आज हम आपको प्रमाण सहित सतलोक (Satlok) के बारे में बताएंगे जिसके बारे में शायद ही आपने सुना और पढ़ा होगा क्योंकि हमारे धर्म गुरुओं ने हमें मूर्ख बना कर रखा हुआ था। हमें अक्षर ज्ञान तो हो गया परंतु अध्यात्म ज्ञान नहीं होने दिया गया।
एक काल (समय) जब आवै भाई। सबै सृष्टि लोक सिधाई।।
अर्थात एक काल यानि जब कलयुग पाँच हजार पाँच सौ पाँच बीतेगा। वह काल यानि समय जब आवैगा, तब सब सृष्टि सतलोक जाएगी। अभी तक हमने केवल यही सुना था कि मृत्यु पश्चात व्यक्ति अपने कर्म आधार पर स्वर्ग और नरक में जाता है । पुण्य स्वर्ग में खर्च करने के बाद नरक में और फिर उसके बाद चौरासी लाख योनियों में जन्मता और मरता है। चौरासी लाख योनियां भोगने के बाद फिर मनुष्य जन्म का कभी सुअवसर आता है।
दुर्भाग्य हमारा हमें आज तक कोई समझदार गुरू नहीं मिला था जिसने गीता ,वेद , पुराण , शास्त्र आदि अन्य धर्म ग्रंथ खोल कर समझाए हों। परंतु परमात्मा की असीम दया से हमारे अज्ञान को दूर करने परमात्मा स्वयं अपने निज स्थान सतलोक से चलकर हमें सतज्ञान देने पृथ्वी पर आए हैं। परमात्मा पृथ्वी पर आए हुए हैं, तत्त्वदर्शी संत की भूमिका में तत्वज्ञान जगत को बताने आए हैं जिसे जानकर मनुष्य सतभक्ति करेगा और स्वर्ग – नरक में जाने से बच जाएगा। मोक्ष प्राप्त करके सीधा सतलोक जाएगा।
यहां हम आपको बताएंगे कि स्वर्ग और नरक से भिन्न एक सर्वोच्च स्थान है जिसे सतलोक कहते हैं।
उदाहरण के लिए स्वर्ग को एक होटल (रेस्टोरेंट) की तरह समझिए। जैसे कोई धनी व्यक्ति गर्मियों के मौसम में शिमला या कुल्लु मनाली जैसे शहरों में ठण्डे स्थानों पर जाता है। वहाँ किसी होटल में ठहरता है। जिसमें कमरे का किराया तथा खाने का खर्चा अदा करना होता है। कुछ दिनों में दस हज़ार रूपये खर्च करके वापिस अपने कर्म क्षेत्र में लौटना पड़ता है। फिर दस ग्यारह महीने मजदूरी मेहनत करता है पैसा इकट्ठा करता है। यदि किसी वर्ष कमाई अच्छी नहीं हुई तो गर्मियों की छुट्टियां भी घर पर बितानी पड़ेंगी ।
नरक में जाने वाली आत्मा को यमदूतों द्वारा भरपूर यातनाएं दी जाती हैं। उदाहरण के तौर पर जो व्यक्ति मनुष्य जन्म में शराब का एक घूंट भी पीता है , वहां नरक में उसे मूत्र पिलाया जाता है। हर पाप कर्म के दंड की जानकारी गरूड़ पुराण में लिखी हुई है। इसे व्यक्ति को जीते जी पढ़ना चाहिए। स्वर्ग और नरक की कामना तो व्यक्ति को ख्वाब में भी नहीं करनी चाहिए।
स्वर्ग को पुण्य खर्च करने वाला होटल जानो और नरक को यात्नाएं सहन करने वाला कुआं। इस पृथ्वी लोक पर साधना करके कुछ समय स्वर्ग रूपी होटल में चला जाता है। फिर अपनी पुण्य कमाई खर्च करके वापिस नरक तथा चौरासी लाख प्राणियों के शरीर में कष्ट पाप कर्म के आधार पर भोगना पड़ता है।
■ क्या है सतलोक, कहां है , कौन रहता है वहां, कैसे पहुंचा जा सकता है , वहां जाने की विधि क्या है?
