September 6, 2025

श्री नानक देवजी के गुरू कौन थे?

Published on

spot_img

हमारे इस ब्लॉग के माध्यम से जानिए नानक देवजी के गुरू कौन थे? विस्तार से

श्री नानकदेव जी (गुरू ग्रंथ साहिब 721)

परमेश्वर दया के सागर हैं। वे सब जीवों के साथ सदा सूक्ष्म रूप में साथ रहते हैं। वे जीवों को काल के जाल से बाहर निकालने के लिए अच्छी आत्माओं को मिलते हैं। तथा उन्हें अपने ज्ञान से परिचित कराकर उनको अपना संदेशवाहक बनाते हैं ताकि आम आदमी को भी सच्चाई पता चल सके और वह ब्रह्म की त्रिगुण माया को लांघकर सुख के सागर सतलोक को जा सके। इसी क्रम में परमेश्वर, नानक जी को मिले।

परमात्मा की नानकजी से भेंट

बाबा नानक देव जी स्नान करने नित्य बेई नदी पर जाया करते थे। एक दिन बेई नदी पर श्री नानक जी को एक जिंदा फकीर के रुप में कबीर परमेश्वर मिले और कहा कि आप बहुत अच्छे भक्त नजर आते हो कृपया मुझे भी भक्ति मार्ग बताने की कृपा करें बहुत भटक लिया हूं। मेरे संशय समाप्त नहीं होते। नानक जी ने पुछा “कहां से आए हो, नाम क्या है। कोई गुरु धारण किया है”?


जिंदा फकीर रुप में कबीर परमेश्वर ने कहा की मेरा नाम कबीर है मैं बनारस (काशी) से आया हूं। जुलाहे का काम करता हूं। नानक जी ने जिज्ञासा देखी तो ब्रह्मा, विष्णु, महेश को अजर-अमर बताया। श्री नानक जी ने गुरु धारण कर रखा था और गीता जी का नित्य पाठ भी करते थे। तथा “ओम” नाम के जाप को सर्वश्रेष्ठ बताते हुए कहा की गीता जी के अनुसार इसी निराकार ब्रह्म के “ओम” नाम से स्वर्ग प्राप्ति होगी तथा विष्णु जी पूर्ण परमात्मा हैं। मोक्ष प्राप्ति का एक मात्र साधारण मार्ग यही है। जिंदा महात्मा ने कहा की हे नानक जी आप मेरे संशय समाप्त कर दो तो मैं आपको ही अपना गुरु बना लूंं। नानक जी ने कहा पूछो! जिंदा महात्मा रुप में कबीर जी ने कहा की आप कहते हो की ब्रह्मा, विष्णु, महेश तीन लोक के स्वामी हैं और त्रिगुण रूपी माया सृष्टि, स्थति और संहार करती है। और इन तीनों का कभी जन्म-मरण नहीं होता। लेकिन श्री देवी महापुराण में प्रमाण है की ये तीनों देवता नाशवान हैं तथा इनका जन्म व मृत्यु होती है। गीता जी अध्याय 2 श्लोक 12, अध्याय 4 श्लोक 5 में भी गीता ज्ञान दाता (काल) कहता है की अर्जुन तेरे और मेरे कई जन्म हो चुके हैं, तू नहीं जानता मैं जानता हूं।

Also Read | Guru Nanak Jayanti [Hindi]: गुरु नानक जयंती पर जानिए नानक देव जी को ज़िंदा रूप में कौन मिले थे?

