First India News Exposed: तत्वज्ञान के अभाव की वजह से प्रत्येक धर्म के धर्मगुरुओं द्वारा ऐसी बहुत सी क्रियाएँ करी व करवाई जाती हैं जोकि शास्त्र विरुद्ध होती हैं। इन्हीं में से एक है हिन्दू धर्म में मूर्ति पूजा, देवी देवताओं की पूजा तथा मुस्लिम धर्म में मजार की पूजा। परन्तु जब किसी संत द्वारा धर्म ग्रंथों के सत्यज्ञान को सामने रखा जाता है तो नकली व शास्त्र विरुद्ध ज्ञान बताने वाले धर्मगुरु अपने को ऊँट की भाँति सबसे ऊंचा मानते हुए उसका विरोध करते हैं। लेकिन कहावत है “जब आया ऊँट पहाड़ के नीचे यानि जो कोई भी व्यक्ति अपने आपको सबसे ज्यादा ऊँचा और ज्ञानी समझता है उससे ज्यादा ज्ञान रखने वाला भी कोई ना कोई जरूर होता है।” ऐसा ही इन धर्मगुरुओं के साथ आज हो रहा है वे मानते हैं कि उनसे अधिक ज्ञान किसी को नहीं है, जो हम ज्ञान बताते हैं वह सर्वोत्तम है। परंतु आज संत रामपाल जी महाराज ने इन सभी धर्मगुरुओं के शास्त्र विरुद्ध ज्ञान या यूँ कहें अज्ञान को जनता के सामने प्रमाण सहित रखा तो इन्हें अपनी हार हजम नहीं हो रही। जिससे संत रामपाल जी महाराज द्वारा दिये जा रहे तत्वज्ञान (शास्त्र प्रमाणित ज्ञान) का विरोध करते हुए मानव समाज को भ्रमित किया जा रहा है।
हाल ही में राजस्थान, जयपुर के सोडाला में संत रामपाल जी महाराज द्वारा सर्व पवित्र धर्म शास्त्रों से प्रमाण सहित लिखित पुस्तक “अंध श्रद्धा भक्ति खतरा ए जान” और “ज्ञान गंगा” का प्रचार कर रहे उनके अनुयायियों का विरोध करते हुए लोगों द्वारा सोडाला थाने में एफआईआर कराई गई और इन पुस्तकों को हिन्दू धर्म विरोधी तथा इनमें लिखी गई कुछ बातों को आपत्तिजनक बताया गया है और इन पुस्तकों की सच्चाई को जाने बिना 1st इंडिया न्यूज चैनल के एंकर विजेंद्र सोलंकी द्वारा आस्था या अज्ञान नामक डिबेट चलाकर इन पवित्र पुस्तकों और संत रामपाल जी महाराज के विषय में दुष्प्रचार किया। इस न्यूज चैनल के उन्हीं कुतर्कों का खंडन हम अपने इस लेख में प्रमाण सहित करने वाले हैं। जिसमें हम आपको बताएंगे कि शिवलिंग क्या है, इसकी पूजा कैसे प्रारंभ हुई, ब्रह्मा, विष्णु व शिव जी की उत्पत्ति कैसे हुई, मूर्ति पूजा से क्या होता है, देवी देवताओं की पूजा से क्या लाभ है और क्या संत रामपाल जी महाराज धर्म परिवर्तन करवाते हैं, तो चलिए विस्तार से जानते हैं।
1st इंडिया न्यूज चैनल द्वारा संत रामपाल जी पर लगाए गए आरोप