पूर्ण परमात्मा कविर्देव (कबीर परमेश्वर) ने नीचे के तीन और लोकों (अगमलोक, अलख लोक, सतलोक) की रचना शब्द (वचन) से की।
पूर्ण प्रभु सतलोक में प्रकट हुआ तथा सतलोक का भी अधिपति यही है। इसलिए इसी का उपमात्मक (पदवी का) नाम सतपुरुष (अविनाशी प्रभु)है। इसी का नाम अकालमूर्ति – शब्द स्वरूपी राम – पूर्ण ब्रह्म – परम अक्षर ब्रह्म आदि हैं। इसी सतपुरुष कविर्देव (कबीर प्रभु) का मानव सदृश शरीर तेजोमय है। जिसके एक रोमकूप का प्रकाश करोड़ सूर्यों तथा इतने ही चन्द्रमाओं के प्रकाश से भी अधिक है।
कविर्देव (कबीर प्रभु) ने सतपुरुष रूप में प्रकट होकर सतलोक में विराजमान होकर प्रथम सतलोक में अन्य रचना की।
एक शब्द (वचन) से सोलह द्वीपों की रचना की। फिर सोलह शब्दों से सोलह पुत्रों की उत्पत्ति की। एक मानसरोवर की रचना की जिसमें अमृत भरा। सोलह पुत्रों के नाम हैं :-
(1) ‘‘कूर्म’’, (2)‘‘ज्ञानी’’, (3) ‘‘विवेक’’, (4) ‘‘तेज’’, (5) ‘‘सहज’’, (6) ‘‘सन्तोष’’, (7)‘‘सुरति’’, (8) ‘‘आनन्द’’, (9) ‘‘क्षमा’’, (10) ‘‘निष्काम’’, (11) ‘जलरंगी‘ (12)‘‘अचिन्त’’, (13) ‘‘प्रेम’’, (14) ‘‘दयाल’’, (15) ‘‘धैर्य’’ (16) ‘‘योग संतायन’’ अर्थात् ‘‘योगजीत‘‘।
सतपुरुष कविर्देव ने अपने पुत्र अचिन्त को सत्यलोक की अन्य रचना का भार सौंपा तथा शक्ति प्रदान की। अचिन्त ने अक्षर पुरुष (परब्रह्म) की शब्द से उत्पत्ति की तथा कहा कि मेरी मदद करना। अक्षर पुरुष स्नान करने मानसरोवर पर गया, वहाँ आनन्द आया तथा सो गया। लम्बे समय तक बाहर नहीं आया। तब अचिन्त की प्रार्थना पर अक्षर पुरुष को नींद से जगाने के लिए कविर्देव (कबीर परमेश्वर) ने उसी मानसरोवर से कुछ अमृत जल लेकर एक अण्डा बनाया तथा उस अण्डे में एक आत्मा प्रवेश की तथा अण्डे को मानसरोवर के अमृत जल में छोड़ा।
अण्डे की गड़गड़ाहट से अक्षर पुरुष की निंद्रा भंग हुई। उसने अण्डे को क्रोध से देखा जिस कारण से अण्डे के दो भाग हो गए। उसमें से ज्योति निंरजन (क्षर पुरुष) निकला जो आगे चलकर ‘काल‘ कहलाया। इसका वास्तविक नाम ‘‘कैल‘‘ है। तब सतपुरुष (कविर्देव) ने आकाशवाणी की कि आप दोनों बाहर आओ तथा अचिंत के द्वीप में रहो। आज्ञा पाकर अक्षर पुरुष तथा क्षर पुरुष (कैल) दोनों अचिंत के द्वीप में रहने लगे (बच्चों की नालायकी उन्हीं को दिखाई कि कहीं फिर प्रभुता की तड़फ न बन जाए, क्योंकि समर्थ बिन कार्य सफल नहीं होता) फिर पूर्ण धनी कविर्देव ने सर्व रचना स्वयं की।
अपनी शब्द शक्ति से एक राजेश्वरी (राष्ट्री) शक्ति उत्पन्न की, जिससे सर्व ब्रह्माण्डों को स्थापित किया। इसी को पराशक्ति परानन्दनी भी कहते हैं। पूर्ण ब्रह्म ने सर्व आत्माओं को अपने ही अन्दर से अपनी वचन शक्ति से अपने मानव शरीर सदृश उत्पन्न किया। प्रत्येक हंस आत्मा का परमात्मा जैसा ही शरीर रचा जिसका तेज 16 (सोलह) सूर्यों जैसा मानव सदृश ही है। परन्तु परमेश्वर के शरीर के एक रोम कूप का प्रकाश करोड़ों सूर्यों से भी ज्यादा है। ( अवश्य पढ़ें पुस्तक ज्ञान गंगा )
कहा जाता है कि सतलोक एक ऐसा स्थान है जहाँ सुख ही सुख हैं और वहाँ किसी वस्तु का अभाव नहीं है।