इससे तो सिद्ध हुआ की गीता ज्ञान दाता भी नाशवान है, अविनाशी नहीं है। गीता अध्याय 7 श्लोक कहा है की जो त्रिगुण माया (ब्रह्मा, विष्णु, महेश) के द्वारा मिलने वाले क्षणिक लाभ को ही कल्याण मानते हैं और जिनकी बुद्धी इन तीनों देवताओं पर ही सीमित रहती है वह राक्षस स्वभाव को धारण किये हुए मनुष्यों में नीच, दुष्कर्म करने वाले, मूर्ख मुझे भी नहीं भजते। इससे सिद्ध हुआ की विष्णु जी पूजा के योग्य नहीं है। क्योकि गीता ज्ञान दाता ने गीता अध्याय 7 श्लोक 18 में कहा है की मेरी पूजा अतिघटिया (अनुत्तमाम) है। इसलिए गीता अध्याय 15 श्लोक 4 अध्याय 18 श्लोक 62 में कहा हैं की उस परमेश्वर की शरण में जा जिसकी कृपा से तू परम शांति तथा सनातम परम धाम सतलोक चला जाएगा। जहाँ जाने के पश्चात, जन्म मरण के चक्र से पूर्णत: छूट जायेगा। गीता ज्ञान दाता ने कहा की उस पूर्ण परमात्मा के विषय में, मैं नही जानता तथा किसी तत्वदर्शी संत की तलाश करो और उससे पूछो वह बतायेगा। फिर कबीर जी ने नानक जी से पूछा की क्या वह तत्वदर्शी संत आपको मिला जो पूर्ण परमात्मा की भक्ति विधि बतायेगा, जिस विधि से जीव सतलोक चला जाता है और पूर्ण मोक्ष हो जाता है ?
श्री नानक जी ने कहा नहीं मिला! कबीर जी ने कहा की वह सतभक्ति विधि बताने वाला संत मैं ही हूँ। बनारस काशी में धाणक जुलाहे का कार्य करता हूं।

Guru Nanak Dev Ji

कौन से वह तीन मंत्र हैं जिससे वह अविनाशी स्थान (सतलोक) मिलेगा जहां कभी कष्ट नहीं होता ?

फिर कबीर जी ने श्री नानक जी से कहा यह बताइये की जब यह स्वर्ग तथा महास्वर्ग और ब्रह्म लोक भी नहीं रहेगा तो साधक का क्या होगा। नानक जी ने असंतुष्टी पूर्ण उत्तर दिया। कबीरजी ने कहा की अध्याय 17 श्लोक 23 मे स्पष्ट किया है की ओम तत् सत्” यही वो मंत्र है जिससे पूर्ण मोक्ष हो सकता है। तथा यह तीनों मंत्र भी सांकेतिक हैं जो तत्वदर्शी संत ही बता सकता हैै।

श्री नानक जी कबीर जी के गुरु थे- यह भ्रम सिक्ख समाज को कैसे हुआ?

जब श्री नानक जी की अरुचि देखकर जिंदा रुप मे आए कबीर परमेश्वर जी चले गए तो वहां उपस्थित व्यक्तियों ने नानक जी से पूछा कि यह भक्त कौन था जो आपको गुरुदेव कह रहा था? नानक जी ने कहा की यह काशी में रहता है, नीच जाति का धाणक जुलाहा था। बेतुकी बातें कर रहा था, तब मैंने अपना ज्ञान बताना शुरु किया तब हार मानकर चला गया। (इस वार्ता से सर्व ने श्री नानक जी को परमेश्वर कबीर साहिब जी को गुरु मान लिया)

श्री नानक जी ने स्वीकार किया की मेरा ज्ञान पूर्ण नहीं।

श्री नानक जी यह तो जान गये थे की उनका ज्ञान पूर्ण नहीं। इसलिए हृदय से प्रतिदिन प्रार्थना करते थे कि वही संत एक बार फिर मिल जाये। मैं उससे कोई वाद विवाद नही करुंगा। कुछ समय उपरांत कबीर परमेश्वर उसी बेई नदी पर नानक जी को मिले। वह सिर्फ श्री नानक जी को ही दिखाई दे रहे थे अन्य को नहीं। कबीर परमात्मा ने फिर नानक जी को सतलोक के सुखों से अवगत कराकर कहा कि मैं जो भक्ति बताऊं वह करो उसी से पूर्ण मोक्ष (सतलोक में स्थान) मिलेगा।

