Afghanistan Taliban Conflict: अफगानिस्तान की सेना के साथ मिलकर अमेरिकी वायु सेना ने तालिबान पर हमला तेज कर दिया है जिसमें तालिबान के कई आतंकी मारे गए हैं। अमेरिका के इन हमलों को लेकर तालिबान ने धमकी दी है कि अमेरिका को इसके अंजाम भुगतने होंगे। कुल मिलाकर अफगानिस्तान के हालात दिनोंदिन बद से बदतर होते चले जा रहे हैं इस गृह युद्ध और तालिबान के उग्र रवैये को लेकर अफगानिस्तान के सभी पड़ोसी देश चिंतित हैं। तालिबान ने पिछले 10 माह के दौरान अफगानिस्तान के काफी बड़े इलाके को अपने कब्जे में ले लिया है। अमेरिकी रक्षा मंत्रालय (पेंटागन) ने एक संवाददाता सम्मेलन में जनरल मार्क मिले ने कहा कि तालिबान ने अफगानिस्तान के 419 जिला केंद्रों में से अब तक 212 जिलों पर नियंत्रण कर लिया है। जबकि तालिबान ने दावा किया है कि अफगानिस्तान के 85% भाग पर उसका कब्ज़ा हो चुका है।
अमेरिका और नाटो सैनिकों ने मई की शुरुआत में अफगानिस्तान से निकलना शुरू कर दिया था। विदेशी सैनिक करीब 20 साल बाद यानी 11 सितंबर 2021 तक अफगानिस्तान से पूरी तरह बाहर चले जाएंगे। राष्ट्रपति जो बाइडेन के मुताबिक 2,500 अमेरिकी और 7,500 नाटो सैनिक अफगानिस्तान में बचे हुए थे, वे अब वहां से निकल रहे हैं।
अफगानिस्तान और तालिबान युद्ध (Afghanistan Taliban Conflict) मुख्य बिंदु
- तालिबान और अफगानिस्तान (Afghanistan Taliban Conflict) की सरकार में चल रहा है भीषण गृह युद्ध, अफगानिस्तान से जारी है अमेरिकी सेना की वापसी
- तालिबान हर रोज़ अफगानिस्तान के नए जिलों पर अपना कब्ज़ा कर रहा है, तालिबान का दावा अफगानिस्तान के 85 फ़ीसदी बॉर्डर पर उसका कब्ज़ा हो चुका है
- तालिबान कंधार और काबुल पर भी हमला करने की कोशिश कर रहा है, तालिबान की यह चाल काबुल और कंधार की सप्लाई लाइन पूरी तरह से काटकर सरकार को घुटनों पर लाने की है
- अफगानी सेना के समर्थन में अमेरिकी वायु सेना ने दोबारा से की एंट्री, अमेरिकी वायुसेना के लड़ाकू विमानों और ड्रोन ने तालिबान के कई ठिकानों पर हमले किए
- अमेरिका को आतंकी संगठन तालिबान की धमकी, बोला- हवाई हमले के परिणाम भुगतेगा अमेरिका
- संयुक्त राष्ट्र ने एक नई रिपोर्ट में चेतावनी दी है कि अफगानिस्तान में कई जगहों पर दाएश और अल-कायदा जैसे आतंकी समूहों से खतरा बढ़ रहा है।
- अफगानिस्तान के कंधार में तालिबान के कब्जे वाले इलाकों में मारे गए 33 लोगों में धार्मिक विद्वान, आदिवासी बुजुर्ग शामिल
- अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ गनी ने कहा कि यह युद्ध अफगानिस्तान की सेना जीतेगी। अफगानिस्तान युद्ध से, अफगानिस्तान के सभी पड़ोसी देश चिंतित
