शांति का संदेश दिया। सुखमनी साहिब उनकी अमरवाणी है। सुखमनी साहिब में चौबीस अष्टपदी हैं। सुखमनी साहिब राग गाउडी में रची गई रचना है। यह रचना सूत्रात्मक शैली की है।
सुखमनीसुख अमृत प्रभु नामु।
भगत जनां के मन बिसरामु॥
पिता ने बसाया “अमृतसर” तो बेटे अर्जन देव ने बनाया “स्वर्ण मंदिर”
गुरु अर्जन देव के पिता गुरु रामदास जी ने रामदासपुरा नामक नगर की स्थापना की थी। जिसे वर्तमान में अमृतसर के नाम से जाना जाता है। इनके पिता ने अमृतसर और संतोखसर नामक दो सरोवरों का निर्माण कार्य शुरु किया था, जिसे गुरु अर्जुन देव ने ही पूरा करवाया था। अर्जुन देव जी ने अमृतसर सरोवर के बीच एक धर्मसाल का निर्माण करवाया था, जिसका नाम हरिमंदिर रखा गया। इसी हरिमंदिर को बाद में स्वर्ण मंदिर के नाम से जाना जाने लगा।
मुगल बादशाह अकबर भी प्रभावित था गुरु अर्जुन देव जी से
अर्जन देव जी ने ‘गुरु ग्रंथ साहिब‘ का संपादन करके उसे मानवता के अद्भुत मार्गदर्शक के रूप में स्थापित किया। उनकी यह सेवा कुछ लोगों को पसंद नहीं आई। ग्रंथ साहिब के संपादन को लेकर कुछ असामाजिक तत्वों ने अकबर बादशाह के पास यह शिकायत की कि ग्रंथ में इस्लाम के खिलाफ लिखा गया है, लेकिन बाद में जब अकबर को वाणी की महानता का पता चला, तो उन्होंने बाबा बुड्ढा के माध्यम से गुरु अर्जुन देव जी को 51 मोहरें भेंट कर खेद ज्ञापित किया।
गुरु अर्जुन देव जी की अमर बलिदान गाथा
अकबर के मृत्युपरांत मुगल बादशाह जहांगीर दिल्ली का शासक बना। वह कट्टर-पंथी था। अपने धर्म के अलावा, उसे और कोई धर्म पसंद नहीं था। गुरु अर्जुन देव के धार्मिक और सामाजिक कार्य भी उसे सुखद नहीं लगते थे। कुछ इतिहासकारों का यह भी मत है कि शहजादा खुसरो को शरण देने के कारण जहांगीर गुरु जी से नाराज था। 28 अप्रैल 1606 ईसवी को मुगल बादशाह जहांगीर ने गुरु अर्जुन देव को सह परिवार पकड़ने का फरमान जारी किया।
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जहाँगीर के आदेश पर ज्येष्ठ के महीने में 30 मई, 1606 ईस्वी को श्री गुरू अर्जुन देव जी को लाहौर में भीषण गर्मी के दौरान “यासा व सियासत” कानून के तहत लोहे के गर्म तवे पर बिठाकर शहीद कर दिया गया। “यासा व सियासत” के अनुसार किसी व्यक्ति का रक्त धरती पर गिराए बिना उसे यातनाएं देकर शहीद कर दिया जाता है। गुरू अर्जुन देव जी के शीश पर गर्म-गर्म रेत डालने पर जब गुरूजी का शरीर बुरी तरह से जल गया तो उन्हें ठंडे पानी वाले रावी नदी में अर्धमूर्छित अवस्था मे नहाने के लिए भेजा गया, जहां गुरू अर्जुन देव का शरीर रावी में विलुप्त हो गया।
सतज्ञान के अभाव में दिल्ली का बादशाह जहांगीर पाप का घड़ा भर बैठा
