Last Updated on 23 June 2023, 10:52 PM IST: दिल्ली के बादशाह सिकन्दर लोधी के पीर शेख तकी ने कबीर परमेश्वर जी को “52 बार” (52 बदमाशी) मारने का षड्यंत्र रचा जिसे बावन कसनी भी कहते हैं। वह हर बार असफल रहा। क्योंकि अविनाशी का नाश करने में कोई सक्षम नहीं हैं। यदि कोई आम संत होते तो मारे जाते। परमेश्वर कबीर साहेब जी पूर्ण ब्रह्म है, सर्व शक्तिमान परमात्मा है।
शेखतकी ने जुल्म गुजारे, बावन करी बदमाशी | खूनी हाथी के आगे डालै, बांध जूड अविनाशी||
कबीर साहेब जी का शरीर पांच तत्व का नही है, उनका एक तत्व का नूरी शरीर है। आइए जानते हैं कुछ मुख्य यातनाएं जो इस प्रकार हैं :-
- कबीर साहेब जी को गर्म सरसों तेल की कड़ाहे में बैठाना
- कबीर साहेब जी को तलवार से काट ने की साजिश
- 64 लाख शिष्यों की परीक्षा लेना
- कबीर साहेब जी को गंगा नदी में डुबोकर मारने की कुचेष्टा
- परमेश्वर कबीर साहेब जी को तोप से मारने की कुचेष्टा
- परमेश्वर कबीर साहेब जी को खूनी हाथी से मरवाने की कुचेष्टा
- कबीर साहेब जी को नीचा दिखाने की कुचेष्टा
- वर्तमान में हुई बदमाशी
क्यों की गई कबीर साहेब के साथ 52 बदमाशी?
सत्य और संघर्ष एक सिक्के के दो पहलु है, जो कभी जुदा नहीं होते है। इतिहास इसका गवाह है तो वर्तमान इसका परिक्षण हैं। ऐसा आदि अनादि काल से होता आ रहा है। मान-बड़ाई, ईर्ष्या का रोग बहुत भयानक है। परमात्मा या फिर उनके कृपा पात्र संत महापुरुष अवतार रूप में इस धरातल पर पाखंडवाद को खत्म करने और अपना सत्य ज्ञान बताने के लिए आते हैं, तो जनता उनका पुरजोर विरोध करती है। आज हम इस ब्लॉग के माध्यम से आपको बताएंगे कि आज से 600 वर्ष पहले कबीर साहेब जी का उस समय के हिन्दू व मुस्लिम धर्म गुरुओं ने किस प्रकार विरोध किया था।
कबीर साहेब जी को 52 (बावन) बार मारने की कोशिश की गई। उनको अति कठोर यातनाएं दी गईं, जो यदि किसी आम व्यक्ति को दी जाती तो उसकी तो आत्मा भी चीख पड़ती परंतु वे तो पूर्ण परमात्मा थे उनका कोई बाल भी बांका न कर सका पर उन पर जुल्म ढ़ाने में उन नीचों ने कोई कसर भी न छोड़ी। उन्ही में से कुछ यातनाओं के बारे में हम यहां आपको बताएंगे। लेकिन उससे पहले इसके पीछे का कारण जान लेते हैं कि ये यातनाएं उनको क्यों दी गई थीं? कबीर साहेब जी ने धार्मिक, सामाजिक पाखंडवाद और लोकवेद आधारित गलत भक्ति का पुरज़ोर विरोध किया व सद्ग्रंथों में वर्णित सतभक्ति का प्रकाश फैलाने के लिए जगह जगह अपना अमर संदेश सुनाया। शास्त्र विरुद्ध साधना कर रहे हिंदुओं को अपनी वाणियों द्वारा जगाया कि –
कबीर, तीन देव की करते जो भक्ति
उनकी कभी न होवे मुक्ति।|
वही मुसलमानों द्वारा की जा रही हत्याओं का विरोध किया –
कबीर, दिन को रोजा रहत हैं, रात हनत हैं गाय।
