October 9, 2025

Amalaki Ekadashi 2025: क्या आमलकी एकादशी का व्रत वास्तव में आत्मा को लाभ पहुंचाता है?

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अकेला भारत ही पूरे विश्व में एक ऐसा देश है जहां सैंकड़ों त्योहार मनाये जाते हैं और व्रत/ उपवास रखें जाते हैं और उन्हीं में से एक है आमलकी एकादशी (Amalaki Ekadashi 2025)। हिंदू पंचांग में फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को आमलकी एकादशी कहा गया है। आमलकी एकादशी का व्रत कब रखा जायेगा। इस व्रत को गीता अनुसार कैसे करना चाहिए। तो चलिए आमलकी व्रत के बारे में जानते हैं विस्तार से।

  • आमलकी एकादशी कब है? 
  • क्या होता है आमलकी एकादशी को? 
  • क्या है इतिहास
  • क्या कहते हैं सदग्रंथ? 
  • क्या है साधना की असली विधि? 
  • कौन है असली संत? 

इस साल आमलकी एकादशी या आंवला एकादशी (Amalaki Ekadashi 2025): आमलकी एकादशी हिंदू पंचांग के अनुसार, फाल्गुन माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी 9 मार्च 2025 को सुबह 07 बजकर 45 मिनट पर शुरू होगी और 10 मार्च 2025 को सुबह 07 बजकर 44 मिनट पर समाप्त होगी। ऐसे में उदया तिथि के हिसाब से आमलकी एकादशी का व्रत 10 मार्च को ही रखा जाएगा। वास्तव में तो ये व्रत पूरी तरह से मनमाना आचरण है जिससे किसी भी तरह का कोई लाभ नहीं है।

आमलकी एकादशी हिंदू पंचांग के अनुसार फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को मनाई जाती है। इसे विशेष रूप से विष्णु भक्तों द्वारा मनाया जाता है। इस दिन आंवले के वृक्ष की पूजा करने की परंपरा है, क्योंकि आंवला भगवान विष्णु का प्रिय माना जाता है। इस दिन विष्णु भक्त उपवास रखते हैं, भजन-कीर्तन करते हैं और कथा सुनते हैं। वास्तविकता में आंवले या किसी और की पूजा नहीं पूर्ण परमात्मा की ही पूजा करनी चाहिए।

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ऐसा माना जाता है कि प्राचीन काल में चित्रसेन नामक राजा था जो आमलकी एकादशी का व्रत करता था, लेकिन एक दिन शिकार खेलते हुए उस पर डाकुओं ने हमला कर दिया। ऐसा माना जाता है कि उन्हें देखकर राजा बेहोश हो गया और फिर उस में से किसी शक्ति ने निकलकर उन डाकुओं को मार दिया। वही जब राजा को होश आया तो उसी वक़्त भविष्यवाणी हुई कि आमलकी एकादशी का व्रत करने के कारण उसमे वो शक्ति प्रकट हुई और उसकी रक्षा हुई। उसी दिन से लोग इस व्रत में विश्वास करने लगे। वास्तव में हमारी रक्षा सिर्फ पूर्ण परमेश्वर ही कर सकता है

क्या कभी आपने सोचा है कि आखिर हमारे सदग्रंथ किसी भी व्रत/उपवास के बारे में क्या कहते हैं? आखिर किस सद्ग्रंथ में लिखा है कि एकादशी का व्रत करना चाहिए? यह एक ऐसा धार्मिक सवाल है जिसका उत्तर प्रत्येक हिंदू को पता होना ज़रूरी है। आपकी जानकारी के लिए बता दें कि गीता अध्याय 6 श्लोक 16 में किसी भी तरह के व्रत को करने से मना किया गया है। कहा गया है कि जो लोग व्रत करते हैं, उनका योग यानि भक्ति कर्म कभी सफल नहीं होता। निम्नलिखित श्लोक को देखिए:

नात्यश्नतस्तु योगोऽस्ति न चैकान्तमनश्नतः। 

न चाति स्वप्नशीलस्य जाग्रतो नैव चार्जुन||

हे अर्जुन! यह योग न तो बहुत अधिक खाने वाले का, न बिल्कुल न खाने वाले का, न बहुत शयन करने वाले का और न सदा जागने वाले का ही सिद्ध होता है।

गीता अध्याय 16 श्लोक 23 में देखिए;

यः शास्त्र-विधिम् उत्सृज्य वर्तते काम-करतः

न स सिद्धिं अवप्नोति न सुखं न परम गतिम् ||

यः – जो ; शास्त्र-विधिम् – शास्त्रीय आदेश ; उत्सृज्य – त्याग कर ; वर्तते – कार्य करते हैं ; काम-कारतः – कामना के आवेग में ; न – न तो ; सः – वे ; सिद्धिम् – सिद्धि ; अवाप्नोति – प्राप्त करते हैं ; न – न ही ; सुखम् – सुख ; न – न ही ; परम् – परम ; गतिम् – लक्ष्य

