November 20, 2024

भगवान v/s पूर्ण परमात्मा: जानिए पूर्ण परमात्मा की पहचान कर मोक्ष कैसे प्राप्त करें?

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Published on 3-6-2021: 10:29 pm IST:भगवान के बिना आत्मा का कोई अस्तित्व नहीं है। कोई भी मनुष्य बिना भगवान के जीवन के उद्देश्य को प्राप्त नहीं कर सकता। परंतु सभी धर्म के लोगों ने पूर्ण परमात्मा को पहचाने बिना अपने लिए एक या अधिक भगवान तय कर दिए। इस लेख के माध्यम से हम अपने पाठकों को सृष्टिकर्ता पूर्ण परमात्मा और काल ब्रह्म भगवान के बीच के अंतर को बताएंगे। मुस्लिम, हिंदू, ईसाई और सिख धर्म में प्रचलित भगवानों की स्थिति से अवगत कराएंगे। यह भी बताएंगे कि पूर्ण परमात्मा किस किस को आकर मिले और पाठक पूर्ण परमात्मा को किस माध्यम से प्राप्त कर सकते हैं?

भगवान बनाम पूर्ण परमात्मा 

भगवान शब्द का अर्थ पालनकर्ता व संचालनकर्ता होता है। यह शब्द अपने आप में सर्वशक्तिमान है। परंतु इस पूरे  ब्रह्मांड में जो एक परम शक्ति है जिससे सभी की उत्पत्ति हुई है केवल वही एकमात्र पूर्ण परमात्मा है। उस पूर्ण परमात्मा ने अपने द्वारा बनाई गई दुनिया को चलाने की जिम्मेदारी जिसे सौंप रखी है उसे तत्वज्ञान के अभाव में जीव भगवान समझ रहे हैं जो कि गलत है। सर्वशक्तिमान ईश्वर का पर्याय है जो दुनिया का निर्माता, नियंत्रक और संयोजक है।

भगवान के उपमात्मक नाम क्या हैं?

भगवान को कई उपमात्मक नामों से जाना जाता है। ईसाई धर्म के लोग उसे गॉड कहते हैं, मुस्लिम भाई उसे अल्लाह, हिन्दू धर्म के लोग उन्हें ईश्वर की संज्ञा देते हैं और सिख धर्म के लोग उसे रब का नाम देते हैं। 

भगवान कितने प्रकार के हैं?

गीता जी के अध्याय नं. 15 का श्लोक नं. 16 के अनुसार 

द्वौ, इमौ, पुरुषौ, लोके, क्षरः, च, अक्षरः, एव, च,

क्षरः, सर्वाणि, भूतानि, कूटस्थः, अक्षरः, उच्यते।।16।।

अनुवाद: (लोके) इस संसार में (द्वौ) दो प्रकार के (पुरुषौ) भगवान हैं (क्षरः) नाशवान् (च) और (अक्षरः) अविनाशी (एव) इसी प्रकार (इमौ) इन दोनों लोकों में (सर्वाणि) सम्पूर्ण (भूतानि) भूतप्राणियों के शरीर तो (क्षरः) नाशवान् (च) और (कूटस्थः) जीवात्मा (अक्षरः) अविनाशी (उच्यते) कहा जाता है।

भगवान बनाम पूर्ण परमात्मा को हम एक उदाहरण के द्वारा समझ सकते हैं। जैसे एक राज्य का कोई मंत्री होता है तो वह अपने स्तर का साहब कहलाता है उससे बड़ा मुख्यमंत्री होता है वह भी अपने स्तर का साहब कहलाता है व उससे भी बड़ा राष्ट्रपति होता है वह सभी का साहब होता है यानि सबसे बड़ा और पूर्ण केवल वह राष्ट्रपति होता है। 

पूर्ण परमात्मा ही वास्तव में सच्चा भगवान, सच्चा संत, सच्चा गुरू व पूर्ण परमात्मा होता है एवं अपनी जानकारी इस धरती पर देने के लिये स्वयं ही तत्वदर्शी संत (पूर्ण गुरु) की भूमिका करने आता है। इस समय धरती पर तत्वदर्शी संत की भूमिका में पूर्ण परमात्मा स्वरूप संत रामपाल जी महाराज तत्वज्ञान से संपूर्ण सृष्टि को अवगत करा रहे हैं।

सच्चा भगवान कौन है?

