यह अप्राकृतिक और महाअपराध है।
समलैंगिकता यानि समान लिंग केे प्रति यौन आकर्षण होना। पुरुष का पुरुषों के प्रति आकर्षण रखने वाले पुरुष समलिंगी या गे (Gay) और जो महिला किसी अन्य महिला के प्रति आकर्षित होती है उसे महिला समलिंगी या लैस्बियन ( Lesbian) कहा जाता है। जो लोग महिला और पुरुष दोनों के प्रति आकर्षित होते हैं उन्हें उभयलिंगी (Bisexual) कहा जाता है। समलैंगिक, उभयलैंगिक और लिंगपरिवर्तित लोगों को एल जी बी टी (LGBT) समुदाय कहा जाता है।
जब अप्राकृतिक रूप से उगाई गई सब्जियां मानव शरीर के लिए हानिकारक होती हैं तो अप्राकृतिक मानव कृत्रिम संबंध को कैसे सही ठहराया जा सकता है?
गैर कानूनी है समलैंगिकता
समलैंगिकता को 158 सालों से गैर कानूनी माना जाता रहा है। लेकिन समलैंगिकों के लिए ऐसा ही कानून धारा 377 भारत में पिछले दिनों 6 सितंबर 2018 को हटा दी गयी । जो की स्वस्थ समाज की संरचना करने में कदापि सहायक नहीं हो सकता। इसे तुरंत खत्म किया जाना चाहिए।
किसने बनाई धारा 377?
ब्रिटेन में 25 अक्टूबर सन 1800 को जन्मे लॉर्ड मैकाले एक राजनीतिज्ञ और इतिहासकार थे। उन्हें 1830 में ब्रिटिश पार्लियामेन्ट का सदस्य चुना गया।
भारत में वह सुप्रीम काउंसिल में लॉ मेंबर और लॉ कमिशन के हेड बने। इस दौरान उन्होंने भारतीय कानून का ड्राफ्ट तैयार किया। इसी ड्राफ्ट में धारा-377 में समलैंगिक संबंधों को अपराध की कैटेगरी में डाला गया था।
पहले क्यों हुआ था धारा 377 का विरोध?
सुप्रीम कोर्ट ने 11 दिसंबर 2013 को होमो
सेक्सुअलिटी के मामले में कहा था की जब तक धारा 377 रहेगी तब तक समलैंगिक संबंध को वैध नहीं ठहराया जा सकता।
जबकि सुप्रीम कोर्ट के वर्तमान फैसले से पहले तक आईपीसी की धारा 377 के तहत समलैंगिकता अपराध की श्रेणी में था। इसमें 10 साल या फिर जिंदगी भर जेल की सजा का भी प्रावधान था, वो भी गैर-जमानती। यानी अगर कोई भी पुरुष या महिला इस एक्ट के तहत अपराधी साबित होते हैं तो उन्हें बेल नहीं मिलती। किसी जानवर के साथ यौन संबंध बनाने पर इस कानून के तहत उम्र कैद या 10 साल की सजा एवं जुर्माने का प्रावधान था। समलैंगिकता की इस श्रेणी को LGBTQ (लेस्बियन, गे, बाइसेक्सुअल, ट्रांसजेंडर और क्वीयर) के नाम से भी जाना जाता है। इन्हीं समुदायों के लोग काफी लंबे समय से भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code) के तहत इस धारा में बदलाव कराने और अपना हक पाने के लिए सालों से लड़ाई लड़ रहे थे।
पहली आवाज़ ‘नाज फाउंडेशन’ ने उठाई थी
धारा 377 का पहली बार मुद्दा गैर सरकारी संगठन ‘नाज फाउंडेशन’ ने उठाया था। इस संगठन ने 2001 में दिल्ली उच्च न्यायालय में याचिका दायर की थी और अदालत ने समान लिंग के दो लोगों के बीच यौन संबंधों को अपराध घोषित करने वाले प्रावधान को ‘‘गैरकानूनी’’ बताया था।
भारत से पहले इन देशों में समलैंगिकता अपराध नहीं थी।
