दत्तात्रेय जंयती (Dattatreya Jayanti 2024) आज। दत्तात्रेय यानी माता अनुसूइया के पुत्र जो ब्रह्मा, विष्णु व महेश की शक्तियों से पूर्ण थे उनका जन्मदिवस आज है। आज हम जानेंगे उनके जीवन व अन्य पक्षों के बारे में।
दत्तात्रेय जयंती (Dattatreya Jayanti 2024): दत्तात्रेय का परिचय
दत्तात्रेय हिन्दू धर्म के एक महत्वपूर्ण देवता हैं। उनके माता-पिता, अनसूया और अत्रि ऋषि, तपस्वी और भक्त थे। दत्तात्रेय का जन्म एक दिव्य संयोग से हुआ था, जिसमें त्रिदेवों ने अपनी शक्ति का एक अंश अत्रि और अनसूया के पुत्र दत्तात्रेय में समाहित किया। भगवान दत्तात्रेय का जीवन साधना, तपस्या और ज्ञान का प्रतिरूप है। वे त्रिमूर्ति (ब्रह्मा, विष्णु, महेश) के संयोजन का प्रतीक माने जाते हैं और उनके पास अद्वितीय दिव्य शक्तियाँ थीं।
दत्तात्रेय जयंती (Dattatreya Jayanti 2024) के मुख्य बिंदु
- आज दत्तात्रेय जयंती है। प्रतिवर्ष मार्गशीर्ष माह में शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को दत्तात्रेय जयंती होती है।
- दत्तात्रेय एक समधर्मी अर्थात जिनमें ब्रह्मा, विष्णु,महेश की शक्तियों का समावेश है।
- दत्तात्रेय, ऋषि अत्री व माता अनुसुइया के पुत्र थे।
- जानें दत्तात्रेय की भक्ति विधि और गुरु के बारे में।
दत्तात्रेय जयंती (Dattatreya Jayanti 2024): माता अनुसुइया के सतीत्व की परीक्षा
माता अनुसुइया के सौंदर्य और पतिव्रत की चर्चा चारों ओर थी। यही चर्चा तीनों लोकों विष्णु लोक, शिव लोक और ब्रह्मा लोक में भी पहुँच गई। उन तीनों लोकों की स्वामिनियों लक्ष्मी, पार्वती और सावित्री के समक्ष भी पहुंची। तीनों माता इस बात को मानने के लिए तैयार न थीं कि उनसे भी सुंदर और सती स्त्री पृथ्वी पर है। उन्होंने माता अनुसुइया की परीक्षा लेने की ठानी। उन्होंने अपने-अपने पतियों ब्रह्मा जी, विष्णु जी व शिव जी से वचन ले लिया कि वे जाकर अनुसुइया माता के सतीत्व को भंग करें। वचनबद्ध तीनों देवता साधु रूप में अनुसुइया माता के आपस आये। माता अनुसुइया साधुओं को देखकर प्रसन्न हुई एवं सेवा के लिए तत्पर हुईं।
Dattatreya Jayanti 2024: साधु रूप में देवताओं ने भिक्षा मांगी। भिक्षा में उन्होंने कहा कि अनुसुइया निर्वस्त्र होकर उन्हें दूध पिलाएं। अनुसुइया माता राजी हो गईं एवं उन तीनों देवताओं को अपनी शक्ति से छः-छः माह के शिशुओं में परिवर्तित कर दिया। उसके बाद उन्हें बारी बारी से दूध पिलाया। जब काफी समय बीत गया और तीनों देवता अपने अपने लोकों में वापस नहीं गए तो तीनों देवियाँ सावित्री, लक्ष्मी और पार्वती चिंतित हुईं। उन्होंने चिंतित होकर खोजना आरम्भ कर दिया। नारद जी से जब तीनो माताओं ने अर्ज की तब नारद जी ने सारा वृत्तांत कह सुनाया एवं तब तीनों माताओं ने प्रश्न किया कि क्या किया जाना चाहिए। तब नारद जी ने क्षमा याचना करने के लिए कहा।
Dattatreya Jayanti 2024: मिला दत्तात्रेय के जन्म का वरदान
अनुसुइया माता से जब तीनों देवियों ने उनकी परीक्षा लेने की गलती के लिए क्षमा याचना की तब अनुसुइया माता ने उन्हें क्षमा कर दिया। तीनो देवियों ने माता अनुसुइया से अपने – अपने पतियों को वास्तविक रूप में लौटाने की प्रार्थना की, तब माता अनुसुइया ने तीनों देवताओं को अपनी शक्ति से उनके वास्तविक रूप में लाकर खड़ा कर दिया। इतने में ऋषि अत्री आए। ब्रह्मा विष्णु महेश को ऋषि अत्री ने प्रणाम किया एवं तब ब्रह्मा, विष्णु, महेश ने अनुसुइया के सतीत्व से प्रसन्न होकर कोई भी वरदान मांगने के लिए कहा। उन्होंने तीनों देवताओं के स्वभाव वाले एक ही पुत्र की कामना की। उन्हें दत्तात्रेय के जन्म का वरदान मिला जिनके तीन मुख थे एक ब्रह्मा जी जैसा, एक विष्णु जी जैसा और एक शिवजी के जैसा।
