अवतार VS प्रकट दिवस: हम बचपन से सुनते आ रहे हैं कि जब धरती पर अत्याचार बढ़ते हैं तब-तब परमात्मा इस मृत्यु लोक में आते हैं, लेकिन उनके आने में और अन्य देवी देवताओं के आने में बहुत अंतर है। अगर सरल भाषा में कहें तो परमात्मा प्रकट होता है जबकि अन्य देवी-देवतता (जैसे कि श्रीराम, श्रीकृष्ण, हनुमान जी आदि) माँ के गर्भ से जन्म लेकर लीला करते हैं। अब आप सोच रहे होंगे यदि परमात्मा प्रकट होता है तो वो है कौन? तो चलिए जानते हैं उसके बारे में।
अवतार VS प्रकट दिवस: प्रकट होने एवं जन्म लेने में अंतर
पूर्ण परमेश्वर सदैव अपनी इच्छा से प्रकट होते हैं। परमात्मा जो सर्व सृष्टि का रचनहार है उसे किसी का भय नहीं और न ही उसके लिए कोई भी कार्य असम्भव है। वेदों में प्रमाण है कि पूर्ण परमेश्वर अपनी इच्छा से सतलोक से हल्के तेजपुंज का शरीर धारण करके प्रकट होते हैं और अच्छी आत्माओं को मिलते हैं। जबकि क्षर पुरुष यानी काल ब्रह्म एवं उसके अंतर्गत सभी देवी देवता तथा त्रिलोकीनाथ ब्रह्मा-विष्णु-महेश आदि जब पृथ्वी पर अवतरित होते हैं तो वे माता के गर्भ से जन्म लेते हैं एवं उनकी मृत्यु भी होती है। कालब्रह्म पृथ्वी पर समय समय पर अपने अवतारों को भेजकर लीलाएँ करवाता है एवं सामान्य जन उन अवतारों से प्रभावित होकर उन्हें ही सर्वेश्वर मान लेते हैं एवं पूर्ण परमात्मा को भूल जाते हैं।
(वास्तव में काल ऐसा इस उद्देश्य से करता है कि पूर्ण ब्रह्म को पहचानकर कोई सत्य साधना न करे और मोक्ष प्राप्त न कर पाए। सृष्टि रचना में आप जानेंगे कि काल ब्रह्म को एक लाख मानवशरीर धारी जीवों को खाने का श्राप है। अतः यह सभी जीवों को पूर्ण परमेश्वर से दूर रखने का हर सम्भव प्रयत्न करता है।)
अवतार VS प्रकट दिवस: सभी अवतार जन्म लेते हैं
हम जानते हैं कि देवी देवता माँ के गर्भ से जन्म लेते हैं तथा इस मृत्यु लोक में आकर महिमा के पात्र बनते हैं। लोग उन्हीं अवतारों की पूजा करने लग जाते हैं। यहाँ जितने भी देवी-देवता हैं या और अवतार चाहे वे हजरत मुहम्मद जी हों या ईसा मसीह हों या श्रीराम या श्रीकृष्ण हों ये सभी इस लोक में कालब्रह्म द्वारा भेजे गए थे। जानकारी के लिए बता दें कि अव्यक्त रहने वाला और किसी को दर्शन न देने वाला क्षर पुरूष या ब्रह्म ही ब्रह्मा-विष्णु-महेश का पिता हैं। लोग अवतारों को ही भगवान समझकर पूजा कर रहे है और पूर्णब्रह्म परमेश्वर कविर्देव से अनभिज्ञ हो गए।
हम जानते हैं कि श्रीराम ने कौशल्या माता से जन्म लिया था। नारदमुनि के श्रापवश सीता से वियोग भी सहा था और अंत मे सरयू नदी में जलसमाधि से उनकी मृत्यु हुई थी। श्रीकृष्ण ने माता देवकी से जन्म लिया था जिनका पालनपोषण माता यशोदा ने किया था तथा वन में शिकारी के माध्यम से तीर लगने से दुर्वासा ऋषि के श्रापवश उनकी मृत्यु भी हुई थी। दोनों ही अवतारों ने लीलाएँ की थीं। हनुमानजी जो अंजना माता के पुत्र थे उन्होंने त्रेतायुग में मुनींद्र ऋषि से भक्ति प्राप्त करके पूर्ण परमात्मा की भक्ति की एवं मोक्ष प्राप्त किया। वहीं हजरत मुहम्मद साहब जी ने भी माता आमीना के गर्भ से जन्म लिया तथा ईसा मसीह ने भी माता मरियम के गर्भ से जन्म लिया।
