September 16, 2025

क्या कहती है श्रीमद्भागवत गीता हरियाली अमावस्या (Hariyali Amavasya 2025) के बारे में?

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लोकवेद पर आधारित मान्यताओं के अनुसार हिन्दू धर्म में सावन माह में एक त्योहार मनाया जाता है जिसे हरियाली अमावस्या (Hariyali Amavasya) कहते हैं। हरियाली अमावस्या हिन्दू पंचांग के अनुसार प्रतिवर्ष सावन माह की अमावस्या तिथि को मनाई जाती है, जो कि इस वर्ष 24 जुलाई (Hariyali Amavasya 2025 Date) गुरुवार के दिन मनाई जाएगी। इस दिन कई लोग व्रत, पूजा, पितर तर्पण एवं दान करते हैं। लेकिन क्या यह साधना शास्त्रानुकूल है? क्या हरियाली अमावस्या का कोई उल्लेख वेदों या श्रीमद्भगवत गीता में मिलता है? आइए इस लेख में जानें इस पर्व की वास्तविकता, शास्त्र सम्मत मार्ग, और पूर्ण मोक्ष की सच्ची विधि।

  • हरियाली अमावस्या: लोक परंपरा बनाम शास्त्रों की सच्चाई
  • वेद और गीता की दृष्टि में पिंडदान, तर्पण और उपवास का सच
  • तर्पण या सतभक्ति: जानिए पूर्वजों की मुक्ति का वास्तविक मार्ग
  • पितरों का सच्चा तर्पण: पूर्ण संत की शरण और सतभक्ति से ही संभव
  • शास्त्र के विरुद्ध परंपरा: हरियाली अमावस्या का असली स्वरूप
  • सतभक्ति का शास्त्रीय रहस्य: तत्वदर्शी संत का दिव्य मार्गदर्शन
  • हरियाली अमावस्या 2025: हरियाली अमावस्या पर मोक्ष की खोज का सही रास्ता”

हिन्दू पंचांग के अनुसार सावन माह में अनेकों त्योहार मनाए जाते हैं। उन्हीं में से एक है हरियाली अमावस्या (Hariyali Amavasya)। सावन माह की अमावस्या को हरियाली अमावस्या के रूप में मनाया जाता है। इस दिन मानसिक शांति के लिए पूजा पाठ, पितरों के लिये व्रत स्नान एवं दान लोकवेदानुसार किए जाते है। ध्यान देने योग्य बात यह है कि इस प्रकार की साधना अथवा पूजन विधि का हमारे पवित्र वेदों एवं गीता में कहीं भी कोई उल्लेख नहीं है।

श्रीमद्भगवतगीता वेदों का सार कही जाती है और इसमें कहीं भी ऐसा कोई उद्धरण नहीं है जिससे व्रत, स्नानादि कर्मकांडों की पुष्टि होती हो। इससे स्पष्ट होता है कि यह पूजा विधि एक मनमाना आचरण है। गीता अध्याय 16 के श्लोक 23 में स्पष्ट वर्णन है कि मनमाने आचरण से न तो सुख प्राप्त होता है, न कोई लाभ तथा न ही पूर्ण मोक्ष मिलता है।

गीता अध्याय 6 श्लोक 16 में बताया गया है:

“न तो अधिक सोने वाले, न अधिक खाने वाले, और न व्रत उपवास करने वाले योगी होते हैं।”

गीता अध्याय 7 श्लोक 12-15:

“जो तीन गुण अर्थात ब्रह्मा, विष्णु, महेश की भक्ति करते हैं, वे मूढ़ हैं, उनकी बुद्धि हरण हो गई है।”

आज समाज में यही मूढ़ता व्यापक है। लोग बिना शास्त्र पढ़े परंपराओं का अनुसरण करते हैं, लेकिन ये परंपराएं हमें मुक्ति नहीं दिला सकतीं।

विचार करें पितरों के तर्पण के लिए मृत्योपरांत कर्मकांड किये जाते हैं, तेरहवीं आदि मृत्यु भोज से लेकर, पिंडदान, श्राद्ध आदि के बाद भी पितर तृप्त नहीं हो पाते? मृत्योपरांत प्रत्येक जीव अपने कर्मानुसार स्वर्ग, नरक, अन्य योनियां प्राप्त कर लेता है। सर्प द्वारा केंचुली छोड़ी जाने के बाद केंचुली का आप कितना भी क्रियाकर्म करें उससे कोई फर्क नहीं पड़ता है ठीक उसी प्रकार यदि किसी व्यक्ति की मृत्यु के बाद उस शव के साथ या उस व्यक्ति के नाम से कितने भी क्रियाकर्म करें वह विफल है।