अब भारत समेत नीदरलैंड जैसे 26 देशों ने समलैंगिक सेक्स को अपराध की श्रेणी से हटा दिया है जबकि यह जघन्य अप्राकृतिक अपराध ही है।
समलैंगिकता प्रकृति के नियम के खिलाफ है
समलैंगिकता एक विकार है। यह शारीरिक प्रकृति के खिलाफ है। हॉलीवुड-बॉलीवुड की कई फिल्मों में इसका महिमामंडन होने के कारण अधिक प्रचार हुआ है। हॉलीवुड-बॉलीवुड के कई निर्माता, निर्देशक, मॉडल,अभिनेता और अन्य धनी वर्ग इसमेंं सलंग्न रहे हैं जिनके लिए धारा 377 का कानूनी रूप से लागू होना उन्हें उनकी आज़ादी का अनुभव दे रहा है। अधिकांश जनता हॉलीवुड-बॉलीवुड के लोगों को अपने रोल मॉडल के रूप में देखकर इनसे न केवल प्रभावित होते हैं बल्कि इनके जैसा बनने और इनके जैसा हाई प्रोफाइल जीवन जीने की कोशिश में लगे रहते हैं जो की सरासर गलत है।
वैज्ञानिक इसे आनुवांशिक मानते हैं।
वैज्ञानिक इसे अनुवांशिकी, जन्म से पूर्व गर्भ में हार्मोन की गड़बड़ी, मानसिक और सामाजिक परिवेश को इसके मुख्य कारण मानते हैं। कुछ चिकित्सक इसे मानसिक रोग मानते हैं तो बहुत से नहीं। वैज्ञानिकों का कहना है कि समलैंगिकता केवल मनुष्यों में ही नहीं बल्कि कई पशुओं में भी पाई जाती है। पेंग्विन, चिंपाजी और डॉल्फिनों में भी यह रोग पाया गया है। तो क्या यह मान लिया जाए कि मनुष्य जानवर जैसा हो गया है?
अप्राकृतिक सेक्स का यह तरीका परमात्मा के विधान के विरूद्ध है।
सुप्रीम कोर्ट को धारा 377 पर पुनः विचार करना चाहिए। यह आदेश समाज के उत्थान की दिशा में सार्थक कदम नहीं है। लाखों करोड़ों लोगों का जीवन इसके दुष्प्रभाव से खराब होगा। लड़के का लड़के से विवाह और लड़की का लड़की से संबंध शारीरिक और मानसिक विकृतियों को दर्शाता है। जब कोई नवजात शिशु लिंग दोष के साथ जन्म लेता है तो उसे जबरन हिजड़ा (Eunuch) कम्यूनिटी को देना पड़ता है। केवल वही लोग इस धारा के लिए नाच कूद रहे हैं जो स्वयं ऐसी मानसिकता रखते हैं।
सतभक्ति से संभव है उपचार।
कुछ वैज्ञानिक और चिकित्सक यह मानते हैं कि समलैंगिक व्यवहार को बदला नहीं जा सकता है।
चिकित्सकों द्वारा समलैंगिकों का उपचार यह मानकर किया जाता था कि यह एक मनोविकार है। कुछ धार्मिक समुदाय हैं, जो समलैंगिकता के उपचार के प्रयासों में हैं। इसे ‘रिपैरेटिव चिकित्सा’ कहा जाता है। इस प्रकार की चिकित्सा में बहुत से समलैंगिकों ने अपने आप को विषमलैंगिक बनाने का प्रयास किया है और वो ये दावा करते हैं कि उनमें बदलाव आया है, लेकिन रिपैरेटिव चिकित्सा की बहुत से चिकित्सा और मनोरोग विज्ञान समूहों द्वारा निंदा भी की गई है। क्योंकि उनके अनुसार यौन उन्मुखीकरण या लैंगिक प्राथमिकता बदली नहीं जा सकती है।
समलैंगिकता सैक्स की अप्राकृतिक क्रिया है जो की मानव के लिए विकार भी है।
