December 24, 2024

संत रामपाल जी महाराज व उनके ज्ञान के खिलाफ फैलाए गए दुष्प्रचार की सच्चाई?

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 “परमात्मा पृथ्वी पर आए हुए हैं।” यह कहना अतिशयोक्ति नहीं है बल्कि उतना ही सत्य है जैसे आसमान में एक चंद्रमा और एक ही सूरज रोज़ दिखाई देते हैं। परमात्मा अवतार रूप में पृथ्वी पर अपने बारे में संपूर्ण ज्ञान देने आते हैं और अपनी प्यारी आत्माओं को मिलते हैं लेकिन लोग उन्हें न पहचानकर एक साधारण मनुष्य समझने की भूल अपनी अज्ञान सोच और गलत धारणाओं से कर बैठते हैं। इस लेख में संत रामपाल जी महाराज जी कबीर जी  के अवतार से संबंधित कुछ गलत धारणाओं का प्रमाण सहित खंडन करेंगे। 

जग सारा रोगिया रे जिन सतगुरु वैद्य न जाना, जग सारा रोगिया रे।

जन्म मरण का रोग लगा है तृष्णा बढ़ रही खासी।

 आवागमण की डोर गले में ये पड़ी काल की फांसी।

 जग सारा रोगिया रे।।

इस शब्द की यह चंद पक्तियां उन सभी लोगों को सचेत करने के लिए यहां लिखी गई हैं जो लोकवेद आधारित पूजा भक्ति करके अपना अनमोल मनुष्य जन्म नष्ट कर जाते हैं और मृत्यु पश्चात 84 लाख योनियों की उठापटक में जन्मते और मरते रहते हैं। यदि मनुष्य जीवन में ही मनुष्य सतगुरू, तत्वदर्शी संत की खोज कर सतभक्ति आरंभ कर लेता है तो वह अपने मानव जीवन को सफल कर सकता है।

Table of Contents

धारणा: संत रामपाल जी महाराज देवी देवताओं की भक्ति छुड़वाते हैं?

खंडन: तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज जी सभी देवी देवताओं जैसे कि श्री ब्रह्मा जी, श्री शिव जी तथा श्री विष्णु जी की सत्य साधना बताते हैं। इनके मूल मंत्रों को बताते हैं, मंत्रों के प्रभाव से, यह सभी प्रभु जितना भी लाभ दे सकते हैं यह एक सच्चे संत के साधक को देते हैं। वे अपने सत्संग में हमें बताते हैं कि तीनों देवा एक पेड़ की तीन शाखाएं हैं, और अगर कोई भी पेड़ की शाखा काट दे तो वह फल नही प्राप्त कर सकता अर्थात किए गए कर्म का फल देने वाले यही तीन देवता हैं, किंतु यह देवता तभी फल देते हैं जब हम शास्त्र अनुकूल साधना करते हैं। कुल मिलाकर संत रामपाल जी महाराज ब्रह्मा विष्णु महेश जी को छुड़ाते नहीं है बल्कि इनकी सत साधना करना बताते हैं।

धारणा: लोग कहते हैं संत रामपाल जी महाराज हिंदू देवी देवताओं का अपमान करते हैं।

खंडन: संत रामपाल जी महाराज जी सत्संग में बताते हैं,

तिनका कबहुँ ना निन्दिये, जो पाँवन तर होय।

कबहुँ उड़ी आँखिन पड़े, तो पीर घनेरी होय।।

अर्थात हमें तिनके की भी निंदा नहीं करनी चाहिए। संत रामपाल जी हिंदू देवी देवताओं का अपमान नहीं करते पर फिर भी यह बात लोगों को इसलिए महसूस होती है क्योंकि हिंदू धर्म के लोग किसी भी देवी देवता को ईष्ट रूप में पूजते  हैं, लोगों का पूजा करने का उद्देश्य लाभ प्राप्ति होता है न कि मोक्ष प्राप्त करना और लाभ और मोक्ष शास्त्र अनुकूल साधना करने से ही मिलता है। जब हम शास्त्रों में देखते हैं तो मिलता है कि केवल एक पूर्ण परमात्मा की पूजा करनी चाहिए तथा पूर्ण परमात्मा इन सभी देवी देवताओं से अन्य है, प्रमाण के लिए देखिए पवित्र श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 15 श्लोक 4-

ततः पदं तत्परिमार्गितव्यं⁶ यस्मिन्गता न निवर्तन्ति भूयः।

तमेव चाद्यं पुरुषं प्रपद्ये यतः प्रवृत्तिः प्रसृता पुराणी॥

अर्थ – उसके पश्चात उस परम-पदरूप परमेश्वर को भलीभाँति खोजना चाहिए, जिसमें गए हुए पुरुष फिर लौटकर संसार में नहीं आते और जिस परमेश्वर से इस पुरातन संसार वृक्ष की प्रवृत्ति विस्तार को प्राप्त हुई है, उसी आदिपुरुष नारायण के मैं शरण हूँ- इस प्रकार दृढ़ निश्चय करके उस परमेश्वर का मनन और निदिध्यासन करना चाहिए।

