HomeNewsनवरात्रि 2021 पर जानें कौन हैं माता कुष्मांडा (Maa Kushmanda) तथा कौन...

नवरात्रि 2021 पर जानें कौन हैं माता कुष्मांडा (Maa Kushmanda) तथा कौन है संपूर्ण सृष्टि के रचयिता?

Date:

नवरात्र हिंदू समाज के लिए महत्वपूर्ण भूमिका रखते है। नवरात्र के नौ दिन अलग अलग देवियों की पूजा की जाती है। इसी श्रृंखला में नवरात्र के चौथे दिन दुर्गा जी के चतुर्थ स्वरूप मां कुष्मांडा की पूजा (Maa Kushmanda) और अर्चना की जाती है। आज हम जानेंगे कि सम्पूर्ण सृष्टि के रचयिता कौन है?

Table of Contents

माता कुष्मांडा देवी (Maa Kushmanda) की कथा क्या है?

पौराणिक कथाओं के अनुसार मां कुष्मांडा (Maa Kushmanda) का जन्म दैत्यों का संहार करने के लिए हुआ था। कहा जाता है कि कुष्मांडा का अर्थ कुम्हड़ा होता है। कुम्हड़े को कुष्मांड कहा जाता है इसीलिए मां दुर्गा के चौथे स्वरूप का नाम कूष्मांडा रखा गया था। 

कुष्माण्डा देवी (Maa Kushmanda) की जानकारी के मुख्य बिंदु

  • नवरात्र-पूजन के चौथे दिन कुष्माण्डा देवी (Maa Kushmanda) के स्वरूप की उपासना की जाती है।
  • आठवें हाथ में सभी सिद्धियों और निधियों को देने वाली जपमाला है। इनका वाहन सिंह है।
  • संस्कृत भाषा में कुष्माण्डा को कुम्हड़ कहते हैं। 
  • तत्वदर्शी संत से जानें कि कौन है सृष्टि रचयिता।

कैसे पड़ा माता का नाम कुष्मांडा (Maa Kushmanda)?

कुष्मांडा (Maa Kushmanda) नाम तीन शब्दों के मेल से बना है- कू, उष्मा और अंदा। यहाँ ‘कू’ का अर्थ है छोटा, ‘उष्मा’ का अर्थ है गर्मी या ऊर्जा और ‘अंदा’ का अर्थ अंडा है। इसका मूल रूप से अर्थ है जिसने इस ब्रह्मांड को ‘छोटे ब्रह्मांडीय अंडे’ के रूप में बनाया है।

देवी पुराण में माता दुर्गा ने अपनी पूजा करने के लिए मना किया है

नवदुर्गा की सभी देवियां दुर्गा माता का ही स्वरूप हैं उनका ही अंश है और माता दुर्गा, “देवी महापुराण के सातवें स्कंध पृष्ठ 562-563 में राजा हिमालय को उपदेश देते हुए कहा है कि हे राजन,अन्य सब बातों को छोड़कर, मेरी भक्ति भी छोड़कर केवल एक ऊँ नाम का जाप कर, “ब्रह्म” प्राप्ति का यही एक मंत्र है। यह केवल ब्रह्म तक ही सीमित है। जबकि सर्वश्रेष्ठ परमात्मा कोई और है। इसलिए हमें माता की आज्ञा पालन कर शास्त्र अनुकूल साधना ही करनी चाहिए।

तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज से जानिए सृष्टि की रचना कैसे हुई?

{कविर्देव (कबीर परमेश्वर) ने सूक्ष्म वेद में अपने द्वारा रची सृष्टि का ज्ञान स्वयं ही बताया है जो निम्नलिखित है}

सर्व प्रथम केवल एक स्थान ‘अनामी (अनामय) लोक‘ था। जिसे अकह लोक भी कहा जाता है, पूर्ण परमात्मा उस अनामी लोक में अकेला रहता था। उस परमात्मा का वास्तविक नाम कविर्देव अर्थात् कबीर परमेश्वर है। सभी आत्माएँ उस पूर्ण धनी के शरीर में समाई हुई थी। 

यह भी पढ़ें: नवरात्रि पर जाने क्या देवी दुर्गा की उपासना से पूर्ण मोक्ष संभव है?

