October 9, 2025

Devshayani Ekadashi 2025 : देवशयनी एकादशी पर जानिए पूर्ण परमात्मा की सही पूजा विधि

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Last Updated on 1 July 2025 IST: Devshayani Ekadashi 2025: हिंदू धर्म में लोक मान्यताओं के आधार पर एकादशी व्रत का विशेष महत्व बताया गया है। हर माह दो एकादशियां आती हैं, परंतु आषाढ़ शुक्ल पक्ष की एकादशी, जिसे “देवशयनी एकादशी” कहा जाता है, विशेष रूप से महत्वपूर्ण मानी जाती है। यह तिथि इस वर्ष 6 जुलाई 2025, रविवार को है।

पारंपरिक मान्यता कहती है कि इस दिन भगवान विष्णु योगनिद्रा में चले जाते हैं और चार महीनों तक विश्राम करते हैं। लेकिन जब हम वेद, गीता और संतों के तत्वज्ञान के आलोक में इस एकादशी की वास्तविकता को देखते हैं, तो अनेक भ्रांतियाँ स्पष्ट हो जाती हैं।

Table of Contents

  • इस वर्ष देवशयनी एकादशी 06 जुलाई, रविवार को है।
  • लोकवेद के अनुसार ऐसी मान्यता है कि देवशयनी एकादशी से अगले 4 महीने तक भगवान विष्णु करते हैं विश्राम
  • व्रत-उपवास से नहीं मिलेगा मोक्ष: गीता से जानें असली भक्ति मार्ग
  • तत्वज्ञान से उद्घाटित रहस्य: बामन रूप में स्वयं आए पूर्ण परमात्मा 
  • शास्त्र सम्मत भक्ति से सफल होगी भगवान विष्णु की साधना: जानिए गीता जी का रहस्य
  • गीता के अनुसार मोक्ष का मार्ग केवल तत्वदर्शी संत से ही संभव
  • शास्त्रानुकूल भक्ति ही दिलाएगी मोक्ष, लोकाचार नहीं तत्वज्ञान है मार्ग
  • पूर्ण संत की शरण: दुर्लभ मानव जीवन को सफल बनाने की कुंजी
  • जानें भगवान विष्णु को प्रसन्न करने का उपाय
  • श्रीमद्भगवद्गीता में जानें व्रत के विषय में अति महत्वपूर्ण सन्देश
  • भाग्य में न लिखा हो तो भी तत्वदर्शी सन्त सभी सुख, आयु एवं समृद्धि उपलब्ध कराते हैं

वैसे तो वर्ष में कुल चौबीस एकादशियाँ होती हैं किंतु हिन्दू धर्म में आषाढ़ मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवशयनी एकादशी कहते हैं। ऐसी मान्यता है कि देवशयनी एकादशी से आगे के चार महीनों तक भगवान विष्णु विश्राम करने चले जाते हैं। इसके पश्चात भगवान विष्णु को उठाया जाता है जिसे देवउठनी एकादशी कहते हैं। आज के दिन व्रतादि कर्मकांड एवं पूजन लोकवेदानुसार किया जाता है।

सदियों से चली आ रही लोककथाओं के अनुसार, देवशयनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु क्षीर सागर में शेषनाग की शैय्या पर विश्राम हेतु योगनिद्रा में चले जाते हैं। उनके इस निद्रा काल को ‘चातुर्मास’ कहा जाता है, जो “देवउठनी एकादशी” (कार्तिक शुक्ल एकादशी) तक चलता है। इस समय में शुभ कार्यों जैसे विवाह, गृहप्रवेश, भूमि पूजन आदि से परहेज किया जाता है।

इसके पीछे कथा यह बताई जा रही है कि भगवान विष्णु इस तिथि से चार महीने तक पाताल के राजा बलि के द्वार पर निवास करते हैं एवं कार्तिक शुक्ल एकादशी को वापस लौटते हैं। इस दौरान लोग शुभ कार्य प्रारम्भ करना वर्जित समझते हैं किंतु वास्तविक कथा कुछ और ही है जो आगे वर्णित है।