यह सबसे जटिल प्रश्न है जिसका उत्तर तत्वदर्शी गुरु बताता है। वास्तव में भगवान और पूर्ण परमात्मा दोनों अलग अलग सत्ता हैं। पूर्ण परमात्मा ने संपूर्ण सृष्टि की रचना की है व सभी जीवों की उत्पत्ति भी इसी पूर्ण परमात्मा से हुई है। यह पूर्ण परमात्मा सबका पालन पोषण करता है।  सभी जीवों के हित के लिये अपनी शक्तियों का प्रयोग करता है। पूर्ण परमात्मा से भिन्न कुछ लोकों/ क्षेत्रों के मालिकों को भी जीव तत्वज्ञान के अभाव में अज्ञानी भगवान की संज्ञा देते हैं, जबकि यह सभी अधूरे भगवान होते हैं। 

विभिन्न धर्मों की शुरुआत भगवान के किन दूतों द्वारा हुई और कैसे?

मुस्लिम समाज किस अल्लाह की इबादत करता है?

काल ब्रह्म ने कुरान शरीफ/कुरान मजीद का ज्ञान जिब्रील नामक फरिश्ते के माध्यम से हज़रत मोहम्मद को दिया। सही जानकारी के अभाव में मुस्लिम समाज का मानना ​​है कि कुरान शरीफ का ज्ञान देने वाला ही अल्लाह हैं। नतीजतन, पूरा मुस्लिम समुदाय मानता ​​है कि कुरान शरीफ का सूत्रधार अल्लाहु अकबर है और अज्ञानतावश सभी मुस्लिम उसकी (काल ब्रह्म की) इबादत करते हैं।

वास्तविकता है एक जिब्राईल / जिब्रील या गेब्रीएल नामक फरिश्ते ने हज़रत मुहम्मद जी का गला घोंट-घोंट कर बलात् कुरान शरीफ का ज्ञान समझाया। हज़रत मुहम्मद जी को डरा धमका कर अव्यक्त माना जाने वाले प्रभु का ज्ञान दिया गया। उस जिब्रील देवता के डर से हज़रत मुहम्मद जी ने वह ज्ञान याद किया। इस प्रकार मुहम्मद साहेब जी को काल के भेजे फरिश्ते द्वारा इस ज्ञान को जनता में बताने को बाध्य किया गया।  सतज्ञान के अभाव में हजरत मुहम्मद जी ने 63 वर्ष की आयु में सख्त बीमार होकर तड़पते-तड़पते भी नमाज़ की, तथा असहनीय पीड़ा में सारी रात तड़फ कर प्राण त्याग दिए। यदि उन्होंने सतभक्ति की होती तो उनका अंत पीड़ादायक नहीं होता और पूर्ण मोक्ष को प्राप्त होते।  

क्या हिंदू धर्म में भगवान विष्णु (श्री राम – श्री कृष्ण अवतार ) या भगवान शिव पूर्ण परमात्मा हैं?

तीन लोक के स्वामी श्री विष्णु जी 16 कलाओं के भगवान हैं। जबकि श्री राम और श्री कृष्ण उनके अवतार हैं। यह बात सर्व स्वीकार्य है कि दोनों अवतार मां के गर्भ से जन्म लेते हैं तथा मृत्यु के समय अपना पंचतत्व शरीर छोड़कर जाते हैं। अतः इनको हिंदू धर्म के पवित्र शास्त्रों के ज्ञान के अनुसार पूर्ण परमात्मा नहीं माना जा सकता। कुछ लोगों का मानना है कि श्रीकृष्ण हिन्दू धर्म के पूर्ण परमात्मा हैं जिनकी पूजा स्वयं श्री ब्रह्मा जी, श्री विष्णु जी तथा श्री शिव जी द्वारा की जाती है वे लोग पूरी तरह से भ्रमित हैं। वास्तव में श्री कृष्ण श्री विष्णु जी के एक अवतार हैं, उन्हें श्री विष्णु जी से अधिक शक्तिशाली नहीं माना जा सकता। 