यह खून वह बंदगी, कहूं क्यों खुशी खुदाय।।
कबीर साहेब जी की इन्हीं खरी खरी और सुथरी बातों का परिणाम उन्हें खत्म करने की साजिश में निकला। ताकि हिन्दू मुस्लिम धर्म गुरुओं की पोल आम जनता के सामने न खुल जाए। कबीर साहेब जी को खत्म करने के इस कुकृत्य का सरदार था शेखतकी। शेखतकी मुस्लिम बादशाह सिकन्दर लोदी का धार्मिक पीर था। वह कबीर साहेब जी से खूब ईर्ष्या रखता था क्योंकि दिल्ली का महाराजा सिकंदर लोदी कबीर साहेब जी का प्रशंसक बन गया था।
शेखतकी ने हर बार मुंह की खाई फिर भी नहीं समझा नीच
दिल्ली के बादशाह सिकन्दर लोदी के पीर शेखतकी ने कबीर परमेश्वर जी को “52 बार” (52 बदमाशी) मारने का षड्यंत्र रचा जिसे बावन कसनी भी कहते हैं। वह हर बार असफल रहा क्योंकि अविनाशी का नाश करने में कोई सक्षम नहीं है। यदि कोई आम संत होते तो मारे जाते। परमेश्वर कबीर साहेब जी पूर्ण ब्रह्म हैं, सर्व शक्तिमान परमात्मा हैं।
शेखतकी ने जुल्म गुजारे, बावन करी बदमाशी। खूनी हाथी के आगे डालै, बांध जूड अविनाशी।।
कबीर साहेब जी का शरीर पांच तत्व का नहीं है, उनका एक तत्व का नूरी शरीर है। आइए जानते हैं कुछ मुख्य यातनाएं जो इस प्रकार हैं :-
कबीर साहेब जी को गर्म सरसों के तेल की कड़ाही में बैठाना
इसी ईर्ष्यावश शेखतकी ने हजारों मुसलमानों को इकठ्ठा कर के कहा कि कबीर को उबलते सरसों तेल के कड़ाही में डालेंगे और यदि नहीं मरा तो हम उसे भगवान मान लेंगे। तेल के कड़ाहे को उबाल कर कबीर साहेब जी को बुलाया गया। वहां सबकी मनसा देख कर कबीर जी खुद कड़ाही में विराजमान हो गए। सभी इंतजार में थे कि कबीर साहेब जी जल जाएंगे। उस समय कबीर साहेब की गर्दन बाहर थी और पूरा शरीर गर्म तेल में था। लेकिन फिर भी कबीर जी उबलते तेल में ऐसे बैठे रहे जैसे ठंडे पानी में कोई बैठता है। और यही संदेश दिया कि वह अविनाशी है। इससे क्षुब्ध होकर कबीर जी से माफी मांगने की बजाएं शेख तकी उनसे और ज्यादा ईर्ष्या करने लगा और एक और योजना बनाकर शेखतकी ने कबीर साहेब को एक झेरे (गहरे) कुएं में डलवा दिया। फिर वहा इकठ्ठा किए व्यक्तियों से उस गहरे कुएं में मिट्टी, कांटे दार झाड़ी, ईट, गोबर आदि डलवा कर कुएं को 150 फीट ऊपर तक पूरा भर दिया। सबने खुशी मनाई कि आज तो काफिर को खत्म कर दिया।
इसके बाद शेखतकी हाथ मुंह धोकर सिकंदर लोदी बादशाह के पास गया और कहा कि राजा कर दिया तेरे शेर को समाप्त। उस पर इतनी मिट्टी डाल दी है कि वह कभी बाहर नहीं आ सकता है। राजा सिकन्दर लोदी उसकी बात को समझ न सका, वह बोला आप किसकी बात कर रहे हो? शेखतकी बोला तेरे उस अल्लाह कबीर को कुएं में डालकर खत्म कर दिया है। राजा ने कहा क्या बात करते हो? कबीर जी तो अन्दर बैठे हैं, वह तो कहीं पर गए भी नहीं। उसके बाद शेखतकी ने तुरंत अन्दर जाकर देखा तो कबीर साहेब जी अन्दर आराम से आसन पर बैठे थे। इतना सब देखने के बाद भी शेखतकी और अन्य धार्मिक गुरु पीर नहीं माने। मानते भी कैसे उनको तो भगवान से ज्यादा समाज में अपनी पद-प्रतिष्ठा और महिमा के कम होने की चिंता थी। तभी तो कबीर परमेश्वर कहते हैं कि –
