June 13, 2025

Manoj Bajpayee (Bajpai): मनोज बाजपेई के अनसुलझे सवालों का जबाव प्रमाण सहित

Published on

spot_img

जन्म मृत्यु के सवाल यूं तो सभी को रोमांचित करते हैं लेकिन हाल फिलहाल बॉलीवुड स्टार मनोज बाजपेई (Manoj Bajpayee (Bajpai) का नीलेश मिश्रा के साथ का एक इंटरव्यू लोगों के सामने आया जिसमें वे खुद भी जन्म मृत्यु के होने का कारण व मृत्यु के बाद कहां जाते हैं जैसे सवालों के उत्तर ढूंढने की कोशिश कर रहे हैं, ऐसा बताते हैं जिसे देखकर फिर से जन्म मृत्यु की गुत्थी सबके जहन में ताज़ा हो गई। तो आइए आज हम जानते हैं इस ब्लॉग के माध्यम से कि आखिर क्यों हमारा जन्म व मृत्यु होती है और क्या इस जन्म व मृत्यु से छुटकारा पाया जा सकता है?

जन्म मृत्यु दोनों ही अप्रत्याशित और अवश्यम्भावी घटनाएं हैं। जिसका जन्म हुआ है उसकी मृत्यु निश्चित है। मृत्यु के पश्चात क्या होता है यह एक रहस्य है। हम जन्म क्यों लेते हैं यह भी रहस्य है और पुनर्जन्म क्यों होता है यह भी रहस्य ही है। आज हम इन रहस्यों को जानेंगे इस लेख में।

Manoj Bajpayee (Bajpai): क्या जन्म मृत्यु निश्चित है?

शरीर नश्वर है आत्मा अमर है। आत्मा अपने कर्मों के अनुसार अलग-अलग शरीर धारण करती रहती है। गीता के अध्याय 2 के श्लोक 12 में प्रमाण है कि कोई भी सदा नहीं रहता। एक चक्र के अनुसार आत्मा विभिन्न योनियों में चक्कर काटती रहती है। गीता अध्याय 2 के श्लोक 22 के अनुसार जैसे मनुष्य पुराने वस्त्र त्यागकर नए धारण करता है वैसे ही आत्मा भी नए शरीरों को प्राप्त होती है। गीता ज्ञानदाता ने गीता अध्याय 8 के श्लोक 16 में कहा है कि ब्रह्मलोकपर्यंत सभी लोक पुनरावृत्ति में हैं अर्थात जन्म मरण के चक्र में हैं।

Manoj Bajpayee (Bajpai): इसका अर्थ हुआ कि साधारण जीव तो जीते मरते है ही परन्तु ब्रह्मा, विष्णु, शिव आदि सभी देवता व उनके लोकों के साथ उनके पिता ज्योतिनिरंजन/कालब्रह्म/ क्षर पुरूष का लोक ब्रह्मलोक भी जन्म और मृत्यु से परे नहीं है। श्रीमद्देवीभागवत पुराण के तीसरे स्कंद, अध्याय 5 में प्रमाण है कि ब्रह्मा विष्णु महेश जन्म मृत्यु से अलग नहीं हैं बल्कि इसी चक्र में है।

Manoj Bajpayee जी जानिए देवताओं की आयु कितनी है?

सतयुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग, कलियुग की आयु 4320000 वर्ष यानी एक चतुर्युग होती है। ऐसे ही इंद्र की आयु 72 चतुर्युगों की होती है। ब्रह्मा जी का एक दिन 1008 चतुर्युगों का होता है और एक रात भी इतनी ही होती है। ऐसे ही दिन रात से बने सौ वर्षों की आयु ब्रह्मा जी की होती है। ब्रह्मा जी की आयु से 7 गुना अधिक विष्णु जी की होती है। विष्णु जी से 7 गुना अधिक आयु शिव जी की होती है। ऐसे सत्तर हजार शिव की मृत्यु के पश्चात एक क्षर पुरुष की आयु पूरी होती है। विस्तार से जानने के लिए यह पढें

इनके लिए कबीर साहेब कहते हैं-

एती उमर बुलन्द मरेगा अंत रे, सतगुरु मिले न कान न भेंटे सन्त रे |

देवताओं की भी मृत्यु होती है तो भक्ति और मोक्ष कैसे?