यहां गीता ज्ञान दाता प्रभु कह रहा है की कोई अन्य पूर्ण परमेश्वर है, उसी परमात्मा का ध्यान करना चाहिए तथा मैं भी उसी परमात्मा की शरण में हूं। वह एक सर्वशक्तिमान परमेश्वर इन सभी देवी देवताओं से बड़ा है। जब संत रामपाल जी महाराज यह बताते हैं कि यह तैंतीस करोड़ देवी देवता छोटे हैं उस पूर्ण परमात्मा से, तो अज्ञानतावश लोग इसे निंदा समझने लगते हैं जबकि वह वेदों और श्रीमद भगवत गीता अर्थात अपने शास्त्रों से प्रमाणित ज्ञान बता रहे होते हैं।

तीनों देवा कमल दल बसें, ब्रह्मा विष्णु महेश।

प्रथम इनकी वंदना, फिर सुन सतगुरु उपदेश।।

अर्थात पूर्ण ब्रह्म परमेश्वर की प्राप्ति के लिए सर्वप्रथम इन्हीं तीन देवताओं श्री ब्रह्मा जी, श्री विष्णु जी तथा श्री शिव जी की सत्य साधना करनी होगी, जिससे हम पूर्ण ब्रह्म को प्राप्त कर सकते हैं। वह बताते हैं हमें देवी देवताओं की साधना करते हुए ही पूर्ण परमात्मा को पाना है। इससे भी अब आप अच्छी तरह समझ सकते हैं संत रामपाल जी महाराज किसी भी देवी देवता की भक्ति को छुड़वाते नहीं हैं और ना ही किसी देवी देवता का अपमान करते हैं वे तो सभी का सम्मान करना सिखाते हैं।

धारणा: लोग कहते हैं परमात्मा निराकार है?

खंडन: परमात्मा साकार है, नर स्वरुप है अर्थात् मनुष्य जैसे आकार का है। एक तरफ जहां सभी संत बताते हैं कि परमात्मा निराकार है वहीं संत रामपाल जी महाराज जी ने वेदों से प्रमाणित करके बताया है कि परमात्मा साकार है।

प्रमाण के लिए देखिए पवित्र ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 86 मन्त्र 26-27, ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 82 मन्त्र 1-2, ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 96 मन्त्र 16-20, ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 94 मन्त्र 1, ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 95 मन्त्र 2, ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 54 मन्त्र 3, ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 20 मन्त्र 1 इन वेद मन्त्रों में साफ और स्पष्ट लिखा है कि परमात्मा साकार यानि नर आकार है। परमेश्वर का तेजोमय शरीर है, वह द्युलोक अर्थात सतलोक के तृतीय पृष्ठ पर विराजमान है। परमात्मा मनुष्य जैसा नराकार (नर आकार) है। श्रीमद्भगवत् गीता अध्याय 4 श्लोक 32 तथा 34 में भी इसका प्रमाण है।

दूसरी बात यह भी है कि जब हम पूजा करते हैं तो कहते हैं, हे परमात्मा! हम आपके दर्शन करना चाहते हैं। अगर परमात्मा निराकार होता जैसा कि मूर्ख व बुद्धिहीन लोग मानते हैं तो हम दर्शन कैसे कर सकते हैं? मतलब स्वाभाविक रूप से भी हम मानते हैं कि हम परमात्मा को देख सकते हैं, इससे भी यह सिद्ध होता है कि परमात्मा साकार है।

धारणा: ब्राह्मण कहते हैं कि कष्ट भोगने ही पड़ेंगे, पाप कर्म खत्म नही हो सकते हैं!

खंडन: सभी संत यही कहते हैं कि जो भी कर्म किए हैं वह तो भोगने से ही समाप्त होंगे तथा पाप कर्म खत्म नहीं हो सकते, लेकिन संत रामपाल जी महाराज जी ने वेदों द्वारा प्रमाणित किया है कि पुण्यकर्मों से सुख आते हैं तथा पापकर्मों से रोग व दुःख आते हैं। संत रामपाल जी ने वेदों से स्पष्ट किया है कि पाप कर्म को परमात्मा काट सकता है। यजुर्वेद अध्याय 5 मंत्र 32 तथा यजुर्वेद अध्याय 8 मन्त्र 13 में प्रमाण है पूर्ण परमात्मा पापकर्म को भी काट देता है। पूर्ण परमात्मा पाप नाशक है प्रमाण ऋग्वेद, मंडल 10, सूक्त 163, मंत्र 1