राज तजना सहज है, सहज त्रिया का नेह।
मान -बड़ाई ईर्ष्या, दुर्लभ तज न येह।।
बार बार और अनेकों बार इस प्रकार के घिनौने प्रयास करके भी सभी विफल हो गए थे, फिर उन्होंने एक साजिश और रची।
कबीर साहेब को एक झेरे कुएं में डलवाया
एक और योजना बनाकर शेखतकी ने कबीर साहेब को एक झेरे (गहरे) कुएं में डलवा दिया। फिर वहां इकठ्ठा किए व्यक्तियों से उस गहरे कुएं में मिट्टी, कांटे दार झाड़ी, ईंट, गोबर आदि डलवा कर कुएं को 150 फीट ऊपर तक पूरा भर दिया। सबने खुशी मनाई कि आज तो काफिर को खत्म कर दिया।
कबीर साहेब जी को तलवार से काट ने की साजिश
शेखतकी ने सोचा कि कबीर जी को तलवार से काट कर उसके टुकड़े टुकड़े कर दें। शेखतकी ने उनकी हत्या के लिए कुछ गुंडे तैयार किए। शेखतकी उन गुंडों के साथ उनकी कुटिया में आया जहां कबीर साहेब रात में सो रहे थे और उसने कबीर जी पर बेतहाशा तलवार से वार किए। लेकिन तलवार बार बार कबीर जी के शरीर से आर-पार निकल गई क्योंकि कबीर साहेब जी का शरीर पांच तत्वों से बना नहीं है वह नूरी शरीर है। फिर भी अनगिनत वार कर अपनी तरफ से मृत समझ लिया। लेकिन समर्थ को कौन मार सकता है। जब शेखतकी और वह गुंडे चलने लगे तो कबीर साहेब जी ने पीछे खड़े होकर आवाज लगाई कि शेखतकी आज कुटिया में आए हो तो दूध पीकर ही जाना। सभी ने सोचा कि भूत आ गया है और सभी भयभीत हो गए और डरकर भाग गए। लेकिन दुष्ट व्यक्ति अपने स्वभाव से बाज़ नहीं आता और उसकी दुर्बुद्धि उसे सत्य स्वीकार करने ही नहीं देती है।
साहिब कबीर को मारण चाल्या, शेखतकी जलील।
आर पार तलवार निकल गई, फिर भी समझा नहीं खलील।।
ज्ञान से कम चमत्कार देखकर बने थे 64 लाख शिष्य
कबीर साहेब जी द्वारा अनेकों अनहोनी लीलाएं की गईं जिनसे प्रभावित होकर उनके 64 लाख शिष्य बने थे। परमेश्वर कबीर साहेब जी तो भूत-भविष्य तथा वर्तमान की सब जानते हैं। उनको पता था कि ये सब चमत्कार देखकर आए हैं तथा इनको मेरे आशीर्वाद से हुए भौतिक लाभों के कारण मेरी जय -जयकार कर रहे हैं। इनको मुझ पर विश्वास नहीं है कि “मैं परमात्मा हूं।” परंतु देखा- देखी कहते अवश्य हैं कि कबीर जी हमारे सतगुरु जी तो स्वयं परमात्मा आए हैं।
