March 10, 2025

Vikram Samvat New Year 2020: विक्रम संवत नया साल पर जानिए कलयुग कितना बीत चुका है?

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Vikram Samvat New Year 2020: 25 मार्च, 2020 से यानी चैत्र नवरात्रि के दिन से हिंदी का नव वर्ष शुरू हो गया था। हिंदू नववर्ष के पहले दिन को नव संवत्सर कहा जाता है। जिसे विक्रम संवत भी कहते हैं। ये विक्रम संवत 2077 होगा। विक्रमी संवत् के दिन से नया पंचांग तैयार होता है। हिंदू लोग व्रत एवं त्यौहार हिंदू कैलेंडर और हिंदू तिथियों के आधार पर ही मनाते हैं। घर में शादी से लेकर सभी शुभ कार्यों के लिए हिंदू कैलेंडर या पंचांग देखा जाता है। विक्रम संवत नववर्ष दिवस 2020 के 321वें दिन है यानी 2020 में विक्रम संवत नववर्ष दिवस सोमवार, 16 नवंबर , 2020 को है। अब वर्ष के पूरा होने में 45 दिन शेष हैं। याद रहे 2020 अधिवर्ष ( Leap Year ) है। संपूर्ण सृष्टि की रचना कबीर साहेब जी ने की है उन्हीं ने दिन और रात बनाए इससे इतर की जानकारी मिथ्या है।

Vikram Samvat New Year 2020 (विक्रम संवत नया साल): मुख्य बिंदु

  • चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से विक्रम संवत 2077 यानी हिन्दू नववर्ष 2077 का प्रारंभ हो गया है। इसे नव संवत्सर 2077 के नाम से भी जाना जाता है।
  • हिन्दू कैलेंडर के अनुसार ही सभी व्रत एवं त्यौहार आते हैं।
  • सम्राट विक्रमादित्य के प्रयास से विक्रम संवत का प्रारंभ हुआ था।
  • मान्‍यता है कि युगों में प्रथम सत्ययुग का प्रारंभ भी इस तिथि को हुआ था।
  • विक्रम संवत में सभी शुभ कार्य इसी पंचांग की तिथि से ही किए जाते हैं। यहां तक कि वित्तीय वर्ष भी हिन्दू नववर्ष से प्रारंभ होता है और समाप्त भी इसी के साथ होता है।

जानेंगे सच्चाई कि हर दिन परमात्मा का बनाया हुआ है परमात्मा पर विश्वास और भक्ति करते हुए जो भी काम किया जाता है वह परमात्मा अच्छा ही करते हैं। सृष्टि रचना कबीर परमेश्वर ने छह दिन में की और सातवें दिन अपने तख्त पर जा विराजा उसी ने दिन-रात ,सूरज-चांद बनाए। इसमें अन्य किसी देवता का कोई निर्माण कार्य नहीं है। मनुष्य को लोकवेद और केलेंडर आधारित भक्ति छोड़कर वेदों और गीता जी को भक्ति का आधार बनाना होगा।

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विक्रम (विक्रमी) संवत नया साल 2020

विक्रम संवत एक कैलेंडर प्रणाली है जिसका उपयोग हिंदू और सिख समुदाय द्वारा भारतीय उपमहाद्वीप के कई हिस्सों में किया जाता है। यह सौर नक्षत्र के वर्षों और चंद्र महीनों पर आधारित है। यह नेपाल का आधिकारिक कैलेंडर है, भारत में इसका उपयोग कई राज्यों में क्षेत्रीय कैलेंडर के रूप में किया जाता है, विशेष रूप से पश्चिम, उत्तर और मध्य भारत में।

Vikram Samvat New Year 2020 (विक्रम संवत नया साल)

Vikram Samvat New Year 2020 में, विक्रम संवत कैलेंडर में पहला दिन 16 नवंबर, सोमवार को पड़ रहा है। हिंदू कैलेंडर में, यह दिन कार्तिक महीने में पहला दिन होता है, जो कैलेंडर में आठवां महीना होता है, जिसमें एक नया चांद होता है। इस नए साल का दिन चैत्र कहा जाता है, जो कि ग्रेगोरियन कैलेंडर में अप्रैल का महीना है।

