कबीर, मानुष जन्म दुर्लभ है, मिले न बारम्बार।
तरूवर से पत्ता टूट गिरे, बहुर न लगता डार।।
हमारे शास्त्रों में मनुष्य जीवन को अति दुर्लभ बताया है। मनुष्य जीवन पाकर मानव भक्ति नहीं करता वह जीवन को बर्बाद करता है।
वर्तमान में हिन्दू धर्म में जितनी भी भक्ति पूजा साधना चल रही है वास्तविकता में वह शास्त्र विपरीत भक्ति है जिससे लोगों को भक्ति करते हुए भी कोई आध्यात्मिक लाभ नहीं हो रहा।
ऐसी ही एक साधना सावन के महीने में कांवड़ यात्रा होती है। कांवड़ यात्रा करने का किसी भी शास्त्र में प्रभु का निर्देश नहीं है। कांवड़ यात्री सैकड़ों हजारों किलोमीटर पैदल चलकर गंगा जल लाते हैं। उनके पैरों तले करोड़ों सूक्ष्म जीव मरते हैं। यह काल का एक सुनियोजित जाल है। बरसात के दिनों में अनेक सूक्ष्मजीव बिलों से बाहर निकल धरती पर आ जाते हैं ऐसे में कांवड़ यात्री पुण्य कमाने के उद्देश्य से पैदल चलता है तो उनके पैरों के नीचे करोड़ों सूक्ष्मजीव मर जाते हैं जिसका पाप उनके सिर पर रखा जाता है। कबीर साहिब ने कहा है:- करत है पुण्य, होत है पापम् ।
वह पुण्य कमाने शिवजी को प्रसन्न करने चला था और करोड़ों जीव हत्या का पाप अपने सिर ले आया।
“कबीर, पापी मन फूला फिरे मैं करता हूं रे धर्म।
कोटि पापकर्म सिर ले चला, चेत न चिन्हा भ्रम।।”
गीता वेद और पुराणों में कांवड़ लाना और गंगा का जल शिवलिंग पर चढ़ाने का कहीं कोई प्रमाण नहीं होने से यह मनमाना आचरण सिद्ध हुआ। शिवजी भी शास्त्रविरूद्ध साधना कांवड़ यात्रा से प्रसन्न नहीं हैं। हर साल कांवड़ यात्री दुर्घटना, आपदा आदि के शिकार हो जाते हैं।
शिवजी को प्रसन्न करने की भक्ति अर्थात वो यथार्थ मंत्र जिसके जाप से शिव जी प्रसन्न होकर साधक देते हैं, वह भक्ति मंत्र तत्वदर्शी सन्त बताते हैं उनसे जाकर सुनो (गीता अ4, श्लोक34)
वर्तमान में सतगुरु रामपाल जी महाराज सभी धर्मशास्त्रों गीता वेद एवं संतों की वाणियों से प्रमाणित भक्ति विधि बता रहे हैं जिससे साधक को अद्भुत भौतिक और आध्यात्मिक लाभ हो रहे हैं।
अत: प्रिय मानव समाज से निवेदन है शास्त्रविरूद्ध साधना त्यागें और शास्त्र अनुकूल साधना ग्रहण करें। इससे मानव जीवन का कल्याण सुनिश्चित होगा।
देखिए शास्त्र प्रमाणित सत्संग-
“साधना चैनल” प्रतिदिन रात्रि 7:30 से 8:30″