Last Updated on 29 October 2024 IST | Govardhan Puja in Hindi: भारत में सदियों से चले आ रहे अनेकों त्योहार तरह-तरह की पूजाओं से जुड़े हुए हैं। हर पर्व से कोई न कोई घटनाएं भी जुड़ी हुई हैं जिनके बाद या जिनके उपलक्ष्य में उन त्योहारों को मनाया जाने लगता है। हिंदू धर्म के प्रमुख पर्वों में से एक पर्व है गोवर्धन पूजा (Govardhan Puja) जो द्वापर युग से मनाया जा रहा है। आज हम इस पर्व और इस पर्व से जुड़ी घटना और उसके सार से परिचित होंगे।
गोवर्धन पूजा 2024 (Govardhan Puja Date) की तिथि
Govardhan Puja in Hindi: गोवर्धन पूजा दिवाली (Diwali) के दूसरे दिन यानी कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा (प्रथमा/एकम) तिथि के दिन की जाती है। इस वर्ष यह 2 नवंबर 2024, शनिवार के दिन है। गोवर्धन पूजा को प्रकृति की पूजा के साथ जोड़कर देखा जाता है, जिसमें गोबर से आकृति बनाकर उसकी पूजा की जाती है। कई लोग इस दिन गाय और बैलों की पूजा भी करते हैं। गोवर्धन पूजा भगवान श्रीकृष्ण जी का आशीर्वाद और कृपा प्राप्त करने के उद्देश्य से की जाती है। चूँकि वृंदावन कृष्ण जी से जुड़ा स्थान है। अतः वहाँ भी गोर्वधन पूजा जोर-शोर से की जाती है। हालांकि स्वयं मूर्ति बनाकर उसकी पूजा करने से कुछ हासिल नहीं होता है। कबीर साहेब जी ने ऐसे ही लोगों के लिए कहा है-
आपे लीपे आपे पोते, आपे बनावे होइ |
उसपर बुढिया पोते मांगे, अकल कहां पर खोई ||
परमेश्वर कबीर जी ने आन उपासना का और अंधश्रद्धा भक्ति का उदाहरण लक्षित करते हुए बताया है। लोकवेद के अनुसार वृद्धा अहोई नामक देवी का चित्र बनाती है उसके लिए दीवार को गोबर और गारा मिलाकर लीपती है और स्वयं उसके सामने बैठकर पूजा करती है कि पुत्रवधू को पुत्र प्राप्ति हो, ऐसे अंधश्रद्धा भक्ति करने वाले लोगों की बुद्धि समूल नष्ट हो चुकी है।
श्री कृष्ण जी के भक्तों के लिए गोवर्धन पूजा का विशेष महत्व है। वह इस त्योहार का इंतजार करते हैं और जिस दिन यह त्योहार होता है उस दिन वह ब्रज में गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा करने के लिए विशेष रूप से वहां पहुंचते हैं। ऐसा करके वह समझते हैं कि उन्हें भगवान श्रीकृष्ण की कृपा प्राप्त होगी। ऐसे अंध श्रद्धा वाले लोगों के लिए भी ऊपर लिखित वाणी सही सिद्ध होती है।
गोवर्धन पूजा का पौराणिक महत्व (Significance Of Govardhan Puja)
