भारत की पहली महिला पहलवान हमीदा बानो को गूगल ने डूडल बना किया याद
Hamida Banu Google Doodle: हमीदा बानो / बानो 1900 के दशक में भारत को अपनी पहली महिला पहलवान रूप में मिली थीं जिसने पूरे विश्व में भारत के नाम का डंका बजाया। हमीदा बानो का जन्म 1900 के दशक में उत्तरप्रदेश के अलीगढ़ में एक पहलवान परिवार में हुआ था। Google ने शनिवार, 4 मई को भारतीय पहलवान हमीदा बानो की याद में एक डूडल जारी किया, जिन्हें व्यापक रूप से भारत की पहली पेशेवर महिला पहलवान माना जाता है। गूगल डूडल के विवरण में कहा गया है, “हमीदा बानो अपने समय की अग्रणी पहलवान थीं और उनकी निडरता को पूरे भारत और दुनिया भर में याद किया जाता है।
हमीदा बानो ने अपने जीवन में महिलाओं के लिए उस दशक में संघर्ष की मिसाल पेश की जब पुरुष वर्ग को प्रधान माना जाता था।” उन्होंने अपने मुकाबले में बड़े से बड़े पुरुष पहलवानों को धूल चटाई, जिनसे डरकर कुछ मैदान से पीछे हट गए। बानो को महिला और पुरुष में भेदभाव के चलते अनेक रूढ़ीपंथियों का घोर सामना करना पड़ा था।
हमीदा बानो गूगल डूडल (Hamida Banu Google Doodle): मुख्य बिंदु
- डूडल बना गूगल ने दी भारत की पहली महिला पहलवान को श्रद्धांजलि
- लोग उसे शेरनी और अखबार उसे “अलीगढ़ का अमेज़ॉन” लिखकर संबोधित करते थे।
- पहलवानी करते समय पहनती थी पुरूषों वाली पोशाक जिस कारण झेलनी पड़ती थी आलोचनाएं।
- डाइट में वह रोज़ाना 6 लीटर दूध, सवा दो लीटर फलों का जूस, 450 ग्राम मक्खन, लगभग एक किलो के बराबर बादाम, दो बड़ी रोटियां खा लिया करती थी।
- छुड़ा दिए थे बड़े बड़े पहलवानों के छक्के। आज तक कोई भी हार उनके नाम दर्ज नहीं।
- निडर, साहस, पराक्रम, शोहरत, नाम और अद्भुत आत्मविश्वास के बाद भी हुई गुमनाम मौत।
- संत रामपाल जी महाराज जी दिलवा रहे हैं महिलाओं को समाज में समानता का दर्जा।
गूगल ने हमीदा बानो का डूडल बना किया याद
हाल ही में बीते शनिवार, 4 मई को बेंगलुरु की कलाकार दिव्या नेगी द्वारा चित्रित “हमीदा बानो”, गूगल के डूडल के चलते बानो की चर्चा सोशल मीडिया और न्यूज़ पर छाई हुई है। ‘भारत की पहली महिला पहलवान’ के रूप में हमीदा बानो को श्रद्धांजलि देने के लिए, गूगल ने शनिवार को अपने होमपेज पर एक रंगीन डूडल लगाया।
Hamida Banu Google Doodle: दिव्या नेगी ने अपने बनाए डूडल में महिला पहलवान को गुलाबी, पोल्का बिंदीदार पोशाक में चित्रित किया, जो अपने हाथों को संघर्ष की स्थिति में आगे रखे हुए है। Google ने अपने नोट में लिखा है – “हमीदा बानो अपने समय की अग्रणी महिला थीं और उनकी निडरता को पूरे भारत और दुनियाभर में याद किया जाता है।
हमीदा बानो कौन थी?
हमीदा बानो, भारत की पहली पेशेवर महिला पहलवान थीं। अपनी बेजोड़ ताकत, असाधारण प्रशिक्षण दिनचर्या और अटूट दृढ़ संकल्प के साथ, उन्होंने सामाजिक मानदंडों को चुनौती दी और खेलों में अनगिनत महिलाओं के लिए मार्ग प्रशस्त किया।
4 मई 1954 में आयोजित कुश्ती मैच में केवल 1 मिनट और 34 सेकंड में जीत दर्ज करने के बाद हमीदा बानो को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिली। उन्होंने प्रसिद्ध पहलवान बाबा पहलवान को हराया था। इस हार के बाद पेशेवर बाबा पहलवान ने कुश्ती से संन्यास ले लिया था।
हमीदा बानो सलीम नाम के पहलवान से प्रशिक्षण लिया करती थी। उन्होंने 30 वर्ष की उम्र में बड़े – बड़े पुरुष पहलवानों को मात दे दी थी। उत्तर प्रदेश के जिस शहर में वह रहती थी, वहां के समाचार पत्रों ने उसे “अलीगढ़ का अमेज़ॉन” कहकर संबोधित किया।
हमीदा बानो को किस चीज़ ने लोकप्रिय बनाया?