अक्षीभ्यां ते नासिकाभ्यां कर्णाभ्यां छुबुकादधि ।

यक्ष्मं शीर्षण्यं मस्तिष्काज्जिह्वाया वि वृहामि ते ॥१॥

इस संबंध में परमेश्वर कबीर जी कहते हैं,

मासा घटे न तिल बढे, विधना लिखे जो लेख।

सच्चा सतगुरु मेट के, ऊपर मार दे मेख।।

जब ही सतनाम ह्रदय धरयो,भयो पाप को नाश।

जैसे चिंगारी अग्नि की, पड़े पुराने घास।।

अर्थात पूर्ण गुरु से प्राप्त सतनाम के एक जाप से पाप कर्म का नाश ठीक उस तरह से होता है जैसे कहीं सूखी घास का ढेर लगा हो और वहां अग्नि की एक चिंगारी उस पूरे घास को स्वाहा कर राख बना देती है। यजुर्वेद अध्याय 8 मंत्र 13 व ऋग्वेद मंडल 9 सूक्त 82 मंत्र 1, 2 और 3 में प्रमाण है, परमेश्वर हमारे पापों का नाश करते हुए हमें प्राप्त होते है।

धारणा: तैंतीस करोड़ देवी देवताओ की पूजा करना सही है!

खंडन: गीता अध्याय 18 श्लोक 46, 61, 62 और 66 में, जिसकी शरण में जाने के लिए गीता ज्ञान बोलने वाले प्रभु ने अर्जुन को कहा है कि उसकी शरण में जाने से परम शान्ति यानि जन्म-मरण से छुटकारा मिलेगा तथा (शाश्वतम् स्थानम्) सनातन परम धाम यानि अविनाशी लोक (सतलोक) प्राप्त होगा।

श्लोक 66 में कहा है कि(सर्वधर्मान्) मेरे स्तर की सर्व धार्मिक क्रियाओं को(परित्यज्य माम्)मुझमें त्यागकर तू(एकम्) उस कुल के मालिक एक परमेश्वर की (शरणम्) शरण में (व्रज) जा। (अहम्) मैं (त्वा) तुझे (सर्व) सब (पापेभ्यः) पापों से (मोक्षयिष्यामि) मुक्त कर दूँगा, (मा शुच) शोक न कर।

यह एक परमेश्वर सबका मालिक कोई और नहीं बल्कि सबसे बड़ा (समर्थ) कबीर परमेश्वर हैं जिन्होंने काशी (बनारस) शहर (भारत देश) में 625 साल पहले जुलाहे रूप में लीला की थी और यथार्थ व सम्पूर्ण अध्यात्म ज्ञान (सूक्ष्मवेद) को जगत को बताया था। कबीर जी ने सर्व ब्रह्मांडों की रचना की है। कबीर जी ने क्षर पुरूष, अक्षर पुरूष, ब्रह्मा, विष्णु, महेश तथा देवी दुर्गा समेत सर्व जीवात्माओं की उत्पत्ति की है और यह ज्ञान केवल संत रामपाल जी ने सर्व मानव समाज को समझाया और धार्मिक ग्रंथों में से प्रमाण सहित दिखाया है।

धारणा: सब कहते हैं गीता का ज्ञान श्रीकृष्ण ने बोला!

खंडन: अन्य सभी संत कहते हैं कि गीता का ज्ञान श्री कृष्ण जी ने बोला, लेकिन श्रीमद भगवत गीता अध्याय 11 श्लोक 32 में बताया गया है कि 

कालोऽस्मि लोकक्षयकृत्प्रवृद्धो लोकान्समाहर्तुमिह प्रवृत: ।

ऋतेऽपि त्वां न भविष्यन्ति सर्वे येऽवस्थिता: प्रत्यनीकेषु योधा: ॥32॥

अध्याय 11 के श्लोक 32 में काल भगवान कह रहा है कि मैं सर्व लोकों का नाश करने वाला बढ़ा हुआ काल हूँ। इस समय लोकों को नष्ट करने के लिए आया (प्रकट हुआ) हूँ।

श्री मद्भगवत् गीता का ज्ञान श्री कृष्ण जी के शरीर में प्रवेश करके काल भगवान ने (जिसे वेदों व गीता में “ब्रह्म” नाम से भी जाना जाता है) अर्जुन को सुनाया। जिस समय कौरव तथा पाण्डव अपनी सम्पत्ति अर्थात् दिल्ली के राज्य पर अपने-अपने हक का दावा करके युद्ध करने के लिए तैयार हो गए थे, दोनों की सेनाएं आमने-सामने कुरूक्षेत्र के मैदान में खड़ी थीं। अर्जुन ने देखा कि सामने वाली सेना में भीष्म पितामह, गुरू द्रोणाचार्य, रिश्तेदार, कौरवों के बच्चे, दामाद, बहनोई, ससुर आदि-आदि लड़ने-मरने के लिए खड़े हैं। कौरव और पाण्डव आपस में चचेरे भाई थे। अर्जुन में साधु भाव जागृत हो गया तथा विचार किया कि जिस राज्य को प्राप्त करने के लिए हमें अपने चचेरे भाईयों, भतीजों, दामादों, बहनोइयों, भीष्मपितामह तथा गुरूजनों को मारेंगे। यह भी नहीं पता कि हम कितने दिन संसार में रहेंगे? इसलिए इस प्रकार से प्राप्त राज्य के भोग से अच्छा तो हम भिक्षा माँगकर अपना निर्वाह कर लेंगे, परन्तु युद्ध नहीं करेंगे। यह विचार करके अर्जुन ने धनुष-बाण हाथ से छोड़ दिया तथा रथ के पिछले भाग में बैठ गया। 

काल ने किया कृष्ण जी में प्रवेश!