विक्रम संवत कैलेंडर की उत्पत्ति पर इतिहासकारों में मतभेद

विक्रम संवत कैलेंडर प्रणाली की उत्पत्ति विक्रम ’नामक युग में हुई है, जिसे एक शिलालेख से पता लगाया जा सकता है, जो वर्ष 42 ई.पू. वर्ष 971 का एक शिलालेख भी है जो राजा विक्रमादित्य से जुड़ा है। कई इतिहासकार इस पर विवाद करते हैं और मानते हैं कि यह राजा चंद्रगुप्त द्वितीय था जिसने खुद को विक्रमादित्य की उपाधि से सम्मानित किया और उस युग का नाम बदलकर ‘विक्रम संवत‘ कर दिया।

Vikram Samvat New Year 2020: कैलेंडर प्रणाली

Vikram Samvat New Year: ग्रेगोरियन कैलेंडर के समान होने के दौरान, उस प्रणाली के साथ बड़े अंतर भी हैं। विक्रम संवत कैलेंडर 12 चंद्र चक्रों के बीच के चंद्र माह के दिनों को जोड़कर, बेमेल को समायोजित नहीं करता है, जैसे कि ग्रेगोरियन कैलेंडर करता है। इसके बजाय, विक्रम संवत कैलेंडर हर तीन साल या हर 19 साल में एक बार कैलेंडर में एक अतिरिक्त महीना जोड़ता है, इस प्रकार चंद्र माह में कोई बदलाव नहीं करता है। इसलिए, यह एक चंद्र कैलेंडर है। इस अतिरिक्त महीने को ” आदिक मास ” कहा जाता है और इसे यहूदी और चीनी कैलेंडर प्रणाली में भी देखा जा सकता है। प्रारंभिक बौद्ध अनुयायियों ने भी विक्रम संवत कैलेंडर प्रणाली का उपयोग किया।

Vikram Samvat New Year 2020: विक्रम संवत प्रणाली में वर्ष का विभाजन

विक्रम संवत प्रणाली में, सौर नक्षत्र वर्ष और चंद्र महीनों का उपयोग किया जाता है। इस चंद्र वर्ष में 12 महीने होते हैं और प्रत्येक महीने में दो बार 30 चंद्र दिन होते हैं, जिन्हें ‘तीथिस’ कहा जाता है। वैदिक पंचांग के अनुसार, चैत्र शुक्ल प्रति वर्ष की पहली तिथि है। इसी दिन से हिन्दू मान्यता के अनुसार नए साल की शुरुआत होती है। हिन्दू वर्ष में 12 महीने (चैत्र, वैशाख, ज्येष्ठ, आषाढ़, श्रावण, भाद्रपद, अश्विन, कार्तिक, मार्गशीर्ष, पौष, माघ, फाल्गुन) होते हैं।   

वर्तमान में कलयुग कितना बीत चुका है?

हिन्दु धर्म में आदि शंकराचार्य जी का विशेष स्थान है। दूसरे शब्दों में कहें तो हिन्दु धर्म के सरंक्षक तथा संजीवन दाता भी आदि शंकराचार्य हैं। उनके पश्चात् जो प्रचार उनके शिष्यों ने किया, उसके परिणामस्वरूप हिन्दु देवताओं की पूजा की क्रान्ति-सी आई है। उनके ईष्ट देव श्री शंकर भगवान हैं। उनकी पूज्य देवी पार्वती जी हैं। इसके साथ श्री विष्णु जी तथा अन्य देवताओं के वे पुजारी हैं। विशेषकर ‘‘पंच देव पूजा‘‘ का विधान है:- श्री ब्रह्मा जी , श्री विष्णु जी श्री शंकर जी, श्री पारासर ऋषि जी , श्री कृष्ण द्वैपायन उर्फ श्री वेद व्यास जी पूज्य हैं।

Vikram Samvat New Year: पुस्तक ‘‘जीवनी आदि शंकराचार्य‘‘ में लिखा है कि आदि शंकराचार्य जी का जन्म 508 वर्ष ईसा जी से पूर्व हुआ था। फिर पुस्तक ‘‘हिमालय तीर्थ‘‘ में भविष्यवाणी की थी जो आदि शंकराचार्य जी के जन्म से पूर्व की है। कहा है कि आदि शंकराचार्य जी का जन्म कलयुग के तीन हजार वर्ष बीत जाने के पश्चात् होगा।

अब गणित की रीति से जाँच करके देखते हैं, वर्तमान में यानि 2012 में कलयुग कितना बीत चुका है?