प्रश्न ये उठता है कि इतनी भक्ति क्यों की जाती है? मोक्ष प्राप्ति के लिए। किन्तु देवता स्वयं जीवन मृत्यु के बंधन में हैं ऐसे में भक्ति और मोक्ष का तो प्रश्न ही नहीं उठता? वास्तव में जीव अपने कर्मों के अनुसार स्वर्ग जाता है, नरक जाता है, वापस पृथ्वी पर आता है। ये स्वर्ग नरक स्वयं ही जन्म मृत्यु के चक्र में हैं। देवताओं की आयु अधिक होती है किंतु वे भी जन्म-मृत्यु में हैं। एक परमेश्वर के अलावा सभी जन्म मृत्यु में हैं वह है पूर्ण अविनाशी परमेश्वर कविर्देव।

Manoj Bajpayee (Bajpai): वह परम् अक्षर ब्रह्म है जिसके बारे में गीता अध्याय 18 के श्लोक 62 और 66 में कहा है। गीता में तीन प्रभु बताए गए हैं क्षर पुरुष, अक्षर पुरूष एवं परम् अक्षर पुरूष। क्षर पुरुष 21 ब्रह्मांडों का स्वामी है जिसके लोक में हम रह रहे हैं। यह नाशवान है। अक्षर पुरुष की आयु क्षर पुरूष से अधिक है किंतु वह भी नाशवान है। परम अक्षर पुरुष सभी का पिता और सभी लोकों का धारण पोषण करने वाला अविनाशी परमात्मा है जो सतलोक अर्थात परम अविनाशी लोक में रहता है। मोक्ष तो केवल वही परमेश्वर दे सकता है क्योंकि उसकी शरण मे जाने से जन्म मृत्यु नहीं होगी।

आत्मा अमर है तो जन्म मृत्यु क्यों होती है?

जो जन्म लेता है उसकी मृत्यु होती है। यह इस संसार का नियम है और सभी प्राणी इसके वश में हैं। परन्तु क्यों? इसके पीछे क्या कारण है? क्यों आत्माएं मानव, पशु और कीट-पतंगे की योनियों में हैं?

वास्तव में हम जिस 21 ब्रह्मांडों के स्वामी क्षर पुरुष (ब्रह्मा,विष्णु,महेश के पिता) के लोक में रह रहे हैं यह हमारा वास्तविक स्थान नहीं है। हमारा वास्तविक स्थान सतलोक है, वह परम धाम जो जन्म मृत्यु से परे है। जहां केवल सुख है। हमारा पिता है परम अक्षर ब्रह्म या पूर्ण परमेश्वर कविर्देव। वही कविर्देव जिसने छः दिन में सृष्टि रचना की। हम सभी गलती से क्षर पुरुष के साथ सतलोक से यहां इस लोक में आये। क्षर पुरुष श्रापित है, पूर्ण परमेश्वर से इसे श्राप है एक लाख शरीर धारी प्राणियों का प्रतिदिन आहार करने का और सवा लाख प्राणी उत्पन्न करने का।

Manoj Bajpayee (Bajpai): क्षर पुरूष ने हमारी इस लोक में दुर्गति की। यहां आत्माओं को तो कर्मों के जंजाल में बांध दिया और त्रिगुणमयी माया रजगुण ब्रह्मा, सतगुण विष्णु और तमगुण शिव के प्रभाव से आत्माओं को अपने निजस्थान से भुलाकर उनका मोह यहीं लगाया। रजगुण के प्रभाव से जीव सन्तान उत्पत्ति करता है, सतगुण के प्रभाव से पालन पोषण होता है और तमगुण जीवो का संहार करता है। सारा संसार केवल इसी प्रक्रिया में लगा रहता है।