- ज़्यादातर देशों ने अपने नागरिकों को अफगानिस्तान से बाहर बुला लिया है और बहुत से देशों ने अपने राजदूत भवन भी बंद कर दिए हैं
- पाकिस्तान के ऊपर लगे तालिबान को मदद करने के आरोप
- हिंदुस्तान में मौजूद है “अल्लाह हू कबीर” के भेजे हुए “अंतिम पैगंबर”
- अंतिम पैगंबर “बाखबर संत रामपाल जी महाराज” कर सकते हैं युद्ध को पलभर में शांत। अफगानी सरकार को करनी होगी उनसे प्रार्थना
अफगानिस्तान और तालिबान युद्ध इतिहास (History of Afghanistan Taliban Conflict)
1992-1996 तक मुजाहिदीन सत्ता में रहे लेकिन उनके बीच आपसी संघर्ष शुरू हो गया। 1994 में दक्षिण अफ़ग़ानिस्तान में तालेबान आन्दोलन आरंभ हुआ और 1996 में तालिबान ने अपना सैन्य अधिकार लगभग सभी (95%) इलाकों पर कायम कर लिया। 2001 में अमेरिकी हस्तक्षेप के बाद तालिबान भूमिगत हो गया।
तालिबान का शाब्दिक अर्थ और उदय
तालिबान पश्तो भाषा का शब्द है, जिसका अर्थ होता है छात्र। ऐसे छात्र, जो इस्लामिक कट्टरपंथ की विचारधारा पर यकीन करते हैं। तालिबान इस्लामिक कट्टरपंथी राजनीतिक आंदोलन हैं। 1996 से लेकर 2001 तक अफगानिस्तान में तालिबानी शासन के दौरान मुल्ला उमर देश का सर्वोच्च धार्मिक नेता था। तालेबान का उदय 90 के दशक में उत्तरी पाकिस्तान में हुआ जब अफ़ग़ानिस्तान में सोवियत संघ (USSR) की सेना वापस जा रही थी।
- पशतूनों के नेतृत्व में उभरे तालेबान की स्थापना दक्षिणी अफ़ग़ानिस्तान में 1994 में हुई। माना जाता है कि तालिबान पाकिस्तान और अफगानिस्तान के मदरसों और धार्मिक आयोजनों से उभरा जिसमें ज़्यादातर
- पैसा सऊदी अरब से आता था। 80 के दशक के अंत में सोवियत संघ USSR के अफ़ग़ानिस्तान से जाने के बाद वहाँ कई गुटों में आपसी संघर्ष शुरु हो गया था और मुजाहिद्दीनों से भी लोग परेशान थे।
- ऐसे हालात में जब तालेबान का उदय हुआ था तो अफ़ग़ान लोगों ने उसका स्वागत किया था। शुरु शुरु में तालेबान की लोकप्रियता इसलिए थी क्योंकि उन्होंने भ्रष्टाचार पर लगाम कसी, अर्थव्यवस्था पर अंकुश लगाया और अपने नियंत्रण में आने वाले इलाक़ों को सुरक्षित बनाया ताकि लोग व्यवसाय कर सकें।
- दक्षिण-पश्चिम अफ़ग़ानिस्तान से तालेबान ने जल्द ही अपना प्रभाव बढ़ाया। सितंबर 1995 में तालेबान ने ईरान सीमा से लगे हेरात प्रांत पर कब्ज़ा कर लिया।
- इसके एक साल बाद तालेबान ने बुरहानुद्दीन रब्बानी सरकार को सत्ता से हटाकर अफ़ग़ानिस्तान की राजधानी काबुल पर क़ब्ज़ा किया और सत्ता, मुल्ला उमर के हाथों में आ गई। 1998 आते-आते लगभग 90 फ़ीसदी अफ़ग़ानिस्तान पर तालेबान का नियंत्रण हो गया था।
