सुखवरिया बाई चौधरी ने जीवनकाल में ही देहदान का संकल्प लिया था। 31 अगस्त 2025 को उनके निधन के बाद परिवार ने उनकी इच्छा को पूरा करते हुए मेडिकल कॉलेज से संपर्क किया। कॉलेज परिसर में आयोजित सम्मान समारोह में बड़ी संख्या में लोग मौजूद रहे और सभी ने उनके इस कदम को मानवता की सच्ची मिसाल बताया।
डॉक्टरों ने बताया चिकित्सा शिक्षा के लिए अहम योगदान
मेडिकल कॉलेज के एनाटॉमी विभागाध्यक्ष डॉ. एन.एल. अग्रवाल, डॉ. राजेंद्र कुशवाहा और डॉ. वंदन पुनासे ने कहा कि देहदान चिकित्सा शिक्षा की नींव है। उन्होंने बताया कि पुस्तकों या मॉडल से जो ज्ञान मिलता है, वह अधूरा होता है। वास्तविक मानव शरीर पर अध्ययन करने से ही छात्र सटीक और गहन समझ विकसित कर पाते हैं। यह योगदान भविष्य के डॉक्टरों को बेहतर सर्जन और चिकित्सक बनने में मदद करेगा।
कॉलेज प्रशासन ने संत रामपाल जी महाराज जी को प्रकट किया आभार
मेडिकल कॉलेज के डीन डॉ. नवनीन सक्सेना ने कहा कि संत रामपाल जी महाराज की शिक्षाओं से प्रेरित होकर उनके अनुयायी लगातार अंगदान और देहदान जैसे महान कार्य कर रहे हैं। सुखवरिया बाई चौधरी का यह कदम समाज में नई सोच और जागरूकता का संदेश देगा। उन्होंने कहा कि आने वाले समय में और भी लोग प्रेरित होकर इस दिशा में आगे आएंगे।

संत रामपाल जी की शिष्या को किया गॉड ऑफ ऑनर से सम्मान
1 सितंबर 2025 को कॉलेज परिसर में आयोजित कार्यक्रम में सुखवरिया बाई चौधरी को गॉड ऑफ ऑनर देकर सम्मानित किया गया। डॉक्टरों, स्टाफ और स्थानीय लोगों ने मौन नमन करते हुए उनके योगदान को याद किया। यह सम्मान दर्शाता है कि मृत्यु के बाद भी इंसान समाज और चिकित्सा जगत की सेवा कर सकता है।
देहदान का महत्व
देहदान ( Body Donation), मृत्यु के बाद अपने शरीर को चिकित्सा शिक्षा और अनुसंधान के लिए समर्पित करने का निस्वार्थ कार्य है। यह कदम मानवता की सर्वोच्च सेवा माना जाता है क्योंकि इससे चिकित्सा छात्रों को असली शरीर पर अध्ययन और प्रशिक्षण का अवसर मिलता है।
चिकित्सा ज्ञान को बढ़ावा
देहदान से मेडिकल छात्रों को हाथों-हाथ अनुभव मिलता है, जो किसी भी पाठ्यपुस्तक या मॉडल से संभव नहीं है।
सर्जिकल नवाचार
डॉक्टर और शोधकर्ता नई सर्जिकल तकनीकें विकसित करने और उनका अभ्यास करने के लिए donated bodies का इस्तेमाल करते हैं। इससे रोगियों की देखभाल में सुधार होता है।
स्वास्थ्यकर्मियों का प्रशिक्षण
केवल डॉक्टर ही नहीं, बल्कि नर्स, फिजियोथेरेपिस्ट और अन्य स्वास्थ्य पेशेवर भी इससे प्रशिक्षित होते हैं।
करुणा और निस्वार्थता का संदेश
देहदान समाज में परोपकार, दया और निस्वार्थ सेवा की भावना को बढ़ावा देता है। यह दूसरों के जीवन को बेहतर बनाने की दिशा में एक बड़ा योगदान है।
Also Read: उपमुख्यमंत्री जगदीश देवड़ा ने देहदान करने वाली संत रामपाल जी की शिष्याओं के परिजनों को किया सम्मानित
देहदान कैसे किया जाता है
1. प्रतिज्ञा फॉर्म भरना – इच्छुक व्यक्ति जीवनकाल में मेडिकल संस्थान या NGO से जुड़कर देहदान का संकल्प ले सकता है।
2. परिवार को अवगत कराना – यह सुनिश्चित करना जरूरी है कि परिवार भी इस इच्छा से अवगत हो, ताकि मृत्यु के बाद प्रक्रिया पूरी की जा सके।