अर्जुन की ऐसी दशा देखकर श्री कृष्ण बोले:- देख ले सामने किस योद्धा से आपको लड़ना है। अर्जुन ने उत्तर दिया कि हे कृष्ण! मैं किसी कीमत पर भी युद्ध नहीं करूँगा। उसने अपने उद्देश्य तथा जो विचार मन में उठ रहे थे, उनसे कृष्ण जी को अवगत कराया। उसी समय श्री कृष्ण जी में काल भगवान प्रवेश कर गया जैसे प्रेत किसी अन्य व्यक्ति के शरीर में प्रवेश करके बोलता है। ऐसे काल ने श्री कृष्ण के शरीर में प्रवेश करके श्री मद्भगवत गीता का ज्ञान युद्ध करने की प्रेरणा करने के लिए तथा कलयुग में वेदों को जानने वाले व्यक्ति नहीं रहेंगे, इसलिए चारों वेदों का संक्षिप्त वर्णन व सारांश “गीता ज्ञान” रूप में 18 अध्यायों में 700 श्लोकों में सुनाया। श्री कृष्ण को तो पता नहीं था कि मैंने क्या बोला था गीता ज्ञान में?

कुछ वर्षों के बाद वेदव्यास ऋषि ने इस अमृतज्ञान को संस्कृत भाषा में देवनागरी लिपि में लिखा। बाद में अनुवादकों ने अपनी बुद्धि के अनुसार इस पवित्र ग्रन्थ का हिन्दी तथा अन्य भाषाओं में अनुवाद किया जो वर्तमान में गीता प्रेस गोरखपुर (UP) से प्रकाशित किया जा रहा है।

संत रामपाल जी महाराज ने किया रहस्य को उजागर

जो विराट स्वरूप क्षेत्र में अर्जुन ने देखा था वह श्री कृष्ण जी में प्रवेश काल भगवान का था जिसकी हजार भुजाएं हैं क्योंकि भगवान कृष्ण जी विष्णु जी के अवतार थे और उनकी चार भुजाएं हैं। श्री कृष्ण जी ने अपना स्वरूप कौरवों की सभा में भी दिखाया था जब वह शांतिदूत बनकर गए थे, लेकिन कुरुक्षेत्र में आज उनसे कहा जा रहा था कि इससे पहले मैंने यह विराट रूप किसी को नहीं दिखाया, क्योंकि कुरुक्षेत्र में जो विराट रूप था वह काल भगवान का था ना कि कृष्ण भगवान का।

इन सभी उपरोक्त प्रमाणों से यह सिद्ध होता है श्रीमद भगवत गीता का ज्ञान श्री कृष्ण जी में प्रवेश करके काल भगवान ने बोला था और इस बात से भी पर्दा उठाने वाले केवल तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज जी हैं जो स्वयं परमात्मा हैं क्योंकि ऐसा भेदी ज्ञान तो केवल स्वयं परमात्मा ही बता सकता है क्योंकि पोते के जन्म की जानकारी दादा दे सकता है न कि पोता।

धारणा: हम सभी देवी देवताओं की भक्ति करते हैं, इनकी भक्ति करने से ही हमारा उद्धार हो जाएगा।

खंडन: पूर्ण परमेश्वर को प्राप्त करने का एक ही मार्ग है, शास्त्र अनुकूल साधना करना। श्रीमद भगवद गीता अध्याय 4 श्लोक 34 में बताए गए तत्वदर्शी संत से नाम दीक्षा लेकर तथा श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 17 श्लोक 23 में दिए गए मंत्रों के जाप व मर्यादा में रहकर भक्ति करने से ही हम पूर्ण परमेश्वर को प्राप्त कर सकते हैं और तभी हमारा उद्धार भी संभव है। श्रीमद भगवद गीता अध्याय 9 श्लोक 25 में बताया गया है कि 

यान्ति देवव्रता देवान् पितृन्यान्ति पितृव्रता: ।

भूतानि यान्ति भूतेज्या यान्ति मद्याजिनोऽपि माम् ।।25।।

देवताओं को पूजने वाले देवताओं को प्राप्त होते हैं, पितरों को पूजने वाले पितरों को प्राप्त होते हैं, भूतों को पूजने वाले भूतों को प्राप्त होते हैं और मेरा पूजन (काल ब्रह्म) करने वाले भक्त मुझको ही प्राप्त होते हैं। और लोग यह नहीं जानते कि मुझे प्राप्त होने के बावजूद भी पुनर्जन्म होता है।