एक वैश्या थी जो काशी में बहुत बदनाम थी। एक दिन वह रात्रि के समय अपने घर की छत पर बैठी थी। उसे परमेश्वर कबीर साहेब जी का सत्संग सुनने को मिला जो उसके मकान से कुछ ही दूरी पर किसी के घर पर हो रहा था। सत्संग के वचनों से प्रभावित होकर वह कांपने लगी। विचार किया कि मैंने तो अपना अनमोल जीवन व्यर्थ कर दिया। बदनाम होकर जो धन संग्रह किया है, वह यहीं रह जाएगा। इस धन को संग्रह करने में जो पाप किए हैं, ये मेरे साथ जाएंगे क्योंकि सत्संग में यही विचार बताए गए थे। वह बहन घर से निकलकर सत्संग स्थल पर गई। सतगुरुदेव कबीर साहेब जी से अपना परिचय बताया तथा कहा कि मैंने जीवन में प्रथम बार ऐसा ज्ञान सुना है। मैं अपना कल्याण कराना चाहती हूं। क्या मेरा भी कल्याण संभव है गुरुदेव? क्या मेरे जैसी पतिता का भी उद्धार हो सकता है? इस जीवन से तो मैं मरना उचित समझती हूं। मुझे ज्ञान नहीं था कि मैं मनुष्य जीवन के मूल उद्देश्य को छोड़कर नीच कर्म में लिप्त थी।
आत्मा निरमल कैसे होती है?
उस लड़की की दास्तां सुनकर परमेश्वर कबीर साहेब जी ने कहा कि बेटी! कपड़ा मैला हैं तो साबुन-पानी से धोने से साफ हो जाता है। जब तक प्राणी सत्संग रूपी साबुन-पानी के संपर्क में नहीं आता तो उसके पाप कर्म रूपी मैल साफ नहीं होते। सांसारिक कार्यों में तथा अपराधिक कर्मों से आत्मा मलीन हो जाती हैं। जैसे वस्त्र पहनते हैं तो मैले हो जाते हैं। उनको प्रतिदिन साबुन तथा पानी से धोया जाता है तो मैल प्रतिदिन साफ हो जाता है। वस्त्र उज्जवल रहता हैं। इसी प्रकार अपराधिक कार्य त्यागकर करने योग्य सांसारिक कार्य करने में भी पाप होता है। जैसे पृथ्वी पर चलते हैं, तो जीव जंतु मरते हैं। भोजन पकाते हैं तो अग्नि में जीव मरते हैं। मजदूरी करते हैं, खेती करते है, तो उनमें भी जीव मरते हैं। जो शास्त्र विधि अनुसार साधना करते है तथा दैनिक कार्य भी करते हैं उनके पाप प्रतिदिन वस्त्र के मैल की तरह नष्ट होते रहते हैं।
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आप दीक्षा लो तथा पाप कर्म त्याग कर मर्यादा में रहकर साधना करो कल्याण अवश्य होगा। सतगुरु कबीर जी के शिष्य विवेकहीन थे। वे केवल लाभ मिलने के कारण ही सत्संग में आते थे। ज्ञान पर अमल नहीं करते थे। वे एक दूसरे से कहते थे, कि यह बदनाम औरत सत्संग में आने लगी है, शहर में गुरुजी की निंदा हो रही है, लोग कह रहे हैं की कैसा गुरु है जो वैश्या को अपने पास बैठाता है। फिर सतगुरु कबीर साहेब जी सत्संग वचनों के द्वारा उन मुर्ख शिष्यों को समझाते थे, परंतु वे ज्ञान को महत्व नहीं देते थे। अपनी बुद्धि से ही काम ले रहे थे। कबीर परमेश्वर जी सत्संग में बताते थे कि :-
कुष्टि होवे संत बंदगी कीजिए, हो वैश्या कै विश्वास चरण चित दीजिए। |
इस प्रकार परमेश्वर कबीर साहेब जी संकेत करके उन दुर्बुद्धि शिष्यों को समझाना चाहते थे। परन्तु वे लोकलाज को परमात्मा के वचनों से अधिक तवज्जों (महत्व) देते थे। वे खुलकर तो सतगुरू जी को कह नहीं पाते थे। परन्तु उस लड़की को अवश्य बाधा करते थे।
