Shiv Kumar Sharma Death (Hindi): संगीत की दुनिया में सन्तूर नामक वाद्ययंत्र को एक अलग ख्याति तक पहुंचाने वाले मशहूर सन्तूर वादक पण्डित शिवकुमार शर्मा का 84 वर्ष की आयु में दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया। होगा राजकीय सम्मान के साथ अंतिम संस्कार।
Pandit Shiv Kumar Sharma Death : मुख्यबिन्दु
- संतूर को पूरी दुनिया में लोकप्रिय बनाने वाले उस्ताद पंडित शिवकुमार शर्मा का निधन
- दिल का दौरा पड़ने से 84 वर्ष की आयु में दुनिया को अलविदा कहा
- होगा राजकीय सम्मान के साथ अंतिम संस्कार
- संगीत की दुनिया में रहे सफल, परन्तु पूर्ण मोक्ष से रह गए वंचित
संतूर का महान साधक हुआ इस दुनिया से अलविदा
पं. शिवकुमार शर्मा का जन्म 13 जनवरी 1938 को जम्मू में हुआ था। उनका मुंबई में दिल का दौरा पड़ने (कार्डियक अरेस्ट) के चलते निधन हो गया है। पंडित शिव कुमार की उम्र 84 साल थी और वह किडनी से सम्बंधित बीमारी से लगातार जूझ रहे थे। वह पिछले छह महीने से डायलिसिस पर थे। दिवंगत आत्मा के परिवार में पत्नी मनोरमा और दो बेटे राहुल तथा रोहित हैं।
राहुल ने बताया कि उनके पिता और ‘गुरुजी’ शांतिपूर्वक इस जीवन से अलविदा हो गए। राहुल ने अपने घर के बाहर पत्रकारों से कहा कि उनके पिता अब हमारे बीच नहीं हैं लेकिन उनका संगीत सदा जीवित रहेगा। उन्होंने पूरे विश्व को अपने संगीत से शांति प्रदान की और उसे संगीतमय किया। उन्होंने संतूर के लिए जो किया वह सदैव पूरी दुनिया में जाना जाएगा।
महाराष्ट्र सरकार ने की उनके अंतिम संस्कार को राजकीय सम्मान के साथ करने की घोषणा
उनके पुत्र राहुल ने बताया कि उनके पिता के पार्थिव शरीर को बुधवार को पूर्वाह्न जुहू स्थित अभिजीत कोऑपरेटिव सोसाइटी में ले जाया जाएगा जहां दोपहर तक जनता के दर्शनार्थ रखा जाएगा। बाद में उनका अंतिम संस्कार विले पार्ले में पवन हंस अंत्येष्टि स्थल पर किया जाएगा। महाराष्ट्र सरकार ने उनके अंतिम संस्कार को राजकीय सम्मान के साथ करने की घोषणा की है।
संगीत तो बचपन से ही रगों में खून बनकर दौड़ता था
Pandit Shiv Kumar Sharma Death | पण्डित शिवकुमार शर्मा के पिता पं. उमादत्त शर्मा भी जाने-माने गायक थे, मानो संगीत तो उनके खून में ही था। पांच साल की उम्र में पं. शर्मा की संगीत शिक्षा शुरू हो गई। पिता ने उन्हें सुर साधना और तबला दोनों की ट्रेनिंग देनी शुरू कर दी थी। 13 साल की उम्र में उन्होंने संतूर सीखना शुरू किया। संतूर जम्मू-कश्मीर का लोक वाद्ययंत्र है, जिसे अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति दिलाने का श्रेय पं. शिवकुमार को ही जाता है।
Shiv Kumar Sharma Death | 15 मई को होने वाला था कॉन्सर्ट
जानकारी के मुताबिक पंडित शिव कुमार शर्मा का 15 मई को कॉन्सर्ट होने वाला था। सुरों के सरताज को सुनने के लिए कई लोग बेताब थे। शिव-हरि (शिव कुमार शर्मा और हरि प्रसाद चौरसिया) की जुगलबंदी से अपनी शाम रौनक करने के लिए लाखों लोग इंतजार कर रहे थे। लेकिन इवेंट से कुछ दिन पहले ही शिव कुमार शर्मा ने इस दुनिया को हमेशा के लिए अलविदा कह दिया। यहां लोगो को ये जानना आवश्यक है कि ये मनुष्य जन्म गाने सुनने या नाचने के लिए नही दिया गया है। ये तो मोक्ष प्राप्ति के लिए दिया गया है।
शिव कुमार शर्मा की प्रारम्भिक शिक्षा (Early Education of Pandit Shiv Kumar Sharma)
जम्मू में जन्में शिवकुमार शर्मा ने 5 वर्ष की अवस्था में तबला और गायन की शिक्षा लेना आरंभ कर दी थी। लेकिन शिवकुमार के पिता चाहते थे कि वे एक संतूर वादक बने इसलिए उन्होंने 13 वर्ष की अवस्था में संतूर सीखना शुरू कर दिया था।
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Pandit Shiv Kumar Sharma Death | सन्तूर के इस महान साधक का शुरुआती सफरनामा
