आदि काल से ही मनुष्य जन्म प्राप्त जीव अपने सृजनहार की तलाश में लगा हुआ है। भाषा भिन्न नामों से उसे परमात्मा, परमेश्वर, अल्लाह, खुदा, भगवान, रब आदि नामों से संबंधित किया गया। जीव के अंदर परमात्मा की प्राप्ति की चाह ने उसे भिन्न भिन्न प्रकार की इबादत और साधना करने के लिए प्रेरित किया। यहीं इबादत और साधना की विधियां धर्म का अधार बनी। इन्ही से दुनिया भर में धर्मों का उदय और विकास हुआ है। कुछ अल्पकालिक रहे हैं, जबकि अन्य बने रहे हैं और विकसित हुए हैं। आइए जाने विस्तार से कुरान की आयत से।
कैसे बने धर्म अनेक?
समयानुसार संत, गुरु, पैगंबर, नबी रुप में महान आत्माओं ने जो इबादत् का मार्ग बताया वह धीरे धीरे धर्म का रुप धारण कर गया। मानव जिस परिवार में जन्म लेता है उसमें पीढ़ी दर पीढ़ी चल रही धार्मिक क्रियाओं को अपना लेता है। दुनिया भर में जितने भी पवित्र धर्म है उनका अधार उस धर्म की पवित्र पुस्तकें अर्थात् पवित्र सदग्रन्थ होते हैं। जैसे हिन्दू धर्म का आधार पवित्र वेद और गीता आदि हैं, ईसाई धर्म का आधार पवित्र बाईबल है, इस्लाम धर्म का आधार पवित्र कुरान है और सिख धर्म का आधार पवित्र गुरु ग्रंथ साहिब है। परन्तु वर्तमान समय की सब से बड़ी विडंबना यही है कि प्रत्येक धर्म के व्यक्ति अपने ग्रन्थों के आध्यात्मिक ज्ञान से परिचित नहीं हैं। वह देखा देखी धार्मिक क्रियाओं को कर तो रहे हैं पर धार्मिकता कहीं नजर नहीं आती और ना ही अल्लाह से होने वाला लाभ प्राप्त होता है।
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इस लेख में, हम दुनिया के प्रमुख धर्मों में से एक इस्लाम धर्म और इस्लाम धर्म की पवित्र पुस्तक कुरान के ज्ञान की चर्चा करेंगे।
इस्लाम धर्म क्या है?
कुरान की आयत: इस्लाम धर्म की सब से बड़ी खासियत है कि यह एकेश्वरवादी धर्म है जिसमें अल्लाह के सिवा किसी और की उपासना इबादत करना मना है। यह 570 ई में मक्का, सऊदी अरब में पैदा हुए पैगंबर मुहम्मद की शिक्षा का पालन करता है, मुहम्मद को केवल एक पैगंबर के रूप में देखा जाता है, न कि एक दिव्य व्यक्ति के रूप में, और उन्हें अल्लाह का दूत माना जाता है। जो दिव्य है। इस्लाम का अर्थ है “शांति” और “आधीनी”। इसलाम के मानने वाले मुसलमान कहलाते हैं और मुसलमानों के लिए सबसे पवित्र ग्रंथ कुरान शरीफ (कुरान मजीद) है।
पर अफसोस की बात यह है कि इतनी सदियों बाद भी खुद मुसलमान ही इस पवित्र किताब कुरान के ज्ञान को नहीं समझ सके। वह नमाज भी करते हैं, रोजे भी रखते हैं, कुर्बानी भी करते हैं पर कुरान में बताई बहुत सी बातों के विपरीत क्रियाओं को भी करते हैं। आज हम ऐसी ही कुछ अहम बातों की चर्चा करेंगे ।
बाईबल तथा कुरआन का ज्ञानदाता एक है
जिस अल्लाह ने ’’कुरआन‘‘ का पवित्र ज्ञान हजरत मुहम्मद पर उतारा। उसी ने पाक ’’जबूर‘‘ का ज्ञान हजरत दाऊद पर, पाक ’’तौरेत‘‘ का ज्ञान हजरत मूसा पर तथा पाक ’’इंजिल‘‘ का ज्ञान हजरत ईसा पर उतारा था। इन सबका एक ही अल्लाह है।
प्रमाण:- कुरआन मजीद की सुरा अल् मुअमिनून नं. 23 आयत नं. 49 और 50
- आयत नं. 49 :- और मूसा को हमने किताब प्रदान की ताकि लोग उससे मागर्दशर्न प्राप्त करें।
- आयत नं. 50 :- और मरयम के बेटे और उसकी माँ को हमने एक निशानी बनाया और उनको एक उच्च धरातल पर रखा जो इत्मीनान की जगह थी और स्रोत उसमें प्रवाहित थे।
- सुरा अल् हदीद नं. 57, आयत नं. 26,27 :- आयत नं. 26 :- हमने नूह और इब्राहिम को भेजा और उन दोनों की नस्ल में नुबूवत (पैगम्बरी) और किताब रख दी। फिर उनकी औलाद में से किसी ने सन्मार्ग अपनाया और बहुत से अवज्ञाकारी हो गए।
- आयत नं. 27 :- उनके बाद हमने एक के बाद एक अपने रसूल भेजे और उनके बाद मरयम के बेटे ईशा को भेजा और उसे इंजील प्रदान की और जिन लोगों ने उनका अनुसरण किया।
कुरान की आयत: कुरान की शिक्षाएं क्या है?