64 लाख शिष्यों की परीक्षा लेना
एक दिन परमेश्वर कबीर जी ने शिष्यों की परीक्षा लेनी चाही कि देखूं तो ये कितने ज्ञान को समझे हैं। यदि इनको विश्वास ही नहीं है तो यह मोक्ष के अधिकारी नहीं हो सकते और यदि ऐसा है तो यह तो मेरे सिर पर व्यर्थ का भार हैं। यह विचार करके एक योजना बनाई और अपने शिष्य रविदास से कहा कि एक हाथी किराए पर लाओ उस लड़की से कहा कि बेटी आप मेरे साथ हाथी पर बैठकर साथ चलोगी। लड़की ने कहा जो आज्ञा गुरुदेव! अगले दिन सुबह लगभग 10:00 बजे से हाथी के ऊपर तीनों सवार होकर काशी नगर के मुख्य बाजार में से गुजरने लगे। संत रविदास जी हाथी को चला रहे थे। कबीर जी ने एक बोतल में गंगा का पानी भर लिया। उस बोतल को मुख से लगाकर घूंट -घूंट कर पी रहे थे। लोगों को लगा कि कबीर जी शराब पी रहे हैं। शराब के नशे में वैश्या को सरेआम बाजार में लिए घूम रहे हैं।
काशी के व्यक्ति एक दूसरे को बता रहे हैं कि देखो! बड़े-बड़े उपदेश दिया करता था कबीर जुलाहा। आज इसकी पोल-पट्टी खुल गई। यह लोग सत्संग के बहाने ऐसे कर्म करते हैं। काशी के व्यक्ति कबीर जी के शिष्यों को पकड़ पकड़ लाकर दिखा रहे थे कि देख तुम्हारे परमात्मा की करतूत। शराब पी रहे हैं, वैश्या को लिए सरेआम घूम रहा है। यह लीला देखकर वे 64 लाख नकली शिष्य कबीर जी को त्याग कर चले गए और पहले वाली साधना करने लगे, लोक लाज में फंसकर गुरु विमुख हो गए। परमात्मा कबीर साहेब जी काशी बाजार में घूमकर वापिस आ गए तथा रविदास जी हाथी वाले को हाथी देकर अपने घर चले गए।
कबीर साहेब जी की यह लीला देखकर सब कहने लगे कि यह जुलाहा भ्रष्ट हो गया है। भरे बाजार में दिन के समय शराब पीकर वैश्या के साथ घूम रहा है। लोकलाज समाप्त कर दी है। हमारी बहन-बेटियों का बाहर निकलना मुश्किल हो गया है। बाप-बेटी, भाई-बहन कैसे यह अभद्र क्रिया सहन करेंगे। चलो राजा बीर सिंह बघेल जी को शिकायत करते हैं। हजारों की संख्या में जनता राज दरबार के सामने जाकर कहने लगी कि कबीर जी को सज़ा दो। उस दिन दिल्ली का सम्राट सिकंदर लोदी भी काशी में आया था और राज दरबार में उपस्थित था। दोनों नरेश बाहर आए। जनता की शिकायत सुनी तो सिकंदर राजा क्रोधित होकर बोला कबीर को बुलाकर लाओ। परमेश्वर कबीर जी को सिपाही पकड़कर लाए।
कहौ कबीर यौह क्या किया, गनिका लिन्हीं संग। गरीबदास भूले भक्ति, परया भजन में भंग।।
सुनौं सिकंदर बादशाह, हमरी अरज अवाज। गरीबदास वह राखिसी, जिन यौह साज्या साज।।
सिकंदर राजा ने कहा कि हे कबीर जी! यह क्या गलती कर दी। आपकी भक्ति में विघ्न पड़ गया है। आपने वैश्या को साथ लेकर महान गलती की है। कबीर जी ने कहा हे बादशाह! मेरी अर्ज सुनो। मेरी भक्ति की रक्षा वहीं करेगा जिसने यह कर्म मेरे से करवाया। जिसने सर्व सृष्टि की रचना की है।