  • आदि शंकराचार्य जी का जन्म ईसा जी के जन्म से 508 वर्ष पूर्व हुआ।
  • ईसा जी के जन्म को हो गए = 2012 वर्ष
  • शंकराचार्य जी को कितने वर्ष हो गए =201+2़508=2520 वर्ष।
  • ऊपर से हिसाब लगाएं तो शंकराचार्य जी का जन्म हुआ = कलयुग 3000 वर्ष बीत जाने पर।
  • कुल वर्ष 2012 में कलयुग कितना बीत चुका है =3000़+2520=5520 वर्ष।
  • अब देखते हैं कि 5505 वर्ष कलयुग कौन-से सन् में पूरा होता है = 5520-5505 = 15 वर्ष 2012 से पहले।
  • 2012-15 = 1997 ई. को कलयुग 5505 वर्ष पूरा हो जाता है। संवत् के हिसाब से स्वदेशी वर्ष फाल्गुन महीने यानि फरवरी-मार्च में पूरा हो जाता है। 

वेदों अनुसार कौन है सृष्टि का रचनहार

वेदों को पढ़कर काल के ज्येष्ठ पुत्र ब्रह्मा जी ने निष्कर्ष निकाला जिसे उन्होंने पुराणों में लिखा और ऋषियों, मुनियों ने पुराणों के अनुसार सृष्टि का निर्माता भगवान ब्रह्मा जी को ही बता दिया जो सही नहीं है। माना जाता है कि चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि को ब्रह्मा जी ने इस संसार की रचना की थी। इसलिए इस तिथि को ‘नव संवत्सर’ पर्व के रूप में भी मनाया जाता है।

जैसे हर महीने या दिन का नाम होता है उसी तरह हर संवत्सर का भी नाम रखा गया है जो संख्या में कुल साठ हैं जो बीस-बीस की श्रेणी में बांटे गए हैं। प्रथम बीस संवत ब्रह्मविंशति संवत कहलाते हैं, 21 से 40 तक विष्णुविंशति संवत और अंतिम बीस संवतों के समूह का नाम रूद्रविंशति रखा गया है।

चूंकि यह छियालीसवें नंबर का संवत है इसलिए ये रुद्रविंशति समूह का है और इसका नाम वो परिधावी संवत्सर है। परिधावी संवत्सर में सामान्यतः अन्न महंगा, मध्यम वर्षा, प्रजा में रोग ,उपद्रव अदि होते हैं और इसका स्वामी इन्द्राग्नि कहा गया है। आइए अब जानते हैं कि पांचों वेदों अनुसार सृष्टि की रचना किसने की और‌ कलयुग कितना बीत चुका है और ब्रह्मा, विष्णु, महेश की क्या स्थिति है?

प्रभु प्रेमी आत्माऐं प्रथम बार निम्न सृष्टी की रचना को पढेंगे तो ऐसे लगेगा जैसे दन्त कथा हो, परन्तु सर्व पवित्र सद्ग्रन्थों के प्रमाणों को पढ़कर दाँतों तले उँगली दबाऐंगे। बहुत दुःख की बात है की सभी धर्मों के ग्रंथों में प्रमाण होने के बाद भी ये अद्वितीय तत्वज्ञान आज तक भक्त समाज से छिपा हुआ था। पर अब तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज द्वारा दिए गए आध्यात्मिक ज्ञान से हम सृष्टि रचना के रहस्य को समझ पाए हैं। तो आइये जानते हैं की ब्रह्माण्ड और इस सृष्टि की रचना कैसे हुई?

हिन्दू धर्म के पवित्र ग्रन्थ – चारों वेद और गीता जी गवाही देते हैं कि परमात्मा साकार है, देखने में राजा के समान है वो अपने सनातन परमधाम “सत्यलोक” में रहता है। उस परमात्मा का नाम कविर्देव या कबीर साहेब है।
वेदों के अनुसार सृष्टि की उत्पत्ति पूर्ण परमात्मा कबीर साहिब ने ही की है।

देखें प्रमाण:

पवित्र ऋग्वेद में सृष्टी रचना का प्रमाण

  • ऋग्वेद मण्डल 10 सुक्त 90 मंत्र 1,2,3,4,5,15,16

पवित्र अथर्ववेद में सृष्टि रचना का प्रमाण

  • अथर्ववेद काण्ड नं. 4 अनुवाक नं. 1 मंत्र नं. 1-7

पवित्र यजुर्वेद में सृष्टि रचना का प्रमाण

  • यजुर्वेद अध्याय 5, मन्त्र 1,15

पवित्र श्रीमद्देवी महापुराण में सृष्टी रचना का प्रमाण

  • पवित्र श्रीमद्देवी महापुराण, गीताप्रैस गोरखपुर से प्रकाशित, अनुवादकर्ता श्री हनुमानप्रसाद पोद्दार तथा चिमन लाल गोस्वामी जी
  • तीसरा स्कन्द अध्याय 1 से  3, पृष्ठ नं. 114 से 118, पृष्ठ नं. 119-120
  • तीसरा स्कन्द, अध्याय 4 से  5, पृष्ठ नं. 123