जहांगीर अपने पिछले जन्मों के पुण्य कर्मों के कारण दिल्ली का बादशाह बना लेकिन इस जन्म में गुरु अर्जुन देव जैसी पवित्र आत्मा से ज्ञान लेने की अपेक्षा उलटे उनको मारने का अपराध कर बैठा। सुल्तान अब्राहिम अधम एक बादशाह थे लेकिन सब राजपाट छोड़कर संतों की शरण में आकर सतभक्ति में लीन हो गए। बायजीद बस्तमी, रूमी और मंसूर अल-हल्लाज भी अल्लाह कबीर की पवित्र आत्मा थे।
पवित्र पुस्तक “मुक्ति बोध” मंसूर हल्लाज को उदघृत करते हुए तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज बताते है हे साधक! अगर आप अल्लाह से मिलना चाहते हैं, तो हर सांस (दम) के साथ नाम-मंत्र का जाप करते रहो। उपवास (रोजा) रख कर के भूखे नहीं रहो। मस्जिद में जाकर पत्थर के महल में सिजदा मत करो। (वजू) केवल जल में स्नान करने से कोई मोक्ष नहीं होता। सच्चे नाम-मंत्र के जाप से मोक्ष की प्राप्ति होगी। (कुजा तोड़ दे), अर्थात, भ्रामक पथ का त्याग करें। सच्चे नाम के जाप की शराब पीते रहें, अर्थात्, अपने आप को भगवान (राम) के नाम के नशे में लुप्त कर दे। ईश्वर से प्रेम करे। इस प्रेम की झाड़ू से अपने दिल को साफ करे। (दुइ) ईर्ष्या की धूल उड़ा दे, यानी ईर्ष्या मत करे; पूजा करते रहे।
अगर है शौक अल्लाह से मिलने का, तो हरदम नाम लौ लगाता जा ||(टेक)||
न रख रोजा, न मर भूखा, न मस्जिद जा, न कर सिजदा |
वजू का तोड़ दे कूजा, शराबे नाम जाम पीता जा || 1 ||
पकड़ कर ईश्क की झाड़ू, साफ कर दिल के हूजरे को |
दूई की धूल रख सिर पर, मूसल्ले पर उड़ाता जा ||2||
सतगुरु रामपाल जी महाराज सच्चा आध्यात्मिक ज्ञान बताते हैं जो परमेश्वर और उनके अनंत निवास तक पहुंचा सकता है। उनसे नाम दीक्षा लें, और अपना कल्याण करवाएं।
गुरु अर्जुन देव शहीदी दिवस 2024 (Guru Arjan Dev Ji Shaheedi Diwas): FAQs
गुरु अर्जुन देव जी सिख धर्म के पांचवें गुरु थे। उनका जन्म 1563 में गोविंदपुर, पंजाब में हुआ था। उन्होंने अपना जीवन सिख धर्म के प्रचार-प्रसार और सामाजिक सुधारों के लिए समर्पित कर दिया।
गुरु अर्जुन देव जी का शहीदी दिवस 2024 में 10 जून को है।
उन्होंने गुरु ग्रंथ साहिब का संकलन किया, जो सिख धर्म का पवित्र ग्रंथ है, अमृतसर शहर की स्थापना की, सिख धर्म में महिलाओं के अधिकारों को बढ़ावा दिया तथा समाज में जातिवाद और छुआछूत के खिलाफ आवाज उठाई।
गुरु अर्जुन देव जी की शहीदी हमें सिखाती है कि सच्चाई और न्याय की राह कभी भी आसान नहीं होती है। लेकिन हमें हार नहीं माननी चाहिए। हमें हमेशा अपनी आत्मा की आवाज सुननी चाहिए और जो सही है उसके लिए लड़ना चाहिए।
गुरु अर्जुन देव जी के शहीदी दिवस पर कई धार्मिक और सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। इनमें अखंड पाठ, कीर्तन दरबार, सेमिनार और नगर कीर्तन शामिल हैं।
गुरु अर्जुन देव जी से हमें सत्य, न्याय, करुणा, क्षमा और प्रेम की शिक्षा मिलती है। वे हमें सिखाते हैं कि हमें हमेशा दूसरों की मदद करनी चाहिए और समाज में सकारात्मक बदलाव लाने का प्रयास करना चाहिए।