लीला देख श्री नानक जी ने हार मानी और कबीर परमात्मा की जीत हुई।

श्री नानक जी ने कहा की मैं आपकी एक परीक्षा लेना चाहता हुँ। मैं दरिया में छिपुंगा और आप मुझे ढूंढना। यदि आप मुझे ढूंढ लेंगे तो मैं आपकी बात पर विश्वास कर लूंगा, यह कहकर श्री गुरु नानक जी ने बेई नदी में डुबकी लगाई और मछली रुप धारण कर लिया। जिंदा फकीर (कबीर पूर्ण परमेश्वर) ने उस मछली को पकड़ कर जिधर से पानी आ रहा था, उस ओर लगभग तीन किलोमीटर आगे ले जाकर छोड़ दिया तथा श्री नानक जी बना दिया। श्री नानक जी ने कहा की मैं तो मछली बन गया था आप ने कैसे ढूंढ लिया। हे परमेश्वर आप तो दरिया के अंदर सूक्ष्म से भी सूक्ष्म वस्तु को जानने वाले हो। मैं आपके इस पराक्रम के समक्ष नतमस्तक हुँ।

श्री नानक जी ने सतलोक में जिस वाहेगुरु को देखा वह कौन था ?

नानक जी ने कहा की मैं सतलोक को अपनी आंखो से देखूं तो मान लूंगा। तब कबीर परमेश्वर जी श्री नानक जी की आत्मा को सतलोक लेकर गए। सच्चखण्ड में श्री नानक जी ने देखा की एक असीम तेजोमय मानव सदृश शरीर युक्त प्रभु तख्त पर बैठे हैं। अपने ही दूसरे स्वरुप पर कबीर परमात्मा जिंदा महात्मा के रुप में चंवर करने लगे। तब श्री नानक जी ने सोचा की अकाल मूरत तो यह रब है जो गद्दी पर बैठा है। कबीर तो यहां का सेवक होगा। उसी समय जिंदा रुप में कबीर परमेश्वर गद्दी पर विराजमान हो गये तथा वह तेजोमय शरीर वाला प्रभु सिंहासन से उतरकर कबीर साहिब पर चंवर करने लगा और फिर वह तेजोमय शरीर युक्त प्रभु भी कबीर साहिब में समा गया। तथा गद्दी पर जिंदा रुप में अकेले कबीर साहिब बैठे थे और चंवर अपने आप हो रहा था। तब नानक जी ने अचंभित होकर कहा वाहेगुरु, सतनाम से प्राप्ति तेरी। कबीरजी ने नानकजी को बताया सतयुग में आप राजा अम्बरीष थे तथा ब्रह्म भक्ति विष्णु जी को इष्ट मानकर किया करते थे। फिर त्रेता युग में आप जी की आत्मा राजा जनक विदेही बने। जो सीता जी के पिता कहलाए।

■ Also Read: गुरु नानक जयंती: Guru Nanak Jayanti पर जानिए नानक देव जी को ज़िंदा रूप में कौन मिले थे?

फिर कलयुग में आपकी आत्मा एक हिंदू परिवार में श्री कालुराम मेहता के घर उत्त्पन्न हुई तथा श्री नानक जी नाम रखा गया। इस प्रक्रिया में तीन दिन लग गए। नानक जी की आत्मा को कबीर परमेश्वर ने वापस शरीर में प्रवेश कर दिया। तीसरे दिन श्री नानक जी होश में आए। लोगों ने मान लिया था की नानक जी दरिया में डूबकर मर गये हैं। तीसरे दिन उसी नदी के किनारे नानक जी को जिंदा देख सभी खुश हुए और घर ले आए। श्री नानक जी अपनी नौकरी पर चले गए। मोदी खाने का दरवाजा खोल दिया तथा कहा जिसको जितना चाहिए, ले जाओ। पूरा खजाना लुटा कर, शमशान घाट पर बैठ गए। जब नवाब को पता चला कि श्री नानक जी खजाना समाप्त करके शमशान घाट पर बैठे हैं तब नवाब ने नानक जी के बहनोई श्री जयराम की उपस्थिति में खजाने का हिसाब करवाया तो सात सौ साठ रूपये अधिक मिले।