उपरोक्त श्लोक से यह प्रमाणित है कि आप जिस भी देवी देवता की भक्ति करते हैं मृत्युपरांत आप उन्हीं को प्राप्त होते हैं ना कि पूर्ण परमात्मा को और जब तक हम पूर्ण परमेश्वर की भक्ति नहीं करेंगे तब तक हमारा पूर्ण मोक्ष नहीं हो सकता और 84 लाख योनियों से मुक्ति भी नहीं मिलेगी। श्रीमद भगवद गीता अध्याय 15 श्लोक 4 में बताया गया है कि –

ततः, पदम्, तत्, परिमार्गितव्यम्, यस्मिन्, गताः, न, निवर्तन्ति, भूयः,

तम्, एव्, च, आद्यम्, पुरुषम्, प्रपद्ये, यतः, प्रवृत्तिः, प्रसृता, पुराणी।।4।।

यहां पर गीता ज्ञान दाता काल भगवान स्वयं कह रहा है कि उस परमेश्वर की शरण में जा उसी की कृपा से तू परम शांति तथा सनातन परमधाम को प्राप्त होगा अर्थात गीता ज्ञानदाता किसी अन्य पूर्ण परमेश्वर की भक्ति करने के लिए बोल रहा है। इस प्रमाणों से यह सिद्ध होता है कि स्वयं काल भगवान भी कह रहा है की पूर्ण परमेश्वर की भक्ति करने से ही मनुष्य सनातन परमधाम अर्थात सतलोक को, पूर्ण परमात्मा को और पूर्ण मोक्ष को प्राप्त कर सकते हैं।

धारणा: पंडित और यजमान दोनों मानते हैं कि श्राद्ध निकालना अनिवार्य है।

खंडनः नकली धर्मगुरु हिंदुओं को श्राद्ध निकालने के लिए विवश करते हैं। गीता अध्याय 9 श्लोक 25 में स्पष्ट किया है कि भूत पूजने वाले भूतों को प्राप्त होंगे। श्राद्ध करना, पिण्डदान करना यह भूत पूजा है, यह व्यर्थ साधना है।

श्राद्ध-पिण्डदान के प्रति रूची ऋषि का मत

मार्कण्डेय पुराण में ‘‘रौच्य ऋषि के जन्म’’ की कथा आती है। एक रुची ऋषि था। वह ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए वेदों अनुसार साधना करता था। विवाह नहीं कराया था। रुची ऋषि के पिता, दादा, परदादा तथा तीसरे दादा सब पित्तर (भूत) योनि में भूखे-प्यासे भटक रहे थे। एक दिन उन चारों ने रुची ऋषि को दर्शन दिए तथा कहा कि आप ने विवाह क्यों नहीं किया। विवाह करके हमारे श्राद्ध करना। रुची ऋषि ने कहा कि हे पितामहो! वेद में इस श्राद्ध आदि कर्म को अविद्या कहा है, मूर्खों का कार्य कहा है।

फिर आप मुझे इस कर्म को करने को क्यों कह रहे हो? पित्तरों ने कहा कि यह बात सत्य है कि श्राद्ध आदि कर्म को वेदों में अविद्या अर्थात् मूर्खों का कर्म ही कहा है। इससे सिद्ध हुआ कि वेदों में तथा वेदों के ही संक्षिप्त रुप गीता में श्राद्ध-पिण्डोदक आदि भूत पूजा के कर्म को निषेध बताया है जिसे हमे नहीं करना चाहिए। उन मूर्ख ऋषियों ने अपने पुत्र को भी श्राद्ध करने के लिए विवश किया। उसने विवाह कराया, उससे रौच्य ऋषि का जन्म हुआ, बेटा भी पाप का भागी बना लिया। जबकि पूर्ण परमेश्वर की भक्ति करने वाले व्यक्ति की पूर्ण परमेश्वर 108 पीढ़ियों तक को पार कर देते हैं अर्थात अपने पितरों का उद्धार भी तभी हो सकता है जब हम सतसाधना अर्थात पूर्ण परमेश्वर द्वारा बताई साधना मर्यादा में रहकर करेंगे, इसलिए हमें केवल पूर्ण परमेश्वर की भक्ति करनी चाहिए।

धारणा: किसी भी कृत्रिम मंत्र जाप से मुक्ति संभव है!