दत्तात्रेय जयंती (Dattatreya Jayanti 2024): ऋषि दत्तात्रेय जी ने चौबीस गुरु बनाए
गुरु बिना मुक्ति संभव नहीं है इस बात से विदित होते हुए दत्तात्रेय पूर्ण गुरु की तलाश में रहे एवं उन्होंने 24 गुरु धारण किये। अंत में पच्चीसवें गुरु के रूप में उन्हें सत्पुरुष कबीर परमेश्वर योगजीत रूप में मिले। तब उन्होंने पूर्ण तत्वदर्शी सन्त रूप में योगजीत जी से नामदीक्षा ली एवं सतनाम तक नाम लेकर सतभक्ति की। सारनाम उन्हें प्राप्त नहीं हुआ क्योंकि सार नाम कलियुग के पांच हजार पांच सौ पांच वर्ष तक गुप्त रखना था। आज कलियुग के पांच हजार पांच सौ पांच वर्ष बीत चुके हैं एवं पुनः कबीर परमेश्वर के अवतार संत रामपाल जी महाराज पृथ्वी पर आये हुए हैं सार नाम का पिटारा लेकर। उनसे नामदीक्षा लेकर भक्ति करें व स्वयं को पूर्ण मोक्ष को प्राप्त होने की ओर अग्रसर करें।
गुरु बदलने से पाप नहीं लगता
इस दत्तात्रेय जयंती (Dattatreya Jayanti 2024) पर आपने जाना कि पूर्ण गुरु की तलाश में स्वयं दत्तात्रेय जी ने चौबीस गुरु बदले तब जाकर उन्हें पच्चीसवें गुरु सत्पुरुष स्वयं मिले। वर्तमान में ढेरों धर्म गुरु बैठे हैं। किन्तु तत्व को जानने वाला अर्थात तत्वदर्शी सन्त पूरे विश्व में कोई एक ही होता है। गलत ज्ञान का प्रचार करने वाले गुरु और उनके शिष्य दोनों ही डूबेंगे। वर्तमान में पूरे विश्व में एकमात्र तत्वदर्शी संत की भूमिका में स्वयं सत्पुरुष संत रामपाल जी महाराज के रूप में आये हुए हैं। नकली गुरु एवं अन्य गुरुओं को छोड़कर तत्वदर्शी संत की शरण गहने में ही भलाई है। कबीर साहेब कहते हैं।
जब लग गुरु मिले नहीं साँचा, तब लग गुरु करो दस पाँचा |
दत्तात्रेय जी को भी मोक्ष प्राप्त नहीं हुआ
पवित्र ग्रन्थ सतग्रन्थ साहेब में आदरणीय गरीबदासजी महाराज ने पारख के अंग की वाणी संख्या 52 में लिखा है-
गरीब, दुर्बासा और मुनिंद्र का, हुवा ज्ञान संवाद |
दत्त तत्व में मिल गए, ना घर विद्या न बाद ||
जब त्रेतायुग में कबीर परमेश्वर मुनीन्द्र रूप में आये हुए थे तब ऋषि दुर्वासा से अध्यात्म ज्ञान पर संवाद किया। ऋषि दुर्वासा सिद्धियुक्त थे एवं अहंकारी थे। उनको अंतरात्मा तो परमात्मा का सही आध्यात्मिक ज्ञान मान रही थी किन्तु मन में मान-बड़ाई त्यागने के लिए तैयार नहीं थे। उन्होंने परमेश्वर से दीक्षा भी ली किन्तु अपना स्वभाव नहीं छोड़ा। उन्हें परमात्मा ने सतनाम व सारनाम नहीं दिया। ऋषि दत्तात्रेय जी ने भी परमात्मा कबीर जी (योगजीत रूप) से तत्वज्ञान समझ, दीक्षा ली। सारनाम उस समय किसी को भी नहीं देना था। कलियुग के पांच हजार पांच सौ पांच वर्ष बीतने तक सारनाम गुप्त रखना था। इस कारण से सारनाम नहीं दिया गया। सारनाम गीता अध्याय 17 के श्लोक 23 में मोक्ष प्राप्ति के लिए दिए तीन सांकेतिक मन्त्रों ओउम्, तत् व सत् में अंतिम है जिसके बिना मोक्ष प्राप्ति सम्भव नहीं है।
बहुर न ऐसा दाँव
आपने स्वयं जाना कि बड़े बड़े ऋषियों, महर्षियों का भी मोक्ष नहीं हुआ। किसी को पूर्ण परमात्मा नहीं मिला तो किसी को सार नाम नहीं मिला। अब आज कलियुग के पांच हजार पांच सौ पांच वर्ष बीत जाने के पश्चात बमुश्किल यह दाँव लगा है कि परमात्मा स्वयं तत्वदर्शी संत रूप में आये हैं और तीनों नामों का पिटारा खोले बैठे हैं। अब हमें देर नहीं करनी चाहिए अन्यथा चूक होने पर युगों युगों के लिए बात बिगड़ जाएगी। बुद्धि मत्ता का परिचय देते हुए इस सौदे से नहीं चूकना चाहिए अन्यथा हमसे मूर्ख कोई नहीं है। वर्तमान में पूर्ण तत्वदर्शी संत की भूमिका में संत रामपाल जी महाराज हैं उनसे नामदीक्षा लें एवं अपना कल्याण करवाएँ। अधिक जानकारी के लिए देखें सतलोक आश्रम यूट्यूब चैनल।
जैसे मोती ओस का ऐसी तेरी आव,
गरीबदास कर बन्दगी बहुर न ऐसा दाव ||