सिकंदर लोदी ने जनता को शांत करने के लिए अपने प्राण दाता का भी अनादर किया। अपने हाथों से कबीर साहेब जी के हाथों में हथकड़ियां लगाई, पैरो में बेड़ी तथा गले में तौक (लोहे की भारी बेल) डाली और आदेश दिया कि जनता की इच्छा अनुसार नौका में बैठाकर गंगा दरिया के मध्य में डालकर डुबोकर मार दो।
कबीर साहेब जी को गंगा नदी में डुबोकर मारने की कोशिश
सभी की एक राह बन गई, चार पांच मुस्तंडो ने कबीर साहेब जी को गंगा नदी में नाव में बैठाया उनके हाथ पैर बांध दिए। उनके गले में तौक(लोहे की भारी बेल) डाल दी व बीच गंगा नदी में जाकर उन्हें पटक दिया। गंगा दरिया में अथाह जल था। लेकिन क्या होना था, परमेश्वर कबीर साहेब जी को लगाई गई सभी बेड़ियां टूट गई और वे जल के ऊपर सुखासन (आलती- पालती) लगाकर आराम से बैठ गए। यह अचरज देखकर भी उन मूर्खों ने परमेश्वर को नहीं समझा। उनके साथ राजा सिकंदर का धार्मिक पीर शेखतकी भी था जिसने मोर्चा संभाल रखा था। उसने कहा कि यह कबीर जंत्र-मंत्र जानता है। इसने जल को बांध दिया है। इसलिए नहीं डूब रहा है। इसको नौका में बिठाकर किनारे लाओ। ऐसा ही किया गया। शेखतकी ने कहा इसके शरीर के साथ भारी पत्थर बांधकर पुनः गंगा के मध्य ले जाकर जल में फेंक दो। ऐसा ही किया गया। इस बार भी सब पत्थर बंधन मुक्त होकर जल में डूब गए। परन्तु परमेश्वर कबीर साहेब जी जल के ऊपर सुखासन लगाए बैठे थे। नीचे से गंगा की लहरे बह रही थी। परमेश्वर आराम से जल के ऊपर बैठे थे।
जिसके बाद शेखतकी ने आदेश दिया, इसे पत्थर मारो बचना नहीं चाहिए आज। सभी लोग उस मुर्ख के बहकावे में आ गए और अपने ही परम पिता के ऊपर पत्थर बरसाने लगे। पत्थरों से बात नहीं बनी तो तीर चलाने लगे।
और जब तीरों से भी बात नहीं बनी तो चार पहर तक तोप के गोले उस परमात्मा पर बरसाएं गए। इससे भी उन अक्ल के अंधो को ये समझ नहीं आया कि यह परमात्मा है, यह अविनाशी है। इनके पैर पकड़ ले।
इस पर गरीब दास साहेब जी ने कहा है कि -:
“गरीब दास उस पुरी में, सबकी बुद्धि का नाश”
शेखतकी कबीर जी को मारने का अवसर हाथ से जानें नहीं देना चाहता था। अब शेखतकी ने कहा कि तोप मंगाओ।
परमेश्वर कबीर साहेब जी को तोप से मारने की साजिश
शेखतकी ने कहा कि कबीर का तोप से गोले मारकर काम तमाम कर दो। ऐसा ही किया गया तोप यंत्र से गोले चलाए गए परंतु कबीर साहेब जी के पास एक भी नहीं गया। कोई तो वहीं गंगा जल में जाकर गिर जाय। कई दूसरे किनारे पर जाकर गंगा किनारे शांत हो जाएं। कोई कुछ दूर तालाब में जाकर गिरे। परन्तु परमेश्वर के निकट एक भी न जाय।
