Last Updated on 15 October 2024 IST |प्रतिवर्ष आश्विन मास की पूर्णिमा को पड़ने वाली वाल्मीकि जयंती (Valmiki Jayanti 2024) इस माह 17 अक्टूबर 2024 को है। महर्षि वाल्मीकि जिन्होंने पवित्र ग्रन्थ रामायण की रचना की, आज उनकी जयंती है। इस महर्षि वाल्मीकि जयंती पर हम आदिराम के विषय में भी जानेंगे।
Valmiki Jayanti 2024 [Hindi] के मुख्य बिंदु
- आश्विन मास की पूर्णिमा, 17 अक्टूबर है महर्षि वाल्मीकि जयंती।
- जानें कैसे डाकू से बने महर्षि, वाल्मीकि जी
- गुरु बनाना है कितना आवश्यक
- महर्षि वाल्मीकि जी ने की रामायण की रचना
- आदिराम कोई बिरला जाने
- लौट चलो अविगत नगरी
Valmiki Jayanti 2024 [Hindi]: महर्षि वाल्मीकि जीवन परिचय
महर्षि वाल्मीकि का वास्तविक नाम रत्नाकर था तथा इनके पिता का नाम प्रचेता बताया जाता है। मान्यताओं के अनुसार एक समय किसी भीलनी ने बालक रत्नाकर का अपहरण कर लिया था। ऐसे में बालक रत्नाकर का पालन पोषण भील समुदाय के बीच हुआ। वह समुदाय लोगों को मारने, लूटने का कार्य करते थे। संस्कार वश रत्नाकर ने भी डकैती और लूटपाट का कार्य आरम्भ कर दिया। महर्षि वाल्मीकि डाकू थे जिनका हृदय परिवर्तन बाद में हुआ। जंगल में से एक बार नारद मुनि से महर्षि वाल्मीकि की भेंट हुई।
वाल्मीकि जी ने नारद जी को भी अपने कार्य के अनुरूप बंदी बनाया। तब नारद जी ने पूछा कि क्या तुम्हारे द्वारा किये गए इन पाप कर्मों के साझेदार तुम्हारे घरवाले भी बनेंगे? वाल्मीकि जी ने घर जाकर परिवार में सबसे पूछा एवं सभी ने मना कर दिया। तब वाल्मीकी जी का इस संसार से मोहभंग हो गया और उनका हृदय परिवर्तन हुआ। नारद जी ने उन्हें गुरुदीक्षा दी (क्योंकि बिना गुरु जीव पार नहीं हो सकता) एवं वे डाकू रत्नाकर से महर्षि वाल्मीकि बन गए। (इस संपूर्ण सच्चाई को जानने के लिए संत रामपाल जी महाराज जी का सत्संग सतलोक आश्रम यूट्यूब चैनल पर अवश्य सुनिए)।
Valmiki Jayanti 2024 [Hindi]: महर्षि वाल्मीकि ने भी बनाए गुरु
Valmiki Jayanti 2024 [Hindi]: महर्षि वाल्मीकि भी डाकू से महर्षि तब बन पाए जब उन्हें गुरु की शरण प्राप्त हुई। गुरु का इस जीवन में महत्व अनिवार्य है। गुरु ही है जो शिष्य को मिट्टी से सोना या काग से हंस बनाते हैं। महर्षि वाल्मीकि ने ही नहीं ब्रह्मा, विष्णु महेश ने भी गुरु बनाए एवं जब वे अवतारों में लीला करने इस पृथ्वी पर आये तब उन्होंने भी गुरु धारण किए। श्री राम के आध्यात्मिक गुरु वशिष्ठ जी हुए (विश्वामित्र ने उन्हें धनुर्विद्या की शिक्षा दी थी) और कृष्ण जी के आध्यात्मिक गुरु दुर्वासा ऋषि हुए। वहीं संदीपनि ऋषि ने उन्हें अक्षर ज्ञान की शिक्षा दी थी।
महर्षि वाल्मीकि द्वारा रचित रामायण है मूल राम कथा