पूर्णब्रह्म कबीर साहेब का प्राकट्य
वेदों में प्रमाण है कि पूर्ण परमात्मा प्रकट होता है। कबीर परमात्मा ज्येष्ठ मास की पूर्णिमा को सन 1398 में लहरतारा तालाब में कमल के पुष्प पर सतलोक से हल्के तेजपुंज का शरीर धारण करके बालक रूप में प्रकट हुए। इस घटना के प्रत्यक्ष दृष्टा रामानन्द जी के शिष्य ऋषि अष्टानन्द जी थे जो अपनी साधना के लिए लहरतारा तालाब के समक्ष बैठे थे। पूर्ण परमेश्वर प्रत्येक युग में आते हैं एवं निसन्तान दम्पत्ति को मिलते हैं। कलियुग में कबीर साहेब नीरू नीमा ( जो ब्राह्मण दम्पति थे एवं जबरन मुस्लिम धर्म में परिवर्तित करवाये गए थे) को मिले। परमात्मा स्वयं प्रकट होते हैं एवं माता के गर्भ से जन्म नहीं लेते इसका प्रमाण ऋग्वेद मंडल 10 सूक्त 4 मंत्र 3 में है।
“शिशुम् न त्वा जेन्यम् वर्धयन्ती माता विभर्ति सचनस्यमाना
धनोः अधि प्रवता यासि हर्यन् जिगीषसे पशुरिव अवसृष्टः।”
कबीर साहेब का अन्य अवतारों की तरह सामान्य गायों के या माता के दूध से उदर नहीं भरा। पूर्ण परमात्मा सर्वसक्षम है और सर्वशक्तिमान है उसे आहार की आवश्यकता ही नहीं होती। लेकिन 21 दिनों तक आहार न करने के कारण कबीर साहेब के मुंहबोले माता पिता नीरू और नीमा ने चिंता और शोक में अपना बुरा हाल कर लिया। तब कबीर साहेब ने कुंवारी गायों के दूध पीने की लीला की। परमात्मा की इस लीला का प्रमाण ऋग्वेद मंडल 9 सूक्त 1 मंत्र 9 में है।
“अभी इमं अध्न्या उत श्रीणन्ति धेनवः शिशुम्। सोममिन्द्राय पातवे।।”
अर्थात जब पूर्ण परमात्मा अमर पुरुष जब बालक रूप धारण करके स्वयं प्रकट होते हैं तब सुख सुविधा के लिए जो भी आवश्यक पदार्थ शरीर वृद्धि के लिए चाहिए वह पूर्ति कुंवारी गायों द्वारा की जाती है। अर्थात् उस समय कुँवारी गाय अपने आप दूध देती है जिससे उस शिशु रूप पूर्ण परमेश्वर की परवरिश होती है। परमात्मा कबीर साहेब ने अद्भुत लीलाएँ इस पृथ्वी पर कीं। घूम घूम कर सच्चा आध्यात्मिक ज्ञान जिसे तत्वज्ञान कहते हैं वह सभी को अद्भुत वाणियों, दोहों, शब्दो के माध्यम से सुनाया। इसी कारण वेदों में वर्णित अनुसार उन्हें कवि की उपाधि मिली और सभी परमेश्वर को कवि कहने लगे।
इसका प्रमाण ऋग्वेद मंडल 9 सूक्त 16 मंत्र 18 में है-
“ऋषिमना य ऋषिकृत् स्वर्षाः सहत्राणीथः पदवीः कवीनाम्। तृतीयम् धाम महिषः सिषा सन्त् सोमः विराजमानु राजति स्टुप्।।
भावार्थ है कि परमात्मा शिशु रूप धारण करता है और लीला करता हुआ बड़ा होता है। कविताओं द्वारा तत्वज्ञान का वर्णन करने के कारण वह कवि की उपाधि धारण करता है वास्तव में वह पूर्ण परमेश्वर कविर् ही है।
अवतार VS प्रकट दिवस: पूर्ण परमेश्वर का सतलोक गमन