साथ ही पितरों की पूजा करके हम अपने मोक्ष के द्वार स्वयं बंद कर देते हैं। श्रीमद्भगवतगीता अध्याय 9 श्लोक 25 के अनुसार भूतों को पूजने वाला भूतों को प्राप्त होता है, पितरों को पूजने वाला पितरों को प्राप्त होता है और देवताओं को पूजने वाला देवताओं को प्राप्त होता है। पितरों की पूजा करने वाले एवं कर्मकांड करने वाले भी पितर योनि में ही जाएंगे। कबीर साहेब ने धर्मदास जी को उपदेश देते हुए कहा है-

तुम पिण्ड भरो और श्राद्ध कराओ। गीता पाठ सदा चित लाओ ।।

भूत पूजो बनोगे भूता। पितर पूजै पितर हुता। 

देव पूज देव लोक जाओ। मम पूजा से मोकूं पाओ ।। 

यह गीता में काल बतावै। जाकूं तुम आपन इष्ट बतावै।।

इष्ट कह करै नहीं जैसे। सेठ जी मुक्ति पाओ कैसे ।।

पितरों के तर्पण की सबसे अच्छी विधि है सतभक्ति। सतभक्ति से न केवल हमारा कल्याण होता है बल्कि हमारे पूर्वजों एवं अग्रजों का भी कल्याण होता है। भक्ति धन को यों ही अनमोल और दुर्लभ नहीं कहा जाता है यह तो स्वर्ण से भी बहुमूल्य है। सतभक्ति क्या है? पूर्ण परमेश्वर कविर्देव की अव्याभिचारिणी भक्ति यानी ईष्ट रूप में केवल पूर्ण परमेश्वर का पूजन एवं अन्य किसी में आस्था न होना ही अव्याभिचारिणी भक्ति है। श्रीमद्भगवतगीता में एवं वेदों में इस ज्ञान को तत्वज्ञान कहा है जिसका उपदेश केवल तत्वदर्शी सन्त ही दे सकते हैं। इसके लिए गीता अध्याय 4 श्लोक 34 में पूर्ण तत्वदर्शी सन्त की शरण में जाने एवं उनसे आधीन होकर पूछने पर तत्वज्ञान का उपदेश सम्भव बताया है। स्वयं कविर्देव ने कहा है-

कबीर, भक्ति बीज जो होय हंसा |

तारूं तास के एक्कोतर बंशा ||

अर्थात परमात्मा सतभक्ति करने वाले साधक की एक सौ एक पीढ़ियों का उद्धार करते हैं। परमात्मा कबीर साहेब के लिए कुछ भी असंभव नहीं है। परमेश्वर सर्वसक्षम है। जो भाग्य में नहीं है वह भी परमात्मा दे सकते हैं ऐसा वेदों में लिखा है। यदि वास्तव में हम अपने पूर्वजों का तर्पण करवाना चाहते हैं तो हमें पूर्ण परमेश्वर की शरण में आना होगा जिससे हमे इस लोक के सुख एवं मृत्यु के बाद मोक्ष प्राप्त होगा।

उनकर सुमिरण जो तुम करिहौ | एकोतर सौ वंशा ले तरिहौ ||

वो प्रभु अविगत अविनाशी | दास कहाय प्रगट भे काशी ||

गीता के 18 अध्यायों में से एक भी अध्याय ऐसा नहीं है जिसमें स्नान, बिना गुरु के दान, पितर पूजा, तीन देवों (ब्रह्मा, विष्णु, महेश) की भक्ति, व्रत, जागरण के विषय में अनुमति या आदेश दिए गए हों। यह अपने आप में आश्चर्यजनक विषय है कि आज शिक्षित होने के बाद भी जन समुदाय पुरानी बंधी बंधाई रीति का अनुगमन करता है किन्तु अपने शास्त्र खोलकर पढ़ना उसे पसन्द नही है। जीवन के अनेकों गलत एवं अन्धानुकरणीय पक्षों का विरोध नई पीढ़ी ने सीखा है किंतु शास्त्र अब भी उसके लिए गैर जरूरी विषय हैं।

Also Read: Hariyali Teej: लोक मान्यताओं पर आधारित है हरियाली तीज

जिस प्रकार कोई सामग्री खरीदने पर हमें उसके साथ उसके उपयोग करने की जानकारी के लिए एक पुस्तिका प्राप्त होती है उसी प्रकार मनुष्य जन्म के उद्देश्य, कर्म, विधि और सतभक्ति के विषय में हमें शास्त्र ही बताते हैं। गीता अध्याय 6 के श्लोक 16 में व्रत एवं जागरण को व्यर्थ बताया हैतथा 16 श्लोक 23 में शास्त्र विधि त्यागकर मनमाना आचरण करने वाले को सुख एवं गति प्राप्त न होना बताया है वहीं अध्याय 7 के श्लोक 12-15 में तीन देवताओं (ब्रह्मा ,विष्णु, महेश) की भक्ति करने वाले गीता जी में मूढ़, नीच कहे गए हैं। लोकवेद यानी मनमाने ढंग से उपासना की पद्धति से सुख तो होता ही नहीं अपितु नरक के द्वार अवश्य खुल जाते हैं मनुष्य जन्म अति दुर्लभ और क्षणिक है। समय रहते सही निर्णय और विवेक, पतन से बचा सकता है।