“मुझे एक मुकाबले में हराओ और मैं तुमसे शादी कर लूंगी।” बानो ने फरवरी 1954 में पुरुष पहलवानों को यही चुनौती दी थी। घोषणा के तुरंत बाद, उन्होंने दो पुरुष कुश्ती चैंपियनों को हराया – एक पंजाब के पटियाला से और दूसरा पश्चिम बंगाल के कोलकाता से।
हमीदा बानो ने रचा था इतिहास
हमीदा बानो ने 4 मई सन् 1950 को आयोजित कुश्ती प्रतियोगिता में 1 मिनट और 34 सेकेंड में फेमस बाबा पहलवान को हराया। उसके बाद बाबा पहलवान ने कुश्ती से हमेशा के लिए सन्यास ले लिया। उस कुश्ती मुकाबले की ख़बर अखबार में छपी जिसने हमीदा बानो को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाई थी।
हमीदा बानो का प्रारंभिक जीवन | Early Life of Hamida Banu
हमीदा बानो को “अलीगढ़ की अमेज़न” के नाम से भी जाना जाता है, उनका जन्म उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ में पहलवानों के एक परिवार में हुआ था। 1920 के दशक की शुरुआत में उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ में जन्मी, बानो को 10 साल की उम्र में उनके पिता, नादेर पहलवान जो कि एक प्रसिद्ध पहलवान भी थे, द्वारा मार्शल आर्ट में दीक्षा दी गई थी। वह कुश्ती की कला का अभ्यास करते हुए बड़ी हुई और उन्होंने 1940 और 1950 के दशक के अपने करियर में 320 से अधिक प्रतियोगिताओं में जीत दर्ज की।
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रूढ़िवादी सामाजिक मान्यताओं के कारण उस समय महिलाओं को पहलवानी में भागीदारी के लिए हतोत्साहित किया जाता था। लेकिन हमीदा को कुश्ती का जुनून था और उन्होंने पुरूष पहलवानों के साथ भी मुकाबले किए। उन्होनें पुरूष पहलवानों को अपने साथ कुश्ती करने के लिए खुली चुनौती दी और कहा कि जो भी मुझे पहलवानी में हरा देगा उससे मैं शादी कर लूंगी। उस समय उनका करियर अंतरराष्ट्रीय शिखर पर चल रहा था। उन्होनें रूसी महिला रेसलर वेरा चिस्टलिन को 2 मिनट से भी कम समय में हरा दिया था।
हमीदा बानो का डाइट रूटीन
उनके आहार और प्रशिक्षण को मीडिया द्वारा व्यापक रूप से कवर किया गया था। हमीदा बानो का रूटीन में डाइट प्लान काफी तगड़ा था जिसे फॉलो करना हर किसी के बस की बात नहीं। उनका वज़न 108 किलोग्राम और हाइट 5 फीट 3 इंच थी।
वह रोज़ाना 6 लीटर दूध, सवा दो लीटर फलों का जूस, 450 ग्राम मक्खन, लगभग एक किलो के बराबर बादाम, दो बड़ी रोटियां खा लिया करती थी। 24 घंटो में से 9 घंटे सोती और 6 घंटे एक्सरसाइज करती थी।
पुरूष प्रधान समाज में भी अकेले लड़ती रही और आगे बढ़ती रही हमीदा बानो
हमीदा बानो ने अपने करियर की शुरुआत एक पहलवान के रूप में ऐसे समय में की जब भारत में अधिकांश खेल और विशेष रूप से कुश्ती पुरुष प्रधान थे। उन्होंने अलीगढ़ में सलाम पहलवान नाम के एक स्थानीय पहलवान के तहत अपना प्रशिक्षण शुरू किया।
इन स्थानों में महिलाओं का प्रवेश काफी हद तक प्रतिबंधित था, इसलिए बानो ने पुरुष विरोधियों के साथ कुश्ती का सहारा लिया, जिसकी उस समय कड़ी आलोचना हुई। इन मैचों में, हमीदा ने वही खेल पोशाक पहनी थी, जिसने रूढ़िवादी पुरुषों के विरोध को उकसाया। उनके विरोधियों ने अक्सर उन्हें कुश्ती करने से इनकार कर दिया क्योंकि उन्हें लगा कि महिलाएं लड़ाई के योग्य नहीं हैं।