वर्तमान समय में लोग विभिन्न मंत्रों का जाप करते हैं, जैसे ओम नमः शिवाय, ओम नमो भगवते वासुदेवाय, सतनाम सतनाम, राम राम हरे हरे, वाहेगुरु सतनाम, राधे राधे श्याम मिला दे, गायत्री मंत्र, साईंराम, शुक्राना गुरूजी, हरि ओम , निरंकार, या अन्य कोई भी मंत्र, किंतु तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज जी ने बताया है कि गीता अध्याय 17 श्लोक 23 में बताए गए मंत्र ’’ऊँ तत् सत्’’ के जाप से ही पूर्ण मोक्ष होता है।

ऊँ का प्रयोग कर बनाए गए अन्य नाम कृत्रिम हैं इनके जाप से साधक को कोई लाभ नहीं मिलता। गीता अध्याय 4 श्लोक 34 में बताए गए तत्वदर्शी संत से दीक्षित होने के बाद, ‘ऊँ तत् सत्’ जो गुप्त हैं (ऊँ को छोड़कर) मंत्रों का मर्यादा में रहकर जाप करने से तथा सत भक्ति करने से ही मोक्ष होता है।

गीता में केवल एक ऊँ मंत्र बताया है जो अकेले ‘‘ब्रह्म’’का है इसके नाम ओम् (ऊँ) से पूर्ण मोक्ष प्राप्त नहीं हो सकता। ‘‘ऊँ‘‘ नाम का जाप ब्रह्म का है। इसकी साधना से ब्रह्म लोक प्राप्त होता है जिसके विषय में गीता अध्याय 8 श्लोक 16 में कहा है कि ब्रह्म लोक में गए साधक भी पुनर्जन्म को प्राप्त होते हैं। पुनर्जन्म है तो पूर्ण मोक्ष नहीं हुआ जो गीता अध्याय 15 श्लोक 4 में कहा है कि परमात्मा के उस परमपद की खोज करनी चाहिए जहाँ जाने के पश्चात् साधक कभी लौटकर पुनर्जन्म में नहीं आता। वह पूर्ण मोक्ष पूर्ण गुरु से शास्त्रानुकूल भक्ति प्राप्त करके ही संभव है। यह विश्व में वर्तमान में संत रामपाल जी के अतिरिक्त किसी के पास नहीं है।

धारणा: किसी की बुराई मत करो बस अच्छे काम करो इससे ही आत्मा का उद्धार हो जाएगा!

खंडन: अकसर लोगों को यह कहते हुए सुना जाता है कि किसी की बुराई मत करो, बस अच्छे काम करो ऐसा करने से उद्धार हो जाएगा। संत रामपाल जी महाराज जी बताते हैं, एक नेक व्यक्ति को किसी की बुराई नहीं करनी चाहिए किंतु यदि कोई खेत जिसमें अच्छी तरह से सिंचाई की हुई हो यदि उसमें कोई बीज ना डाला जाए तो कोई भी फसल उत्पन्न नहीं हो सकती ठीक इसी प्रकार व्यक्ति के स्वभाव का अच्छा होना बहुत अच्छी बात है और यह होना भी चाहिए किंतु मोक्ष प्राप्ति के लिए पूर्ण गुरु धारण करके सत भक्ति करनी होगी।

धारणा: जन्म मरण समाप्त नहीं हो सकता है!

खंडन: श्रीमद भगवत गीता अध्याय 15 श्लोक 4 तथा 17 में बताए गए उत्तम पुरुष परमेश्वर की भक्ति करने वाले भक्तजन कभी भी संसार में लौट कर नहीं आते अर्थात उनका जन्म मृत्यु हमेशा के लिए समाप्त हो जाता है।

धारणा: गुरु बनाने की कोई आवश्यकता नहीं!

खंडन: जिस प्रकार हम अक्षर ज्ञान जानते हुए भी अपने सिलेबस की पुस्तकों को बिना गुरु के नहीं पढ़ सकते हैं ठीक इसी प्रकार बिना आध्यात्मिक गुरु के हम अपने आध्यात्मिक पाठ्यक्रम को नहीं समझ सकते हैं, यही कारण है कि हमें गुरु बनाना अतिआवश्यक है, इसी वजह से हिंदू समाज में गुरु बनाने की परंपरा रही है।

राम कृष्ण से कौन बड़ा , तीनहुं भी गुरु कीन्ह । 

तीन लोक के वे धनी , गुरु आगे आधीन।।

अर्थात तीन लोक के भगवान श्री राम तथा श्री कृष्ण जी ने भी गुरु धारण किया तो फिर हमारी तुम्हारी क्या विसात है। तथा गुरु नानक देव जी ने सत्य पुरुष कबीर परमेश्वर जी को अपना गुरु धारण किया, संत रविदास जी ने कबीर परमेश्वर जी को अपना गुरु बनाया, मीराबाई ने संत रविदास जी को गुरु बनाया, श्री रामचंद्र जी ने वशिष्ठ जी को अपना गुरु बनाया, श्री कृष्ण ने दुर्वासा ऋषि को अपना गुरु धारण किया, सुखदेव ने राजा जनक को अपना गुरु बनाया, दत्तात्रेय ने 24 गुरु बनाए अंततः कबीर परमेश्वर जी से नाम दीक्षा ली, धर्मदास, दादू दास मलूक दास जी ने कबीर जी को अपना गुरु बनाया तभी इनका उद्धार हुआ।

धारणा: गुरु नहीं बदलना चाहिए!

