आज हम आपको एक ऐसी अद्भुत घटना के बारे में बताने जा रहे हैं जिसे देखने के लिए खगोलीय वैज्ञानिक आस लगाए रहते हैं। दुनिया के लिए कोरोना के बाद आज पृथ्वी के नजदीक से गुजरेगी बड़ी आपदा, जिसके सही सलामत निकल जाने की आशा है। हम जानते हैं कि चंद्रमा 3.85 लाख किमी की औसत दूरी पर पृथ्वी की परिक्रमा करता है। 2 कि.मी. से बड़े व्यास का 1998 OR2 उल्का पिंड (asteroid 1998 or2 india) पृथ्वी से चंद्रमा की तुलना में लगभग 16 गुना दूर होगा। आईए आज जानते हैं उल्का पिंड से जुड़ी सभी जानकारियाँ ।
3 बजे पृथ्वी के करीब होगा विशाल Asteroid 1998 OR2
29 अप्रैल 2020, बुधवार यानी आज भारतीय समय के अनुसार दोपहर 3 बजकर 26 मिनट पर एक विशालकाय Asteroid (1998 OR2) उल्का पिंड पृथ्वी के करीब आने वाला है। अभी तक प्राप्त जानकारी के अनुसार यह पृथ्वी से लगभग 40 लाख मील के फासले से गुजर जाएगा और हम सुरक्षित बच जाएंगे। हालांकि NASA इसकी गति पर पूरी नज़र बनाए हुए है। यदि यह अपनी कक्षा से थोड़ा भी हिलता है तो यह मुसीबत पैदा कर सकता है।
“कोई भी ऐसा बड़े आकार वाला उल्कापिंड नहीं है जिसके धरती से टकराने की संभावना हो सकती है। हमारी सूची में कोई नहीं है।“ पॉल चोडास, प्रबंधक, जेट प्रोपल्शन लेबोरेटरी़, ‘सेंटर फॉर नियर-
अर्थ ऑब्जेक्ट स्टडीज’, नासा, कैलिफोर्निया
- एक छोटा एस्टरॉयड
इस बड़े एस्टेरॉयड के अलावा पृथ्वी की तरफ एक छोटे आकार का अन्य एस्टेरॉयड भी आ रहा है। NASA Asteroid Watch ने यह अपडेट देते हुए बताया है कि Tiny asteroid 2020 HS7 आज से लगभग 36,400 किमी की दूरी पर है। यह दूरी उतनी है जितनी दूर आसमान में मानव निर्मित जियोसिंक्रनस सैटेलाइट की रहती हैं। 4-6 मीटर व्यास वाले एस्टेरॉयड काफी छोटे होते हैं और इनसे पृथ्वी के लिए कोई खतरा नहीं है। छोटे क्षुद्रग्रह सुरक्षित रूप से पृथ्वी के पास से गुजरते रहते हैं। अगर वे पृथ्वी के साथ टकराते भी हैं तो नष्ट हो जाते हैं।
- नहीं टकराएगा पृथ्वी से
asteroid 1998 or2 india: नासा के “सेंटर फॉर नियर अर्थ स्टडीज” का कहना है कि 29 अप्रैल, बुधवार को ईस्टर्न टाइम सुबह 5.56 पर यह एस्टेरॉयड पृथ्वी के निकट होकर गुज़र जाएगा। इसकी पृथ्वी से टकराने की कोई संभावना नहीं हैं। प्राप्त जानकारी के अनुसार यह पृथ्वी से लगभग 40 लाख कि.मी. के फासले से गुजर जाएगा और हम सुरक्षित बच जाएंगे। यह धरती से काफी दूर 18 लाख किलो मीटर दूर चला जाएगा। यदि यह अपनी कक्षा से थोड़ा भी हिलता है तो यह मुसीबत पैदा कर सकता है।
Asteroid 1998 OR2 लगभग 1.8 कि.मी. से 4.1 कि.मी. के अनुमानित व्यास का है । इस Asteroid की रफ्तार 19,000 किमी प्रति घंटा है और इसी रफ्तार के साथ यह आगे बढ़ रहा है। पहली बार 1998 में नासा के जेट प्रोपल्शन लेबोरेटरी में नियर-अर्थ एस्टेरॉइड ट्रैकिंग प्रोग्राम द्वारा उल्का पिंड 1998 OR2 की खोज की गई थी। पिछले दो दशकों से खगोलविद इसे ट्रैक कर रहे हैं ।
उल्का पिंड क्या हैं ?
बड़े आकार के अत्यधिक वेग से पृथ्वी के पास से गुजरते हुए या गिरते हुए पिंड दिखाई देते हैं, उन्हें उल्का या meteor कहते हैं। अनगिनत उल्का पिंड हर रात में देखे जा सकते है लेकिन पृथ्वी पर गिरने वाले बहुत कम होते हैं । कुछ उल्का पिंड लोहे, निकल, या मिश्र धातुओं के बने होते हैं जिन्हें धात्विक उल्का पिंड कहते हैं । कुछ पत्थर से दिखने वाले सिलिकेट खनिजों के बने होते हैं जिन्हे आश्मिक उल्का पिंड कहते हैं।
- वैज्ञानिक दृष्टिकोण से उल्का का महत्व
asteroid 1998 or2 india: आकाश में विचरते हुए विभिन्न ग्रहों की संरचना ज्ञान के प्रत्यक्ष स्रोत होने के कारण ये दुर्लभ उल्का पिंड वैज्ञानिक खोजों के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण हैं । Asteroid उल्कापिंड दुनियाभर के वैज्ञानिकों के लिए आकर्षण का केंद्र बना हुआ है और इस पर NASA समेत दुनिया की अतंरिक्ष एजेंसियों की नजर है।
- नासा ने जारी की फोटो
हाल ही में NASA ने एक तस्वीर भी जारी की थी जिसमें इस Asteroid की ईमेज नजर आ रही थी। वैज्ञानिकों का कहना है, कि इसके एक छोर पर पहाड़ियों और लकीरें जैसे विशेषताएं दिखती हैं।
”वैज्ञानिक रूप से उल्कापिंड 1998 OR2 (Asteroid 1998 OR2) के नजदीक छोटे आकार की पहाड़ियां और लकीरें काफी आर्कषक हैं. लेकिन फिलहाल दुनियाभर में कोविड-19 महामारी चल रही है, इस वजह से हमें तस्वीर देख कर ऐसा ही लग रहा है कि जैसे उसने मास्क पहन रखा है.”
डॉ. ऐनी विर्की, प्रमुख, प्लैनेटरी रडार, ऑब्जर्वेटरी, नासा
इस बार कोविड-19 से जुड़ी सावधानियों का ध्यान
कोरोनावायरस महामारी के चलते खगोल विज्ञानियों को रेडियो ऑब्जर्वेशन दूर से करने पड़ रहे हैं। हालांकि, प्लानेटरी रडार ऑब्जर्वेशन के लिए सीमित वैज्ञानिक व रडार ऑपरेटर आब्जर्वेटरी में साइट पर हैं। सभी वैज्ञानिक और कर्मचारी मास्क पहने और कोविड-19 से जुड़ी सावधानियों का ध्यान रखे हुए हैं।