पुराणों में जिसे सर्वोच्च भगवान के रूप में दर्शाया गया है, वे विष्णु या शिव नहीं हैं जो तीन लोकों के स्वामी हैं, बल्कि भगवान काल है जिसे ब्रह्म, महाब्रह्मा, महाविष्णु, सदाशिव और महाशिव के नाम से भी जाना जाता है। जो किसी के सामने अपने शरीर में प्रकट नहीं होता है, और अपने कार्यों को पूरा करने के लिए इन तीन देवताओं के रूप को प्राप्त करता है। वह केवल अपने 21 ब्रह्मांड का स्वामी है। यह काल ब्रह्म हिंदू धर्म के पवित्र ग्रंथों में वर्णित तीनों देवताओं का पिता है। जो काल ब्रह्म की पूजा करते हैं वो उसे हिंदू धर्म का सनातन अविनाशी परमात्मा जानकर ही पूजते हैं। हालांकि, हिंदू धर्म के पवित्र ग्रंथों से प्रमाणित होता है कि वह पूर्ण परमात्मा नहीं है और न ही वह अविनाशी है। 

श्री दुर्गा जी हिंदू धर्म के पवित्र ग्रंथों में वर्णित पूर्ण परमात्मा नहीं है। उनकी भी जन्म – मृत्यु होती है। यही कारण है कि काल ब्रह्म पवित्र गीता जी अध्याय 15 श्लोक 17 और अध्याय 2 श्लोक 17 में कहता है कि अकेले परमपिता परमेश्वर ही “अविनाशी भगवान” (सनातन ईश्वर) के रूप में जाना जाता है। गणेश जी, लक्ष्मी जी, हनुमान जी व अन्य तैंतीस करोड़ देवी देवता भी काल के आधीन हैं और काल ब्रह्म पूर्ण परमात्मा के आधीन है। काल के अंतर्गत आने वाले सभी भगवान और देवी देवता जन्म मृत्यु में आते हैं इसलिए ये पूर्ण परमात्मा नहीं हैं।

क्या यीशु गॉड है?

यीशु का जन्म देवता और मरियम से हुआ था। इनके पिता का नाम यूसुफ था। यीशु के शरीर में आत्माएँ प्रवेश करती थीं और वे भविष्यवाणियाँ करती थीं और चमत्कार करती थीं। यीशु को काल भगवान ने भेजा था और उनके द्वारा किए हुए चमत्कार पूर्व निर्धारित थे। ये सिर्फ काल भगवान के अवतारों की महिमा बनाने के लिए किए जाते है। ताकि उनके पीछे काफी श्रद्धालु लग जाए और संसार में गलत साधना का प्रचार हो सके। 

यीशु को पूर्ण परमात्मा भी आकर मिले थे और उन्हें एक ईश्वर की भक्ति का विधान समझाया था इसी कारण यीशु ने ‘एक भगवान’ के बारे में उपदेश दिया। जैसे जैसे यीशु अपना प्रचार करते गए, भीड़ बढ़ती गई और वे उन्हें मसीहा कहा जाने लगा।

तीस (30) वर्ष की आयु में ईसा मसीह जी को शुक्रवार के दिन सलीब मौत (दीवार) के साथ एक लकड़े के ऊपर खड़ा करके हाथों व पैरों में मेख (मोटी कील) गाड़ दी। जिस कारण अति पीड़ा से ईसा जी की मृत्यु हुई। तीसरे दिन रविवार को ईसा जी फिर से दिखाई देने लगे। 40 दिन (चालीस) कई जगह अपने शिष्यों को दिखाई दिए। जिस कारण भक्तों में परमात्मा के प्रति आस्था दृढ़ हुई। 

वास्तव में पूर्ण परमात्मा ने ही ईसा जी के रूप में प्रकट होकर प्रभु भक्ति को जीवित रखा था। काल तो चाहता है यह संसार नास्तिक हो जाए। परन्तु पूर्ण परमात्मा ने यह भक्ति वर्तमान समय तक जीवित रखनी थी। उस समय के शासक(गवर्नर) पिलातुस को पता था कि ईसा जी निर्दोष हैं परन्तु फरीसियों अर्थात् मूसा के अनुयायियों के दबाव में आकर सजा उसने सुना दी थी।

सिख धर्म के लोग रब किसे मानते हैं?

