महाराष्ट्र के नासिक के पिंपलगांव में रहने वाली गर्भवती महिला रेणुका सागर माले शिशु को जन्म देने के पहले कोरोना संक्रमित हो गई। फिर भी बिना डरे वह बच्चे को जन्म देने के लिए हॉस्पिटल में दाखिल हुई। हॉस्पिटल में खून की जरूरत होने पर उनके पति के करीबी दोस्त जो संत रामपाल जी महाराज जी से दीक्षा प्राप्त है भक्त नीलेश दास और उनकी पत्नी भक्तमति सायली दोनों ने कोरोना से बिना डरे अपने सतगुरु देव की बताई शिक्षा पर चलकर रक्तदान किया और एक मिसाल कायम की। जगतगुरु रामपाल जी महाराज की हो रही बहुत प्रशंसा। आप भी जगतगुरु रामपाल जी महाराज की शरण में आकर नाम दीक्षा लेकर अपना कल्याण करवाएं
मुख्य बिन्दु
- महाराष्ट्र के नासिक के पिंपलगांव में रहने वाली गर्भवती महिला रेणुका सागर माले को जन्म देने से पहले हुआ कोरोना
- मुश्किल के समय कोरोना की परवाह किए बिना संत रामपाल जी के भक्तों ने रक्तदान कर कायम की मिसाल
- जगतगुरु रामपाल जी महाराज की हो रही भूरी भूरी प्रशंसा
- आप भी जगतगुरु रामपाल जी महाराज की शरण में आकर नाम दीक्षा लेकर अपना कल्याण करवाएं
- पवित्र पुस्तक ज्ञान गंगा पढ़ें और सतलोक आश्रम यूट्यूब चैनल पर सत्संग श्रवण कर सतज्ञान प्राप्त करें
क्या है पूरी घटना?
महाराष्ट्र के नासिक के पिंपलगांव में रहने वाली गर्भवती महिला रेणुका सागर माले शिशु को जन्म देने का समय निकट आने से खुश थी। लेकिन अचानक वह कोरोना संक्रमित हो गई। फिर भी बिना डरे वह बच्चे को जन्म देने के लिए हॉस्पिटल में दाखिल हुई। हॉस्पिटल जाने के बाद डॉक्टर ने उनके पति को बताया कि उनको खून की जरूरत है। पति ने ये बात उनके करीबी दोस्त को बताई जो कि संत रामपाल जी महाराज जी से दीक्षा प्राप्त है। संयोग से उनके मित्र भक्त नीलेश दास और उनकी पत्नी भक्तमति सायली दोनों का ब्लड ग्रुप कोरोना संक्रमित महिला से मिलता जुलता था। दोनों ने कोरोना से बिना डरे अपने सतगुरु देव की बताई शिक्षा पर चलकर रक्तदान किया और एक मिसाल कायम की। संक्रमित रेणुका सागर माले ने एक बेटी को जन्म दिया। बेटी बिल्कुल स्वस्थ है और उसे घर भेज दिया गया है और संक्रमित माँ का उपचार अस्पताल में चल रहा है।
जगतगुरु रामपाल जी महाराज की हो रही भूरी भूरी प्रशंसा
नासिक के हीरावाड़ी में रहने वाले पति पत्नी भक्त नीलेश दास और भक्तमती सायली दासी ने समाज के लिए एक आदर्श मिशाल पेश करते हुए कोरोना संक्रमित महिला को रक्तदान किया। कोरोना संक्रमित मरीजों से लोग आज दूर रहते हैं लेकिन निलेश दास और सायली दासी ने रक्तदान करने का धैर्य दिखाया। भक्त नीलेश बहिरे जिन्होंने अपनी पत्नी भक्तमती सायली के साथ रक्तदान किया है उन्होंने बताया कि हमारा परिवार संत रामपाल जी महाराज की बताई हुई शिक्षाओं पर चलता है। अपने मित्र की पत्नी को संकटकाल में रक्त की आवश्यकता थी इसीलिए अपने सतगुरु की शिक्षा के अनुसार हमनें अस्पताल जाकर कोरोना से संभावित संक्रमण के डर को छोड़ कर रक्तदान किया। सभी लोग तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज के सतमार्ग की सराहना कर रहे हैं।
क्या है जगतगुरु रामपाल जी महाराज का सतज्ञान?