हमारे सदग्रंथों में प्रमाण है कि सतलोक पृथ्वी लोक से लगभग 16 शंख कोस की दूरी पर स्थित है। जहां जाने के लिए हमें देवी देवताओं, ब्रह्म और पारब्रह्म को इनकी कमाई सौंपनी पड़ती है। सतलोक काल निरंजन और अक्षर ब्रह्म के लोकों को पार करके जाया जाता है। सतलोक सबसे उपर का लोक है यहाँ जाने के बाद इंसान कभी जन्म- मृत्यु में नहीं आता। शाश्वत स्थान सतलोक को गीता में सनातन परमधाम और ऋग्वेद मंडल 9 सूक्त 96 मंत्र 20 में ऋतधाम कहा है।
सतलोक कबीर परमेश्वर का निवास स्थान है और जहां के सभी प्राणी अमर हैं। वहां कोई जन्म और मृत्यु नहीं होती।
सतलोक जहाँ जाने के बाद कभी जन्म – मृत्यु नहीं होती। सतलोक में सूर्य और चंद्रमा नहीं हैं और ना ही वो लोक नाशवान है। वहाँ की मिट्टी बिल्कुल सफेद और चमकदार है। वहाँ का जल और अन्य खान – पान की वस्तुएँ कभी खराब नहीं होती। वहाँ फलों से लदे हुए पेड़ हैं, जिनका फल इतना मीठा है कि पृथ्वी लोक में तो उसका उदाहरण मिलना मुश्किल है। सतलोक में दूधों की नदियां बहती हैं और वहाँ पहाड़ों पर हीरे मोती जड़े हुए हैं। वहाँ की हंस आत्माओं के पास बड़े- बड़े घर और अपने विमान हैं।
सतलोक में पृथ्वी लोक की तरह हाहाकार नहीं है, वहाँ के स्त्री- पुरुष बहुत प्रेम से रहते हैं। वहाँ के पुरुष अपनी पत्नी के साथ बहुत प्रेम से रहते हैं और किसी और की स्त्री को दोष दृष्टि से नहीँ देखते। वहाँ के प्राणी कभी किसी को अभद्र भाषा नहीं बोलते तथा अभद्र व्यवहार नहीं करते। उनके शरीर की शोभा 16 सूर्यों के प्रकाश जितनी है।
सतलोक में सब व्यक्तियों (स्त्री-पुरूष) का अविनाशी शरीर है। मानसरोवर पर मनुष्य के शरीर की शोभा तथा स्त्रियों की शोभा 4 सूर्यों जितनी है। परंतु अमर लोक में प्रत्येक स्त्री, पुरूष के शरीर की शोभा 16 सूर्यों के प्रकाश जितनी है। सतपुरूष का भी अविनाशी शरीर है।
परमेश्वर के शरीर के एक बाल (रोम) का प्रकाश करोड़ सूर्यों तथा करोड़ चाँद के प्रकाश से भी अधिक प्रकाश है। अमर लोक में परमात्मा रहता है।
सतलोक में रहने वाले मनुष्यों को हंस कहा जाता है, उनके शरीर का प्रकाश 16 सूर्यों जितना है। वहां पर नर नारी की ऐसी ही सृष्टि है। वहाँ किसी भी चीज़ का अभाव नहीं है। वहाँ काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार तथा 3 गुण जीव को दुखी नहीं करते। सतलोक में किसी भी प्रकार का कोई दुख नहीं है अर्थात उसे सुखमय स्थान भी कहते हैं। वहां पर हर एक जीव का अपना महल है तथा अपना विमान है। वह भी बहुत सुंदर तथा हीरे, पन्नों से जड़े हुए हैं। वहाँ श्वासों से शरीर नही चलता। वहाँ जीव अमर है।
केवल सतभक्ति करके ही सतलोक जाएंगे। सतलोक में सतनाम (मंत्र) के सहारे सब हंस गए हैं। सतलोक में अमृत फल का भोजन खाते हैं। काल लोक में युगों से भूखे प्राणियों की भूख तृप्त सतलोक में होती है। सब आत्माऐं स्त्री-पुरूष सुधा यानि अमृत पीते हैं। जन्म-जन्म की प्यास समाप्त हो जाती है। कामिनी रूप यानि जवान स्त्रियां हैं। वे अपने-अपने पतियों के लिए प्राणों से भी प्यारी हैं। सत्यलोक के निवासी पुरूष सब स्त्रियों को प्रेम भाव से निहारते (देखते) हैं। दोष दृष्टि से नहीं देखते। कोई भी व्यक्ति अनहित यानि कटु वचन व्यंग्यात्मक वचन या अभद्र भाषा नहीं बोलते।