अल्लाह के बिना किसी और की इबादत है मना!
सूरः लुकमान-31 आयत नं. 13 :- याद करो जब लुकमान अपने बेटे को नसीहत कर रहा था तो उसने कहा, बेटा! अल्लाह के साथ किसी को शरीक न करना यानि परमेश्वर के साथ-साथ अन्य देव को ईष्ट न मानना। यह सत्य है कि अल्लाह के साथ शिर्क बहुत बड़ा जुल्म है। परन्तु आज मुसलमान दरगाहों और पीर फकीरों की कब्रों पर उपासना के लिए जाने लग गए हैं ।
मुसलमान को नम्र और आधीनी भाव में रहना चाहिए
सूरः लुकमान-31 आयत नं. 18 :- और लोगों से मुख फेरकर बात न कर, न जमीन पर अकड़कर चल। अल्लाह किसी अहंकारी और डींग मारने वाले को पसंद नहीं करता। कुरान की यह आयत इंसानों को नम्र बनने को प्रेरित करती है ताकि आपसी भाईचारा बना रहे।
अल्लाह साकार है सिंहासन पर विराजमान है
सूरः अस् सज्दा-32 आयत नं. 4 :– वह अल्लाह ही है जिसने आसमानों और जमीन को और उन सारी चीजों को जो इनके बीच है, छः दिन में पैदा किया और उसके बाद सिंहासन पर विराजमान हुआ। उसके सिवा न तुम्हारा कोई अपना है, न सहायक है और न कोई उसके आगे सिफारिश करने वाला है। फिर क्या तुम होश में न आओगे। कुरान की यह आयत सिद्ध करती है कि अल्लाह साकार है जबकि मुसलमान अल्लाह को बेचून अर्थात् निराकार मानते हैं। पर कुरान उसे साकार और एक स्थान पर रहने वाला बता रही है ।
तत्वज्ञान ही सबसे बड़ी दौलत है
सूरः अल् बकरा-2 आयत नं. 269 :- अल्लाह जिसको चाहता है, हिकमत (तत्त्वज्ञान) प्रदान करता है और जिसे हिकमत (तत्त्वज्ञान) मिली, उसे वास्तव में बड़ी दौलत मिल गई।
मजहब के विषय में जबरदस्ती नहीं करनी
कुरआन सूरः अल् बकरा-2 आयत नं. 256 :- धर्म के विषय में कोई जोर-जबरदस्ती नहीं।
सूरः यूनुस-10 आयत नं. 99 :- (हे मुहम्मद) तू किसी को मुसलमान बनने के लिए मजबूर न करना। अल्लाह के हुक्म बिना कोई इमान नहीं ला सकता।
आन उपासना निषेध
सूरः अन् निसा-4 आयत नं. 36 :- अल्लाह की भक्ति करो। आन-उपासना न करो।
नशा तथा जुआ निषेध
सूरः अल् बकरा-2 आयत नं. 219 :- शराब तथा जुए में बड़ी खराबी है, महापाप है।
ब्याज लेना पाप है
कुरआन मजीद सूरः अल् बकरा-2 आयत नं. 276 :- अल्लाह ब्याज लेने वाले का मठ मार देता है यानि नाश कर देता है और (खैरात) दान करने वाले को बढ़ाता है। और अल्लाह किसी नाशुक्रे बुरे अमल वाले इंसान को पसंद नहीं करता।
कुरआन ज्ञान दाता अपने से अन्य कादर अल्लाह की महिमा बताता है
कुरान की आयत: सूरः अस सजदा-32 आयत नं. 4 :- वह अल्लाह ही है जिसने आसमानों और जमीन को और उन सारी चीजों को जो इनके बीच है, छः दिन में पैदा किया और उसके बाद सिंहासन पर विराजमान हुआ। उसके सिवा न तुम्हारा कोई अपना है, न सहायक है और न कोई उसके आगे सिफारिश करने वाला है। फिर क्या तुम होश में न आओगे।