3. संस्था से संपर्क – मृत्यु के बाद परिवार संबंधित मेडिकल कॉलेज या NGO से संपर्क करता है, और संस्था पूरी प्रक्रिया को पूरा करती है।
तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज जी के सानिध्य में हो रहे हैं अनेकों सामाजिक कार्य
तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज एक ऐसे महान संत हैं जो समाज में सकारात्मक बदलाव और मानवता की सेवा को बढ़ावा दे रहे हैं। उनके मार्गदर्शन में न केवल देहदान और अंगदान जैसे निस्वार्थ कार्य हो रहे हैं बल्कि समाज सुधार की अनेक पहलें भी चल रही हैं। उनके शिष्यों द्वारा दहेज-मुक्त विवाह कराए जाते हैं, जिससे परिवारों पर आर्थिक बोझ घटता है और सामाजिक बुराइयों का अंत होता है।
नेपाल सहित भारत के 12 सतलोक आश्रमों में समागम के समय निःशुल्क स्वास्थ्य शिविर, डेंटल चेकअप और आई चेकअप आयोजित किए जाते हैं। हर भंडारे में ब्लड डोनेशन कैंप लगते हैं, जहाँ उनके शिष्य स्वेच्छा से रक्तदान करते हैं। उनकी विशेषता यह है कि शिष्य नशे से दूर रहते हैं और उनके शरीर में किसी भी प्रकार का विकार नहीं होता, जिससे रक्तदान और देहदान के समय अंग स्वस्थ रहते हैं।
संत रामपाल जी महाराज जी का नारा है –
जीव हमारी जाति है मानव धर्म हमारा।
हिंदू मुस्लिम सिख ईसाई, धर्म नहीं कोई न्यारा
संत रामपाल जी महाराज के अनुयायी न केवल अपने जीवन में अनुशासन और सेवा की भावना रखते हैं बल्कि जहाँ भी जरूरत पड़ती है, मदद के लिए आगे बढ़ते हैं। उनका मानना है कि दूसरों का सामान अपना नहीं समझना चाहिए और खोई हुई वस्तु उसके असली मालिक तक पहुँचाना ही सच्ची इंसानियत है। संत रामपाल जी महाराज अपने वचनों की शक्ति और तत्वज्ञान से लोगों को पवित्र जीवन जीने की राह दिखा रहे हैं।
समाज के लिए अमिट प्रेरणा
सुखवरिया बाई चौधरी का देहदान केवल एक व्यक्तिगत निर्णय नहीं बल्कि समाज में सेवा और करुणा की अलख जगाने वाला कदम है। संत रामपाल जी महाराज की शिक्षाओं से प्रेरित यह योगदान आने वाली पीढ़ियों को निस्वार्थ सेवा का संदेश देता है। जबलपुर मेडिकल कॉलेज द्वारा दिया गया गॉड ऑफ ऑनर दर्शाता है कि मृत्यु के बाद भी इंसान समाज की भलाई में योगदान कर सकता है। यह कार्य मानवता, शिक्षा और जागरूकता की दिशा में एक स्थायी उदाहरण बन चुका है।
देहदान पर अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)
1. देहदान क्या है?
देहदान मृत्यु के बाद अपने पूरे शरीर को चिकित्सा शिक्षा और शोध के लिए समर्पित करने की निस्वार्थ प्रक्रिया है।
2. देहदान से किसे लाभ मिलता है?
मेडिकल छात्रों, शोधकर्ताओं और स्वास्थ्य पेशेवरों को इससे वास्तविक प्रशिक्षण और शोध का अवसर मिलता है।
3. देहदान की प्रक्रिया कैसे पूरी होती है?
जीवित अवस्था में व्यक्ति मेडिकल संस्थान या NGO के साथ प्रतिज्ञा पत्र भरता है और मृत्यु के बाद परिवार संस्था से संपर्क करता है।
4. अंगदान और देहदान में क्या अंतर है?
अंगदान में अंग निकालकर रोगियों को जीवनदान दिया जाता है, जबकि देहदान पूरा शरीर शिक्षा और शोध के लिए समर्पित किया जाता है।
5. क्या देहदान समाज के लिए प्रेरणादायक है?
हाँ, यह कदम न केवल चिकित्सा शिक्षा को मजबूती देता है बल्कि समाज में जागरूकता, करुणा और निस्वार्थ सेवा की भावना को बढ़ावा देता है।