सब प्रेम भाव से अपनी-अपनी प्रिय रानी यानि पत्नी के साथ मधुर भाव से रहते हैं। उन स्त्रियों की शोभा मन को बहुत लुभाने वाली है। सब स्त्रियां (कामिनी) हंस रूप यानि पवित्र आत्माऐं हैं। उनका रंग चढ़ा रहता है यानि सदा यौवन बना रहता है। वहाँ स्त्री वृद्ध नहीं होती, न पुरूष वृद्ध होते हैं। सदा जवान रहते हैं।
परमेश्वर कबीर जी ने स्वामी रामानंद जी, संत धर्मदास जी, संत गरीबदास जी, संत दादू जी तथा संत नानक देव जी को सत्यलोक में ले जाकर अपना परिचय करवाकर पृथ्वी पर शरीर में छोड़ा था। फिर सबने परमात्मा की कलम तोड़ महिमा गाई।
फाही सुरत मलूकी वेस, उह ठगवाड़ा ठगी देस।।
खरा सिआणां बहुता भार, धाणक रूप रहा करतार।।
मैं कीता न जाता हरामखोर, उह किआ मुह देसा दुष्ट चोर।
नानक नीच कह बिचार, धाणक रूप रहा करतार।।
प्रमाण:- गुरु ग्रन्थ साहिब के राग ‘‘सिरी‘‘ महला 1 पृष्ठ नं. 24 पर शब्द नं. 29
पृष्ठ 731 पर महला 1 में कहा है कि:-
अंधुला नीच जाति परदेशी मेरा खिन आवै तिल जावै।
ताकी संगत नानक रहंदा किउ कर मूड़ा पावै।।(4/2/9)
आदि रमैंणी अदली सारा। जा दिन होते धुंधुंकारा।
सतपुरुष कीन्हा प्रकाशा। हम होते तखत कबीर खवासा ।।
सतलोक कैसे जा सकते हैं?
जो मम संत सत उपदेश दृढ़ावै (बतावै), वाके संग सब राड़ बढ़ावै।
या सब संत महंतन की करणी, धर्मदास मैं तो से वर्णी।।
पूरा सतगुरु सोए कहावै जो , दोय अखर का भेद बतावै।
एक छुड़ावै एक लखावै, तो प्राणी निज घर को जावै।।
परमात्मा का वचन है कि जब कलयुग के 5505 वर्ष पूरे हो जाएंगे तो मैं अपना संत पृथ्वी पर भेजूंगा जो तत्वज्ञान द्वारा सतलोक का ज्ञान देगा। उस समय पृथ्वी पर सभी लोग शिक्षित होंगे। जीव मेरे द्वारा भेजे गए संत से नामदीक्षा लेकर दृढ़ होकर भक्ति करेंगे । जो सतभक्ति करेगा वह वापिस सतलोक आएगा। ( हम परमात्मा को धोखा देकर ज्योति निरंजन काल के साथ मज़े लेने पृथ्वी पर आए थे और यहां कष्ट उठा रहे हैं।) हम सभी आत्माएं सतलोक के वासी हैं। वही हमारा असली घर है।
जब तक तत्वदर्शी संत नहीं मिलेगा तब तक जन्म-मृत्यु तथा स्वर्ग-नरक व चौरासी लाख योनियों का कष्ट बना ही रहेगा। क्योंकि केवल पूर्ण परमात्मा का सतनाम तथा सारनाम ही पापों को नाश करता है। अन्य प्रभुओं की पूजा से पाप नष्ट नहीं होते। सर्व कर्मों का ज्यों का त्यों (यथावत्) फल ही मिलता है। इसीलिए गीता अध्याय 8 श्लोक 16 में कहा है कि ब्रह्मलोक (महास्वर्ग) तक सर्वलोक नाशवान हैं। जब स्वर्ग-महास्वर्ग ही नहीं रहेंगे तब साधक का कहां ठीकाना होगा, कृपया विचार करें। संत रामपाल जी महाराज जी का सत्संग साधना चैनल पर शाम 7.30-8.30 बजे देखें और आध्यात्मिक ज्ञान ग्रहण कर सतलोक के बारे में सत्य जानकारी प्राप्त करें।
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