कुरआन का ज्ञान उतारने वाले अल्लाह ने सूरः बकरा-2 आयत नं. 255 में कहा है कि अल्लाह वह जीवन्त शाश्वत् सत्ता है जो सम्पूर्ण जगत को संभाले हुए है। उसके सिवा कोई खुदा नहीं है। वह न तो सोता है और न उसे ऊँघ लगती है। जमीन और आसमान में जो कुछ भी है, उसी का है। कौन है जो उसके सामने उसकी अनुमति के बिना सिफारिश कर सके। वह प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष सब बातों को जानने वाला है। या वह जान सकता है जिस पर वह अनुग्रह करे। इस से स्पष्ट हो रहा है कि कुरान बोलने वाले प्रभु से वह अल्लाह भिन्न है जो सबका सृजनहार है ।
कुरआन का ज्ञान देने वाले ने अपने से अन्य सृष्टि उत्पत्तिकर्ता के विषय में बताया है
सूरः फुरकान आयत नं. 52– जो अल्लाह कुरआन (मजीद व शरीफ) का ज्ञान हजरत मुहम्मद जी को बता रहा है, वह कह रहा है कि हे पैगम्बर! तुम काफिरों की बात न मानना क्योंकि वे कबीर अल्लाह को नहीं मानते। उनका सामना (संघर्ष) मेरे द्वारा दी गई कुरआन की दलीलों के आधार से बहुत जोर से यानि दृढ़ता के साथ करना अर्थात वे तुम्हारी न मानें कि कबीर अल्लाह ही समर्थ (कादर) है तो तुम उनकी बातों को न मानना।
सूरः फुरकान आयत नं. 53 से 59 तक उसी कबीर अल्लाह की महिमा (पाकी) ब्यान की गई है। कहा है कि यह कबीर वह कादर अल्लाह है जिसने सब सृष्टि की रचना की है। उसने मानव उत्पन्न किए। फिर उनके संस्कार बनाए। रिश्ते-नाते उसी की कृपा से बने हैं। खारे-मीठे जल की धाराएँ भी उसी ने भिन्न-भिन्न अपनी कुदरत (शक्ति) से बहा रखी हैं। पानी की बूँद से आदमी (मानव=स्त्राी-पुरूष) उत्पन्न किया। {सूक्ष्मवेद में कहा है कि पानी की बूँद का तात्पर्य नर-मादा के तरल पदार्थ रूपी बीज से है।} जो इस अल्लाह अकबर (परमेश्वर कबीर) को छोड़कर अन्य देवों व मूतिर्यों की पूजा करते हैं जो व्यर्थ है।
वे साधक को न तो लाभ दे सकते हैं, न हानि कर सकते हैं। वे तो अपने उत्पन्न करने वाले परमात्मा से विमुख हैं। मृत्यु के पश्चात् उन्हे पछताना पड़ेगा। उन्हें समझा दो कि मेरा काम तुम्हें सच्ची राह दिखाना है। उसके बदले में मैं तुमसे कोई रूपया-पैसा भी नहीं ले रहा हूँ, कहीं तुम यह न समझो कि यह (नबी) अपने स्वार्थवश गुमराह कर रहा है। यदि चाहो तो अपने परवरदिगार (उत्पत्तिकर्ता तथा पालनहार) का भक्ति मार्ग ग्रहण कर लो।
मोक्ष का ज्ञान तो कुरआन ज्ञान उतारने वाला भी नहीं जानता