भक्त प्रह्लाद का पुत्र बैलोचन हुआ और बैलोचन का पुत्र राजा बली हुआ। जानकारी के लिए याद रखें कि एक इंद्र का शासनकाल 72 चतुर्युग का होता है। इसके पश्चात इंद्र की मृत्यु हो जाती है। किन्तु इसी बीच यदि पृथ्वी पर किसी ने भी 100 अश्वमेघ यज्ञ निर्बाध पूरे कर लिए तो उसे इंद्र का शासन मिल जाता है। राजा बली ने 99 यज्ञ निर्बाध पूरे कर लिए थे। राजा इंद्र कुछ नहीं कर सके। 100वीं यज्ञ के समय राजा इंद्र का शासन डोल गया और वह चिंतित होकर भगवान विष्णु के पास पहुँचे।

विष्णु जी ने इंद्र को निर्भय होकर राज्य करने का वचन दिया किन्तु उपाय सोचने लगे एवं पूर्ण परमेश्वर से प्रार्थना करने लगे। इतने में सर्व सृष्टिकर्ता एवं पालनकर्ता पूर्णब्रह्म कबीर साहेब बामन रूप में राजा बली के सामने आए। राजा बली ने सम्मानपूर्वक उन्हे बिठाया और तब बामन रूप में परमात्मा ने राजा से दक्षिणा का वचन लिया कि वे जो मांगेंगे उन्हें मिलेगा।

■ Also Read: Yogini Ekadashi: योगिनी एकादशी पर जाने क्या करें और क्या नहीं?

राजा बली के गुरु शुक्राचार्य ने राजा से प्रतिज्ञा भंग करने के लिए कहा। लेकिन राजा ने कहा जब स्वयं परमात्मा दान लेने द्वार पर आए हो तो मना नहीं करना चाहिए। बामन अवतार में परमात्मा ने राजा से दान में तीन डग (तीन कदम) जमीन के मांगे। जब राजा बली ने हामी भरी तब परमात्मा अपने विशाल रूप में आये तथा एक डग में पूरी धरती, दूसरे डग में सारा आकाश नाप लिया तीसरे डग के लिए स्थान मांगा। तब राजा बली ने कहा भगवन सन्तों ने शरीर को पिंड एवं ब्रह्मण्ड की संज्ञा दी है आप अपना तीसरा कदम मेरे ऊपर रख लें। इतना कहकर राजा बली लेट गए और परमात्मा ने उनके शरीर पर तीसरा पैर रखकर दान लिया।

राजा बली द्वारा दिए दान से प्रसन्न होकर परमात्मा ने उसे सत्संग में तत्वज्ञान सुनाया और बताया कि 72 चतुर्युग की आयु के बाद राजा इंद्र गधे की योनि प्राप्त करते हैं। परमात्मा ने राजा बलि को पाताल लोक का राज्य दिया एवं इंद्र का शासन पूरे होने के बाद उसे इंद्र का राज्य देने का भी वचन दिया।

इधर तत्कालीन इंद्र पद पर विराजमान राजा की प्रसन्नता की कोई सीमा नही रही और वे भगवान विष्णु को धन्यवाद करने चल पड़े। भगवान विष्णु तब भी सोच विचार ही कर रहे थे कि क्या किया जाए इतने में इंद्र ने आकर उनकी जयजयकार की एवं धन्यवाद किया जिसे भगवान विष्णु ने परमात्मा की महिमा समझा। आजतक हम बामन रूप का श्रेय भगवान श्री विष्णु को देते आये हैं जबकि सच्चाई इसके बिल्कुल उलट है। अब आप स्वयं सोचिए जब भगवान विष्णु गए ही नहीं बामन अवतार में तो देवशयनी एकादशी किस बात की? और भगवान विष्णु जब 4 माह विश्राम करेंगे तो सृष्टि कौन चलाएगा?