- 1st इंडिया न्यूज चैनल के एंकर दावा है कि संत रामपाल जी शिवलिंग को गुप्तांग बताकर गलत प्रचार कर व करवा रहे हैं।
- न्यूज चैनल के एंकर विजेंद्र सोलंकी का यह मानना है कि ब्रह्मा, विष्णु व शिव जी के कोई माता पिता नहीं हैं, इसलिए एंकर ने कहा है कि संत रामपाल जी ब्रह्मा, विष्णु व शिव जी की उत्पत्ति बताते हैं, जोकि गलत है
- 1st इंडिया न्यूज चैनल के एंकर का यह भी दावा है कि संत रामपाल जी कहते हैं कि मंदिरों में जाना, देवी-देवताओं की पत्थर की मूर्ति को पूजने से कोई लाभ नहीं होता।
- 1st इंडिया न्यूज चैनल में आस्था या अज्ञान नामक डिबेट में VHP के डिबेटकर्ता द्वारा यह दावा किया गया कि संत रामपाल जी महाराज धर्म परिवर्तन करवाते हैं।
तो चलिए 1st इंडिया न्यूज चैनल के दावों की पड़ताल करते हैं और जानते हैं कि न्यूज चैनल द्वारा संत रामपाल जी महाराज पर लगाये गए आरोपों में कितना दम है।
फर्स्ट इंडिया न्यूज के एंकर विजेंद्र सोलंकी की शंका का समाधान
फर्स्ट इंडिया न्यूज चैनल के एंकर श्रीमान विजेंद्र सोलंकी जी ! आपने दिनांक 22-8-2023 को “आस्था या अज्ञान” नामक डिबेट करके अद्वितीय पहल की है। यही श्रेष्ठ मार्ग है सत्य तथा असत्य का निर्णय करने का। परंतु दुख की बात है कि आप जैसे व्यक्ति शिक्षित है (Learned Person), फिर भी अपने धर्म ग्रंथो से परिचित नहीं है। आप जिसका विरोध कर रहे हो कि पुस्तक “अंध श्रद्धा भक्ति खतरा ए जान” में जो प्रकरण है –
“लिंग” उसका अर्थ संत रामपाल जी महाराज ने गुप्तांग (Private Part) किया है जो गलत है। परंतु आपने उसका अर्थ प्रमाण के द्वारा बताया है जो इस प्रकार है :-
आपके शब्दों में :- जैसे हम कोई फॉर्म भरते हैं उसमें लिखा होता है “पुल्लिंग/स्त्रीलिंग” जिसमें पुल्लिंग “पुरुष” का प्रतीक है, स्त्रीलिंग “स्त्री” का प्रतीक है। श्रीमान जी स्त्री व पुरुष की पहचान उसके प्राइवेट पार्ट से ही तो होती है।
शिक्षित होकर आप जानबूझकर हमारे संत सतगुरु रामपाल जी महाराज का अपमान कर रहे हो। आपने हमारी आस्था पर कुठाराघात किया है। हमारी पुस्तक को सरेआम फाड़कर फेंक दिया। कृपा इसको गहराई से पढ़ते तो आप समझ जाते इस पुस्तक में शब्दा शब्द शास्त्रों का उल्लेख है। जिनको आप सच्चा मानते हैं। लिंग व लिंगी का जो चित्र पुस्तक में है उसका प्रमाण श्री शिव महापुराण के विद्यवेश्वर संहिता के अध्याय 5 श्लोक 27-30 में है।
शिवलिंग क्या है तथा इसकी पूजा कैसे प्रारंभ हुई?