इस प्रकार चार पहर (12 घंटे) तक यह जुल्म शेखतकी करता रहा। जनता का विवेक धर्म गुरुओं ने हर रखा था। परमेश्वर कबीर साहेब जी ने दया करी। जल के अन्दर समा गए। शेखतकी खुशी से नाचने लगा कि डूब गया दुश्मन। अब शव पर गारा (रेग) तथा रेत चढ़ जाएगी। मिट्टी में दफ़न हो जाएगा। परमेश्वर कबीर जी अंतर्ध्यान होकर रविदास जी की कुटिया पर गए और दोनों परमात्मा की चर्चा करने लगे।
परमेश्वर कबीर साहेब जी को खूनी हाथी से मरवाने की कोशिश
शेख तकी अपने प्रशंसकों के साथ संत रविदास जी की कुटिया पर पहुंचा तो देखा कि कबीर जी तो वहा उपस्थित थे और एक तारे से शब्द गा रहे थे। शेख तकी की तो मां सी मर गई। शर्म और क्रोध वश होकर सीधा सिकंदर लोधी राजा के पास विश्राम गृह में गया तथा बताया कि कबीर न तो जल में डूबा, न तोप से मरा। वह जादूगर हैं, जंत्र मंत्र जानता है। जिस कारण से बच जाता है। अबकी बार इसको खूनी हाथी से मरवाते है। राजा ने आज्ञा दे दी। नगर में मुनादी कर दी कि कल सुबह 10 बजे कबीर को खूनी हाथी से कुचलवा (रौंदवा) कर मारा जाएगा। सब देखने आना।
वह एक निश्चित स्थान होता था जो कि वर्तमान में बने स्टेडियम की तरह होता था। उस ऊंचे मचान (स्टेज) पर राजा-मंत्री तथा अन्य उच्च अधिकारी बैठते थे। उस दिन राजा सिकंदर लोदी तथा बीर देव सिंह बघेल के अतिरिक्त मंत्री तथा अन्य उच्च अधिकारी भी विराजमान थे। शेख तकी पीर ने महावत (हाथी को चलाने वाले) से कहा कि हाथी को एक दो शी शी शराब की पिला दे ताकि शीघ्र कबीर को मार डालें ।
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ऐसा ही किया गया। सब ओर दर्शकों की भीड़ थी। एक और ऊंचे मचान पर बैठे राजा तथा मंत्री को देख हाथी को लेकर महावत कबीर जी की ओर चला। कबीर जी के हाथ पैर बांधकर पृथ्वी पर डाल रखा था। जब हाथी परमेश्वर कबीर जी से दस कदम (50) दूर रह गया तो परमेश्वर कबीर जी के पास बब्बर शेर खड़ा केवल हाथी को दिखाई दिया। हाथी डर से चिल्ला कर (चिंघाड़ मारकर) दुम दबाकर मुंडी धुनकर (सिर को आपत्ति के समय भय से ऊपर-नीचे हाथी किया करता है, उसको मुंडी धुनना कहते हैं) वापिस भागने लगा तो महावत ने उसको अंकुश मारा।
फिर भी हाथी वापिस भागने लगा। साथ खड़े सैनिकों ने हाथी की हिंकों में ( पशु के अगले पैरो के ऊपर के जोड़ को हींक कहते हैं जो शरीर से लगे होते हैं) भाले मारे। हाथी की कुखों में भाले मारे। परन्तु हाथी परमेश्वर कबीर जी की ओर न जाकर अन्य दिशा को भागने की कोशिश कर रहा था। तब परमेश्वर कबीर जी ने महावत को भी सिंह के दर्शन करा दिए। डर के मारे वह भी हाथी से गिर गया। हाथी भाग गया। तब परमेश्वर कबीर साहेब जी के सब रस्से टूट गए और परमात्मा खड़े हुए और शेखतकी की यह योजना विफल रही। इन सभी घटनाओं से शेखतकी व अन्य हिंदू मुस्लिम धर्म के धर्म गुरुओं ने सोचा, क्या किया जाए कबीर का? यह न मारने से मरता है, न हमें ज्ञान में आगे आने देता है। इसने हमारा जीना हराम कर रखा है।