Devshayani Ekadashi 2025: गहराई से अध्ययन करने पर ज्ञात होता है कि बामन रूप में जो आए वह स्वयं पूर्णब्रह्म परमेश्वर कबीर साहेब थे, न कि भगवान विष्णु।

प्रमाण: यदि भगवान विष्णु ही विश्राम में चले जाते हैं तो फिर सृष्टि का संचालन कौन करता है? गीता अध्याय 18 श्लोक 66 में भी बताया गया है कि —

“सर्वधर्मान् परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज।”

यानी — सभी धर्मों को त्यागकर उस एक परमात्मा की शरण में जाओ।

वह एक परमात्मा और कोई नहीं बल्कि पूर्णब्रह्म परमेश्वर कबीर जी हैं। 

श्रीमद्भगवद्गीता में अध्याय 6 श्लोक 16 में यह स्पष्ट कहा गया है:

“नात्यश्नतस्तु योगोऽस्ति न चैकान्तमनश्नतः।

न चातिस्वप्नशीलस्य जाग्रतो नैव चार्जुन॥”

अर्थ: जो व्यक्ति अत्यधिक खाते हैं या बिल्कुल नहीं खाते, अत्यधिक सोते हैं या बिल्कुल नहीं सोते, ऐसे व्यक्तियों को योग नहीं प्राप्त होता।

इस श्लोक से स्पष्ट है कि उपवास, हठयोग, जागरण इत्यादि चरम साधनाएँ भक्ति मार्ग में उपयोगी नहीं हैं, बल्कि यह *शास्त्रविरुद्ध* हैं। फिर भी आज अनेक लोग बिना शास्त्रीय प्रमाणों के केवल लोककथाओं पर विश्वास कर उपवास और पूजन करते हैं।

गीता अध्याय 16 श्लोक 23-24 में और भी स्पष्ट निर्देश हैं:

“यः शास्त्रविधिमुत्सृज्य वर्तते कामकारतः। 

न स सिद्धिमवाप्नोति न सुखं न परां गतिम्॥”

भावार्थ: जो व्यक्ति शास्त्रों के अनुसार आचरण नहीं करता और मनमानी पूजा करता है, उसे न सिद्धि मिलती है, न सुख और न ही मोक्ष।

गीता अध्याय 7 श्लोक 13-15 में बताया गया है:

“त्रिभिर्गुणमयैर्भावैरेभिः सर्वमिदं जगत्।

मोहितं नाभिजानाति मामेभ्यः परमव्ययम्॥”

इसका अर्थ है कि तीनों गुणों – सत्व (ब्रह्मा), रज (विष्णु), और तम (शिव) – से युक्त यह संसार मोहित है, इसलिए परमात्मा को नहीं पहचानता।

अतः विष्णु जी की साधना फलदायक तभी होगी जब साधक सच्चे तत्वज्ञान के साथ शास्त्र सम्मत मंत्रों का जाप करे।

गीता अध्याय 4 श्लोक 34 में श्रीकृष्ण स्वयं कहते हैं:

“तद्विद्धि प्रणिपातेन परिप्रश्नेन सेवया।

उपदेक्ष्यन्ति ते ज्ञानं ज्ञानिनस्तत्त्वदर्शिनः॥”

अर्थ: उस परमात्मा के तत्वज्ञान को जानने के लिए एक तत्वदर्शी संत की शरण ग्रहण करो।

आज के समय में यदि कोई तत्वदर्शी संत हैं तो वे हैं “संत रामपाल जी महाराज”, जो वेदों, गीता, पुराणों से प्रमाणित सच्ची भक्ति विधि बताते हैं।

उन्होंने गीता अध्याय 17 श्लोक 23 में दिए गए मंत्र – “ॐ तत् सत्” के वास्तविक अर्थ और उसकी सही जाप की विधि को स्पष्ट कर दिया है।

आज लोग “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय”, “राधे राधे”, “राम राम”, “हर हर महादेव” जैसे मंत्रों को भक्ति का माध्यम मानते हैं। परंतु ये मंत्र किसी भी शास्त्र में नहीं हैं।

जब तक साधक ‘शास्त्रानुकूल मंत्र’ को तत्वदर्शी संत से प्राप्त नहीं करता, तब तक उसकी भक्ति अधूरी है और मोक्ष असंभव है।

इस बार 6 जुलाई 2025 को पड़ने वाली देवशयनी एकादशी को केवल उपवास और जागरण में न बिताएं। इस दिन का उपयोग करें:

  •  शास्त्रों का अध्ययन करने में,
  • तत्वज्ञान को समझने में,
  • और एक तत्वदर्शी संत की शरण लेकर मोक्षदायी भक्ति विधि प्राप्त करने में।