मन और शरीर को विकारों से मुक्त कराने के लिए सतभक्ति ही एकमात्र उपाय है। जिससे समलैंगिकों के व्यक्तित्व और व्यवहार को नार्मल किया जा सकता है भले ही बहुत से लोग इन बातों पर विश्वास नहीं करते। लेकिन सतभक्ति करने से असंभव को भी संभव किया जा सकता है।
पश्चिमी देश भी नहीं चाहते समलैंगिकता
पश्चिमी देशों में समलैंगिकों को हिंसा और भेदभाव से बचाने के लिए कई कानून बनाए गए।
हाल ही में समलैंगिकता विरोधी क़ानून पारित करने वाले देशों यूगांडा और नाइजीरिया के राष्ट्रपतियों को भी एक पत्र भेजा गया था। यूगांडा के एंगलिकन चर्च के आर्कबिशप स्टैनले त्गाली ने अपने जवाब में कहा, “धार्मिक पुस्तकों में समलैंगिकता की इजाज़त नहीं है।”
कबीर परमात्मा ही बचा सकते हैं।
हमारे वेद, ग्रंथ, गीता, शास्त्र और पुराण में समलैंगिक क्रिया कृत्यों की कहीं कोई अनुमति नहीं है।
काल ने परमात्मा कबीर जी से वचन लिया था की पिताजी कलयुग में भले आप जितने जीव ले जाना। जब आप पृथ्वी पर अपनी आत्माओं को लेने आओगे तब तक मैं इन्हें बुरी आदतों, व्यसनों, नकली धार्मिक क्रियाकलापों आदि में इतना उलझा दूंगा की यह सही और गलत में भेद तक नहीं कर पाएंगे और यह वही समय चल रहा है जब मानव निर्लज, विचारहीन, मांसाहारी, व्यसनशील, अप्राकृतिक क्रियाओं में मदमस्त हो कर अपने अनमोल मानव जीवन को व्यर्थ कर रहा है।
कबीर साहेब जी कहते हैं :-
।।कबीर सत्यनाम सुमरण बिन, मिटे न मन का दाग। विकार मरे मत जानियो, ज्यों भूभल में आग।।
मतंग कहते हैं हाथी को। इसमें काम वासना की अधिकता होती है जो उपस्थ इन्द्री के वश होकर अपनी जान शिकारी के हाथों सौंप देता है।
हाथी पकड़ने वाले शिकारी एक हथिनी को विशेष शिक्षा देकर रखते हैं। जंगल में जाकर एक गहरा गड्डा खोद कर उस पर लम्बे बांसों से छत दे देते हैं। उसके ऊपर मिट्टी डाल कर घास जमा देते हैं जिससे देखने में जमीन प्रतीत होती है। फिर उस शिक्षित हथिनी को हाथियों के झुण्ड की ओर भेज देते हैं। हथिनी किसी एक हाथी से अपना शरीर स्पर्श करके उसे काम (सैक्स) प्रेरित करती है। जब वह कामुक हाथी कोशिश करता है तब वह हथिनी भाग लेती है। पीछे-पीछे हाथी भागता है। वह हथिनी वहीं पर जहां गड्डा खोदा हुआ होता है के समीप आकर स्वयं बराबर से निकल कर फिर सीधा भाग लेती है। हाथी कामवश अंधा होकर सीधा ही भागता रहता है तथा उस सुनियोजित विधि से बनाए गड्डे में गिर कर कहीं निकलने का रास्ता न पा कर चिंघाड़ें मार-मार कर निर्बल हो जाता है तथा शिकारी पकड़ लेता है। फिर सारी उम्र परवश होकर भूखा प्यासा गाँव-गांव में मांगने वाले के साथ भ्रमता रहता है।
जब तक हम भगवान से और उसके विधान से परिचित नहीं होंगे तब तक हम सतमार्ग पर नहीं चल पाएंगे।
सांसारिक कर्त्तव्य कर्म करते हुए पूर्ण सतगुरु से सत्यनाम ले कर भजन करो तथा काल-जाल से मुक्त हो जाओ। पूर्ण परमात्मा की साधना से मन वश होता है। इसी सत्यनाम से विकार समाप्त हो जाते हैं तथा सार शब्द से पूर्ण परमात्मा की प्राप्ति होती है।