आयत 59 :- कबीर अल्लाह (अल्लाहू अकबर) वही है जिसने सर्व सृष्टि (ऊपर वाली तथा पृथ्वी वाली) की रचना छः दिन में की। फिर ऊपर अपने निज लोक में सिंहासन पर जा विराजा। (बैठ गया।) वह कबीर अल्लाह बहुत रहमान (दयावान) है। उसके विषय में पूर्ण जानकारी किसी (बाखबर) तत्वदर्शी संत से पूछो, उससे जानो। इससे यह बात स्पष्ट हुई कि कुरआन ज्ञान देने वाला उस समर्थ परमेश्वर कबीर के विषय में पूर्ण ज्ञान नहीं रखता। उसको प्राप्त करने की विधि कुरआन ज्ञान दाता को नहीं है।
कुरआन का अन-सुलझा ज्ञान (ऐन, सीन, काफ का भेद)
अैन.सीन.काफ.। ये उन तीन नामों (मंत्रों) के सांकेतिक शब्द हैं जो मोक्षदायक कल्याणकारक मंत्र हैं। उनके प्रथम अक्षर हैं। पूर्ण संत जो इस रहस्य को जानता है, उससे दीक्षा लेकर इन तीनों मंत्रों का जाप करने से आत्म कल्याण होगा और किसी साधन से जीव को मोक्ष प्राप्त नहीं हो सकता।
संत रामपाल जी महाराज ने इन तीनों मंत्रों का ज्ञान करवाया है
संत रामपाल जी महाराज समझाते है कि ’’अैन (ऐन)‘‘ यह अरबी भाषा का अक्षर है, देवनागरी में हिन्दी भाषा का ‘‘अ’’ है तथा ‘‘सीन’’ यह अरबी भाषा की वणर्माला का अक्षर है जो देवनागरी में हिन्दी भाषा का ‘‘स’’ है तथा ‘‘काफ’’ यह अरबी वणर्माला का अक्षर है, देवनागरी में हिन्दी भाषा का ‘‘क’’ है। यह सिर्फ एक संकेत मात्र है इसका पूरा भेद संत रामपाल जी महाराज ने बताया है ।
हजरत मुहम्मद जी को भी परमात्मा मक्का में जिन्दा महात्मा के रूप में मिले थे। जिस समय नबी मुहम्मद काबा मस्जिद में हज के लिए गए हुए थे तथा उनको अपने लोक में ले गए जो एक ब्रह्माण्ड में राजदूत भवन रूप में बना है, परमात्मा ने हजरत मुहम्मद जी को समझाया तथा अपना ज्ञान सुनाया परन्तु हजरत मुहम्मद जी ने परमात्मा के ज्ञान को नहीं स्वीकारा और न सत्यलोक में रहने की इच्छा व्यक्त की। इसलिए हजरत मुहम्मद को वापिस शरीर में भेज दिया। उस समय हजरत मुहम्मद जी के कई हजार मुसलमान अनुयायी बन चुके थे, उनकी महिमा संसार में पूरी गति से फैल रही थी और वे कुरआन के ज्ञान को सर्वोत्तम मान रहे थे।
पढ़े पुस्तक मुसलमान नही समझे ज्ञान कुरआन!
नबी मुहम्मद परमात्मा के रसूल (संदेशवाहक) थे। उनके एक लाख अस्सी हजार मुसलमान अनुयायी मुहम्मद जी के समय में हुए हैं। एक लाख अस्सी हजार नबी भी बाबा आदम से हजरत मुहम्मद तक हुए हैं। उन्होंने (एक लाख अस्सी हजार नबियों तथा अनुयाइयों ने) तथा हजरत मुहम्मद जी ने ज्ञान होने के बाद कभी किसी जीव पर करद (छुरा) नहीं चलाया अथार्त् कभी भी जीव हिंसा नहीं की और माँस नहीं खाया।
इससे सिद्ध हुआ कि मुसलमान समाज भ्रमित है। अपनी पवित्र कुरआन मजीद तथा प्यारे नबी मुहम्मद जी के विचार भी मुस्लिम नहीं समझ सके। कृपया अपने पवित्र ग्रंथों को अब पुनः पढ़ो। संत रामपाल जी महाराज के ज्ञान से मिलान करके देखो। अधिक जानकारी के लिए पढ़े पुस्तक मुसलमान नही समझे ज्ञान कुरआन।