खंडन: दत्तात्रेय ने 24 गुरु बनाए, इससे सिद्ध है कि हम गुरु बदल सकते हैं, वैसे भी जब हम कक्षा 5 में पढ़ते थे तो हमारे अलग गुरु थे कक्षा 10 में आए तो अलग गुरु बने और जब आगे की पढ़ाई की तो अलग गुरु बने। इसी प्रकार यदि किसी आध्यात्मिक गुरु के पास हमारे प्रश्नों का उत्तर नहीं है तो हम गुरु बदल सकते हैं, जैसे किसी डॉक्टर के पास मरीज की बीमारी का इलाज नहीं है तो वह मरीज डॉक्टर बदल सकता है, ठीक इसी प्रकार मोक्ष प्राप्ति के लिए हमें पूर्ण संत की खोज करनी चाहिए और उसी को गुरु धारण करते हुए मर्यादा में रहकर भक्ति करनी चाहिए।

धारणा: सभी संत एक जैसे होते हैं या एक समान होते हैं!

खंडन: कोई संत परम अक्षर ब्रह्म का उपासक होता है, कोई भगवान विष्णु जी का, कोई श्री ब्रह्मा जी का, कोई श्री शिव जी का उपासक होता है। आप जिस भी संत से नाम दीक्षा लेकर जिस भी भगवान की भक्ति करेंगे आप उन्हीं भगवानों के लोक को प्राप्त करेंगे, कबीर परमेश्वर जी इस संबंध में बताते हैं कि 

साध साध सब नेक हैं, आप अपनी ठौर।

जो सतलोक ले जावेंगे वो साधु कोई और।

अर्थात साधु संत अपनी अपनी जगह हैं लेकिन जो पूर्ण मोक्ष कराएगा वह संत कोई और ही होता है।

महान संत दादू दास जी ने कहा है;

और संत सब कूप हैं, केते झरिता नीर।

दादू अगम अपार है, ये दरिया सत्य कबीर। |

अर्थात बाकी के संत एक कुएं के जल की तरह हैं कोई झरने की तरह है किंतु कबीर परमेश्वर एक ऐसी दरिया है जिसका पानी कभी नहीं सूखता अर्थात इन का ज्ञान अथाह है जिसकी गहराई को कोई नहीं पहुंच सकता है। कुल मिलाकर कहने का अर्थ यह है कि सभी संत एक समान नहीं होते हैं संतो की परख उनके ज्ञान से होती है। हमें इन सभी संतो में परम संत की खोज करके उसे गुरु बनाकर अपना उद्धार कराना चाहिए।

धारणा: मीडिया के द्वारा फैलाई गई कई बातें!

तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज जी के विषय में मीडिया ने बहुत गलत अफवाहें फैलाईं, बाद में मीडिया ने माफी भी मांगी, किंतु जब गलत अफवाहें फैलाई थी तो मीडिया के न्यूज़ चैनलों ने और अखबारों के मालिकों ने इसे ब्रेकिंग न्यूज़ बनाकर बढ़ा चढ़ा कर पेश किया किंतु जब माफी मांगी तो अखबार के एक छोटे से कोने में छोटा सा माफीनामा लिखकर काम खत्म कर दिया। मीडिया के बंधुओं से प्रार्थना है यदि आपने संत रामपाल जी महाराज जी के विषय में गलत न्यूज़ को एक हफ्ते तक चलाया था तो आपको अपने माफीनामा को भी कम से कम 1 हफ्ते तक चलाना चाहिए था। आपने तत्वदर्शी परम संत रामपाल जी महाराज जी के विषय में अखबारों में भर भर के गलत न्यूज़ छापी थीं, आपको उसके बारे में देशवासियों को बताना चाहिए था कि आपने टीआरपी बढ़ाने के लिए झूठ छापा और दिखाया। 

मीडिया वालों से प्रार्थना है कि तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज जी के ज्ञान को समझें। मीडिया चाहे तो भारत को विश्व गुरु बनाने में एक अहम योगदान प्रदान कर सकती है। मीडिया की ताकत से मानव धर्म का समर्थन कर सकते हैं तथा मीडिया स्वयं के उद्धार के साथ-साथ विश्व कल्याण के मार्ग में शामिल होकर अपना नाम इतिहास के पन्नों पर स्वर्ण अक्षरों में अंकित करवा सके।

धारणा: लोग कहते हैं संतरामपालजी भगवान नही हैं क्योंकि वे तो जेल में हैं!