इसी कविर्देव का उपमात्मक (पदवी का) नाम अनामी पुरुष है (पुरुष का अर्थ प्रभु होता है। प्रभु ने मनुष्य को अपने ही स्वरूप में बनाया है, इसलिए मानव का नाम भी पुरुष ही पड़ा है।) अनामी पुरूष के एक रोम (शरीर के बाल) का प्रकाश शंख सूर्यों की रोशनी से भी अधिक है। पूरी सृष्टि रचना पढ़ने के लिए पढें पुस्तक ज्ञान गंगा।

चारों वेदों में कबीर परमेश्वर द्वारा रची सृष्टि रचना का प्रमाण है

यहां हम पवित्र अथर्ववेद में से सृष्टि रचना का प्रमाण दे रहे हैं:

काण्ड नं. 4 अनुवाक नं. 1 मंत्र 5

सः बुध्न्यादाष्ट्र जनुषोऽभ्यग्रं बृहस्पतिर्देवता तस्य सम्राट्।

अहर्यच्छुक्रं ज्योतिषो जनिष्टाथ द्युमन्तो वि वसन्तु विप्राः।।5।।

सः-बुध्न्यात्-आष्ट्र-जनुषेः-अभि-अग्रम्-बृहस्पतिः-देवता-तस्य-

सम्राट-अहः- यत्-शुक्रम्-ज्योतिषः-जनिष्ट-अथ-द्युमन्तः-वि-वसन्तु-विप्राः

अनुवाद:- (सः) उसी (बुध्न्यात्) मूल मालिक से (अभि-अग्रम्) सर्व प्रथम स्थान पर (आष्ट्र) अष्टँगी माया-दुर्गा अर्थात् प्रकृति देवी (जनुषेः) उत्पन्न हुई क्योंकि नीचे के परब्रह्म व ब्रह्म के लोकों का प्रथम स्थान सतलोक है यह तीसरा धाम भी कहलाता है (तस्य) इस दुर्गा का भी मालिक यही (सम्राट) राजाधिराज (बृहस्पतिः) सबसे बड़ा पति व जगतगुरु (देवता) परमेश्वर है। (यत्) जिस से (अहः) सबका वियोग हुआ (अथ) इसके बाद (ज्योतिषः) ज्योति रूप निरंजन अर्थात् काल के (शुक्रम्) वीर्य अर्थात् बीज शक्ति से (जनिष्ट) दुर्गा के उदर से उत्पन्न होकर (विप्राः) भक्त आत्माएं (वि) अलग से (द्युमन्तः) मनुष्य लोक तथा स्वर्ग लोक में ज्योति निरंजन के आदेश से दुर्गा ने कहा (वसन्तु) निवास करो, अर्थात् वे निवास करने लगी।

भावार्थ:- पूर्ण परमात्मा ने ऊपर के चारों लोकों में से जो नीचे से सबसे प्रथम अर्थात् सत्यलोक में आष्ट्रा अर्थात् अष्टंगी (प्रकृति देवी/दुर्गा) की उत्पत्ति की। यही राजाधिराज, जगतगुरु, पूर्ण परमेश्वर (सतपुरुष) है जिससे सबका वियोग हुआ है। फिर सर्व प्राणी ज्योति निरंजन (काल) के (वीर्य) बीज से दुर्गा (आष्ट्रा) के गर्भ द्वारा उत्पन्न होकर स्वर्ग लोक व पृथ्वी लोक पर निवास करने लगे।

पवित्र श्रीमद्भगवत गीता जी में सृष्टी रचना का प्रमाण

इसी का प्रमाण पवित्र गीता जी अध्याय 14 श्लोक 3 से 5 तक में है। ब्रह्म (काल) कह रहा है कि प्रकृति (दुर्गा) तो मेरी पत्नी है, मैं ब्रह्म (काल) इसका पति हूँ। हम दोनों के संयोग से सर्व प्राणियों सहित तीनों गुणों (रजगुण – ब्रह्मा जी, सतगुण – विष्णु जी, तमगुण – शिवजी) की उत्पत्ति हुई है। मैं (ब्रह्म) सर्व प्राणियों का पिता हूँ तथा प्रकृति (दुर्गा) इनकी माता है। मैं इसके उदर में बीज स्थापना करता हूँ जिससे सर्व प्राणियों की उत्पत्ति होती है। प्रकृति (दुर्गा) से उत्पन्न तीनों गुण (रजगुण ब्रह्मा, सतगुण विष्णु तथा तमगुण शिव) जीव को कर्म आधार से शरीर में बांधते हैं।

ब्रह्म (ओम, महाकाल) ने श्रीमद भगवत गीता में कहा कि पूर्ण परमात्मा की भक्ति करनी चाहिए, देखिए प्रमाण

श्री कृष्ण जी के अंदर प्रवेश कर काल भगवान ने अर्जुन से कहा कि हे भारत! तू सब प्रकार से उस परमेश्वर की ही शरण में जा। उस परमात्मा की कृपा से ही तू परम शान्ति को तथा सनातन परम धाम को प्राप्त होगा ।।