पं. शिवकुमार शर्मा ने पहला संतूर वादन शो 1955 में 17 साल की उम्र में मुंबई में किया । इसके बाद उन्होंने संतूर के तारों से दुनिया को संगीत की एक नई आवाज से वाकिफ कराया। क्लासिकल संगीत में उनका साथ देने आए बांसुरी वादक पं. हरिप्रसाद चौरसिया। दोनों ने 1967 से साथ में काम करना शुरू किया और शिव-हरि के नाम से जोड़ी बनाई। कबीर साहेब बताते है कि इस मनुष्य जन्म को अगर नाचने गाने में ही लगा दिया तो फिर ये व्यर्थ चला जाएगा।
शिव-हरि की जोड़ी ने दिए एक से एक हिट एलबम
शिव कुमार शर्मा का सफर पं. हरिप्रसाद चौरसिया और शिवकुमार शर्मा बांसुरीवादक अपनी जुगलबंदी के लिए प्रसिद्ध थे। 1967 में पहली बार दोनों ने शिव-हरि के नाम से एक क्लासिकल एलबम तैयार किया। एलबम का नाम था ‘कॉल ऑफ द वैली‘। इसके बाद उन्होंने कई म्यूजिक एलबम साथ किए। वास्तव में कबीर साहेब जी बताते है कि यहां काल लोक में किसी भी जीव के लिए सबसे लाभकारी उसका सतगुरु ही होता है। यहां पर किसी भी अन्य जोड़ी के मुकाबले गुरु के साथ बनाई गई जोड़ी ही हितकारी है।
शिव कुमार शर्मा को मिले राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय सम्मान
पंडित शिवकुमार शर्मा को कई राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय सम्मान एवं पुरस्कार दिए गए थे। 1986 में संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार, 1991 में पद्मश्री और 2001 में पद्म विभूषण से भी उन्हें अलंकृत किया गया था। पंडित शिवकुमार शर्मा को 1985 में बाल्टीमोर, संयुक्त राज्य की मानद नागरिकता भी मिली थी।
सतभक्ति के बिना मनुष्य जीवन व्यर्थ है
मनुष्य जीवन बहुत ही दुर्लभ हैं इसे व्यर्थ नहीं करना चहिए। ये काल भगवान का लोक है यहां सभी को मरना है और इस तरह फिर 84 लाख योनियों के बाद फिर मनुष्य जीवन प्राप्त होता है। यदि फिर भी सतभक्ति नही की तो मनुष्य जीवन बर्बाद हो जाता है। सांसारिक सफलता के साथ सतभक्ति करके मोक्ष प्राप्त करने के लिए यहां जीव को मनुष्य जीवन मिलता है। सतभक्ति का यहां मतलब पूर्ण परमात्मा कबीर साहेब जी की भक्ति से हैं जिसका सभी शास्त्रों में प्रमाण है। परमात्मा कबीर साहेब जी ने अपनी अमरवाणी में बताया है कि:-
कबीर, मानुष जन्म दुर्लभ है, मिले न बारम्बार।
तरुवर से पत्ता टूट गिरे, बहुर न लगता डार।।
कबीर, मानुष जन्म पाए कर, नहीं रटे हरी नाम।
जैसे कुंआ जल बिना, बनवाया किस काम।।
कबीर, झूठे सुख को सुख कहै, मान रहा मन मोद।
सकल चबीना काल का, कुछ मुख में कुछ गोद।।
कबीर साहेब बताते है कि जब तक हम पूर्ण संत की शरण में नही जाते तब तक हमारे पाप कर्म नही कटते हैं और हम अपने जीवन के मूल कर्तव्य को भूलकर अपना जीवन नष्ट कर लेते हैं तो जानते है कि वर्तमान में सतगुरू कौन है जिसकी भक्ति करने से हमें जन्म मरण से मोक्ष मिल सके।
वर्तमान में जगतगुरु तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज हैं
कबीर सागर ग्रंथ पृष्ट नंबर 265 बोध सागर में प्रमाण मिलता हैं कि सच्चा सतगुरू वहीं होगा जो तीन बार में नाम दे और स्वांस की क्रिया के साथ सुमिरन का तरीका भी बताए जिससे जीव का पूर्ण मोक्ष हो। सच्चा सतगुरू तीन प्रकार के मंत्र को तीन बार में उपदेश करेगा। वर्तमान में केवल तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज ने सद्ग्रंथों से यह प्रमाणित करके बताया है कि परमात्मा साधक के घोर से घोर पाप को भी काट कर उनकी आयु 100 वर्ष कर देता है। आध्यात्मिक जानकारी के लिए आप संत रामपाल जी महाराज एप्प डाउनलोड करें और इस विश्व में एकमात्र पूर्ण संत से सतज्ञान समझें। आप सभी से विनम्र निवेदन है अविलंब संत रामपाल जी महाराज जी से नि:शुल्क नाम दीक्षा लें और अपना जीवन सफल बनाएं।