संत रामपाल जी महाराज जी कहते हैं कि शिव महापुराण {प्रकाशक “खेमराज श्री कष्णदास प्रकाशन मुंबई (बम्बई), हिन्दी टीकाकार (अनुवादक) हैं विद्यावारिधि पंडित ज्वाला प्रसाद जी मिश्र} भाग-1 में विद्यवेश्वर संहिता पृष्ठ 11 अध्याय 5 श्लोक 27-30 में लिखा है कि शिव के वाहन नंदिकेश्वर बताते हैं:
- पूर्व काल में जो पहला कल्प जो लोक में विख्यात है। उस समय महात्मा ब्रह्मा और विष्णु का परस्पर युद्ध हुआ। ( 27 )
- उनके मान को दूर करने को उनके बीच में उन निष्कल परमात्मा ने स्तम्भरूप अपना स्वरूप दिखाया। ( 28 )
- तब जगत के हित की इच्छा से निर्गुण शिव ने उस तेजोमय स्तंभ से अपने लिंग आकार का स्वरूप दिखाया। (29)
- उसी दिन से लोक में वह निष्कल शिव जी का लिंग विख्यात हुआ। (30)
विद्यवेश्वर संहिता पृष्ठ 18 अध्याय 9 श्लोक 40-43 :-
- इससे मैं अज्ञात स्वरूप हूँ। पीछे तुम्हें दर्शन के निमित साक्षात् ईश्वर तत्क्षणही में सगुण रूप हुआ हूँ। (40)
- मेरे ईश्वर रूप को सकलत्व जानों और यह निष्कल स्तंभ ब्रह्म का बोधक है । ( 41 )
- लिंग लक्षण होने से यह मेरा लिंग स्वरूप निर्गुण होगा। इस कारण हे पुत्रो ! तुम नित्य इसकी अर्चना करना । ( 42 )
- यह सदा मेरी आत्मा रूप है और मेरी निकटता का कारण है। लिंग और लिंगी के अभेद से यह महत्व नित्य पूजनीय है। (43)
अर्थात श्री शिव महापुराण (खेमराज श्री कृष्ण दास प्रकाशन मुंबई द्वारा प्रकाशित) से स्पष्ट है कि काल ब्रह्म ने जान-बूझकर शास्त्र विरुद्ध साधना बताई है क्योंकि यह नहीं चाहता कि कोई शास्त्रों में वर्णित साधना करे। इसलिए अपने लिंग (गुप्तांग) की पूजा करने को कह दिया। पहले तो तेजोमय स्तंभ ब्रह्मा तथा विष्णु के बीच में खड़ा कर दिया। फिर शिव रूप में प्रकट होकर अपनी पत्नी दुर्गा को पार्वती रूप में प्रकट कर दिया और उस तेजोमय स्तंभ को गुप्त कर दिया और अपने लिंग (गुप्तांग) के आकार की पत्थर की मूर्ति प्रकट की तथा स्त्री के गुप्तांग (लिंगी) की पत्थर की मूर्ति प्रकट की।
उस पत्थर के लिंग को लिंगी यानि स्त्री की योनि में प्रवेश करके ब्रह्मा तथा विष्णु से कहा कि यह लिंग तथा लिंगी अभेद रूप हैं यानि इन दोनों को ऐसे ही रखकर नित्य पूजा करना। इसके पश्चात् यह बेशर्म पूजा सब हिन्दुओं में देखा-देखी चल रही है। यह पूजा काल ब्रह्म ने प्रचलित करके मानव समाज को दिशाहीन कर दिया। वेदों तथा गीता के विपरीत साधना बता दी। इसलिए हमें शास्त्रोक्त तरीके से भगवानों की भक्ति करनी चाहिए।
तीनों देवताओं (ब्रह्मा, विष्णु व शिव जी) की उत्पत्ति
संत रामपाल जी महाराज जी पुराणों से प्रमाण सहित बताते हैं कि ब्रह्मा, विष्णु व शिव जी की उत्पत्ति काल रूपी ब्रह्म (सदाशिव) और प्रकृति देवी दुर्गा (शिवा) से हुई है। श्री शिव महापुराण (गीता प्रेस गोरखपुर से प्रकाशित) के रूद्रसंहिता खण्ड में अध्याय 5 से 9 में अपने पुत्र नारद जी के प्रश्न का उत्तर देते हुए श्री ब्रह्मा जी स्वयं कहते हैं कि आपने सृष्टि के उत्पत्तिकर्ता के विषय में जो प्रश्न किया है, उसका उत्तर सुन। प्रारम्भ में केवल एक “सद्ब्रह्म” ही शेष था। सब स्थानों पर प्रलय था।