कबीर साहेब जी को नीचा दिखाने की कुचेष्टा
एक बार फिर से सबने मिलकर सलाह की कि कबीर मारने से तो मरता नही, इसको बेईज्जत कर दो अपने आप भाग जायेगा। इसके लिए शेखतकी पीर ने कबीर साहेब को नीचा दिखाने के लिए 3 दिन के भंडारे की कबीर साहेब के नाम से सभी आश्रमो मे झूठी चिठ्ठी डलवाई थी कि कबीर जी 3 दिन का भंडारा करेंगे, भोजन के बाद एक असरफी, एक दोहर भी देंगे।
उनका उद्देश्य ये था कि कबीर जी के पास खाना खिलाने के लिए कुछ होगा नहीं, डरकर भाग जायेगा। लेकिन परमेश्वर कबीर साहेब जी ने अपनी शक्ति का परिचय दिया व 18 लाख लोगों को 3 दिन तक मोहन भोजन कराया और सबको असरफी और दोहरें दी। शेखतकी का ये प्रयास भी विफल हुआ व ये सब लीला देख कई लाखों लोगों ने कबीर साहेब जी की दीक्षा ली। कबीर साहेब ने 3 दिन का भंडारा भी करा दिया था, उनकी महिमा भी हुई। ऐसे ऐसे कई सितम लोगो ने धार्मिक गुरुओं के बहकावे मे आकर परमेश्वर कबीर साहेब जी के साथ किए थे।
वर्तमान में हुई बदमाशी
इसी प्रकार आज संत रामपाल महाराज जी के साथ भी यही स्थिति है। संत रामपाल महाराज जी पाखंडबाद को खत्म करते हुए सभी धर्मों के सद्ग्रन्थों मे प्रमाणित सत्य भक्ति विधि बताते है। जिस वजह से कबीर साहेब जी के साथ 600 वर्ष पहले हुई घटनाओं को आज फिर से दोहराया जा रहा है। आज वर्तमान में भी विश्व के सभी नकली धर्म गुरुओं ने अपनी रोजी रोटी के चक्कर में भोली भाली जनता को बरगला कर संत रामपाल महाराज जी के विरोध में खड़ा कर दिया हैं, और उनके ऊपर हमला करवाते हैं। लेकिन दोस्तों आज समाज शिक्षित है, अब इन नकलियो की दाल नहीं गलेगी। एक दिन ऐसा आएगा जब जनता इनसे जवाब मांगेगी। दोस्तों एक गूढ़ रहस्य जो अब आपको हम बताने जा रहे हैं कि परमेश्वर कबीर साहेब जी के अवतार संत रामपाल महाराज जी है। अब समय संत रामपाल जी से दीक्षा लेकर मोक्ष प्राप्त करने का हैं।
यह समय निकल गया तो कुछ हाथ नहीं लगेगा। कबीर साहेब जी हमारे पिता है, हमारे सृजनहार है। वह अपना सत्य ज्ञान बताने के लिए अपने निज धाम सतलोक से यहां आते हैं, लेकिन हम उनको दुःखी करते हैं एक शराबी बच्चे की तरह। हम अपने पिता के साथ अभद्र व्यवहार करते हैं। लेकिन वह दयालु है, हमारे जनक है और वहीं हमारे मात्र शुभ चिंतक है। तो आप सभी से प्रार्थना है कि इतिहास की हुईं गलतियों को फिर से न दोहराए। संत रामपाल महाराज जी को पहचानें, उनका ज्ञान सुने और गुरु दीक्षा लेकर अपना कल्याण करवाए।
अधिक जानकारी हेतु उनके सत्संग सुने साधना चैनल पर शाम 7:30 पर संत रामपाल महाराज जी की पवित्र शास्त्रों पर आधारित लिखित पुस्तकें आप हमारी वेबसाइट से डाउनलोड करें:-