महर्षि वाल्मीकि ने जो रामायण रची उसकी प्रेरणा उन्हें एक शिकारी द्वारा एक क्रोंच पक्षी के वध से मिली। यही रामायण मूल रामायण है जो संस्कृत भाषा मे लिखी गई थी। इसके वर्षों बाद भक्तिकाल में गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित रामचरित मानस केवल राम के उदात्त चरित्र का उद्घाटन मात्र है। जब रावण वध और लंका विजय के पश्चात विष्णु अवतार राम अयोध्या लौटे तब कुछ समय उपरांत माता सीता अयोध्या से मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम के द्वारा निष्काषित कर दी गईं। माता सीता उस समय गर्भवती थीं। तब माता सीता ने महर्षि वाल्मीकि की शरण में आश्रय लिया। माता सीता ने कुछ समय उपरांत पुत्र लव कुश को जन्म दिया जिनकी शिक्षा दीक्षा का कार्यभार महर्षि वाल्मीकि ने स्वयं सम्भाला।
आदिराम कोई बिरला जाने
विष्णु अवतार दशरथ पुत्र राम अलग हैं एवं आदिराम भिन्न हैं। सर्व विदित है कि तुलसी के राम और कबीर साहेब के राम अलग थे। जानकारी के अभाव में कबीर साहेब के राम को अव्यक्त या निर्गुण कहकर पल्ला झाड़ लिया जाता है किंतु स्वयं परमेश्वर कबीर ने स्पष्ट किया है कि उनके राम आदि राम हैं। आदिराम कौन है? आदिराम है इस सृष्टि का रचयिता, ब्रह्मा, विष्णु, महेश का रचयिता, सबका पालन कर्ता, गीता में कहा गया सच्चिदानंद घन ब्रह्म, सबसे शक्तिशाली और विधि का विधान पलट सकने के सामर्थ्य रखने वाला परमेश्वर है आदिराम। आदिराम, क्षर पुरुष और अक्षर पुरुष से भी ऊपर है परम् अक्षर पुरुष। परमेश्वर कबीर ने इसे सृष्टि रचना बताते हुए स्पष्ट किया है और केवल दशरथ पुत्र राम को भजने वाले इस संसार को वास्तविक राम से दूर बौराया हुआ बताया है।
धर्मदास यह जग बौराना | कोइ न जाने पद निरवाना ||
यहि कारन मैं कथा पसारा | जगसे कहियों राम नियारा ||
भरम गये जग वेद पुराना | आदि रामका का भेद न जाना ||
राम राम सब जगत बखाने | आदि राम कोइ बिरला जाने ||
ज्ञानी सुने सो हिरदै लगाई | मूर्ख सुने सो गम्य ना पाई ||
सारी सृष्टि रचना से स्पष्ट है कि ब्रह्मा ,विष्णु ,महेश के पिता हैं ज्योति निरजंन और माता हैं अष्टंगी यानी दुर्गा। आदिराम हैं इन सभी के पिता, जनक और पालनहार, परमेश्वर कबीर।
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सतलोक से निष्कासित किए गए निरजंन और अष्टंगी
ज्योति निरजंन और अष्टंगी के कुकर्म के कारण उन्हें 21 ब्रह्मांडो सहित सतलोक से सोलह शंख कोस की दूरी पर निष्काषित किया गया।
सतलोक में कीन्हा दुराचारि, काल निरजंन दिन्हा निकारि ।
माया समेत दिया भगाई, सोलह शंख कोस दूरी पर आई ||
इसके साथ ही काल यानी ज्योति निरजंन को एक लाख मानव शरीरधारी प्राणियों को खाने एवं सवा लाख नित्य उत्पन्न करने का श्राप मिला है। आज हम इस लोक में कर्म बंधन में पड़े कभी मनुष्य, कभी कुंजर, कभी कीड़ी (चींटी) बनकर कष्ट भोग रहे हैं। इस लोक में जो आग दुःख और कष्ट की लगी है यह कभी न बुझने की है। यहाँ से अपने अविनाशी और सुखमय लोक लौट चलने में ही समझदारी है।
चलो लौट चलें अविगत नगरी
आज जिन अवतारों एवं ब्रह्मा विष्णु शिव की पूजा समाज कर रहा है उनकी उपासना तो गीता अध्याय 7 श्लोक 14 से 17 में वर्जित बताई हैं। वेदों में केवल परम् अक्षर ब्रह्म के विषय में बताया गया है जो सभी पापों को क्षमा कर सकता है, विधि के विधान को पलट सकता है एवं वह बन्दीछोड़ है अर्थात सभी बन्धनों का शत्रु।
