दीवाली 2020 [Hindi]: भारतवर्ष के अनेकों त्यौहारों में से एक है दीपावली जिसे एक बड़े स्तर पर काफी आडम्बरों के साथ मनाया जाता है। आइए इस लेख में हम जानेंगे इस त्यौहार की प्रासंगिकता, पौराणिक महत्व व सही विधि के बारे में।
दीपावली के त्यौहार की पौराणिक कथा (Diwali Story in Hindi)
(Diwali Story in Hindi) के अनुसार त्रेतायुग में विष्णु अवतार श्री राम जी और सीता जी को 14 वर्ष का वनवास हुआ था। वनवास के दौरान ही रावण ने सीता जी का हरण किया। उसके बाद राम जी सीता जी को रावण से युद्ध कर लेकर आये। यही समय 14 वर्ष के वनवास के पूरे होने का भी था। अधर्मी रावण से सीता माता को वापस लेकर जब श्रीराम अयोध्या वापस लौटे तो अयोध्यावासियों की प्रसन्नता का ठिकाना नहीं था। अपने प्रिय राजा रानी के आगमन की शुभ सूचना पाकर अयोध्यावासियों ने दीपक जलाकर उस अमावस की अंधकारमयी रात्रि को भी जगमग और उज्वल किया और श्री राम और माता सीता के आगमन की खुशी मनाई। किन्तु यह प्रति वर्ष नहीं किया जा सका।
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— SA News Channel (@SatlokChannel) November 7, 2018
ज्यों ही पुनः सीता माता को श्रीराम द्वारा गर्भावस्था में अयोध्या से निष्कासित किया गया। अयोध्यावासी दुखी हो गए और उसके पश्चात अयोध्यावासियों ने कभी भी दीवाली का त्यौहार नहीं मनाया क्योंकि उनके राजा राम और माता सीता अब अलग हो चुके थे। अयोध्यावासियों में उल्लास का विषय नहीं रह गया था। किन्तु लोकवेद के अनुसार अब लोगों ने मनमाने रूप से पुनः इस त्यौहार को मनाना शुरू कर दिया जिसका न तो कोई महत्व है और न ही कोई अर्थ।
दीपावली (दीवाली 2020) का त्यौहार कब मनाया जाता है?
दीपावली या दीवाली कार्तिक की अमावस्या को मनाए जाने वाला त्यौहार है। दीपावली भारत के सबसे बड़े और सर्वाधिक महत्वपूर्ण त्यौहारों में से एक है। भारतवर्ष में केवल हिन्दू ही नहीं बल्कि सिख और जैन धर्म के लोगों द्वारा भी इस त्यौहार को मनाया जाता है। जैन धर्म के लोग इस दिन को महावीर के मोक्ष दिवस के रूप में मनाते हैं। तथा सिख समुदाय इसे बन्दीछोड़ दिवस के रूप में मनाते हैं। यहाँ उल्लेख करना आवश्यक है कि वेदों में पूर्ण परमात्मा “कविर्देव” का नाम लिखा है। उसी को बन्दीछोड़ भी कहा है। उसका नाम कबीर हैं। वह पापनाशक हैं और बन्धनों का शत्रु होने के कारण उसे बन्दीछोड़ कहा गया है। जिसका दीपावली के त्यौहार से कोई लेना देना ही नहीं है।
वर्तमान में दीपावली (दीवाली 2020) किस तरह मनाई जाती है?
दीपावली के त्यौहार का मूल उद्देश्य तो बहुत पहले ही खत्म हो चुका है जब सीता जी को अयोध्या से गर्भावस्था में निष्कासित किया गया था। तब अयोध्यावासी भी इस त्यौहार को मनाना त्याग चुके थे। अब वह समय है जब इस त्यौहार ने अपने सभी उद्देश्य आदि छोड़कर मात्र आडम्बर का रूप ग्रहण कर लिया है जिसमें त्रिगुणमयी शक्तियों की आराधना की जाती है। जबकि गीता के अध्याय 7 के श्लोक 15 में ब्रह्मा-विष्णु-महेश तक की पूजा करने वाले लोग मूर्ख और नीच बताए गए हैं।
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लोग पटाखों से अनावश्यक रूप से ध्वनि प्रदूषण और वायु प्रदूषण फैलाते हैं एवं शास्त्रविरुद्ध साधना करते हैं। गीता के अध्याय 16 के श्लोक 23 में शास्त्रविरुद्ध साधना करने वालो को कोई लाभ न मिलना व कोई गति न होना बताया गया है।
दीवाली 2020 [Hindi]: दीपावली मनाने का उद्देश्य क्या है?