बानो हालांकि कई पुरुष पहलवानों के खिलाफ अपनी लड़ाई में सफल रही, लेकिन पंजाब में रूढ़िवादी समुदाय ने कुश्ती के लिए उनके जुनून को स्वीकार करने से इनकार कर दिया और यहां तक कि अपमान और शारीरिक हमलों के साथ उनको निशाना बनाया। इसके बाद, उनके पास भागने के अलावा कोई विकल्प नहीं था।
दो अन्य ज्ञात मामले थे जो बानो के करियर के रास्ते में आड़े आए थे। द टाइम्स ऑफ इंडिया के अनुसार, पुरुष पहलवान रामचंद्र सालुंके के साथ एक बाउट को रद्द करना पड़ा क्योंकि स्थानीय कुश्ती महासंघ ने इसका विरोध किया था। एक और समय था जब हमीदा पर लोगों द्वारा हूटिंग और पथराव किया गया था जब उसने एक पुरुष प्रतिद्वंद्वी को हराया था, जिसमें पुलिस अधिकारियों को हस्तक्षेप करने के लिए कहा गया था। ( स्रोत: विकिपीडिया)
विदेश जाकर हासिल करना चाहती थी जीत
Hamida Banu Google Doodle:अंतर्राष्ट्रीय मुकाबला (1954) – बानो मुंबई के एक मुकाबले में रूस की “मादा भालू” कही जाने वाली वेरा चिस्टिलिन को 1 मिनट के कम समय से हरा दिया था। उसी वर्ष, उन्होंने घोषणा की कि वह यूरोप में जाकर वहां के पहलवानों से लड़ेंगी। हमीदा बानो के साथी पहलवान सलाम को उनका यूरोप जाना पसंद नहीं आया।
बानो को “अलीगढ़ का अमेज़ॉन” क्यों कहा जाने लगा
हमीदा बानो कुश्ती के प्रशिक्षण के लिए अलीगढ़ आई जहां उन्होंने सलीम नाम के पहलवान से प्रशिक्षण लिया। उस समय अमेरिका के मशहूर पहलवान अमेज़ॉन हुआ करते थे उनकी तुलना बानो से की जाती थी, इसलिए उनकी ख्याति “अलीगढ़ का अमेज़ॉन” के नाम से हुई। उर्दू नारीवादी लेखिका कुर्रतुलैन हैदर लघु कहानी दालान में लिखती हैं – उनकी घरेलू सहायिका मुंबई में बानो का कुश्ती मैच देखने गई जिसके पश्चात घर आकर उन्होंने कहा कोई भी शेरनी को हरा नहीं सका। बानो ने कई राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय मुकाबले लड़े।
हमीदा बानो ने बड़े बड़े पहलवानों को रिंग में ललकारा था
1944 में लगभग 20,000 लोगों की उपस्थिति के बीच गूंगा पहलवान और बानो का मुकाबला मुंबई शहर के स्टेडियम में होना था, गूंगा पहलवान की असंभव मांग (अधिक धन, एवं समय) के बाद अंतिम समय मुकाबला रद्द कर दिया गया। बॉम्बे क्रॉनिकल अखबार (1944) – ने बताया कि मुकाबला रद्द होने से उग्र भीड़ ने आक्रोश में स्टेडियम में तोड़ फोड़ की।
- महिला पहलवान हमीदा बानो ने 30 वर्ष की उम्र, फरवरी 1954 में असामान्य चुनौती पुरूष वर्ग के लिए जारी की कि – “मुझे एक मुकाबले में हराओ और मैं तुमसे शादी कर लूंगी।”
- घोषणा के बाद, बानो ने दो पुरुष चैंपियन एक पंजाब के पटियाला से और दूसरा कोलकाता से को हराया।
- वे मई 1954 में, इस साल की अपनी तीसरी पहलवानी के लिए पश्चिमी राज्य गुजरात के वडोदरा (बड़ौदा) पहुंचीं। जहां उनका मुकाबला गामा पहलवान से होना था, किंतु गामा पहलवान यह कहते हुए पीछे हट गए कि वे किसी महिला से लड़ाई नहीं लड़ेंगे। जिसके पश्चात अपने अगले प्रतिद्वंदी बाबा पहलवान से बानो ने लड़ाई लड़ी।
- बड़ौदा जाने के पश्चात बानो ने दावा किया कि वह 320 से भी अधिक मैच जीत चुकी है। 3 मई 1954 एसोसिएटेड प्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक बाबा पहलवान से मुकाबला 1 मिनट 34 सेकंड तक चला, महिला ने उसे हराकर जीत हासिल की तथा रेफरी ने पहलवान को शादी की सीमा से बाहर घोषित कर दिया। इस मुकाबले के पश्चात बाबा पहलवान ने घोषणा की कि वह उनका आखिरी कुश्ती का मैच था।