Govardhan Puja in Hindi: कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा (एकम) तिथि के दिन गोवर्धन पूजा का पर्व मनाया जाता है। इस घटना का मुख्य उद्देश्य इंद्र देव द्वारा भेजे गए भयंकर बारिश और तूफान से वृंदावन वासियों की रक्षा करना था। गोवर्धन पर्वत को भगवान श्रीकृष्ण का ही रूप माना जाता है। यह एक छोटा सा पहाड़ है जो ब्रज में स्थित है। लेकिन भगवान श्री कृष्ण के भक्तों की इस पर्वत में बहुत आस्था है। श्रीकृष्ण जी के भक्त गोवर्धन पर्वत को पर्वतों का राजा मानते हैं। यह पर्वत द्वापर युग से ही यहीं पर स्थित है। विचार करें कृष्ण जी ने जब सहायता की तब द्वापरयुग था और गोवर्धन पर्वत भी स्थित था। लेकिन उसी एक घटना को याद कर बार-बार गोबर से गोवर्धन पर्वत बनाकर उसके सामने हाथ जोड़कर बैठने से क्या होगा? कुछ भी नहीं।
गोवर्धन पूजा :- मुख्य परंपराएं और अनुष्ठान
1. गोवर्धन पर्वत का प्रतीकात्मक निर्माण
भक्तगण गोबर या मिट्टी से छोटे गोवर्धन पर्वत का निर्माण करते हैं। इसे फूलों और विभिन्न सामग्रियों से सजाया जाता है, जो श्रीकृष्ण द्वारा उठाए गए पर्वत का प्रतीक है।
2. अन्नकूट समर्पण
‘अन्नकूट’ या ‘भोजन का पर्वत’ इस पर्व का केंद्रीय अनुष्ठान है। भक्त विभिन्न प्रकार के शाकाहारी व्यंजन, मिठाइयां, अनाज और सब्जियां प्रसाद के रूप में अर्पित करते हैं।
3. गौ पूजा
हिंदू संस्कृति में गाय को मातृ रूप में सम्मानित किया जाता है। गोवर्धन पूजा के दिन गायों को सजाया जाता है और विशेष पूजा की जाती है।
4. शोभायात्रा और उत्सव
मथुरा-वृंदावन जैसे स्थानों पर भक्तों की शोभायात्राएं निकाली जाती हैं, जिसमें भजन-कीर्तन होता है। श्रीकृष्ण मंदिरों को प्रकाशमय किया जाता है।
क्षेत्रीय विविधताएं और वैश्विक स्वरूप
गुजरात में यह पर्व गुजराती नववर्ष के रूप में मनाया जाता है। महाराष्ट्र में बलि प्रतिपदा के नाम से इसे मनाते हैं। उत्तर भारत में, विशेषकर मथुरा-वृंदावन में भव्य समारोह होते हैं।
विश्व के विभिन्न हिंदू मंदिरों, विशेषकर बीएपीएस स्वामीनारायण मंदिरों में विशाल अन्नकूट का आयोजन किया जाता है। यहाँ भजन-कीर्तन और भक्ति गतिविधियों का आयोजन होता है।
गोवर्धन पूजा की पौराणिक कथा (Govardhan Puja Story in Hindi)
एक पूर्ण परमात्मा के अतिरिक्त अन्य किसी देवी देवताओं की भक्ति से कोई लाभ नहीं होता है। यहाँ तक कि त्रिगुण भक्ति यानी रजगुण श्री ब्रह्मा जी, सतगुण श्री विष्णु जी एवं तमगुण श्री शिव जी की भक्ति करने वाले गीता अध्याय 7 के श्लोक 12-15 में मनुष्यों में नीच, मूर्ख बताए गए हैं। गोवर्धन पूजा के दिन पहले लोग स्वर्ग के राजा इंद्र की पूजा करते थे। इंद्र अंहकारी हो गया था और उसके इस अहंकार को तोड़ने के लिए, जब द्वापरयुग में एक बार देवराज इंद्र की पूजा की जा रही थी। उस समय सत्वगुण भगवान श्री विष्णु जी के अवतार श्रीकृष्ण उस पूजा में पहुंचे और पूजा के बारे में पूछने लगे कि हमारे वेद आदि सदग्रंथों में पूर्ण ब्रह्म की पूजा का विधान है फिर आप सब लोग यह मनमाना आचरण यानी इन देवी देवताओं की पूजा क्यों कर रहे हो?