शास्त्रों में और लोकवेद में अंतर यह है कि लोकवेद मनमाना आचरण है। लोकवेद के द्वारा किये आचरण से सुख तो नहीं होता और न ही गति होती है। श्राद्ध आदि क्रियाएं वेदों में वर्णित साधना नहीं है। भारतीय वाङ्मय प्रारम्भ से ही समृद्ध है और इसमें सभी समस्याओं के सारे उपाय हैं, कमी सदैव एक तत्वदर्शी सन्त की होती है जो कि पूरे विश्व में एक समय पर एक ही होता है।



तत्वदर्शी सन्त ही तत्वज्ञान और शास्त्रों के गूढ़ रहस्य बता सकता है। अनेकों ऋषि मुनि अपना शरीर तत्वज्ञान के अभाव में प्रचंड साधनाएँ करके त्याग चुके लेकिन मीराबाई, नानक जी, सन्त रविदास जी, सन्त रामानन्द जी, सन्त पीपा, सन्त धन्ना, कमाली, सन्त दादूजी, सन्त मलूकदास जी, सन्त गरीबदासजी महाराज, सुल्तान इब्राहिम अधम जैसे अनेकों साधक तत्वदर्शी सन्त को समय रहते पहचान कर अपना कल्याण करवा चुके हैं। आज हमें वही सत्यभक्ति और तत्वदर्शी सन्त की शरण सहज ही उपलब्ध है। सन्त रामपाल जी महाराज पूरे विश्व में एकमात्र तत्वदर्शी सन्त हैं जिनके तत्वाधान में भारत विश्वगुरु बनेगा। अपना जीवन बिल्कुल न गंवाते हुए आज ही ऑर्डर करें निशुल्क पुस्तक ज्ञान गंगा एवं तत्वदर्शी सन्त की शरण गहें और अपना कल्याण करवाएं।

हरियाली अमावस्या एक पारंपरिक और सांस्कृतिक पर्व है, जिसे लोक परंपराओं और मान्यताओं के आधार पर मनाया जाता है। इस दिन व्रत-उपवास रखने, पितरों को तर्पण और पिंडदान करने की परंपरा प्रचलित है। किंतु जब हम इन मान्यताओं को शास्त्रों की कसौटी पर परखते हैं, तो यह स्पष्ट होता है कि ये सभी क्रियाएं केवल लोकवेद पर आधारित हैं – शास्त्रों में इनका कोई उल्लेख या समर्थन नहीं है।

श्रीमद्भगवद्गीता जैसे परम प्रमाणिक ग्रंथ में न तो व्रत-उपवास को मोक्ष प्राप्ति का साधन बताया गया है, न ही पितर तर्पण या पिंडदान को। गीता अध्याय 4 श्लोक 34 में स्पष्ट कहा गया है कि तत्वज्ञान प्राप्त करने के लिए एक तत्वदर्शी संत की शरण लेनी चाहिए। वही संत सतभक्ति की सही विधि बताते हैं जिससे जीव को जन्म-मरण के चक्र से मुक्ति मिल सकती है। इसलिए यदि आप वास्तव में मोक्ष प्राप्त करना चाहते हैं, तो शास्त्रानुसार चलना अनिवार्य है।

आज के युग में ऐसे तत्वदर्शी संत संत रामपाल जी महाराज हैं, जो वेदों, गीता और अन्य पवित्र ग्रंथों के आधार पर सत्य भक्ति की विधि बताते हैं और नाम दीक्षा देकर मोक्ष का मार्ग प्रदान करते हैं। अतः केवल लोक परंपराओं में उलझने के बजाय शास्त्रानुकूल साधना अपनाकर ही परम लक्ष्य अर्थात् मोक्ष को पाया जा सकता है।

हरियाली अमावस्या पर सत्य ज्ञान के दीप जलाएं – और परमात्मा की शरण में जाकर सतभक्ति पाएं।

Q.1 इस वर्ष हरियाली अमावस्या कब है?

Ans. 4 अगस्त, रविवार के दिन।

Q.2 हरियाली अमावस्या हिन्दू पंचांग के अनुसार किस तिथि को मनाई जाती है?

Ans. सावन माह की अमावस्या तिथि को।

Q.3 हरियाली अमावस्या क्यों मनाई जाती है?

Ans. पितृ पूजन के उद्देश्य से।

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