लोगों के अनुसार इस दिन भगवान राम जी सीता जी को संग लेकर दीवाली वाले दिन वापिस आये थे इसलिए दीपावली का त्यौहार मनाया जाता है लेकिन सीता जी को कुछ समय पश्चात ही राम जी ने स्वयं निष्कासित किया था। जिस वजह से सीता जी पूरे जीवन दुःखी थीं। आजीवन भटकती रहीं एवं एक जंगल दो बच्चों का कैसे पालन पोषण किया यह सोचना भी कठिन है। अतः इस त्यौहार का कोई उद्देश्य नहीं।
दीवाली 2020 (दीपावली) मनाने से क्या लाभ है?
दीवाली 2020 [Hindi]: यह लोगों द्वारा गलत परंपरा शुरू हुई है, जो कि बिल्कुल गलत हैं। यह शास्त्र विरूद्ध व लोकवेद पर आधारित मनमाना आचरण है। इस के कारण इससे हमें कोई लाभ नहीं है। साथ ही लक्ष्मी जी की पूजा और त्रिगुण आराधना से भी कोई लाभ नहीं है क्योंकि यह शास्त्रों में वर्णित साधनाएं नहीं हैं। व्यक्ति अपने कर्मानुसार ही धन पाता है। निर्धन व्यक्ति कितना भी ध्यान से पूजा करे यदि उसके भाग्य में धन नहीं है तो उसे पूर्ण परमेश्वर कबीर के अतिरिक्त विश्व के अन्य कोई देवी देवता नहीं दे सकते। तीनो देवता ब्रह्मा-विष्णु-महेश जी मात्र भाग्य में लिखा हुआ देने को बाध्य हैं। भाग्य से अधिक आकांक्षा रखने वाले को पूर्ण परमेश्वर की भक्ति करनी चाहिए। लक्ष्मी पूजा शास्त्रों के विरुद्ध साधना है।
भगवद्गीता अध्याय 16 के श्लोक 23 के अनुसार शास्त्र विरूद्ध साधना करने से हमें कोई लाभ नहीं प्राप्त होता है। श्रीमद्भगवत गीता अध्याय 7 के श्लोक 12-15 में प्रमाण है। जो व्यक्ति तीन गुणों की पूजा करता है वो मूर्ख बुद्धि, मनुष्यों में नीच, राक्षस स्वभाव को धारण किये हुए होते हैं। श्रीमद्भागवत गीता अध्याय 6 के श्लोक 23 में लिखा है कि शास्त्र विरुद्ध साधना करने से न तो लाभ मिलेगा न ही गति होगी।
दीवाली 2020 पर हमें किसकी भक्ति करनी चाहिए?