तब ब्रजवासियों ने बताया कि यह देवराज इंद्र की पूजा की जा रही है। यह पूजा यहां की परंपरा है और वर्षा के लिए हमेशा इंद्र की पूजा की जाती है क्योंकि ब्रजवासी गौधन से अपनी आजीविका चलाते थे और उसके लिए वर्षा के ऊपर निर्भर थे और वर्षा के देवता इंद्र है इसलिए इंद्र की पूजा कर रहे हैं।
■ Read in English: Govardhan Puja | Date & Story | Why Lord krishna lifted Govardhan Mountain
Govardhan Puja Story in Hindi: इस पर भगवान श्रीकृष्ण ने सभी नगरवासियों से कहा कि हमें इंद्र की पूजा करके कोई लाभ नहीं होता। वर्षा करना तो उनका कर्म और दायित्व है। वह सिर्फ अपना कर्म कर रहे हैं। सभी देवी-देवता भगवान के बनाए हुए विधान के अनुसार ही कर्म करते हैं और उस विधान के अनुसार ही वह हमें फल देते हैं। जैसा हमारा कर्म होता है उसी कर्म के आधार पर, अपनी तरफ से कुछ भी कम या ज्यादा नहीं कर सकते इसलिए हमें इनकी पूजा नहीं करनी चाहिए।
स्वर्ग के राजा इंद्र का क्रोधित होना
अपनी पूजा नहीं होने से देवराज इंद्र क्रोधित हो उठे और मेघों को आदेश दिया कि गोकुल का विनाश कर दो। इसके बाद गोकुल में भारी बारिश होने लगी और गोकुल वासी भयभीत हो उठे। यहां पर एक विचारणीय विषय है कि इंद्र जो देवताओं के राजा हैं वह किस स्वार्थ भाव से क्रिया कर रहे हैं अगर उनकी पूजा हो तो वह खुश हैं अगर उनकी पूजा नहीं हो रही तो जो साधक इतने वर्षों से उनकी पूजा कर रहे थे उन्हें मारने की कोशिश कर रहे हैं, परंतु भगवान श्री कृष्ण ने सभी गोकुल वासियों को गोवर्धन पर्वत के संरक्षण में चलने के लिए कहा। जिसके बाद श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपनी कनिष्ठा ऊँगली पर उठा लिया और सभी ब्रजवासियों की इंद्र के प्रकोप से रक्षा की।
देवराज इंद्र को अपनी गलती का एहसास होना
Govardhan Puja Story in Hindi: इंद्र ने अपने पूरे बल का प्रयोग किया लेकिन उनकी एक न चली। इसके बाद जब इंद्र को यह पता चला कि भगवान श्रीकृष्ण, विष्णु भगवान का ही अवतार हैं उनके सामने इंद्र की शक्ति बहुत कम है क्योंकि इंद्र सिर्फ स्वर्ग का राजा है परंतु श्री विष्णु जी तीन लोक के भगवान हैं जो पालन का कार्य करते हैं तो इंद्र को अपनी भूल का अहसास हुआ और वह भगवान श्रीकृष्ण से क्षमा मांगने लगे। तब से गोवर्धन पूजा को विशेष महत्व दिया जाता है। अब इस घटना से निष्कर्ष निकलता है कि जिन देवी-देवताओं की आज हम पूजा करके सुख चाहते हैं उनकी पूजा के लिए भगवान श्रीकृष्ण जी ने द्वापरयुग में ही मना कर दिया था।
सभी देवी देवता कार्य करने के लिए पूर्ण परमेश्वर द्वारा निहित किये गए हैं और वे अपना कर्म कर रहे हैं। वे उसमें कम और ज्यादा नहीं कर सकते हैं। हमें सिर्फ पूर्ण परमात्मा की पूजा करनी चाहिए। केवल एक मालिक की भक्ति करने से हमें सब लाभ मिल जाता है।
कबीर परमेश्वर जी कहते हैं-
कबीर, एकै साधे सब सधै, सब साधे सब जाय |
माली सींचै मूल को, फलै-फूलै अघाय ||
कबीर, गोवर्धन कृष्ण जी उठाया, द्रोणागिरि हनुमंत।
शेष नाग सब सृष्टी उठाई, इनमें को भगवंत।।
गीता अनुसार देवी देवताओं की पूजा नहीं करना चाहिए
श्रीमद्भागवत गीता अध्याय 9 श्लोक 25 और अध्याय 7 श्लोक 23 के अनुसार देवताओं को पूजने वाले देवताओं को प्राप्त होते हैं, परंतु उन अल्प बुद्धिवालों का वह फल नाशवान होता है। अर्थात देवताओं से मिलने वाला लाभ क्षणिक होता है। और भगवान की पूजा करने वाले भगवान को प्राप्त होते हैं। संत गरीबदास जी महाराज कहते हैं –
गरीब, भूत रमै सो भूत है, देव रमै सो देव।
राम रमै सो राम है, सुनो सकल सुर भेव।।
गोवर्धन पूजा (Govardhan Puja) से पहले किसकी होती थी पूजा?