जगतगुरु रामपाल जी महाराज अपने भक्तों शिष्यों को केवल “एक नाम” सतनाम/ सारनाम से आशा रखने के लिए कहते हैं। मान-बड़ाई की चाह हृदय से त्याग कर अपने शुभ कर्म जैसे दान या अन्य सेवा करने की शिक्षा भी देते हैं। भक्त सतगुरू की शरण में ऐसे रहे जैसे जल में मछली रहती है। मछली पानी के बिना एक पल भी नहीं रह सकती और तुरंत तड़फ तड़फ मर जाती है। गुरू जी द्वारा दिए शब्द सत्यनाम को लेकर पुरूष (परमात्मा) में निरंतर ध्यान लगाएं। इस नाम मंत्र का ऐसा प्रभाव है कि साधक पुनः संसार में जन्म-मरण के चक्र में नहीं आता। वह सनातन परम धाम चला जाता है जहाँ जाने के पश्चात् साधक कभी लौटकर संसार में नहीं आता।
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जगतगुरु रामपाल जी के अनुसार भक्त परमार्थी होना चाहिए
सतगुरु रामपाल जी महाराज कहते हैं, परमेश्वर कबीर जी ने धर्मदास जी के माध्यम से मानव मात्र को संदेश व निर्देश दिया है जिनको सतगुरू मिल गया है, वे तो अमर हो जाएंगे। घोर पापों से बच जाएंगे, साथ ही साथ समझाया है कि सेवा करें तो अपनी महिमा की आशा न करें।
सुनि धर्मनि परमारथ बानी। परमारथते होय न हानी।।
पद परमारथ संत अधारा। गुरू सम लेई सो उतरे पारा।।
सत्य शब्द को परिचय पावै। परमारथ पद लोक सिधावै।।
सेवा करे विसारे आपा। आपा थाप अधिक संतापा।।
जगतगुरु रामपाल जी महाराज द्वारा परमार्थी गऊ का दृष्टांत
सतगुरु रामपाल जी महाराज बता रहे हैं कि गाय स्वयं तो घास खाती है और स्वयं जल पीती है। लेकिन मनुष्यों को अमृत तुल्य दूध पिलाती है। उसके दूध से घी बनता है। गाय का बछड़ा हल में जोता जाता है और इंसानों का पोषण करता है। गाय का गोबर भी खाद और ईंधन बनाने के काम आता है। मृत्यु के उपरांत गाय के चमड़े से जूते और अन्य कई उपयोगी वस्तुएं बनती हैं। मानव शरीर को प्राप्त करके प्राणी यदि परमार्थ और भक्ति से वंचित रह जाए तो पापकर्म करने में अनमोल जीवन नष्ट कर देता है। माँसाहारी मनुष्य दैत्यों की तरह गाय को मारकर उसके माँस को खा जाता है और महापाप का भागी बनता है। इस सम्बन्ध की परमेश्वर कबीर जी की वाणी को प्रस्तुत कर रहे हैं तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज –
गऊको जानु परमार्थ खानी। गऊ चाल गुण परखहु ज्ञानी।।
आपन चरे तृण उद्याना। अँचवे जल दे क्षीर निदाना।।
तासु क्षीर घृत देव अघाहीं। गौ सुत नर के पोषक आहीं।।
विष्ठा तासु काज नर आवे। नर अघ कर्मी जन्म गमावे।।
टीका पुरे तब गौ तन नासा। नर राक्षस गोतन लेत ग्रासा।।
चाम तासु तन अति सुखदाई। एतिक गुण इक गोतन भाई।।
आप भी जगतगुरु रामपाल जी महाराज की शरण में आकर नाम दीक्षा लेकर सत भक्ति करके अपना कल्याण कराएं। पवित्र पुस्तक ज्ञान गंगा पढ़ें और सतलोक आश्रम यूट्यूब चैनल पर सत्संग श्रवण कर सतज्ञान प्राप्त करें।