खंडन: संत रामपाल जी कल भी भगवान थे और आज भी भगवान हैं और हमेशा भगवान रहेंगे। भगवान कहीं भी रहें उसके काम भगवान वाले ही होते हैं। आपके मानने या न मानने से भगवान अपने गुण नहीं छोड़ देंगे। भगवान दया के सागर, दयालु, कृपालु हैं और ये आप पर निर्भर करता है कि आप उन पर कितना विश्वास करते हैं।

संत रामपाल जी महाराज जी ने देखा कि अगर समाज को शास्त्रों में लिखे हुए सत्य को नहीं बताया गया, तो काल के दूत अर्थात नकली धर्मगुरु, हिंदू मुसलमान को आपस में लड़ा कर या अन्य क्रियाओं से या पाखंड से समाज को बर्बाद कर देंगे यानी यह लोगों को भगवान से दूर कर नास्तिक बना देंगे। तब संत रामपाल जी महाराज जी ने समाज कल्याण के लिए कबीर परमेश्वर द्वारा दिए ज्ञान को समाज में फैलाना शुरू किया, जिससे नकली पाखंडी धर्मगुरुओं के पैरों तले की ज़मीन खिसक गई, क्योंकि इस सत्य ज्ञान से सभी मानव एक हो जाएंगे, किसी में किसी भी प्रकार का मतभेद, लड़ाई झगड़ा नहीं रहेगा।

किंतु ऐसा हो जाने से इन नकली धर्म गुरुओं की दुकानें बंद हो जाएंगी, संत रामपाल जी महाराज जी को पता था कि अगर मैंने इनको छेड़ा, अर्थात इनके झूठ को उजागर किया, तो निस्संदेह यह लोग राजनेताओं को बहला फुसलाकर मेरे बारे में उल्टा सीधा बताएंगे और ऐसा ही हुआ संत रामपाल जी महाराज जी की के बारे में। आर्य समाजियों ने अन्य धर्मगुरुओं, राजनेताओं को फुसलाया और झूठे केस, मनगढ़ंत कहानियां बनाकर, संत रामपाल जी महाराज जी को जेल में डलवा दिया।

संत रामपाल जी महाराज जी मानवता को बचाने के लिए जेल गए हैं। हमें कम से कम उनके द्वारा दिए गए ज्ञान, उनके द्वारा लिखित पुस्तकों को पढ़कर उनके विचारों को पूरी तरह से समझना चाहिए कि आखिरकार एक संत के इतने अनुयाई किस प्रकार दहेज मुक्त विवाह कर रहे हैं, कैसे नशा मुक्त हो रहे हैं, उनके आध्यात्मिक ज्ञान में ऐसी कौन सी शक्ति है कि लोगों के जानलेवा रोग ठीक हो रहे हैं। उनके आध्यात्मिक ज्ञान में ज़रूर कोई ऐसी बात होगी कि वह अपने गुरुदेव के गुणगान करते थक नहीं रहे हैं। संत रामपाल जी के ज्ञान से लोगों को परमात्मा की पहचान हो गई है अब वह सत्यमार्ग पर अडिग होकर अपने गुरू पर विश्वास करते हैं। संत रामपाल जी जब चाहे बाहर आ सकते हैं। बस समय का इंतजार कीजिए। समय आने पर सबको मालूम लग जाएगा कि संत रामपाल जी से बढ़कर इस पृथ्वी पर सभी जीवों का हितैषी कोई और नहीं है।

विश्व के सभी भाई बहनों से करबद्ध निवेदन!

हम सबका परमात्मा एक है, हम सब एक परमात्मा के बच्चे हैं उसको पाने का एक ही तरीका है वह हम सब की धार्मिक पुस्तकों में विद्यमान है। उसके अनुसार चल के हम सब एक हो सकते हैं, परमेश्वर को प्राप्त कर सकते हैं, अपने वर्तमान जीवन के साथ-साथ भविष्य के सभी कष्टों को समाप्त करके पूर्ण मोक्ष प्राप्त कर सकते हैं। तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज जी द्वारा लिखित पुस्तकें जीने की राह और ज्ञान गंगा को अवश्य पढ़ें तथा अपना, अपने परिवार का और समाज का कल्याण कराएं।

मानुष जन्म दुर्लभ है, मिले ना बारंबार।

तरुवर से पत्ता टूट गिरे, बहुर ना लगता डाल।।

संत रामपाल जी महाराज के अवतरण दिवस पर विशेष

उत्तर, दक्षिण, पूर्व पश्चिम, फिरता दाने दाने नू ।

सर्व कलां सतगुरु साहेब की, हरि आए हरियाणे नू ।। 

8 सितंबर 2022 जगतगुरु तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज जी का 72 वां अवतरण दिवस है इस पावन अवसर पर निःशुल्क विशाल भंडारा, निःशुल्क नाम दीक्षा व 6 से 8 सितंबर तक 3 दिवसीय अखंड पाठ का आयोजन किया जा रहा है जिसमें आप सभी सह परिवार सादर आमंत्रित हैं। इस विशेष पर्व पर हमारे कार्यक्रम का सीधा प्रसारण सुबह 09 बजकर 15 मिनट से साधना Tv और पॉपकॉर्न Tv चैनल पर प्रसारित होगा । जिसको आप Sant Rampal Ji Maharaj Youtube Channel पर भी देख सकते हैं। संत रामपाल जी महाराज जी से आज ही नाम दीक्षा लें और अपना पूर्ण मोक्ष करवाए

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