काल, ब्रह्मा विष्णु और शिव का पिता है

काल पुरूष (क्षर पुरूष) ने प्रकृति के साथ जबरदस्ती शादी की तथा तीन पुत्रों (रजगुण युक्त – ब्रह्मा जी, सतगुण युक्त – विष्णु जी तथा तमगुण युक्त – शिव शंकर जी) की उत्पत्ति की। तत्पश्चात् प्रकृति (दुर्गा) द्वारा इन तीनों का विवाह कर दिया जाता है तथा एक ब्रह्माण्ड में तीन लोकों (स्वर्ग लोक, पृथ्वी लोक तथा पाताल लोक) में इन्हे एक-एक विभाग के मंत्री (प्रभु) नियुक्त कर देता है। जैसे श्री ब्रह्मा जी को रजोगुण विभाग का तथा विष्णु जी को सत्तोगुण विभाग का तथा श्री शिव शंकर जी को तमोगुण विभाग का तथा स्वयं गुप्त (महाब्रह्मा – महाविष्णु – महाशिव) रूप से मुख्य मंत्री पद को संभालता है।

ब्रह्मा जी सृष्टि के रचनहार नहीं हैं

पवित्र गीता जी अध्याय 14 श्लोक 3 से 5 में बताया गया है कि ब्रह्म (काल) कह रहा है कि प्रकृति (दुर्गा) तो मेरी पत्नी है, मैं ब्रह्म (काल) इसका पति हूँ। हम दोनों के संयोग से सर्व प्राणियों सहित तीनों गुणों (रजगुण – ब्रह्मा जी, सतगुण – विष्णु जी, तमगुण – शिवजी) की उत्पत्ति हुई है। मैं (ब्रह्म) सर्व प्राणियों का पिता हूँ तथा प्रकृति (दुर्गा) इनकी माता है। मैं इसके उदर में बीज स्थापना करता हूँ जिससे सर्व प्राणियों की उत्पत्ति होती है। प्रकृति (दुर्गा) से उत्पन्न तीनों गुण (रजगुण ब्रह्मा, सतगुण विष्णु तथा तमगुण शिव) जीव को कर्म आधार से शरीर में बांधते हैं।

तीन गुण क्या हैं?

  • रजोगुण प्रभाव से जीवन की 84 लाख प्रजातियों के शरीर बनते है। रजस प्रभाव जीव को संतानोत्पत्ति के लिए प्रजनन करने को मजबूर करके, विभिन्न योनियों में प्राणियों की उत्पत्ति कराते हैं।
  • सतोगुण जीवों (उनके कर्मों के अनुसार) का पालन-पोषण करते हैं और सतोगुण (सत्व) के प्रभाव जीव मे प्रेम और स्नेह विकसित करके, इस अस्थिर लोक की स्थिति को बनाए रखते हैं।
  • तमोगुण विनाश का प्रतिनिधित्व करते हैं। तमोगुण (तमस) के प्रभाव की भूमिका प्राणियों को अंततः नष्ट करने की है। इन सभी का सृष्टि के संचालन मे योगदान है।

अर्थात प्राणी, इन तीन गुणों रजोगुण – ब्रह्मा जी, सतोगुण – विष्णु जी, तमोगुण – शिव जी को ही सर्वश्रेष्ठ मानकर इनकी भक्ति करके दुखी हो रहे है ।

ब्रह्मा विष्णु तथा शिव भगवान की आयु

गीता अध्याय 8 का श्लोक 17

सहस्त्रायुगपर्यन्तम्, अहः,यत्,ब्रह्मणः, विदुः,रात्रिम्,
युगसहस्त्रान्ताम्, ते, अहोरात्राविदः, जनाः।।17।।

अनुवाद: (ब्रह्मणः) परब्रह्म का (यत्) जो (अहः) एक दिन है उसको (सहस्त्रायुगपर्यन्तम्) एक हजार युग की अवधि वाला और (रात्रिम्) रात्रि को भी (युगसहस्त्रान्ताम्) एक हजार युगतककी अवधिवाली (विदुः) तत्व से जानते हैं (ते) वे (जनाः) तत्वदर्शी संत (अहोरात्राविदः) दिन-रात्रि के तत्व को जाननेवाले हैं। 