इस लेख से यह स्पष्ट होता है कि परंपरागत मान्यताएं और व्रत, उपवास, जागरण इत्यादि शास्त्रों में प्रमाणित नहीं हैं। इनसे न तो मोक्ष मिलता है और न ही स्थायी सुख। बल्कि सच्ची भक्ति विधि, जो वेदों, गीता और तत्वदर्शी संतों द्वारा निर्देशित हो – वही मानव जीवन का लक्ष्य होना चाहिए।

संत रामपाल जी महाराज द्वारा दिया गया तत्वज्ञान यह बताता है कि:

  • एकादशी व्रत नहीं, शास्त्र सम्मत साधना करें।
  • बिना तत्वदर्शी संत के मोक्ष नहीं।
  • शास्त्रानुसार मंत्र ही मोक्ष का माध्यम हैं।

इसलिए, इस देवशयनी एकादशी को आध्यात्मिक निद्रा से जागें और पूर्णब्रह्म परमात्मा की शरण में जाकर शास्त्रसम्मत भक्ति विधि अपनाएँ।

मनुष्य जन्म अत्यंत दुर्लभ है और उससे भी दुर्लभ है पूर्ण तत्वदर्शी सन्त की प्राप्ति। वर्तमान समय में ऐसे एकमात्र तत्वदर्शी सन्त हैं – सन्त रामपाल जी महाराज। इन्होंने सभी धर्मों के शास्त्रों के गूढ़ रहस्यों को सरल भाषा में स्पष्ट करके बताया है कि वास्तविक भक्ति क्या है और मोक्ष की सच्ची राह कौन सी है।

आज जब हम शिक्षित हैं, तो यह हमारा कर्तव्य है कि शास्त्रों के अनुसार स्वयं तत्वदर्शी सन्त की पहचान करें और शीघ्र ही उनके शरणागत बनें। पूर्ण सन्त ही मोक्षदाता होते हैं, वे ही भाग्य में न लिखे सुख, दीर्घायु, समृद्धि और मोक्ष की विधि बताते हैं।

जैसा कि कबीर साहेब जी ने कहा है –

“लख बर सूरा झूझही, लख बर सावंत देह।

लख बर यति जिहान में, तब सतगुरु शरणा लेह।।”

अर्थात, लाखों जन्मों के पुण्य के बाद किसी जीव को पूर्ण सन्त की शरण मिलती है।

Devshayani Ekadashi Special

इसलिए समय की महत्ता को समझें, विलंब न करें। जब मनुष्य जीवन भी प्राप्त है और तत्वदर्शी सन्त भी साक्षात उपलब्ध हैं, तो इसे सफल बनाने का यही उत्तम अवसर है।

अधिक जानकारी के लिए “सतलोक आश्रम यूट्यूब चैनल” पर सत्संग अवश्य सुनें।

यह भी जानें – क्या सर्वोच्च भगवान कृष्ण हैं?

Q.1 इस साल देवशयनी एकादशी कब है?

Ans. इस साल देवशयनी एकादशी 06 जुलाई, दिन रविवार को है।

Q.2 देवशयनी एकादशी किसे समर्पित है?

Ans. लोकवेद के अनुसार देवशयनी एकादशी भगवान विष्णु को समर्पित है।

Q.3 देवशयनी एकादशी को अन्य किन-किन नामों से जाना जाता है?

Ans. आषाढ़ी एकादशी, पद्मा एकादशी, हरिशयनी एकादशी।

Q.4 देवशयनी एकादशी हिन्दू पंचांग के अनुसार किस माह में पड़ती है?

Ans. हिन्दू पंचांग के अनुसार देवशयनी एकादशी आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को मनाई जाती है।

Q.5 किस एकादशी को भगवान विष्णु सोने जाते हैं?

Ans. लोकवेद के अनुसार देवशयनी एकादशी को भगवान सोने जाते हैं।

Q.6 देवशयनी एकादशी क्यों मनाई जाती है?

Ans. लोकवेद अनुसार ऐसा माना जाता है कि देवशयनी एकादशी पर व्रत करने से सुख, शान्ति और समृद्धि प्राप्त होती है, परन्तु वास्तिविकता इससे भिन्न है। सुख-समृद्धि तथा पूर्ण मोक्ष की प्राप्ति सिर्फ शास्त्रानुकूल साधना से सम्भव है जो कि वर्तमान में संत रामपाल जी महाराज द्वारा साधक समाज को दी जा रही है।

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