पूर्ण परमेश्वर अजन्मा, अलेख, सर्वशक्तिमान, सर्वसक्षम, विवेकपूर्ण, निर्भय, सुख का सागर, दयावान, क्षमावान तथा अमर है। जिसने इस सृष्टि को रचा, सर्व ब्रह्मांडो की उत्पत्ति की वह भला विवश कैसे हो सकता है। इस संसार के कोई नियम उस पर लागू नहीं होते। पूर्ण परमात्मा जो चाहे वह कर सकता है। परमात्मा ना तो माता के गर्भ से जन्म लेता है और न ही भोग के लिए स्त्री रखता है। उसका कोई परिवार नहीं होता। कबीर साहेब का कोई परिवार नहीं था। कमाल और कमाली दो मृत शव थे जिन्हें हजारों लोगों के समक्ष कबीर साहेब ने जीवित किया था तथा उनका अपने पुत्र व पुत्रिवत पोषण किया।
लगभग 120 वर्ष तक लीला करने के पश्चात पूर्ण परमेश्वर कबीर साहेब मरे नहीं बल्कि घोषणा करके हजारों लोगों के समक्ष सतलोक गए। जहां एक ओर श्रीकृष्ण महाभारत के युद्ध को रोकने के हरसम्भव प्रयत्न करते हुए असफल रहे वहीं कबीर साहेब ने केवल अपने ज्ञान और आशीर्वाद से एक बहुत भयंकर गृहयुद्ध होने से बचाया।
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अवतार VS प्रकट दिवस: काशी में ये भ्रांति फैली हुई थी कि जो काशी में मरता है वह स्वर्ग जाता है और मगहर में मरने वाला नरक जाता है। जबकि साहेब कबीर सदैव कहते रहे कि काशी मरो या मगहर, जो जैसे कर्म करेगा वैसी योनि एवं फल प्राप्त करेगा। इस भ्रांति को तोड़ने के लिए कबीर साहेब ने घोषणा की कि नियत दिन वे मगहर से सतलोक गमन करेंगे एवं सभी ज्योतिषाचार्यों एवं पंडितों को अपनी पोथी पत्र साथ लाने एवं गणना करने के लिए कह दिया। हजारों की संख्या में लोग काशी से मगहर गए। कबीर साहेब के शिष्यों में दोनों धर्मों के लोग थे। इनमें काशी नरेश राजा वीर सिंह बघेल एवं मगहर रियासत के स्वामी राजा बिजली खान पठान भी थे। दोनों धर्मों ने सोच लिया था कि कबीर साहेब का अंतिम संस्कार हम अपनी धार्मिक रीति से करेंगे। दोनों राजाओं ने अपनी सेना भी तैयार कर ली।
अवतार VS प्रकट दिवस: कबीर साहेब पूर्ण परमेश्वर हैं इस पृथ्वी और आकाश के बीच और उससे परे भी ऐसी कोई चीज़ नहीं है जो उनसे छिपी हो। बन्दीछोड़ कबीर परमेश्वर ने दोनों ही धर्मों को सेना इकट्ठी करने के लिए कड़ी फटकार लगाई। कबीर साहेब के लिए एक चादर बिछाई गई जिसके ऊपर दो इंच मोटाई में फूल बिछाए गए जिन पर कबीर साहेब लेटे और ऊपर से एक चादर ओढ़ी। कुछ समय पश्चात आकाशवाणी के माध्यम से कबीर साहेब ने बताया कि वे सशरीर सतलोक जा रहे हैं। उन्होंने हिन्दू और मुस्लिमों को आपस में झगड़ा न करने के सख्त आदेश दिए एवं जो भी चादर के नीचे मिले उसे आपस मे बांटने के लिए कहा। चादर उठाई गई एवं उसके नीचे केवल सुगन्धित पुष्प थे। पूर्णब्रह्म कबीर साहेब जैसे सशरीर सतलोक से आये थे वैसे ही सशरीर सतलोक चले गए। मगहर में फूलों को बांटकर एक ओर मजार बनाई गई और एक ओर हिंदुओं ने मंदिर बनाया तथा कुछ फूल काशी लाकर कबीर चौरा नामक स्थान बनाया। आज भी ये स्थान प्रमाण के तौर पर मौजूद हैं एवं मगहर में कबीर परमेश्वर के आशीर्वाद के फलस्वरूप हिन्दू मुस्लिम आज भी प्रेम से रहते हैं। आदरणीय सन्त गरीबदासजी महाराज की वाणी में प्रमाण है-
