कोरोना वायरस का असर पूरे विश्व में अलग अलग तरीकों से पड़ा है। इस दौरान क्रूड ऑयल (Crude oil) की कीमतों में हुई गिरावट विशेष रूप से चर्चा का विषय है , सोशल मीडिया एवं समाचार पर। कच्चे तेल की कीमतें गिरावट के सबसे निचले स्तर पर पहुंच गई हैं जो कि एक नया रिकॉर्ड है। आइए इसके बारे में विस्तार से जानें कि वास्तव में क्या है क्रूड ऑयल? क्रूड ऑयल में गिरावट से भारत (India) में असर।
क्रूड ऑयल या कच्चा तेल क्या है?
क्रूड ऑयल को वास्तव में हम पेट्रोलियम का प्राकृतिक रूप कह सकते हैं। यानी क्रूड ऑयल (Crude oil) को परिष्कृत करने के बाद उससे हमें प्राकृतिक गैस, पेट्रोल, मोम, केरोसीन (घासलेट) आदि प्राप्त होते हैं। इसे काला सोना भी कहते हैं।
कच्चा तेल एक ऐसी कमोडिटी है जिसमें उतार- चढ़ाव का सीधा सम्बन्ध आम नागरिक से होता है। यह जीडीपी में विशेष योगदान देता है। साथ ही ये विभिन्न देशों की कमाई का महत्वपूर्ण ज़रिया है।
कच्चे तेल का निर्यात करने वाले देशों के पास मात्र यही विशेष कमोडिटी होती है जिससे उन्हें मुनाफा होता है। क्रूड ऑयल (Crude oil) विशेष रूप से समाचार में आने का कारण उसकी कीमत में भारी मात्रा में गिरावट है। जानकारी के लिए बता दें कि खाड़ी देशों में लगभग 80 लाख भारतीय कार्यरत हैं जो प्रति वर्ष लगभग 50 अरब डॉलर की रकम भारत भेजते हैं जो कि इस गिरावट से प्रभावित होगी। तेल में हुई गिरावट का सीधा असर शेयर मार्केट पर भी पड़ा है।
वर्तमान में क्रूड ऑयल (Crude oil) की स्थिति
- कोरोना ने क्रूड ऑयल के लिए करेले पर नीम चढ़े जैसी स्थिति खड़ी कर दी है।
- विगत कुछ महीनों से कच्चे तेल की कीमत गिर रही थी लेकिन मार्च के अंत में यह 20 डॉलर प्रति बैरल पहुंच गई।
- 1 बैरल में 158.98 लीटर (लगभग 159लीटर) कच्चा तेल होता है।
- सोमवार को इतिहास में पहली बार कच्चे तेल में माईनस डॉलर में यानी शून्य से भी नीचे तक गिरावट दर्ज की गई है।
- इस तरह तेल की कीमत गिरने का कारण इसकी मांग से अधिक सप्लाई या उत्पादन है।
- कच्चे तेल की कीमत को खतरा ओपेक देशों की सप्लाई और अमेरिका की आपूर्ति के बाद और भी ज्यादा हो गया है।
Crude Oil की कीमतों (Price) के घटने के कारण
सोमवार, दिनांक 20/04/2020 को तेल की कीमतें (-40) माईनस 40 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच गईं। माईनस में कीमत जाने का सीधा अर्थ है कि सामान बेचने के साथ साथ ग्राहक को कीमत भी अदा करना। फिलहाल कोरोना वायरस के चलते लॉक डाउन की स्थिति लगभग सभी जगह है, जिसके कारण पेट्रोल व डीज़ल की मांग कम है, किंतु तेल का उत्पादन यथावत जारी है इसलिए इसकी कीमत में भारी गिरावट है।
सोमवार को कारोबार जब शुरू हुआ तब इसकी कीमत US Crude Oil Futures में WTI (वेस्ट टेक्सास इंटरमीडिएट) क्रूड ऑयल की कीमत 18 डॉलर प्रति बैरल थी, जो अचानक 104 फीसदी से भी अधिक की गिरावट के साथ शून्य डॉलर प्रति बैरल से भी नीचे यानी माईनस में चली गई।
हालांकि दिन के आखिर में कुछ सुधार के साथ इसकी कीमत शून्य से काफी ऊपर आ गई। दुनियाभर की पेट्रोलियम कम्पनियां भंडार के अभाव में ज्यादा खरीददारी करने से हिचक रहीं हैं। लेकिन यदि यही हालात जारी रहे तो कई अमेरिकी कम्पनियां दिवालिया हो सकती हैं।
तेल का उत्पादन बंद क्यों नहीं कर सकते?