गोवर्धन पूजा का आरम्भ द्वापर युग से माना जाता है। अब विचार करने योग्य बात यह है कि द्वापर युग से पहले किसकी पूजा होती थी? ठीक इसी प्रकार कृष्ण जी का जन्म द्वापरयुग में तथा राम जी का जन्म त्रेतायुग में माना जाता है तो फिर सतयुग में ऋषि, मुनियों द्वारा किसकी पूजा की जाती थी?
सतयुग में राम कृष्ण नहीं थे, तब किसका धरते ध्यान ।
पूर्ण परमेश्वर कबीर साहेब जी धर्मदास जी को समझाते हुए कहते हैं कि, धर्मदास जी सतयुग में किसका ध्यान करते थे क्योंकि उस समय तो राम और कृष्ण नहीं थे।
शास्त्रानुकूल साधना कौन सी है?
श्रीमद्भागवत गीता अध्याय 16 के श्लोक 23 और 24 में कहा है कि अर्जुन भक्ति मार्ग के लिए कौन से कर्म करने चाहिए और कौन से नहीं करने चाहिए, उसके लिए शास्त्र ही प्रमाण हैं। हमारे शास्त्र चारों वेद और श्रीमद्भगवद्गीता हैं। दोनों में कहीं भी देवी-देवताओं की पूजा, गोवर्धन पूजा (Govardhan Puja) के बारे में नहीं कहा गया है। श्रीमद्भागवत गीता के अध्याय 4 के श्लोक 34 में कहा है कि पूर्ण परमात्मा के तत्वज्ञान को समझने के लिए तत्वदर्शी संत की खोज कर, उन्हें दंडवत प्रणाम करके सरलता पूर्वक निष्कपट भाव से उनसे प्रश्न करने पर वह उस परमात्म तत्व का ज्ञान करवाएंगे।
वर्तमान समय में तत्वदर्शी कौन है?
आज वर्तमान में वह तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज हैं जो पूर्ण परमात्मा की साधना और सभी धर्मों के ग्रंथ, चारों वेद, अठारह पुराण, श्रीमद्भागवत गीता आदि से अनमोल ज्ञान खोलकर लोगों को सत्य साधना बता रहे हैं। साधक को आन उपासना को त्याग कर पूर्ण परमात्मा की सच्ची भक्ति ग्रहण करनी चाहिए। जिसका प्रमाण श्रीमद्भागवत गीता के अध्याय 17 के श्लोक 23 में है, जिसमें परमात्मा पाने के तीन सांकेतिक मन्त्र ॐ-तत-सत बताए गए हैं। ये तीनों मन्त्र वर्तमान में केवल तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज देते हैं। जब तक साधक इन मन्त्रों को प्राप्त नहीं कर लेगा, वह जन्म मरण से नहीं छूट सकता। विश्व में एकमात्र तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज हैं, उनसे नामदीक्षा लेकर ही कल्याण हो सकता है। अधिक जानकारी के लिए सतलोक आश्रम यूट्यूब चैनल पर देखें या गूगल प्ले स्टोर से Sant Rampal Ji Maharaj App डाऊनलोड करें।
FAQs About Govardhan Puja 2024[Hindi]
उत्तर – प्रतिवर्ष गोवर्धन पूजा दिवाली के दूसरे दिन यानि कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा (एकम) तिथि को मनाया जाता है।
उत्तर – इस साल गोवर्धन पूजा 2 नवंबर 2024 को मनाई जाएगी।
उत्तर – पौराणिक मान्यताओं के अनुसार श्रीकृष्ण ने ब्रजवासियों से देवराज इंद्र की पूजा को छोड़कर एक पूर्ण परमात्मा की भक्ति करने के लिए कहा था। जिससे इंद्र क्रोधित होकर गोकुल को डुबोने में आमादा था। तब श्रीकृष्ण ने गोकुल वासियों की रक्षा गोवर्धन पर्वत उठाकर की थी। इसी उपलक्ष्य में गोवर्धन पूजा की जाती है।
उत्तर – गोवर्धन पूजा का वर्णन गीता व वेद में नहीं हैं, जिससे यह शास्त्र विरुद्ध मनमाना आचरण है और गीता अनुसार मनमाने आचरण से कोई लाभ नहीं होता।
उत्तर – जो भक्ति साधना वेद और श्रीमद्भागवत गीता में वर्णित है, वहीं साधना शास्त्रानुकूल होती है।