सिख धर्म के संस्थापक गुरु नानक जी स्वयं स्वीकार कर रहे हैं कि साहिब (भगवान) केवल एक हैं, उनके अनेक रूप हैं। वे ही सत्यपुरुष हैं, वे ही जिंदा महात्मा के रूप में भी आते हैं, वे ही काशी में एक बुनकर (धानक) के रूप में बैठे हुए हैं, एक साधारण व्यक्ति या भगत की भूमिका करने भी स्वयं आते हैं। मैंने देखा कि शास्त्र-विरुद्ध साधना करने की वजह से पूरी दुनिया कर्मफल में बंधी हुई थी और जन्म-मृत्यु के चक्र में फंसी हुई थी। अपने जीवन के व्यर्थ होने के भय से मैंने गुरु जी के चरणों में शरण ली और मुझे मेरे गुरु जी ने नाम जाप का उपदेश दिया।

सिख धर्म पूरी तरह से एकेश्वरवादी है अर्थात केवल एक ईश्वर के अस्तित्व को मानते हैं।  गुरु नानक ने एकेश्वरवाद के विचार पर जोर देने के लिए ओंकार शब्द के पहले “इक”(ੴ) का उपसर्ग दिया।

इक ओंकार सत-नाम करत पुरख निरभउ,

निरवैर अकाल मूरत अंजुनि सिभन गुर प्रसाद।

यहां केवल एक ही परम पुरुष है, शाश्वत सच, हमारा रचनहार, भय और दोष से रहित, अविनाशी, अजन्मा, स्वयंभू परमात्मा। जिसकी जानकारी कृपापात्र भगत को पूर्ण गुरु से प्राप्त होती है। एकेश्वरवाद की उनकी सामान्य मान्यता के अनुसार  सृष्टिकर्ता, पालनकर्ता, और संहार कर्ता एक ही है।  

Read in English: God vs Supreme God: Who Is the Supreme God Among Gods?

आइए जानते हैं सिख धर्म में ‘वाहेगुरु’ या ईश्वर कौन है? सिख धर्म के संस्थापक गुरु नानक देव ने गुरु ग्रंथ साहेब में कई संकेत दिए हैं कि केवल  सद्गुरु / तत्त्वदर्शी संत की शरण में जाने से ही मुक्ति प्राप्त कर सकते हैं। सद्गुरु मानव जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। विभिन्न मूल भाषाओं में भगवान का वास्तविक नाम कविर्देव (वेदों में संस्कृत भाषा में), हक्का कबीर (पृष्ठ संख्या 721 पर गुरु ग्रंथ साहिब में पंजाबी भाषा में) है।

कलयुग में किस किस संत को आकर मिले परमात्मा?

ऋग्वेद के मंडल नंबर  09 सूक्त 96 के मंत्र नंबर 18 में बताया गया है कि :- 

ऋषिमना य ऋषिकृत स्वर्षा सहस्त्राणीथ: पदवी: कवीनाम् ।

तृतीयम् धाम महिष: सिषा सन्त् सोम: विराजमानु राजति स्टुप ।।

इस मंत्र में कहा है कि कविर्देव शिशु रूप धारण कर लेता है। लीला करता हुआ बड़ा होता है। कविताओं द्वारा तत्वज्ञान वर्णन करने के कारण कवि की पदवी प्राप्त करता है अर्थात् उसे ऋषि, सन्त व कवि कहने लग जाते हैं, वास्तव में वह पूर्ण परमात्मा कविर् ही है। उसके द्वारा रची अमृतवाणी कबीर वाणी (कविर्वाणी) कही जाती है, जो भक्तों के लिए स्वर्ग तुल्य सुखदाई होती है। वही परमात्मा तीसरे मुक्ति धाम अर्थात् सत्यलोक की स्थापना करके तेजोमय मानव सदृश शरीर में आकार में गुबन्द में सिंहासन पर विराजमान है।

जिन आदरणीय संतों से पूर्ण परमात्मा कबीर जी आकर मिले उनमें कुछ नाम है धर्मदास जी, दादू साहेब जी, मलूक दास जी, गरीब दास जी, हजरत मोहम्मद जी, सुल्तान अधम, मीरा बाई, रविदास जी, ध्रुव और प्रहलाद, जीवा और दत्ता और गुरु नानक देव जी। 