कालब्रह्म ने कई धर्म और पंथ बनाकर जीवों को वास्तविक तत्वज्ञान से अपरिचित रखा और केवल अपनी उपासना और अपने द्वारा उत्पन्न किये देवताओं और भेजे गए अवतारों की उपासना में भोले जीवों को भ्रमित करके फंसा दिया। अब तत्वज्ञान से परिचय न होने पर जीव अपनी वास्तविक स्थिति से अपरिचित है।

अविनाशी परमात्मा कौन है जिसकी मृत्यु नहीं होती

अविनाशी परमात्मा, परम अक्षर ब्रह्म या परमब्रह्म एक ही है जिसका नाम है कविर्देव। अन्य धर्मग्रन्थों में परमात्मा का नाम कबीर साहेब ही दिया हुआ है (ऑर्थोडॉक्स ज्यूइश बाइबल 36:5; कुरान शरीफ सूरत अल फुरकान 25:52, 25:59)। पूर्ण अविनाशी परमेश्वर सर्वोच्च है वह सतलोक में विराजमान है। हम सभी आत्माएं सतलोक के निवासी हैं जो काल के साथ आने के बाद इस जन्म मृत्यु में फंसे हैं। यहाँ से मोक्ष होगा तभी हम सतलोक जा पाएंगे। गीता के अध्याय 15 के श्लोक 16 से 17, अध्याय 8 के श्लोक 20 से 22 में भी उसी पूर्ण ब्रह्म अविनाशी परमेश्वर के बारे में बताया है। सूक्ष्मवेद की वाणी है-

अरबों तो ब्रह्मा गए, उनचास कोटि कन्हैया |
सात कोटि शम्भू गए, मोर एक नहीं पलैया ||

काल लोक से मुक्ति अर्थात मोक्ष किस प्रकार सम्भव है

पूर्ण परमेश्वर यानी हमारे परम पिता जीवों की वास्तविक स्थिति से परिचित हैं अतः वे स्वयं प्रत्येक युग में आते हैं और तत्वज्ञान का प्रचार करते हैं। इतने वर्षों से काल लोक में रहने के पश्चात जीव आसानी से तत्वज्ञान को स्वीकार नहीं कर पाते किंतु जो व्यक्ति समझ जाते हैं वे इस काल बंधन से मुक्त होकर वास्तविक स्थान सतलोक जाते हैं। गीता अध्याय 18 के श्लोक 62 व 66 में भी गीत ज्ञानदाता ने उसी परमेश्वर की शरण मे जाने को कहा है।

Manoj Bajpayee (Bajpai): किन्तु उस परमेश्वर तक पहुँचने की विधि स्वयं गीता ज्ञानदाता नहीं जानता अतः उसने अध्याय 4 श्लोक 34 में तत्वदर्शी सन्त की तलाश करने के लिए कहा है। कुरान शरीफ में भी अल्लाह तक पहुँचने का रास्ता सूरत फुरकान 25:59 में किसी बाख़बर से पूछने के लिए कहा है। तत्वदर्शी सन्त की अनेकों पहचान हमारे धर्मग्रन्थों में दी हुई हैं। तत्वदर्शी सन्त गीता अध्याय 17 के श्लोक 23 के अनुसार ओम, तत, सत (सांकेतिक) मन्त्रों का सही विधि से जाप बताता है एवं आत्मा का जन्म मरण का रोग छूटता है।

तत्वदर्शी सन्त कहाँ मिलेंगे?

