July 27, 2024

कैसे हो बलात्कार रूपी राक्षस का खात्मा?

Published on

spot_img

वर्तमान समय में स्वतंत्रता शब्द केवल कहने के लिए रह गया जिसका असल में अब कोई मतलब या मूल्य नहीं है। आज़ादी केवल नाम मात्र की है जबकि परिदृश्य बिल्कुल इसके विपरीत है।

आज के समाज में घृणित कृत्यों जैसे शराब पीना, नशे करना, किसी की बहन बेटियों पर भद्दे कमेंट करना, परनारी स्त्री को गंदी नजर से देखना, बलात्कार जैसी अमानवीय घटनाओं का बढ़ना इत्यादि सब एक असभ्य समाज का चित्र है। इन सभी से कहीं भी एक स्वतंत्र भारत का चित्र सामने नहीं आता अपितु एक अभद्र समाज आंखो के सामने चित्रित होता है। इससे स्पष्ट है कि चाहे भारत एक स्वतंत्र देश है, इसके बावजूद स्वतंत्र देश में नारी कहीं भी सुरक्षित नहीं है। बलात्कार जैसी अमानवीय घटनाओं के बढ़ने के कारण हर पल वह एक डर के साथ जी रही है कि कहीं उसके साथ अमानवीय घटना घटित ना हो जाए।

1950 के समय का भारत और आज का भारत

1950 के भारत और आज के भारत में जमीन आसमान का फर्क है। पहले के भारत में नारी जितनी सुरक्षित थी, आज उतनी ही असुरक्षित है फिर चाहे वह घर है, चाहे वह बाहर है। पुराने समय में लड़कियों को अपनी खुद की बहन बेटियों की नज़र से ही देखा जाता था चाहे वह किसी और की ही बेटी क्यों ना होती। इसका मूल कारण यह था कि तब के समाज में कोई बुराइयां नहीं थी या यह भी कह सकते हैं कि बुराइयां नाम मात्र थी जैसे नशे की लत का ना होना, युवा वर्ग को अच्छे संस्कारों का मिलना, बड़े बूढ़ों का डर होना इत्यादि।

वर्तमान समय के वृद्ध बताते है कि लगभग 50 वर्ष पूर्व बहन-बेटियाँ खेतों में किसानी कार्य करने तथा मजदूरी करने निर्भय होकर जाया करती थी। कोई व्यक्ति या जवान पुरूष आँख उठाकर पर स्त्री व बेटी को नहीं देखता था। बेटी व बहन या चाची, ताई के सम्मानीय शब्द से संबोधित किया करते थे। सन् 1970 के बाद की वर्तमान पीढ़ी में से 60% सभ्यता व इंसानियत लगभग नष्ट हो चुकी है जो एक चिंता का विषय है।

जैसे-जैसे प्रौद्योगिक टेक्नोलॉजी उन्नति कर रही है वैसे वैसे उच्च संस्कार में कमी आ गई है। विज्ञान के क्षेत्र में उन्नति होना कुछ हद तक देश के लिए अच्छा है परंतु इसका भयावह रूप यौन उत्पीड़न तथा अन्य बुराइयों की वृद्धि के रूप में सामने आ रहा है। बलात्कार जैसे भयानक और घिनौने कृत्य के लिए अभी तक कोई सख्त कानून नहीं बनाया गया जिससे दोषी इस भयानक घटना को अंजाम देने से तनिक नहीं कतराते।

यौन उत्पीड़न की घटनाओं के बढ़ने का मुख्य कारण

वर्तमान समय में यौन उत्पीड़न की घटनाएं अखबार के पन्नों पर और टीवी में सुर्खियों में रहती हैं। आए दिन लड़कियां कहीं ना कहीं इस घिनौनी वारदात का शिकार हो रही हैं। भारत में तो बलात्कार आम बात हो गई है। लगभग हर 22 मिनट में भारत में बलात्कार हो रहा है जो एक बहुत ही संवेदनशील विषय है।