दो चादर दहूं दीन उठावैं, ताके मध्य कबीर न पावैं |
तहां वहां अविगत फूल सुवासी, मगहर घोर और चौरा काशी ||
अवतार VS प्रकट दिवस: कौन है सर्वसक्षम? अवतार या पूर्णब्रह्म
सभी अवतार इस सृष्टि के नियमों के आगे विवश रहे। जन्म लिया, मृत्यु भी हुई। विवाह किया एवं अपने तीन ताप नहीं काट सके। नारद मुनि के श्रापवश श्रीराम को स्त्री का वियोग सहना पड़ा। श्री राम ने बाली को धोखे से तीर मारा था तब सुग्रीव विजयी हुए थे। बाली वाली आत्मा ने त्रेतायुग में जब विष्णु जी श्रीकृष्ण अवतार में आये तब शिकारी के रूप में धोखे से ही तीर मारा और कृष्ण मारे गए। दुर्वासा ऋषि के श्राप से छप्पन करोड़ यादव कटकर मर गए थे शेष बचे हुए श्रीकृष्ण के भीतर कालब्रह्म ने प्रविष्ट करके मार दिए। तथा स्वयं श्रीकृष्ण की मृत्यु भी इसी श्रापवश हुई। तमाम युद्धों एवं अशांति के बाद ये अवतार अत्यंत दुखी रहे। हजरत मुहम्मद ताउम्र दुखों से गुजरे एवं स्वयं ईसा मसीह भी दुखी रहे। कालब्रह्म द्वारा भेजे गए अवतार स्वयं दुखी रहे वे अपना कष्ट भी कम नहीं कर पाए। केवल कुछेक लीलाओं के आधार पर भोली जनता उन्हें भगवान मान बैठी।
जब हम श्रीमद्भागवत गीता पढ़ते हैं तो पाते हैं कि अध्याय 2 श्लोक 12, गीता अध्याय 4 श्लोक 5, गीता अध्याय 10 श्लोक 2 में गीता ज्ञान दाता स्वयं स्वीकार करता है कि मेरी भी जन्म व मृत्यु होती है, मैं अविनाशी नहीं हूँ तथा अध्याय 8 के श्लोक 16 में यह भी स्पष्ट कहा है कि ब्रह्मलोकपर्यंत सभी लोक पुनरावृत्ति में हैं जिनका कभी जन्म अथवा मृत्यु नहीं होती है। सभी धर्मगुरु कहते रहे कि कर्म का फल भोगने पर ही समाप्त होता है, भाग्य का लिखा कोई नहीं मिटा सकता एवं जन्म और मृत्यु पर किसी का वश नहीं है। जबकि सृष्टि के आरंभ से मौजूद हमारे वेद गवाही देते हैं कि पूर्ण परमेश्वर भाग्य का लिखा बदल सकता है, कर्मों के बंधन काट सकते हैं और मृत्यु टालकर शतायु प्रदान करते हैं। हमारे सद्ग्रंथ प्रमाणित करते हैं कि परमात्मा घोर से घोर पाप भी नष्ट कर सकता है। इसलिए श्रीमद्भागवत गीता में गीता ज्ञान दाता ने तीन गुणों की भक्ति एवं अन्य भक्ति करने वाले को मनुष्यों में नीच एवं मूढ़ बताया हैं। तथा अध्याय 18 के श्लोक 66 में किसी अन्य परमेश्वर की शरण मे जाने के लिए कहा है।
कबीर साहेब अपनी वाणी में कहते हैं:-
एक राम दशरथ का बेटा, एक राम घट-घट में बैठा |
एक राम का सकल पसारा, एक राम दुनिया से न्यारा ||
अविनाशी परमात्मा कबीर साहेब है– प्रमाण साहित
जैसा हमारे सद्ग्रन्थों में प्रमाण है कि परमात्मा इस लोक में प्रकट होता है वो माँ के पेट से जन्म नहीं लेता यह लीला किसी और ने नहीं बल्कि कबीर साहेब ने की हैं। श्रीमद्भागवत गीता अध्याय 15 श्लोक 4 में कहा है कि तत्वज्ञान की प्राप्ति के पश्चात् परमेश्वर के उस परमपद की खोज करनी चाहिए जहाँ जाने के पश्चात् साधक लौटकर संसार में कभी नहीं आता अर्थात् उनका पुनर्जन्म नहीं होता। वह कबीर साहेब हैं-