जब तालिबान पर लगने लगे मानवाधिकार उल्लंघन और सांस्कृतिक दुर्व्यवहार के आरोप
- 2001 में अंतरराष्ट्रीय आलोचना के बावजूद तालेबान ने विश्व प्रसिद्ध बामियान बुद्ध प्रतिमाओं को नष्ट कर दिया था।
- पाक-अफ़ग़ान सीमा पर पशतून इलाक़े में तालेबान का कहना था कि वो वहाँ शांति और सुरक्षा का माहौल लाएगा और सत्ता में आने के बाद शरिया लागू करेगा।
- पाकिस्तान और अफ़ग़ानिस्तान दोनों जगह तालेबान ने या तो इस्लामिक क़ानून के तहत सज़ा लागू करवाई या ख़ुद ही लागू की- जैसे हत्या के दोषियों को सार्वजनिक फाँसी, चोरी के दोषियों के हाथ-पैर काटना इत्यादि।
- पुरुषों को दाढ़ी रखने के लिए कहा गया जबकि स्त्रियों को बुर्क़ा पहनने के लिए कहा गया।
- तालेबान ने टीवी, सिनेमा और संगीत के प्रति भी कड़ा रवैया अपनाया और 10 वर्ष से ज़्यादा उम्र की लड़कियों के स्कूल जाने पर भी रोक लगाई।
- दुनिया का ध्यान तालेबान की ओर तब गया जब न्यूयॉर्क में 2001 में हमले किए गए। अफ़ग़ानिस्तान ने तालेबान पर आरोप लगाया गया कि उसने ओसामा बिन लादेन और अल क़ायदा को पनाह दी है जिसे न्यूयॉर्क हमलों का दोषी बताया जा रहा था।
Afghanistan Taliban Conflict: अमेरिका ने अफगानिस्तान पर तालेबान को निशाना बनाकर हमला क्यों किया था?
7 अक्तूबर 2001 में अमरीका के नेतृत्व वाले गठबंधन ने अफ़ग़ानिस्तान पर हमला कर दिया। इसका मुख्य उद्देश्य 2001 में अमेरिका के वर्ल्ड ट्रेड सेंटर में हुए हमले के मुख्य आरोपी ओसामा बिन लादेन और उसके संगठन अल कायदा को समाप्त करना था। 9/11 हमले के कुछ समय बाद ही अमरीका के नेतृत्व में गठबंधन सेना ने तालेबान को अफ़ग़ानिस्तान में सत्ता से बेदख़ल कर दिया हालांकि तालेबान के नेता मुल्ला उमर और अल क़ायदा के, बिन लादेन को नहीं पकड़ा जा सका।
Also Read: Vienna Terror Attack: ऑस्ट्रिया की राजधानी वियना में आतंकी हमला
90 के दशक से लेकर 2001 तक जब तालेबान अफ़ग़ानिस्तान में सत्ता में था तो केवल तीन देशों ने उसे मान्यता दी थी-पाकिस्तान, संयुक्त अरब अमीरात और सऊदी अरब। तालेबान के साथ कूटनीतिक संबंध तोड़ने वाला भी पाकिस्तान आख़िरी देश था।2001 से अमेरिकी हमले के बाद अमेरिकी और नाटो सेनाएं 2021 तक अफगानिस्तान में रहीं। अमेरिकी सेना की वापसी होते ही एक बार फिर से तालिबान ने अफगानी सत्ता में काबिज होने के लिए अपने हमले तेज़ कर दिए।
अफगानिस्तान में अमेरिका और रूस का शुरुआत से ही हस्तक्षेप क्यों रहा है?