क्रूड ऑयल काले रंग का हाइड्रोकार्बन पदार्थ है। यह समुद्र में ज़मीन के भीतर भी पाया जाता है। इसका इतिहास लगभग तीस करोड़ वर्षों का रहा है। तेल का उत्पादन खाड़ियों में कुँए बनाकर किया जाता है। सवाल ये उठता है कि तेल के उत्पादन को भंडारण की अक्षमता व मांग बढ़ने तक क्यों नहीं रोका जा सकता?
असल मे यह एक बड़ा निर्णय है क्योंकि एक बार तेल के कुओं को बंद करके उन्हें दोबारा शुरू करना बहुत महंगा है और कठिन कार्य है तथा इससे इन उत्पादक देशों को ही नुकसान है। साथ ही किसी एक देश के उत्पादन में कमी से विश्व बाजार में अपनी हिस्सेदारी कम हो जाने का भी एक वाजिब डर है।
“यदि आप उत्पादक हैं और आपके सामने मार्किट खत्म है। फिर तेल रखने के लिए भी जगह की कमी है तो समझिए भाग्य आपके विपरीत है “
आरोन ब्रैडी (रीसर्च व कन्सल्टिंग फर्म IHS मार्किट से जुड़े) ने न्यूयॉर्क टाइम्स से कहा।
भारत पर इसका असर
अमेरिका में हुए इस कच्चे तेल (Crude oil) की गिरावट के भारत मे लाभ की कोई सम्भावना नहीं है। भारत मे लॉक डाउन की स्थिति के चलते पेट्रोल व डीज़ल की मांग कम है एवं कम्पनियों के पास भंडार करने के लिए जगह नहीं है। IEA (इंटरनेशनल एनर्जी एजेंसी) ने 2020 में भारत का फ्यूल कंसम्पशन 5.6 फीसदी घटने की बात अपनी रिपोर्ट में कही है। भारत में इस गिरावट के असर न पड़ने का मुख्य कारण भारत में आने वाला तेल इंडियन क्रूड बास्केट ( लन्दन व खाड़ी देशों का मिलाजुला पैकेज) है।
दुनिया के करीब 75 फीसदी क्रूड ऑयल का दाम ब्रेंट क्रूड तय करता है अतः भारत (India) के लिए अमेरिकी क्रूड का नहीं बल्कि ब्रेंट क्रूड का महत्व है। लेकिन सबसे बड़ा नुकसान इससे यह है कि कोरोना वायरस के कारण विश्व अर्थव्यवस्था का ढह जाना भारत के लिए कोई अच्छा संकेत नहीं है। साथ ही वहां की इकोनॉमी का लड़खड़ा जाना भारतीय निर्यात के लिए एक बड़ी चोट साबित हो सकता है।
एनर्जी मार्केट की पत्रकारिता से जुड़ी अज़लीन अहमद ने कहा है कि ,कच्चे तेल (Crude oil) की कीमतें (Price) यथावत कमज़ोर रहेंगी जब तक वैश्विक अर्थव्यवस्था दोबारा ढर्रे पर नहीं आती। फिलहाल उम्मीद यही की जा सकती है कि लॉक डाउन खुलने पर स्थिति सामान्य हो सके।