इस लोक में रहने वाले मनुष्य की वृत्ति भी वही है जो काल ब्रह्म की है। जिसने दुर्गा के साथ दुर्व्यवहार कर तीन पुत्रों की उत्पत्ति की। उसी प्रकार इस लोक में रहने वाले मनुष्यों पर भी वही प्रभाव पड़ रहा है। इसीलिए इसको छोड़कर हमें पूर्ण परमात्मा कबीर साहिब की भक्ति करनी चाहिए जो सब प्रकार के विकारों से परे हैं।

दिल दहलाने वाली बात तो यह है कि अपनी हवस को मिटाने के लिए पुरुष या युवा वर्ग इतना अंधा हो जाता है कि वह छोटी से छोटी बच्ची तक को भी नहीं छोड़ते। जिस बच्ची या नारी की चीख-पुकार से दिल पसीज जाता है, जो नारी सृष्टि को रचने में अहम भूमिका निभाती है, उसकी इज्जत को तार-तार करने के लिए वह एक पल नहीं सोचता। अपनी बहन के साथ यदि कोई छेड़छाड़ करता है तो शेर बन जाना और दूसरे की बहन बेटियों के लिए एक कुत्ते जैसी मानसिकता दर्शाना एक असभ्य समाज नहीं तो और क्या है।

इन बढ़ती अमानवीय घटनाओं का एक मुख्य कारण अभद्र फिल्में, भद्दे अश्लील गाने भी हैं। अच्छे संस्कारों से तो कोसों दूर रहकर असभ्य फिल्में बनाई जाती हैं जिसका सीधा असर युवा वर्ग पर पड़ता है जिसको देखकर युवा वर्ग में वासना उत्तेजित होती है तथा वे भी जो कुछ फिल्मों में दिखाया जाता है उसकी नकल करने के लालच में गलत संगत में पड़कर गलत काम को अंजाम देने से नहीं डरते और बाद ने पछतावा ही हाथ लगता है।

हीरो हीरोइन का फिल्मों में पारदर्शिता वाले कपड़े पहनना, जीन्स, तंग या छोटे कपड़े पहनना, आम लड़कियों के लिए और मुसीबत खड़ी कर देता है। क्योंकि समाज में उनको एक इस्तेमाल की जाने वाली चीज़ की तरह देखा जाने लगता है। इसके इलावा नशे की लत में अंधे होकर इंसान चाहे कितना ही घिनौना काम हो उसको करने से नहीं डरता। लाभ-हानि होने के कारण खुशी तथा दुःख का बहाना करके शराब आदि का सेवन करना। फिर नशे के प्रभाव में अनैतिक कार्य जैसे रेप (बलात्कार), छेड़छाड़ आदि करने लगते हैं। वे राक्षस स्वभाव के बन जाते हैं।

इससे स्पष्ट है कि फिल्में समाज में घर करती बुराइयों का मूल कारण हैं। इसके अलावा आज ना बच्चों को धार्मिक बात बताई जाती है, ना सत्संग के लिए प्रेरित किया जाता है, ना उनमें संस्कार ही रहे हैं।

अमानवीय घटनाओं के लिए सजा का प्रावधान

बेशक भारत में अमानवीय घटनाओं के लिए दोषी को मृत्युदंड दिया जाता है परंतु बलात्कार जैसी घटनाओं में इंसाफ पाने के लिए पीड़ित तथा उसके परिवार वालों को कितने ही चक्कर लगाने पड़ते हैं। समाज भी उसको गलत नज़रों से देखने लगता है। अदालत की सुनवाइयां आरोपी के बजाय पीड़ित के लिए ज्यादा मुश्किल भरी होती हैं। कई बार राजनीतिक सामाजिक या प्रशासनिक दबाव में अक्सर पीड़ित को केस वापस लेने के लिए मजबूत किया जाता है। कई मामलों में तो सबूतों के अभाव में केसों को ख़ारिज कर दिया जाता है।