दुर्गा माता जी को त्रिदेवी भी कहते हैं। ब्रह्मा, विष्णु और महेश यह तीनों देवताओं की माता दुर्गा हैं। यह तीनों देवता सृष्टि की उत्पत्ति, पालन और संहार का कार्य करते हैं। दुर्गा माता जी को आदिशक्ति, त्रिदेवजननी, अष्टांगी (प्रकृति) देवी भी कहा जाता है। इन तीनों देवताओं की माता दुर्गा है। श्रीमद्देवीभागवत पुराण में उल्लेख है जहाँ ब्रह्मा जी कहते हैं कि रजगुण, तमगुण, सतगुण हम तीनों गुण (रजगुण ब्रह्मा जी, सतगुण विष्णु जी, तमगुण शिवजी) को उत्पन्न करने वाली माता आप ही हो, हमारा तो आविर्भाव माने जन्म तथा तिरोभाव माने मृत्यु होती हैं।
अतः इनकी पूजा करना व्यर्थ है और देवी भागवत महापुराण में ही देवी जी यानि दुर्गा जी अपने से अन्य किसी और भगवान की भक्ति करने के लिए कह रही है। इससे स्पष्ट है कि देवी दुर्गा जी से भी ऊपर अन्य कोई परमात्मा है जिसकी भक्ति करने के लिए दुर्गा जी निर्देश दे रही हैं। इससे स्पष्ट है कि देवी दुर्गा जी की भी भक्ति करना व्यर्थ है। वह पूर्ण परमात्मा तो कोई और है। पूर्ण परमात्मा की पूरी जानकारी तत्वदर्शी संत ही बता सकते हैं जो स्वंय पूर्ण परमात्मा ही होता है। गीता अध्याय 4 के श्लोक 34 में गीता ज्ञानदाता ने तत्वदर्शी सन्त की खोज करने के लिए कहा है।
तत्वदर्शी संत की क्या पहचान है?
श्रीमद्भागवत गीता के अध्याय 15 श्लोक 1-4, 16,17 के अनुसार तत्वदर्शी संत वह है जो संसार रूपी उल्टे लटके हुए वृक्ष के सभी भागों को स्पष्ट बताएगा वह तत्वदर्शी संत होगा। तत्वदर्शी संत सभी धर्मों के पवित्र सद्ग्रन्थों में छुपे हुए गूढ़ रहस्यों को भक्त समाज के समक्ष उजागर करता हैं। यजुर्वेद अध्याय 19 का मंत्र 25, 26 में भी पूर्ण तत्वदर्शी सन्त की पहचान दी है। साथ ही गीता अध्याय 17 के श्लोक 23 में ॐ-तत-सत तीन सांकेतिक मन्त्रों का ज़िक्र है जिनसे मुक्ति सम्भव है। ये मन्त्र भी एक पूर्ण तत्वदर्शी सन्त ही दे सकता है।
सतगुरु की पहचान संत गरीबदास जी की वाणी में:
गरीब, सतगुरु के लक्षण कहूं, मधुरे बैन विनोद |
चार बेद षट शास्त्र, कह अठारा बोध ||
पूर्ण संत चारों वेदों, छः शास्त्रों, अठारह पुराणों आदि सभी ग्रंथों का पूर्ण ज्ञात होता है वह उनका सार जानता है।
पूर्ण परमात्मा कौन है?
ऋग्वेद मण्डल 9, सुक्त 82, मंत्र 1-3 के अनुसार पूर्ण परमेश्वर साकार है, मानव सदृश है, वह राजा के समान दर्शनीय है और सतलोक में तेजोमय शरीर में विद्यमान है उसका नाम कविर्देव (कबीर) है। गीता जी, वेद, क़ुरान, बाइबल सभी धर्मों के सतग्रन्थों में अनेकों प्रमाण है कि पूर्ण परमात्मा कबीर जी ही हैं। कबीर परमात्मा ही सर्वोच्च, सर्वसुखदायक, आदि परमेश्वर हैं। वे बन्दीछोड़ हैं व पापों के नाशक हैं।
वर्तमान समय में पूरी पृथ्वी पर एकमात्र तत्वदर्शी सन्त है, वे हैं जगतगुरु तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज जो सभी धर्मों के ग्रन्थों से प्रमाणित गूढ़ रहस्यमयी ज्ञान बता रहे हैं। पूर्ण परमात्मा के बारे में और सच्ची भक्ति विधि के बारे में बता रहे हैं। इस संसार में एक पल का भरोसा नहीं अतः अतिशीघ्र तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज जी से निशुल्क नाम-दीक्षा ले कर भक्ति करें। अधिक जानकारी के लिए सतलोक आश्रम यूट्यूब चैनल विज़िट करें।
कबीर, मानुष जन्म दुर्लभ है, मिलें न बारं-बार |
तरवर से पत्ता टूट गिरे, बहुर ना लागे डार ||
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बहुत ही ज्ञान वर्धक है जी