“अमर करूँ सतलोक पठाऊँ, तातें बन्दीछोड़ कहाऊँ |”
पूर्ण परमात्मा कविर्देव हैं यह प्रमाण यजुर्वेद अध्याय 29 मंत्र 25 तथा सामवेद संख्या 1400 में भी है। जिस समय पूर्ण परमात्मा प्रकट होता है उस समय सर्व ऋषि व सन्तजन शास्त्र विधि त्याग कर मनमाना आचरण अर्थात् पूजा द्वारा सर्व भक्त समाज का गलत मार्गदर्शन कर रहे होते हैं तब अपने तत्त्वज्ञान अर्थात् स्वच्छ ज्ञान यानी तत्वज्ञान का संदेशवाहक बन कर स्वयं ही कविर्देव अर्थात् कबीर प्रभु ही आता है। इसके इलावा बाईबल में भी तीन प्रभुओं का प्रमाण है। कुरान शरीफ में सूरत अल फुरकान आयत 25:52-59 में कबीर साहेब को सर्व सृष्टि का रचनहार बताया है एवं उस तक पहुंचने का रास्ता किसी बाख़बर यानी तत्वदर्शी सन्त से पुछने के लिए कहा है।
अनेक सन्तों ने अपनी पवित्र वाणी में प्रमाणित किया है कि कबीर साहेब ही पूर्ण परमेश्वर हैं। नानक साहेब की वाणी में भी प्रमाण है कि पूर्ण परमात्मा कबीर साहेब हैं।
“साखी रुकनदीन काजी के साथ होई” में नानक जी ने पेज 183 पर कहा है-
नानक आखे रुकनदीन सच्चा सुणहू जवाब | खालक आदम सिरजिया आलम बड़ा कबीर ||
कायम दायम कुदरती सिर पीरां दे पीर |
सजदे करे खुदाई नू आलम बड़ा कबीर ||
इसके इलावा कबीर साहेब के परमात्मा होने के साक्षी आदरणीय धर्मदास जी, आदरणीय गरीबदास जी, आदरणीय घीसा दास जी, आदरणीय मलूकदास जी, आदरणीय दादूजी हैं और इन सन्तों की वाणियों में भी परमात्मा का ज़िक्र है।
आदरणीय धर्मदास जी ने अपनी वाणी में कबीर साहेब की महिमा गाई है-
आज मोहे दर्शन दियो जी कबीर
सत्यलोक से चल कर आए, काटन जम की जंजीर ||
इसके इलावा मलूकदास जी को भी कबीर साहेब जिंदा महात्मा के रूप में मिले थे और सतलोक दिखाया था। उन्होंने भी अपनी वाणी में लिखा है-
जिन मोकूं निज नाम दिया, सोई सतगुरु हमार |
दादू दूसरा कोई नहीं, कबीर सिरजनहार ||
आदरणीय गरीबदास जी को भी कबीर परमेश्वर जिंदा महात्मा के रूप में मिले थे जब गरीबदास जी 10 वर्ष के थे और उनको भी सतलोक लेकर गए थे, आदरणीय गरीबदास जी ने अपनी पवित्र वाणी में कहा है-
हम सुल्तानी नानक तारे, दादू कूं उपदेश दिया |
जात जुलाहा भेद नहीं पाया, काशी माहे कबीर हुआ ||
कबीर प्रकट दिवस पर विशेष
कबीर साहेब का प्रकट होना ही यह साबित करता है कि वो पूर्ण परमात्मा हैं। अगर कोई उस पूर्ण परमात्मा की शरण में जाना चाहता है जहाँ जाने के लिए गीता अध्याय 18 के श्लोक 66 में कहा है तो सर्वप्रथम गुरु धारण करना अनिवार्य है। गुरु कैसा हो? वह तत्वदर्शी सन्त होना चाहिए। गीता अध्याय 4 के श्लोक 34 में भी तत्वदर्शी सन्त की शरण में जाने के लिए ही कहा गया है। वर्तमान में पूरे विश्व में केवल संत रामपाल जी महाराज ही हैं जो सतभक्ति प्रदान करते हैं और सभी धर्म ग्रन्थों से प्रमाणित तत्वज्ञान देते हैं। वही बाख़बर हैं।