  • 2012 का निर्भया कांड
  • कठुआ गैंगरेप हैदराबाद में डॉक्टर युवती से दुष्कर्म
  • अलवर में पति के सामने पत्नी के साथ दरिंदगी
  • थानागाजी गैंगरेप
  • उत्तर प्रदेश के बलरामपुर में पीड़िता के साथ दुष्कर्म
  • हाथरस गैंगरेप

जो कम होने की बजाए बढ़ती जा रही है। इससे पुरुषों में बढ़ रही मानसिक दुर्बलता साफ झलक रही है। इसका उपाय कोई मृत्युदंड नहीं है बल्कि उस सोच को बदलना है, जिसके कारण गलत विचार घर कर रहे हैं। क्योंकि ये पांच विकार जो काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार हैं जो हमारे साथ रहते हैं जिनके प्रभाव से हम सिर्फ सतभक्ती करने से बच सकते हैं। कबीर परमात्मा अपनी एक वाणी में इन पांचों विकारों के बारे में बताते हैं।

कुरंग, मतंग, पतंग, श्रंग, भृंगा,
और इंद्री एक ठगों तिस अंगा।
तुमरे संग पांचों परकाशा,
या योग युगत की झूठी आसा।

भावार्थ:- कुरंग (हिरण), शब्द पर कायल होता है जिसके कारण शिकारी एक मोहक धुन बजाकर उसको पकड़ लेता है। मतंग (हाथी) में सबसे ज़्यादा कामवासना होती है, जिससे शिकारी उसको आसानी से पकड़ लेते हैं। एक प्रशिक्षित की हुई हथिनी को हाथियों के झुंड में छोड़ दिया जाता है और कितने ही हाथी पकड़े जाते हैं। पतंगा प्रकाश पर आश्रित होने के कारण अपनी जान गवां बैठता है और श्रंग (मछली) अपनी जीभ के स्वाद के कारण अपनी जान गवा देती है और भंवरा सुगंध के स्वाद में अपनी जान गवां देता है।

कबीर जी कहते हैं के इन सबके साथ तो एक एक इंद्री है, पर मनुष्य के साथ तो पांचों विकार हैं जो उसकी मृत्यु या मुसीबत का कारण बनते हैं। इन सबसे मुक्ति केवल सच्चे नाम से हो सकती है।

बढ़ रही अमानवीय घटनाओं को रोकने का उपाय

सर्वप्रथम आपत्तिजनक फिल्मों पर रोक लगाई जानी चाहिए। यही इन बुराइयों को बढ़ावा देने में सबसे आगे हैं। परंतु इसके साथ ही एक सभ्य समाज की स्थापना केवल सच्ची भगति करने से ही हो सकती है। 33 करोड़ देवी देवताओं की भगति करने से भी इन विकारों से छुटकारा नहीं पाया जा सकता। सभी देवी देवताओं में भी ये विकार ज्यों के त्यों विद्यमान है जिसका प्रमाण हमारे सदग्रंथो में भी मिलता है।

सच्ची भक्ति केवल पूर्ण संत ही बता सकते हैं जो इन विकारों से ना केवल निजात दिला सकते हैं बल्कि उनके द्वारा मोक्ष की प्राप्ति भी संभव है।

कबीर परमात्मा ने कामवासना के बारे में अपनी एक वाणी में बताया है कि जिस प्रकार लकड़ी जलाने के बाद उसकी राख हटाई जाए तो आग ज्यों कि त्यों होती है। उसी तरह कामवासना हर पल, हर किसी में व्यापक है पर दिखाई नहीं देती। इस पर काबू केवल सतभक्ती से ही पाया जा सकता है। कबीर साहेब ने अपनी वाणी में बताया है:-

जैसे अग्नि काष्ट के माहीं,
है व्यापत पर दिखे नाहिं।
ऐसे कामदेव परचंडा,
व्यापक सकल द्वीप नौ खंडा।

पूर्ण संत कौन हैं?