उस निराकार परमात्मा ने अपना स्वरूप शिव जैसा बनाया। उसको “सदाशिव” कहा जाता है, उसने अपने शरीर से एक स्त्री निकाली, वह स्त्री दुर्गा, जगदम्बिका, प्रकृति देवी तथा त्रिदेव (ब्रह्मा, विष्णु तथा शिव) की जननी (माता) कहलाई, जिसकी आठ भुजाएं हैं, इसी को शिवा भी कहा है। फिर सदाशिव (काल रूपी ब्रह्म) और शिवा (दुर्गा) ने पति-पत्नी रूप में रहकर एक पुत्र की उत्पत्ति की, उसका नाम विष्णु रखा। फिर श्री ब्रह्मा जी ने बताया कि जिस प्रकार विष्णु जी की उत्पत्ति शिव तथा शिवा के संयोग (भोग-विलास) से हुई है, उसी प्रकार शिव और शिवा ने मेरी (ब्रह्मा की) भी उत्पत्ति की।
श्री शिव महापुराण (गीता प्रेस गोरखपुर से प्रकाशित, सम्पादक- हनुमान प्रसाद पोद्दार) के रूद्रसंहिता खण्ड में अध्याय 5 से 9:-
यही प्रमाण श्रीमद्भगवत गीता अध्याय 14 श्लोक 3-5 में भी है कि रज (रजगुण ब्रह्मा), सत (सतगुण विष्णु), तम (तमगुण शंकर) तीनों गुण प्रकृति अर्थात् दुर्गा देवी से उत्पन्न हुए हैं। प्रकृति तो सब जीवों को उत्पन्न करने वाली माता है, मैं (गीता ज्ञान दाता) सब जीवों का पिता हूँ। मैं दुर्गा (प्रकृति) के गर्भ में बीज स्थापित करता हूँ जिससे सबकी उत्पत्ति होती है।
ब्रह्मा, विष्णु व शिव जी अविनाशी नहीं हैं
गीताप्रैस गोरखपुर से प्रकाशित श्रीमद् देवीभागवत पुराण (जिसके सम्पादक हैं श्री हनुमान प्रसाद पौद्दार, चिमन लाल गोस्वामी) के तीसरे स्कंद अध्याय 4-5 में श्री विष्णु जी ने अपनी माता दुर्गा की स्तुति करते हुए कहा है कि हे मातः! आप शुद्ध स्वरूपा हो, सारा संसार आप से ही उद्भाषित हो रहा है, हम आपकी कृपा से विद्यमान हैं, मैं (विष्णु), ब्रह्मा और शंकर तो जन्मते मरते हैं, हमारा तो अविर्भाव (जन्म) तथा तिरोभाव (मृत्यु) हुआ करता है, हम अविनाशी नहीं हैं। तुम ही जगत जननी और सनातनी देवी हो और प्रकृति देवी हो। फिर शंकर भगवान बोले, हे माता ! विष्णु के बाद उत्पन्न होने वाला ब्रह्मा जब आपका पुत्र है तो क्या मैं तमोगुणी लीला करने वाला शंकर तुम्हारी सन्तान नहीं हुआ अर्थात् मुझे भी उत्पन्न करने वाली तुम ही हो। शिवे! इस संसारकी सृष्टि, स्थिति और संहार में तुम्हारे गुण सदा समर्थ हैं। उन्हीं तीनों गुणों से उत्पन्न हम ब्रह्मा, विष्णु एवं शंकर नियमानुसार कार्य में तत्पर रहते हैं।
संक्षिप्त देवीभागवत, तीसरा स्कन्ध अध्याय 4-5:-
इस देवी महापुराण के उल्लेख से सिद्ध हुआ कि श्री ब्रह्मा जी, श्री विष्णु जी तथा श्री शंकर जी को जन्म देने वाली माता श्री दुर्गा देवी (अष्टंगी देवी) है और तीनों देवता नाशवान हैं और ये तीनों देवता नियम अनुसार ही कार्य करते हैं अर्थात जिनके प्रारब्ध में सुख तो सुख और दुःख तो दुःख ही प्रदान करते हैं। उनमें कम ज्यादा नहीं कर सकते।
क्या मूर्ति पूजा, देवी देवताओं की भक्ति से लाभ संभव है?