उपरोक्त सभी संतों को कबीर परमेश्वर ने सृष्टि रचना (ब्रह्मांड की रचना) का ज्ञान दिया और कहा कि मैं ही पूर्ण परमात्मा हूं, मेरा स्थान “सचखंड” (सतलोक) में है। तुम मेरी आत्मा हो। काल ब्रह्म सभी आत्माओं को झूठे ज्ञान से भ्रमित करके विचलित रखता है और सभी प्राणियों को कई प्रकार के शारीरिक कष्टों से परेशान करता है। इन सभी को सर्वप्रथम पहला मंत्र दिया फिर तत्वज्ञान समझाया अपना निज लोक सतलोक दिखाया फिर उनकी आत्मा को वापस शरीर में डालकर कहा भक्ति करो और फिर बाद में सतनाम और सारनाम दिया। भक्ति की कमाई से वापस सतलोक में वास किया।

भगवान काल अपने पुत्रों के समक्ष भी नहीं आता

दूसरी ओर ‘काल ब्रह्म’ भगवान अपने भक्तों के समक्ष नहीं आता। गीता अध्याय 7 श्लोक 24 में कहा है कि यह बुद्धिहीन जन समुदाय मेरे अनुत्तम नियम से अपिरिचत हैं कि मैं कभी भी किसी के सामने प्रकट नहीं होता अपनी योगमाया से छिपा रहता हूँ। इसलिए मुझ अव्यक्त को मनुष्य रूप में आया हुआ अर्थात कृष्ण मानते हैं।

सृष्टि की आदि में तीनों पुत्रों की उत्पत्ति के पश्चात् ब्रह्म ने अपनी पत्नी दुर्गा (प्रकृति) से कहा मैं प्रतिज्ञा करता हूँ कि भविष्य में मैं किसी को अपने वास्तविक रूप में दर्शन नहीं दूंगा। जिस कारण से मैं अव्यक्त माना जाऊँगा। दुर्गा से कहा कि आप मेरा भेद किसी को मत देना। मैं गुप्त रहूँगा। दुर्गा ने पूछा कि क्या आप अपने पुत्रों को भी दर्शन नहीं दोगे? ब्रह्म ने कहा मैं अपने पुत्रों को तथा अन्यों को किसी भी साधना से दर्शन नहीं दूंगा, यह मेरा अटल नियम रहेगा। दुर्गा ने कहा यह तो आपका उत्तम नियम नहीं है जो आप अपनी संतान से भी छुपे रहोगे। तब काल ने कहा दुर्गा मेरी विवशता है। मुझे एक लाख मानव शरीर धारी प्राणियों का आहार करने का श्राप लगा है। यदि मेरे पुत्रों (ब्रह्मा, विष्णु, महेश) को पता लग गया तो ये उत्पत्ति, स्थिति तथा संहार का कार्य नहीं करेंगे। इसलिए यह मेरा अनुत्तम नियम सदा रहेगा। जब ये तीनों कुछ बड़े हो जाऐं तो इन्हें अचेत कर देना। मेरे विषय में नहीं बताना, नहीं तो मैं तुझे भी दण्ड दूंगा, इस डर से दुर्गा त्रिदेवों को भी वास्तविकता नहीं बताती।

पूर्ण परमात्मा कौन है ?

पवित्र सदग्रंथो में और सूक्ष्म वेद में परमात्मा के गुणों का वर्णन है जिसमें बताया गया है कि पूर्ण परमात्मा अपने साधक के सर्व पापों को नष्ट कर सकता है और सर्व प्रकार से अपने साधक की रक्षा भी करता है व साधक को सतभक्ति प्रदान करके अपने निज धाम शाश्वत स्थान सतलोक (सुखसागर) ले जाता है। सभी धर्मों के लोग जिसे सबका मालिक एक (पूर्ण परमात्मा) कहते हैं उनका वास्तविक नाम कविर्देव है जिन्हें कबीर साहेब भी कहा जाता है जो चारों युगों में आते हैं। परमात्मा की वाणी है कि –

सतयुग में सतसुकृत कह टेरा, त्रेता नाम मुनिद्र मेरा, 

द्वापर में करुणामय कहाया, कलयुग नाम कबीर धराया।

परमात्मा चारों युगों में अलग अलग नाम से इस पृथ्वी पर आते है और कलयुग में अपने वास्तविक नाम कबीर के साथ इस मृत्युलोक के जीवों को सत्य ज्ञान और पूर्ण मोक्ष प्राप्ति की विधि बताते है।

पूर्ण परमात्मा की जानकारी पवित्र वेदों में दी है। जो पूर्ण परमात्मा होता है उसकी परवरिश कुंवारी गायों के दूध से होती है प्रमाण के लिये देखिये ऋग्वेद मंडल नंबर 09 सुक्त 01 मंत्र 09 –

अभीअममघ्न्यां उत श्रीणन्तिं धेनव: शिशुम् !