वर्तमान समय में संतो की बाढ़ से आई हुई है लेकिन पूर्ण संत केवल संत रामपाल जी महाराज हैं जिन्होंने सभी धर्म ग्रंथो में से प्रमाणित भक्ति प्रदान कर रहे हैं। संत रामपाल जी महाराज के सानिध्य में एक ऐसा निर्मल और सभ्य समाज तैयार हो रहा है जिसमें इन बुराइयों की कहीं कोई जगह नहीं है। अगर किसी अनुयाई में नाम लेने से पहले कोई बुराई होती भी है तो वह वो भी छोड़ देता है।

संत रामपाल जी सभी प्रकार की बीमारियों से भी निजात दिलवाते हैं। संत रामपाल जी महाराज द्वारा दिए जा रहे सत्संग-विचार के वचनों का सब पर जादुई प्रभाव पड़ता है। उनके द्वारा बताए जा रहे तत्वज्ञान से जो कि परमात्मा के संविधान अनुसार बताया गया है, सब विकार समाप्त हो जाते हैं। उनसे नामदीक्षा प्राप्त कर अनुयाई उनके द्वारा बताई मर्यादा में रहकर भक्ति करते हैं। जिससे परमात्मा कबीर जी की शक्ति से आत्मा में शक्ति आती है और इससे गलत कार्य करने की प्रेरणा कभी नहीं मिलती। न कोई गलत कदम उठाने को मन करता है।

केवल संत रामपाल जी के विचारों से ही मानव समाज में सुधार आएगा। गिरती मानवता का उत्थान होगा। देश के लड़के-लड़की अपनी संस्कृति पर लौटेंगे। बलात्कार व यौन उत्पीड़न की घटनाऐं समूल नष्ट हो जाएंगी। कबीर जी के विचारों का प्रचार करके स्वदेशी-पुरानी सभ्यता को जगाया जा सकता है। कबीर जी अपनी वाणी में बताते हैं कि नारी के लिए किस तरह की सोच या दृष्टि रखनी चाहिए।

कबीर, परनारी को देखिये, बहन बेटी के भाव।
कह कबीर दुराचार नाश का, यही सहज उपाव।

भावार्थ :- परमात्मा कबीर जी कहते हैं कि दूसरे की स्त्री तथा लड़की को अपनी बहन-बेटी के दृष्टिकोण से देखना चाहिए जिससे मन में कभी दोष नहीं आएगा। जो संत रामपाल जी अपने सत्संगो के माध्यम से सबको परिचित करवाते हैं।

अतः इस घिनौने अपराध पर अंकुश सत्य अध्यात्म ज्ञान से लग सकता है जो केवल संत रामपाल जी महाराज ही प्रदान कर रहे हैं। उनके अतिरिक्त किसी भी गुरू का ज्ञान तथा भक्ति मंत्र शास्त्रों के अनुसार नहीं है। जिस कारण से श्रोताओं पर स्थाई प्रभाव नहीं पड़ता। उनके प्रवचन कठोर हृदय को मुलायम बना देते हैं जिससे श्रोताओं को विवश होकर अपने कर्मों पर विवेचन करना पड़ता है।

Latest articles

Dr. A.P.J. Abdul Kalam Death Anniversary: Know The Missile Man’s Unfulfilled Mission

Last updated on 26 July 2024 IST | APJ Abdul Kalam Death Anniversary: 27th...

Kargil Vijay Diwas 2024: A Day to Remember the Martyrdom of Brave Soldiers

Every year on July 26th, Kargil Vijay Diwas is observed to honor the heroes of the Kargil War. Every year, the Prime Minister of India pays homage to the soldiers at Amar Jawan Jyoti at India Gate. Functions are also held across the country to honor the contributions of the armed forces.
spot_img

More like this

Dr. A.P.J. Abdul Kalam Death Anniversary: Know The Missile Man’s Unfulfilled Mission

Last updated on 26 July 2024 IST | APJ Abdul Kalam Death Anniversary: 27th...

Kargil Vijay Diwas 2024: A Day to Remember the Martyrdom of Brave Soldiers

Every year on July 26th, Kargil Vijay Diwas is observed to honor the heroes of the Kargil War. Every year, the Prime Minister of India pays homage to the soldiers at Amar Jawan Jyoti at India Gate. Functions are also held across the country to honor the contributions of the armed forces.