अर्थात् इसमें गीता ज्ञानदाता कहता है कि जो मनुष्य शास्त्रविधि को त्याग कर मनमाना आचरण करते हैं उनको न कोई लाभ होता है और न ही कोई सिद्धि अर्थात् गति (मोक्ष) की प्राप्ति होती है, इसीलिए हमें शास्त्रानुकूल भक्ति साधना करनी चाहिए।

कबीर साहेब जी कहते हैं कि जो लोग शास्त्र विरुद्ध भक्ति करते हैं और तीनों देवताओं की भक्ति करते हैं उनकी कभी मुक्ति नहीं हो सकती है।

कबीर साहेब अपनी वाणी में कहते हैं:-

कबीर, तीन देव की जो करते भक्ति, उनकी कभी न होवे मुक्ति।

गुण तीनों की भक्ति में, भूल पड़ो संसार।

कहे कबीर निज नाम बिना, कैसे उतरो पार।।

अर्थात प्राणी इन तीन गुणों रजोगुण – ब्रह्मा जी, सतोगुण – विष्णु जी, तमोगुण – शिव जी को ही सर्वश्रेष्ठ मानकर इनकी भक्ति करके दुखी हो रहे हैं। जबकि वास्तविक परमात्मा तो कोई और है और उसकी बताई भक्ति किये बिना हम कभी इस मायारुपी, भवसागर, संसार मे सुखी नहीं हो सकते। मनमाने आचरण से हमारी आत्मा का उद्धार नहीं हो सकता और ना ही हमारा मोक्ष हो सकता है। इसलिए व्रत नहीं रखने चाहिए बल्कि सतभक्ति करके गति को प्राप्त होना चाहिए।व्रत-उपवास और तीनों देवताओं की भक्ति करने का कोई आध्यात्मिक लाभ नहीं है, क्योंकि यह परमात्मा द्वारा निर्धारित वास्तविक भक्ति विधि नहीं है। लोग अज्ञानतावश व्रत रखते हैं और देवताओं की पूजा मनमाने ढंग से करते हैं लेकिन इससे न तो उनके पाप नष्ट होते हैं और न ही उन्हें मोक्ष मिलता है। सत्य भक्ति वही होती है, जो परमात्मा स्वयं अपने तत्वदर्शी संत के माध्यम से बताते हैं। वास्तविक मोक्ष मार्ग जानने के लिए संत रामपाल जी महाराज के सत्संग अवश्य सुनें।

हमारे सदग्रंथो में प्रमाण है पूर्ण परमात्मा सर्व कष्ट दूर कर सकता है, वो परमात्मा कबीर साहेब है। कबीर साहेब ही पूर्ण परमात्मा हैं, इसका प्रमाण हमारे सभी सदग्रंथो में हैं। कबीर साहेब ही भगवान है इसका प्रमाण पवित्र बाइबल, पवित्र कुरान शरीफ, पवित्र गीताजी, पवित्र श्री गुरु ग्रंथ साहिब में भी है। वो परमात्मा हमारे सर्व कष्ट हर सकता है, वो परमात्मा अपने साधक की आयु भी बढ़ा सकता है।

श्री नानक साहेब ने अपनी वाणी में स्पष्ट किया है वो पूर्ण परमात्मा कबीर साहेब जी हैं। कबीर परमेश्वर का नाम श्री गुरू ग्रंथ साहिब पृष्ठ नं. 721 राग तिलंग महला पहला में स्पष्ट लिखा है और प्रमाण के लिए प्रस्तुत है ‘‘राग तिलंग महला 1‘‘

यक अर्ज गुफतम् पेश तो दर कून करतार।

हक्का कबीर करीम तू बेऐब परवरदिगार ||

अनुवाद: हे शब्द स्वरूपी राम अर्थात् शब्द से सर्व सृष्टि रचनहार दयालु ‘‘सतकबीर‘‘ आप निर्विकार परमात्मा हैं। आप के समक्ष एक हृदय से विनती है कि यह पूरी तरह जान लिया है। हे महबूब! यह संसार रूपी ठिकाना नाशवान है। हे दाता! इस जीव के मरने पर अजराईल नामक यम दूत बेरहमी से पकड़ कर ले जाता है कोई साथी जन जैसे बेटा, पिता, भाईचारा साथ नहीं देता। अन्त में सभी उपाय और फर्ज कोई क्रिया काम नहीं आता। प्रतिदिन गश्त की तरह न रूकने वाली चलती हुई वायु की तरह बुरे विचार करते रहते हैं। शुभ कर्म करने का मुझे कोई जरीया या साधन नहीं मिला। ऐसे बुरे समय कलियुग में हमारे जैसे नादान लापरवाह, सत मार्ग का ज्ञान न होने से ज्ञान नेत्र हीन था तथा लोकवेद के आधार से अनाप-सनाप ज्ञान कहता रहता था। नानक जी कहते हैं कि मैं आपके सेवकों के चरणों की धूर डूबता हुआ बन्दा नानक पार हो गया।

सरलार्थ:– (कुन करतार) हे शब्द स्वरूपी कर्ता अर्थात् शब्द से सर्व सृष्टि के रचनहार (गोश) निर्गुणी संत रूप में आए (करीम) दयालु (हक्का कबीर) सत कबीर (तू) आप (बेएब परवरदिगार) निर्विकार परमेश्वर हैं।

व्रत करने की हमारे सदग्रंथों में (गीता जी में) मनाही है तो अब आप सोच रहे होंगे फिर असली साधना करने की सही विधि क्या है जिसे करने से सब सुखों की प्राप्ति हो सकती है? 