सोममिन्द्रांय् पातवे।।

उस (सोमं) सौम्य स्वभाव वाले श्रद्धालु पुरुष को (शिशुं) कुमारावस्था में ही (अभि) सब प्रकार से (अघ्न्या:) अहिंसनी़य (धेनव:) गौवें (श्रीणन्ति) तृप्त करती हैं। अर्थात् उस परमात्मा की बाल्यावस्था में तृप्ति कुवांरी गायों के दूध से होती है वह मां के गर्भ से जन्म नहीं लेता और उसका शरीर नाड़ी-तंत्र शुक्राणु से बना नहीं होता। प्रमाण पवित्र यजुर्वेद अध्याय 40 के मंत्र 08 में वर्णित है।

पूर्ण परमात्मा का नाम कविर्देव है प्रमाण के लिये देखिये अथर्ववेद काण्ड नं.04 अनुवाक नं. 01 मंत्र नं.07

योडथर्वाणं पित्तरं देवबन्धुं बृहस्पतिं नमसाव च गच्छात् !

त्वं विश्वेषां जनिता यथास: कविर्देवो न दभायत् स्वधावान् ||

अनुवाद:- (यः) जो (अथर्वाणम्) अचल अर्थात् अविनाशी (पित्तरम्) जगत पिता (देव बन्धुम्) भक्तों का वास्तविक साथी अर्थात् आत्मा का आधार (बहस्पतिम्) जगतगुरु (च) तथा (नमसा) विनम्र पुजारी अर्थात् विधिवत् साधक को (अव) सुरक्षा के साथ (गच्छात्) सतलोक गए हुओं को सतलोक ले जाने वाला (विश्वेषाम्) सर्व ब्रह्मण्डों की (जनिता) रचना करने वाला जगदम्बा अर्थात् माता वाले गुणों से भी युक्त (न दभायत्) काल की तरह धोखा न देने वाले (स्वधावान्) स्वभाव अर्थात् गुणों वाला (यथा) ज्यों का त्यों अर्थात् वैसा ही (सः) वह (त्वम्) आप (कविर्देवः/ कविर्देवः) कविर्देव है अर्थात् भाषा भिन्न इसे कबीर परमेश्वर भी कहते हैं।

पूर्ण परमात्मा कविर्देव है, यह प्रमाण यजुर्वेद अध्याय 29 मंत्र 25 तथा सामवेद संख्या 1400 में भी है जो निम्न है –

समिद्धोऽअद्य मनुषो दुरोणे देवो देवान्यजसि जातवेदः।

आ च वह मित्रामहश्चिकित्वान्त्वं दूतः कविरसि प्रचेताः।।

भावार्थ:- जिस समय भक्त समाज को शास्त्रविधि त्यागकर मनमाना आचरण (पूजा) कराया जा रहा होता है। उस समय कविर्देव (कबीर परमेश्वर) तत्वज्ञान को प्रकट करता है।

मोक्ष कैसे प्राप्त कर सकते हैं?

‘मोक्ष’ केवल एक सच्चे / पूर्ण गुरु ‘तत्वदर्शी संत’ की शरण में जाने से संभव है। केवल एक सच्चा गुरु ही सच्चा आध्यात्मिक ज्ञान और “सच्चा मंत्र” प्रदान कर सकता है जिसके द्वारा मोक्ष संभव है। श्रीमद्भागवत गीता के अध्याय 4 के श्लोक 34 में “तत्त्वदर्शी संत” की शरण में जाने के लिए कहा गया है। इसी तरह श्रीमद्भगवद्गीता के ही अध्याय 18 श्लोक 62 से 66 में गीता ज्ञान दाता अन्य भगवान की शरण में जाने का संदेश देता है। वर्तमान समय में संत रामपाल जी महाराज तत्वदर्शी संत की भूमिका में पृथ्वी पर मौजूद हैं। भगवान और पूर्ण परमात्मा का भेद अपने सत्संगों में प्रमाण सहित दिखाकर समझाते हैं। आप भी उनके द्वारा लिखी पवित्र  पुस्तक ज्ञानगंगा अवश्य पढ़ें व उनके सत्संगों को सतलोक आश्रम यूट्यूब चैनल पर देखें।

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