तत्वदर्शी सन्त प्रत्येक युग में आता है एवं एक समय पर एक ही होता है। गीता अध्याय 15 के श्लोक 1 में दिए उल्टे संसार रूपी वृक्ष को सही सही बताने वाला तत्वदर्शी सन्त कहा गया है। यजुर्वेद में भी प्रमाण है कि पूर्ण तत्वदर्शी सन्त वेदों के गूढ़ रहस्य को समझायेगा, अधूरे वाणियों को पूरा करके उनका अर्थ समझायेगा। वह तीन बार में नामदीक्षा देता है एवं दिन में तीन समय की भक्ति बताता है।

वह तत्वदर्शी सन्त वेदों आधारित यानी शास्त्र विधि आधारित भक्ति विधि बताता है। गीता में दिए तीन सांकेतिक मन्त्र जिनमे ॐ ब्रह्म या क्षर पुरुष का है, तत (सांकेतिक) परब्रह्म या अक्षर पुरुष है, सत (सांकेतिक) परमब्रह्म या परम् अक्षर पुरुष का बताया है और मात्र इन्हीं मन्त्रों से मुक्ति सम्भव है और ये वास्तविक मन्त्र केवल तत्वदर्शी सन्त दे सकता हैं।

तत्वदर्शी सन्त जिनकी शरण मे जाने से जन्ममृत्यु नहीं होगी

तत्वदर्शी सन्त की शरण में जाने से जन्म-मृत्यु के रोग से छुटकारा मिलता है। यह सौभाग्य केवल पांच तत्व से बने मानव शरीर मे ही सम्भव है। इसलिए मुक्ति मानव शरीर मे ही सम्भव है। मानव जीवन का एक ही उद्देश्य है परमात्मा की भक्ति अन्यथा चौरासी लाख योनियाँ तैयार रहती हैं, जिनमें जीव जाता है और कष्ट उठाता है। तत्वदर्शी सन्त की शरण में जाने से आध्यात्मिक लाभ तो होता ही है किंतु जो मानव अपने जीवन मे रोग, कष्ट, दुःख आदि का सामना करते हैं वे सभी कष्ट भी दूर होते हैं, शरीर स्वस्थ होता है।

भक्ति करने से जन्म-मृत्यु से पीछा छूटेगा

मानव जन्म पाकर भक्ति करना आवश्यक है किंतु केवल शास्त्रानुकूल भक्ति ही लाभकारी है। जो मानव जन्म मौज मस्ती में गंवाते हैं वे अन्य चौरासी लाख योनियों में घोर कष्ट पाते हैं।

मानुष जन्म पायकर, जो रटे नहीं हरिनाम |
जैसे कुंआ जल बिना, बनवाया किस काम ||

मनुष्य जन्म में भक्ति न करना ठीक उसी प्रकार है जैसे बिना जल का कुँआ। भक्ति न करने वाला जीव बहुत पछताता है क्योंकि चौरासी लाख योनियों में मुश्किल से मनुष्य का जन्म प्राप्त होता है और मुक्ति इसी जन्म में सम्भव है। आदरणीय गरीबदास जी महाराज कहते हैं-

जैसे मोती ओस का, ऐसी तेरी आव |
गरीबदास कर बन्दगी, बहुर न ऐसा दांव ||

अर्थात मनुष्य जीवन ओस की बूंदों के समान क्षणभंगुर है। जन्म मृत्यु से छुटकारा इसी जन्म में मिलेगा अतः देर न करते हुए विश्व में एकमात्र तत्वदर्शी सन्त रामपाल जी महाराज की शरण मे आएं एवं सतभक्ति प्रारंभ करें।

Latest articles

World Day Against Child Labour 2025: SatGyan Evolves the Children Perfectly

Last Updated on 13 June 2025 IST: World Day Against Child Labour 2025: International...

Why Critical Thinking Should Be at the Core of Education

We send our children to school with the intention of helping them become independent...

World Blood Donor Day 2025: Offer Your Priceless Help Through Blood Donation

Last Updated on 12 June 2025 IST: World Blood Donor Day 2025 |  Do...
spot_img

More like this

World Day Against Child Labour 2025: SatGyan Evolves the Children Perfectly

Last Updated on 13 June 2025 IST: World Day Against Child Labour 2025: International...

Why Critical Thinking Should Be at the Core of Education

We send our children to school with the intention of helping them become independent...