Maa Kushmanda: मनमाने तरीके से पूजा करने से कोई लाभ नहीं

श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 16 श्लोक 23 में ब्रह्म (काल भगवान) ने कहा है। जो मनुष्य शास्त्रविधि को छोड़कर अपनी इच्छा से मनमाना आचरण करता है, वह न सिद्धि-(अन्तःकरणकी शुद्धि-) को, न सुख को और न परमगति को ही प्राप्त होता है। इसलिए अगर हमें उद्धार, मोक्ष, सुख, शांति, समृद्धि चाहिए तो पवित्र शास्त्र श्रीमद्भगवद्गीता के अनुसार ही भक्ति करनी चाहिए।

ब्रह्म (गीता ज्ञानदाता) ने कहा है कि पूर्ण परमात्मा की भक्ति करनी चाहिए

गीता अध्याय 15 श्लोक 4 में बताया गया है कि “उसके प्रश्चात् उस परम पद रूप परमेश्वर को भली-भाँति खोजना चाहिये, जिसमें गये हुए पुरुष फिर लौटकर संसार में नहीं आते और जिस परमेश्वर से इस पुरातन संसार-वृक्ष की प्रवृत्ति विस्तार को प्राप्त हुई है, उसी आदि पुरुष नारायण के मैं शरण हूँ- इस प्रकार दृढ़ निश्चय करके उस परमेश्वर का मनन और निदिध्यासन करना चाहिये ।

सनातन परमात्मा (पूर्ण परमात्मा) की जानकारी मिलती है तत्वदर्शी संत से

गीता अध्याय 4 श्लोक 34 “उस ज्ञान को तू तत्त्वदर्शी ज्ञानियों के पास जाकर समझ, उनको भली-भाँति दण्डवत् प्रणाम् करने से, उनकी सेवा करने से और कपट छोड़कर सरलतापूर्वक प्रश्न करने से वे परमात्मा तत्त्व को भली-भाँति जानने वाले ज्ञानी महात्मा तुझे उस तत्त्व ज्ञान का उपदेश करेंगे।”

कौन हैं सनातन परमात्मा यानी सृष्टि का रचयिता?

गीता अध्याय 8 श्लोक 3 के अनुसार वह परमात्मा परम अक्षर ब्रह्म है। परम अक्षर ब्रह्म को हम परम पिता, परमेश्वर, पूर्ण ब्रह्म, सत्पुरुष, अविनाशी परमेश्वर, सनातन परमात्मा, अमर परमात्मा, उत्तम पुरुष, कबीर साहेब के नाम से भी पुकारते हैं। जो लोग इन वेदों और पुराणों को नहीं समझ पाए हैं वे ब्रह्मा, विष्णु, शिव, दुर्गा और दुर्गा के ही अन्य रूपों की पूजा करते रहते हैं, जबकि परमात्मा तो इस काल ब्रह्म से भी कोई अन्य है जिसका प्रमाण हमने ऊपर बताया है जिसकी पूजा-अर्चना और प्रमाणित जानकारी के लिये, काल (ब्रह्म) कौन है और प्रकृति की उत्पत्ति कैसे हुई और ब्रह्मा, विष्णु और शिव की स्थिति क्या है, इसकी भी पूरी जानकारी के लिए कृपया “सृष्टि रचना”  पढ़ें और तत्वदर्शी संत रामपाल जी के द्वारा बताए जा रहे आध्यात्मिक ज्ञान को समझ कर शास्त्र अनूकुल साधना करना आरंभ करें ।

SA NEWS
SA NEWShttps://news.jagatgururampalji.org
SA News Channel is one of the most popular News channels on social media that provides Factual News updates. Tagline: Truth that you want to know

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

spot_img
spot_imgspot_img

Popular

More like this
Related

National Best Friends Day 2023: Who Is the Only Best Friend of Every Soul?

Last Updated on 8 June 2023, 1:30 PM IST:...

Dowry Free India: Dowry System is a curse for Society: Jagatguru Saint Rampal Ji Maharaj

Dowry System India | Dowry Free India can be turned into a reality by the anti-dowry movement by Saint Rampal Ji. solution for eliminating dowry along with quotes

World Oceans Day 2023| Know How All 5 Tatva (Element) Are Created by God Kabir?

Last Updated on 8 June 2023, 12:35 PM IST...

World Food Safety Day 2023: Know The God Who Is Nurturing Everything Everywhere

Last Updated on 6 June 2023: 2:44 PM IST:...