द्वितीय विश्व युद्ध के बाद मुख्यतः दो महाशक्ति उभर कर आईं जिसमें एक था सोवियत संघ और दूसरा था अमेरिका जिसमें दोनों देश यह चाहते थे कि दुनिया उनके हिसाब से चले अमेरिका अपने हिसाब से चाहता था और रूस अपने हिसाब से। अफगानिस्तान ही नहीं बहुत से ऐसे राष्ट्र हैं , जिन राष्ट्रों में हस्तक्षेप करके अमेरिका और रूस ने बड़ा फेरबदल किया था और आज भी हम देखते हैं यदि कोई देश रूस से ज़्यादा संबंध रखता है तो उसे अमेरिकी प्रतिबंधों का सामना करना पड़ता है इस कोल्ड वार के चलते ही अमेरिका ने रूस (USSR यूएसएसआर ) के 7 टुकड़े करवा दिए थे जिसे अमेरिका की एक बड़ी जीत माना जाता है और यह एक वर्चस्व की लड़ाई थी जो सोवियत संघ (वर्तमान में रूस) के विघटन के बाद समाप्त हो गई। यूएसएसआर के विभाजन का एक मुख्य कारण जनता में अशांति, और उपयोगी संसाधनों की कमी थी।
वर्तमान में अफगानिस्तान के अंदर मौजूद खज़ाने पर सबकी नज़र है
(Afghanistan Taliban Conflict): अफगानिस्तान के अंदर जो खनिज पदार्थ पाए जाते हैं वे बहुत ही उपयोगी हैं। आगे दुनिया बिजली से संबंधित उपकरणों पर चलेगी और बिजली के लिए बैटरी की जरूरत पड़ती है और बैटरी के लिए धातु और अन्य चीजें प्रयोग होती हैं। वह अफगानिस्तान में भरी पड़ी हैं इसलिए सभी बड़े देशों की नज़र अफगानिस्तान के खनिजों पर है और अपने अपने हित देख रहे हैं।
Afghanistan Taliban Conflict: कट्टरपंथी इस्लामिक देश और मानसिकता
जिनको अल्लाह पाना था वो मात्र एक राजनैतिक संगठन और बाद में एक आतंकवादी संगठन बनकर रह गए हैं क्योंकि रहमत वाले अल्लाह कबीर के आदेशों और सतज्ञान को ना बताकर काज़ी और मुल्लाओं ने शैतान के आदेशों का पालन करवाया जिससे वे आतंकी मानसिकता वाले बन रहे हैं।
समझें कौन और कैसा है अल्लाह, कैसे कर सकते हैं उस रहमान अल्लाह की इबादत?
पवित्र कुरान शरीफ सूरत फुरकान 25 आयत नंबर 52,58,59 में यह स्पष्ट प्रमाण है कि 6 दिन में सृष्टि रचकर सातवें दिन तख्त पर बैठने वाला अल्लाह रहमान (दयालु) साकार है (बेचून नहीं है) और उसका नाम कबीर है और उसकी इबादत किसी बाखबर अर्थात इल्मवाले (तत्वदर्शी संत) से पूछकर ही करनी चाहिए क्योंकि उसकी सही जानकारी और इबादत का सही तरीका वह ही बता सकता है।
उस कबीर अल्लाह को ही विभिन्न नामों से जैसे कबीर, कबीरा, कबीरन, अल कबीर, हक्का कबीर, अल्लाह हू अकबर, अल्लाह हू कबीर, कबीर देव, ऑलमाइटी कबीर, अल खिद्र, जिंदा बाबा, पीर बाबा, तत्वदर्शी संत, कविर, सतगुरु, कबीर साहेब, संत कबीर, कबीर दास, कबीर अमित औजा, इत्यादि से जाना जाता है।
अल खिद्र एक बार ज़रूर मिलते हैं
अरब देशों में यह मान्यता है “अल खिद्र” अल्लाह की राह में जाने वालों को एक बार जरूर मिलते हैं और अल्लाह की सही जानकारी बताते हैं उनको उनके “रुई जैसे मुलायम हाथों” से पहचाना जा सकता है और “अल खिद्र” अमर हैं। वास्तव में वो कबीर साहेब जी ही हैं और आज भी धरती पर मौजूद हैं।
कौन है वर्तमान में मौजूद अंतिम पैगंबर जिसकी तालीम से होगी विश्व में शांति?
वह अंतिम अल्लाह कबीर का रसूल, फरिश्ता बाखबर कोई और नहीं हिंदुस्तान में मौजूद तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज जी ही हैं उनसे नाम दीक्षा लेकर ‘बड़े और रहमान अल्लाह हू कबीर’ की सच्ची इबादत करें, वर्तमान जीवन भी सुखी बनाएं और अविनाशी जन्नत को प्राप्त करें। उनसे जुड़ने के लिए आप रोज़ शाम को साधना चैनल पर 7:30 से 8:30 तक उनका सत्संग सुनें और उनके द्वारा लिखी बहु चर्चित पुस्तक “ज्ञान गंगा” पढ़ें।