संत रामपाल जी कहते हैं कि हमारे धार्मिक शास्त्र परमात्मा का बनाया संविधान है, जो व्यक्ति संविधान का उल्लंघन करता है, वह दंडित होता है। उसे न सुख प्राप्त होता है, न कार्य सिद्ध होते हैं और न उसे मोक्ष मिलता है। इस बात को श्रीमद्भागवत गीता अध्याय 16 श्लोक 23, 24 स्पष्ट करता है। प्रमाण के लिए देखिये गीताप्रेस गोरखपुर से प्रकाशित श्रीमद्भगवद्गीता (जिसके सम्पादक हैं जयदयाल गोयन्दका) के अध्याय 16 श्लोक 23, 24
वहीं गीता अध्याय 7 श्लोक 12-15 में गीता ज्ञान दाता ने कहा है जिन साधकों की आस्था रजगुण ब्रह्मा जी, सतगुण विष्णु जी तथा तमगुण शिव जी में अति दृढ़ है तथा जिनका ज्ञान लोक वेद (दंत कथा) के आधार से इस त्रिगुणमयी माया के द्वारा हरा जा चुका है। वे इन्हीं तीनों प्रधान देवताओं व अन्य देवताओं की भक्ति पर दृढ़ हैं। इनसे ऊपर मुझे (गीता ज्ञान दाता को) नहीं भजते ऐसे व्यक्ति राक्षस स्वभाव को धारण किए हुए मनुष्यों में नीच ( नराधमाः) दूषित कर्म करने वाले मूर्ख है ये मुझको (गीता ज्ञान देने वाले काल ब्रह्म को) नहीं भजते। प्रमाण के लिए देखिये
इन प्रमाणों से स्पष्ट है कि देवताओं की पूजा करना, मूर्ति पूजा पूजा करना, शिवलिंग की पूजा करना गीता विरुद्ध मनमाना आचरण है, क्योंकि इस तरह की किसी भी पूजा का वर्णन पवित्र गीता व चारों वेदों में नहीं है। जिससे साधक को इन पूजाओं से कोई लाभ नहीं हो सकता, न सुख, न मोक्ष और न ही शांति मिल सकती। इसलिए गीता में वर्णित शास्त्रोक्त विधि से ही भक्ति करना लाभदायक है।
क्या संत रामपाल जी महाराज धर्म परिवर्तन करवाते हैं?
यह कहना कि संत रामपाल जी महाराज धर्म परिवर्तन करवाते हैं तो यह एकदम गलत है। क्योंकि संत रामपाल जी महाराज कहते हैं कि हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई आदि अनेकों धर्मों, पंथों व जातियों के विश्व के सर्व मनुष्य एक प्रभु के बच्चे हैं। जो इन्हें भिन्न-भिन्न मानता है, वह अज्ञानी है। इसलिए हमें जाति-धर्म का भेदभाव किये बिना आपस में प्रेम पूर्वक रहना चाहिए तथा एक पूर्ण परमात्मा जो सर्व सृष्टि रचनहार है उसकी सतभक्ति करना चाहिए, तभी हमें सुख, शांति व मोक्ष मिल सकता है। सतगुरु रामपाल जी का कहना है :
जीव हमारी जाति है, मानव धर्म हमारा।
हिन्दू, मुस्लिम, सिक्ख, ईसाई धर्म नहीं कोई न्यारा।।
हिन्दू, मुस्लिम, सिक्ख, ईसाई, आपस में हैं भाई-भाई।
आर्य, जैनी और बिश्नोई, एक प्रभु के बच्चे सोई।।
पाठकों, इन सभी प्रमाणों से स्पष्ट है कि संत रामपाल जी महाराज जी गीता, वेद, पुराणों से प्रमाणित ज्ञान बताते हैं। वे किसी देवी देवता पर कटाक्ष नहीं करते और न ही उन्हें अपमानित करते। यहीं प्रमाणित ज्ञान संत रामपाल जी महाराज द्वारा लिखित पवित्र पुस्तक अंध श्रद्धा भक्ति खतरा ए जान और ज्ञान गंगा में दिया गया है। इसलिए 1st इंडिया न्यूज़ चैनल व धर्मगुरुओं द्वारा संत रामपाल जी महाराज के खिलाफ किया जा रहा दुष्प्रचार एक दम निराधार है। अतः आप सभी से निवेदन है कि संत रामपाल जी महाराज जी के तत्वज्ञान को जानने के लिए Sant Rampal Ji Maharaj App गूगल प्ले स्टोर से डाऊनलोड करें और धर्म शास्त्रों के सत्य ज्ञान को प्रमाण सहित जानिए।