अर्थात परब्रह्म का जो एक दिन है उसको एक हजार युग की अवधि वाला और रात्रि को भी एक हजार युग तक की अवधि वाली तत्व से जानते हैं वे तत्वदर्शी संत दिन-रात्रि के तत्व को जानने वाले हैं। (इस समय पृथ्वी पर तत्त्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज जी हैं)। चार युग हैं। – 1) सत्ययुग 2) त्रेतायुग 3) द्वापर युग 4) कलयुग

  1. सत्ययुग का वर्णन:- सत्ययुग की अवधि 17 लाख 28 हजार वर्ष है। मनुष्य की आयु प्रारम्भ में दस लाख वर्ष होती है। अन्त में एक लाख वर्ष होती है। मनुष्य की ऊँचाई 21 हाथ यानि लगभग 100 से 150 फुट होती है। {उस समय मनुष्य के हाथ (कोहनी से बड़ी ऊंगली के अंत तक) की लंबाई लगभग 5 फुट होती है।} परमात्मा का नाम सत सुकृत होता है। {वर्तमान में कलयुग में मनुष्य के एक हाथ की लंबाई लगभग डेढ़ (1)) फुट है। पहले के युगों में लंबे व्यक्ति होते थे। उनके हाथ की लंबाई भी अधिक होती थी।}
  2. त्रेतायुग का वर्णन:- त्रेतायुग की अवधि 12 लाख 96 हजार वर्ष होती है। मनुष्य की आयु प्रारम्भ में एक लाख वर्ष होती है, अंत में दस हजार वर्ष होती है। मनुष्य की ऊँचाई 14 हाथ यानि लगभग 70 से 90 फुट होती है। मेरा नाम मुनिन्द्र रहता है। 
  3. द्वापरयुग का वर्णन:- द्वापरयुग की अवधि 8 लाख 64 हजार वर्ष होती है। मनुष्य की आयु दस हजार प्रारम्भ में होती है। अंत में एक हजार रह जाती है। मनुष्य की ऊँचाई 7 हाथ यानि 40.50 फुट होती है। द्वापर युग में परमात्मा का नाम करूणामय होता है।
  4. कलयुग का वर्णन:- कलयुग की अवधि 4 लाख 32 हजार वर्ष होती है। मनुष्य की आयु एक हजार वर्ष से प्रारम्भ होती है, अंत में 20 वर्ष रह जाती है तथा ऊँचाई साढ़े तीन हाथ यानि 10 फुट होती है। अंत में 3 फुट रह जाती है। कलयुग में परमात्मा का नाम कबीर रहता है।

नोट:- जो व्यक्ति सौ फुट लम्बा होगा। उसका हाथ (कोहनी से हाथ के पंजे की बड़ी ऊँगली तक) भी लंबा होगा यानि 5 फुट का हाथ होता था। ऊपर लिखी आयु युग के अंत की होती है। जैसे सत्ययुग के प्रारम्भ में 10 लाख वर्ष से प्रारम्भ होती है। अंत में एक लाख वर्ष रह जाती है। त्रेतायुग में एक लाख से प्रारम्भ होती है, अंत में 10 हजार रह जाती है। द्वापर युग में 10 हजार से प्रारम्भ होती है, अंत में एक हजार वर्ष रह जाती है।

कलयुग में एक हजार वर्ष से प्रारम्भ होती है, अंत में 20 वर्ष रह जाती है। अधिक समय तक 120 वर्ष की रहती है। प्रदूषण की अधिकता कलयुग में सर्वाधिक होती है। इसलिए आयु भी उतनी शीघ्रता से कम होती है जो ऊपर के युगों की भांति सहज नहीं रहती। प्राकृतिक विधि से कम नहीं होती अन्यथा कलयुग में अंत में 100 वर्ष होनी चाहिए। इन चार युग को मिला के एक चतुर्युग बनता है। 

पाठकों से विनम्र निवेदन है कि सृष्टि, सृष्टिकर्ता, तीनों गुण और इनकी आयु तथा विभिन्न नक्षत्रों,सूरज चांद की रचनाओं को समझने और इनकी विस्तृत जानकारी के लिए आप तत्वज्ञान को समझें और कृपया संत रामपाल जी महाराज जी के सत्संग प्रतिदिन शाम साधना चैनल पर 7.30-8.30 बजे अवश्य देखें

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