परमेश्वर कबीर ने भी स्पष्ट किया है
तीन पुत्र अष्टंगी जाये | ब्रह्मा विष्णु शिव नाम धराये ||
तीन देव विस्तार चलाये |इनमें यह जग धोखा खाये ||
पुरुष गम्य कैसे को पावै | काल निरंजन जग भरमावै ||
काल निरजंन ने सभी को भ्रमित कर रखा है। इस लोक से निकलने का रास्ता केवल तत्वदर्शी सन्त ही बता सकता है। गीता अध्याय 4 के श्लोक 34 में तत्वदर्शी सन्त की शरण में जाने के किये कहा है तथा अध्याय 15 के श्लोक 4 में बताया है कि तत्वदर्शी सन्त यानी तत्व को जानने वाले की खोज के पश्चात उस परम पद की खोज करनी चाहिए जहाँ जाने के बाद जीव पुनः इस संसार मे लौटकर नहीं आता। इस लोक के स्वर्ग महास्वर्ग तो नष्ट हो जाते हैं (गीता अध्याय 8 श्लोक 16)।
सतलोक पूर्ण परमेश्वर की राजधानी है। हमारा निजस्थान है। जहां दुख, निराशा, अवसाद, रोग, बुढ़ापा, जन्म और मरण नहीं है। न ही कर्म बंधन हैं अर्थात बिना कर्म किये फल प्राप्त होते रहते हैं। तत्वदर्शी सन्त हर समय पृथ्वी पर नहीं होता। जिस साधना के लिए अनेकों ऋषि, महर्षि, ब्रह्मर्षि तरस गए वह आज हमें सहज उपलब्ध है। आज पूरे विश्व मे एकमात्र तत्वदर्शी सन्त हैं जगतगुरु रामपाल जी महाराज। अधिक जानकारी के लिए देखें सतलोक आश्रम यूट्यूब चैनल तथा अविलंब तत्वदर्शी सन्त की शरण में आएं।
ब्रह्म काल सकल जग जाने | आदि ब्रह्मको ना पहिचाने ||
तीनों देव और औतारा | ताको भजे सकल संसारा ||
तीनों गुणका यह विस्तारा | धर्मदास मैं कहों पुकारा ||
गुण तीनों की भक्ति में, भूल परो संसार |
कहै कबीर निज नाम बिन, कैसे उतरें पार ||
वाल्मीकि जयंती 2024 से संबंधित FAQs
वाल्मीकि जयंती 2024 में 17 अक्टूबर को मनाई जाएगी।
यह महर्षि वाल्मीकि की जयंती है, जो रामायण के रचयिता और एक महान संत एवं कवि थे।
महर्षि वाल्मीकि को संस्कृत महाकाव्य “रामायण” के रचयिता के रूप में जाना जाता है। उन्हें आदिकवि भी कहा जाता है क्योंकि वे संस्कृत साहित्य के प्रथम कवि माने जाते हैं।
यह दिन हमें उनके द्वारा दी गई शिक्षा और उनके साहित्यिक योगदान की याद दिलाता है। महर्षि वाल्मीकि ने रामायण के माध्यम से राम और सीता के जीवन की महत्त्वपूर्ण घटनाओं को उजागर किया है, जो भारतीय संस्कृति और धार्मिक धरोहर का एक अहम हिस्सा है।
इस दिन उनके अनुयायियों द्वारा शोभा यात्राएँ निकाली जाती हैं, मंदिरों में विशेष पूजा-अर्चना की जाती है और रामायण का पाठ किया जाता है। कई स्थानों पर प्रवचन, भक्ति गीत और अन्य धार्मिक आयोजन भी होते हैं।
इस दिन भक्त वाल्मीकि मंदिरों में जाकर पूजा करते हैं, रामायण के अंशों का पाठ करते हैं और महर्षि वाल्मीकि की शिक्षाओं को जीवन में उतारने का संकल्प लेते हैं।
भारत के कई राज्यों में इस त्योहार को मनाया जाता है, विशेषकर उत्तर भारत, पंजाब, हरियाणा, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश में।
दशरथ पुत्र श्री राम अविनाशी भगवान नहीं हैं इसलिए सभी मनुष्यों को आदिराम की भक्ति करके मोक्ष प्राप्त करना चाहिए।