यूरोप जाने की इच्छा बानू के पतन की वजह बनी
हमीदा बानो के पारिवारिक सूत्रों से पता चलता है कि उनके पोते फ़िरोज़ शेख़ सऊदी अरब में रहते थे उन्होंने बताया कि मुंबई में विदेशी महिला से मुकाबला के पश्चात वे उनसे आकर्षित होकर उन्हें यूरोप ले जाना चाहती थी जो उनके साथी पहलवान (ट्रेनर) सलाम को पसंद नहीं आया। बानो को रोकने के लिए सलीम ने लाठी से मारा और उनके दोनों पैर तोड़ दिए गए। वे वर्षों तक लाठियों के सहारे चलती रहीं। इस घटना के पश्चात बानो कल्याण में रुक गई और सलीम अलीगढ़ वापस आ गया।
इतनी फेमस होने के बावजूद भी हुई गरीबी और गुमनामी में मौत
इसके बाद हमीदा कुश्ती छोड़कर नॉर्मल जिंदगी जीने लगी। बानो कुछ इमारतें किराये पर देकर और दूध बेचकर अपना गुजारा चलाने लगी। जब उसके पास पैसे खत्म होते तब वे, सड़क के किनारे घर का बना नाश्ता बेचकर गुज़ारा चलाती और 1986 में उनकी गुमनाम मौत हो गई।
जैसा कि आपने पढ़ा हमीदा बानो को अपने जीवन में रूढ़िवादी विचारधाराओं तथा पुरुष प्रधान मानसिकता का कड़ा सामना करना पड़ा, उनके मुकाबले के पश्चात और पुरुष वर्ग की हार के पश्चात बानो को आलोचनाएं भी सुननी पड़ती थी।
शिक्षित समाज होने के बावजूद आज भी समाचार पत्रों में महिलाओं के प्रति होने वाले सामाजिक भेदभाव, घरेलू हिंसा, असामाजिक व्यवहार सुर्खियों में रहते है। जहां एक ओर सरकार महिलाओं को समान अधिकार दिलाने के लिए नियम कानून लाती है, किंतु वे केवल कागज़ों तक ही सीमित रह जाते हैं। इसका एक कारण है उनका परमात्मा के विधान से अपरिचित होना।
महिलाओं के सम्मान के लिए संत रामपाल जी महाराज ने उठाया बड़ा कदम
सन्त रामपाल जी महाराज महिलाओं को समाज में सम्मान दिलाने के लिए निरंतर प्रयास कर रहे है। उनका कहना है कि परमात्मा के विधान में नर तथा नारी दोनों एक समान हैं। दोनों मोक्ष के अधिकारी हैं, उनमें भेदभाव करना मूर्खता है। सन्त रामपाल जी महाराज जी एवं उनके शिष्यों ने दहेज एवं महिला भ्रूण हत्या का डटकर विरोध किया है।
परमात्मा के तत्वज्ञान को बताकर संत रामपाल जी महाराज जी ने अपने शिष्यों को सख्त निर्देश दिए हैं जिससे उनके शिष्य नर तथा नारी में किसी भी प्रकार का भेदभाव नहीं करते।
गरीबदास जी महाराज कहते हैं;
गरीब, नारी नारी क्या करै, नारी बिन क्या होय।
आदि माया ऊँकार है, देखौ सुरति समोय।।
गरीब, नारी नारी क्या करै, नारी निर्गुण नेश।
नारी सेती ऊपजे, ब्रह्मा, बिष्णु, महेश।।
नारियों को समाज में उनका असली सम्मान, भागीदारी और समानता केवल संत रामपाल जी महाराज जी दिला रहे हैं। संत रामपाल जी महाराज जी के शिष्य आज प्रत्येक क्षेत्र में कार्यरत हैं चाहे वह लड़का हो या लड़की। उनके शिष्य अपने पुत्र व पुत्री का समानता के आधार पर करते हैं पालन-पोषण। अधिक जानकारी के लिए विजि़ट करें Sant Rampal Ji Maharaj YouTube channel.
FAQS About Hamida Banu Google Doodle
उत्तर: 1920 के दशक की शुरुआत में उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ में जन्मी, बानो को 10 साल की उम्र में उनके पिता, नादेर पहलवान जोकि स्वयं एक प्रसिद्ध पहलवान थे, उन्होंने मार्शल आर्ट में ट्रेनिंग दी थी।
उत्तर: हमीदा बानो को।
उत्तर: प्रथम महिला पहलवान हमीदा बानो ने कहा था।
उत्तर: सलाम पहलवान।
उत्तर: सन्त रामपाल जी महाराज जी।