नवाब ने क्षमा याचना की तथा कहा कि नानक जी आप सात सौ साठ रूपये जो आपके सरकार की ओर अधिक हैं ले लो तथा फिर नौकरी पर आ जाओ। तब श्री नानक जी ने कहा कि अब सच्ची सरकार की नौकरी करूँगा। उस पूर्ण परमात्मा के आदेशानुसार अपना जीवन सफल करूँगा। वह पूर्ण परमात्मा है जो मुझे बेई नदी पर मिला था। नवाब ने पूछा वह पूर्ण परमात्मा कहाँ रहता है तथा यह आदेश आपको कब हुआ? श्री नानक जी ने कहा वह सच्चखण्ड में रहता हैे। बेई नदी के किनारे से मुझे स्वयं आकर वही पूर्ण परमात्मा सच्चखण्ड (सत्यलोक) लेकर गया था। वह इस पृथ्वी पर भी आकार में आया हुआ है। उसकी खोज करके अपना आत्म कल्याण करवाऊँगा। उस दिन के बाद श्री नानक जी घर त्याग कर पूर्ण परमात्मा की खोज पृथ्वी पर करने के लिए चल पड़े।

सिक्ख समाज आज भी वंचित है असली वाहेगुरु और सतनाम से।

श्री नानक जी सतनाम तथा वाहेगुरु की रट लगाते हुए बनारस पहुँचे। इसलिए अब पवित्र सिक्ख समाज के अनुयायी सिर्फ सतनाम श्री वाहेगुरु ही करते रहते हैं! सतनाम क्या है तथा वाहेगुरु कौन यह मालूम ही नहीं। जबकी सतनाम (सच्चानाम) गुरुग्रंथ साहिब में लिखा हुआ है जो अन्य मंत्र है। गीता जी अध्याय 17 श्लोक 23 में जो “ओम तत् सत” कहा है उसमें से यह तत् ही सतनाम है जो गुप्त है सांकेतिक है। सतनाम-सतनाम कोई जपने का नहीं है बल्कि स्वांस-उ-स्वांस से सुमिरण करने की एक अनोखी विधि है जो तत्वदर्शी संत ही दे सकता है।

वर्तमान में कौन है वह तत्वदर्शी संत ?

वह तत्वदर्शी संत सतगुरू रामपाल जी महाराज हैं। जिनके पास इस सतनाम की असली भक्ति विधि है। क्योंकि कबीर परमात्मा ने 600 साल पहले धर्मदास जी से कहा था कि अभी अशिक्षित समाज है। मैं बिचली पीढ़ी में फिर आऊंगा या अपना दास (अंश) भेजूंगा जो सतभक्ति(शास्त्र अनुकूल साधना) बताकर पूर्ण मोक्ष प्राप्त करने की सही विधि बताकर जीव आत्मा को सतलोक में स्थान दिलायेगा अर्थात जन्म – मरण से पूर्णत: छुटकारा मिलेगा।

Latest articles

Truth Triumphs – Sant Rampal Ji Maharaj Sentence Suspended in Two Back-to-Back Cases, High Court Exposes False Convictions

Just days before the grand and historic celebrations of 75th Avataran Diwas of Sant...

NIRF Rankings 2025: IIT Madras Tops, IISc Best University

NEW DELHI — In a major announcement for India's higher education landscape, the Ministry...

SBI PO Mains Admit Card 2025 Released at sbi.co.in: Download Hall Ticket for September 13 Exam

The State Bank of India (SBI) has officially released the much-awaited SBI PO Mains...
spot_img

More like this

Truth Triumphs – Sant Rampal Ji Maharaj Sentence Suspended in Two Back-to-Back Cases, High Court Exposes False Convictions

Just days before the grand and historic celebrations of 75th Avataran Diwas of Sant...

NIRF Rankings 2025: IIT Madras Tops, IISc Best University

NEW DELHI — In a major announcement for India's higher education landscape, the Ministry...