संतमत के अनुसार, किसी भी व्रत या उपवास को करने का मुख्य उद्देश्य आत्मा की शुद्धि और ईश्वर भक्ति है। संत रामपाल जी महाराज के अनुसार, केवल बाह्य आडंबर करने से मोक्ष नहीं मिलता, बल्कि सही सतगुरु द्वारा दिए गए सत्य भक्ति मार्ग को अपनाने से ही जीव को परम शांति और मोक्ष की प्राप्ति होती है। अतः केवल व्रत रखने से अधिक महत्वपूर्ण है सच्ची भक्ति करना और सद्ग्रंथों में बताए मार्ग पर चलना।

गीता अध्याय 15 श्लोक 1 में तत्वदर्शी सन्त की पहचान बताई गई है जिनके द्वारा बताई गई भक्ति करने से मनुष्य का कल्याण हो सकता है।

गीता अनुसार तत्वदर्शी सन्त वह होता है जो संसार रुपी वृक्ष के सर्व भागों को सही-सही बताता है। सच्चे गुरु के बारे में हमारे सदग्रंथों में भी प्रमाण है कि उनकी बताई भक्ति करने से सर्व कष्ट दूर हो सकते हैं। सच्चा संत जो भक्ति बताता है उससे सुख, शांति और मोक्ष की प्राप्ति होती है। वह सच्चा सतगुरु पूर्ण परमात्मा की भक्ति करता और करवाता है। इस समय परमात्मा कबीर साहेब जी स्वयं तत्वदर्शी संत रूप में भूमिका कर रहे हैं और संत रामपाल जी महाराज जी के रूप में इस पृथ्वी पर उपस्थित हैं।

तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज जी द्वारा दी गई सत्य भक्ति विधि, जो शास्त्रों के अनुरूप है, वही मानव जीवन का वास्तविक उद्देश्य पूरा कर सकती है। जो भी साधक इस भक्ति को अपनाते हैं, वे न केवल सांसारिक कष्टों से मुक्त होते हैं बल्कि उन्हें परमानंद की प्राप्ति भी होती है। इसलिए, शास्त्र प्रमाणित भक्ति विधि को अपनाकर जीवन को सफल बनाएं और परमात्मा की प्राप्ति करें।

शास्त्र आधारित ज्ञान प्राप्त करने के लिए आप जगतगुरु तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज जी के मंगल प्रवचन सतलोक आश्रम Youtube Channel पर सुनें।

 1. आमलकी एकादशी क्यों मनाई जाती है?
यह फाल्गुन शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को मनाई जाती है, जिसमें आंवले के पेड़ की पूजा और व्रत रखा जाता है। इसे विष्णु भक्ति से जोड़कर देखा जाता है। ये पूरी तरह मनमाना आचरण है।

2. क्या आंवले की पूजा करने से कोई लाभ होगा?

नहीं, संत रामपाल जी महाराज के अनुसार, आंवले के पेड़ की पूजा करना शास्त्र-सम्मत भक्ति नहीं है। यह केवल मनुष्य की बनाई हुई परंपरा है, जिसका आत्मा को कोई वास्तविक लाभ नहीं होता। परमात्मा ने कभी पेड़ों, पत्थरों या किसी अन्य वस्तु की पूजा करने का आदेश नहीं दिया है।

3. क्या आमलकी एकादशी का व्रत रखने से मोक्ष मिलेगा?
नहीं। 

संत रामपाल जी महाराज के अनुसार, व्रत-उपवास आत्मा की मुक्ति का साधन नहीं है। मोक्ष केवल शास्त्र आधारित भक्ति करने से संभव है।

4. क्या व्रत रखने से पाप नष्ट होते हैं?
नहीं। 

व्रत रखने से न तो पाप नष्ट होते हैं और न ही कोई आध्यात्मिक लाभ होता है। असली भक्ति वही है, जो तत्वदर्शी संत द्वारा दी जाती है।

5. सही साधना क्या है?
सही साधना वह है, जो पूर्ण परमात्मा द्वारा प्रमाणित हो। संत रामपाल जी महाराज शास्त्रों अनुसार नाम दीक्षा देकर सही भक्ति विधि बता रहे हैं।

6. असली मोक्ष मार्ग कैसे मिलेगा?
तत्वदर्शी संत से नाम दीक्षा लेकर और सत भक्ति करने से ही मोक्ष प्राप्त होगा। व्रत-उपवास आत्मा को भटकाने वाले कर्म हैं। संत रामपाल जी महाराज से नाम दीक्षा लें और असली भक्ति विधि को अपनाएं!
 

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