November 16, 2024

Durga Ashtami 2024 [Hindi]: इस दुर्गा अष्टमी पर जानिए क्या माँ दुर्गा की भक्ति करने से मोक्ष प्राप्ति संभव है?

Published on

spot_img

Last Updated 17 September 2024 IST: Durga Ashtami 2024 [Hindi]: भारतीय हिन्दू संस्कृति में दुर्गा माता के नवरात्रे अत्यन्त महत्वूपर्ण माने जाते हैं जिनमें माता के विभिन्न नौ स्वरूपों की पूजा की जाती है। नवरात्र के इन्हीं दिनों में अष्टमी तिथि के दिवस को खास दुर्गा अष्टमी की संज्ञा दी जाती है यानि इसी दिन को दुर्गा अष्टमी कहा जाता है। दुर्गा देवी के प्रथम रूप को शैलपुत्री के नाम से जाना जाता है। दूसरा ब्रह्मचारिणी, तीसरा चंद्रघंटा, चौथा कूष्मांडा, पांचवीं स्कंदमाता, छठा कात्यायनी, सातवां कालरात्रि, आठवां महागौरी और नौवां स्वरूप सिद्धिदात्री के नाम से प्रसिद्ध है।

इस वर्ष दुर्गा अष्टमी (Durga Ashtami 2024) कब है ?

दुर्गा अष्टमी (Durga Ashtami) 11 अक्टूबर को है। इस दिन दुर्गा माता के आठवें रूप की विशेष पूजा की जाती है। भारतीय हिन्दू संस्कृति एवं परंपरा में इस दिन को महत्वपूर्ण दिवस माना जाता है। यह नवरात्रि का आठवां दिन होता है ‌।‌

दुर्गा अष्टमी पर जानिए दुर्गा माता को कैसे करें प्रसन्न?

नवरात्रों में माता दुर्गा को खुश करने के लिये कई प्रकार के विशेष प्रयत्न किये जाते हैं लेकिन माता दुर्गा को प्रसन्न करने के लिये उनके मूल मंत्र का जाप करना अनिवार्य होता है जिसकी जानकारी इस धरती पर पूर्ण संत प्रदान करता है। पूर्ण संत यानी तत्वदर्शी संत जो भक्ति विधि और मर्यादाएं बताता है जिन पर चलने और भक्ति करने से दुर्गा माता एवं अन्य देवी देवताओं तथा ब्रह्मा, विष्णु, महेश को आसानी से प्रसन्न किया जा सकता है।

मनमानी साधनाओं और पूजा पाठ करने से दुर्गा माता कभी प्रसन्न नहीं हो सकती। इसके विपरीत शास्रानुकूल भक्ति करने से जीव को हर प्रकार के लाभ और सुखों की प्राप्ति होती है। सदग्रंथों में वर्णित सत्यभक्ति विधि की जानकारी तत्वदर्शी संत प्रदान करता है एवं पूर्ण परमात्मा स्वंय ही तत्वदर्शी संत की भूमिका करने इस मृत्यु लो़क में आता है। तत्वदर्शी संत ही अष्टंगी दुर्गा जी, ब्रह्मा, विष्णु और महेश आदि के मूल मंत्र प्रदान करता है जिससे साधक को सर्व लाभ एवं पूर्ण मोक्ष प्राप्ति होती है।

क्या आप जानते हैं दुर्गा जी ब्रह्मा, विष्णु, महेश की जननी है?

दुर्गा माता त्रिदेव जननी है। यह तीनों देवताओं की माता है और यह तीनों देवता सृष्टि की उत्पत्ति, पालन और संहार का कार्य करते हैैं। दुर्गा माता को त्रिदेव जननी, शक्ति, अष्टांगी या प्रकृति देवी भी कहा जाता है।

Durga Ashtami 2024 Hindi: ब्रह्मा, विष्णु, महेश की माता दुर्गा है इसका प्रमाण देवी भागवत महापुराण के 123 नंबर पेज पर मिलता है जहां ब्रह्मा जी कहते हैैं कि रजगुण, तमगुण और सतगुण हम तीनों गुण ( रजगुण ब्रह्मा जी, सतगुण विष्णु जी, तमगुण शिवजी ) को उत्पन्न करने वाली आप ही हो, हमारा तो आविर्भाव यानी जन्म तथा तिरोभाव यानी मृत्यु होती है। यानी ब्रह्मा, विष्णु और महेश का जन्म भी होता है और मृत्यु भी। यह अजर अमर पूर्ण परमात्मा नहीं हैं, जिसने इन सभी ब्रह्मांडों को बनाया वह पूर्ण परमात्मा तो कोई अन्य है।

गरीबदास जी महाराज जी अपनी वाणी में दुर्गा के बारे में कहते हैं कि:

माया काली नागिनी, अपने जाये खात।

कुण्डली में छोड़ै नहीं, सौ बातों की बात।।

यह कालबली का जाल है। निरंजन तक की भक्ति पूरे संत से नाम लेकर करेगें तो भी इस निरंजन की कुण्डली (इक्कीस ब्रह्माण्डों) से बाहर नहीं निकल सकते। स्वयं ब्रह्मा, विष्णु, महेश भी निरंजन की कुण्डली में हैं। ये बेचारे अवतार धार कर आते हैं और जन्म-मृत्यु का चक्कर काटते रहते हैं।

अनन्त कोटि अवतार हैं, माया के गोविन्द।

कर्ता हो हो अवतरे, बहुर पड़े जग फंध।।

सतपुरुष कबीर साहिब जी की भक्ति से ही जीव मुक्त हो सकता है 

माया (दुर्गा) से उत्पन्न हो कर करोड़ों गोविंद (ब्रह्मा-विष्णु-शिव) मर चुके हैं। यह भगवान का अवतार बन कर आये थे। फिर कर्म बन्धन में बन्ध कर कर्मों को भोग कर चौरासी लाख योनियों में चले गए। दुर्गा अपने साधक के कर्म बंधन काटने में असमर्थ है।

Durga Ashtami 2024 [Hindi]: क्या दुर्गा जी ही पूर्ण परमात्मा है?

Durga Ashtami in Hindi: पूर्ण परमात्मा की सटीक जानकारी तत्वदर्शी संत बता सकते हैं जो स्वयं पूर्ण परमात्मा ही होता है। देवी भागवत महापुराण में देवी जी यानि दुर्गा जी अपने से अन्य किसी और भगवान की भक्ति करने के लिये कहती हैं इससे स्पष्ट है कि देवी जी यानि दुर्गा जी से भी ऊपर अन्य कोई श्रेष्ठ भगवान है जिसकी भक्ति करने के लिये दुर्गा जी निर्देश दे रही हैं।

Durga Ashtami 2024 पर जाने तत्वदर्शी संत कौन होता है ?

गीता जी के अध्याय नंबर 15 के श्लोक नंबर 01 से 04 के अनुसार तत्वदर्शी संत वह होगा जो संसार रूपी उल्टे लटके हुए पीपल के वृक्ष की संपूर्ण जानकारी भक्त समाज को प्रदान करेगा, की कौन भगवान है, इसकी जड़ कौन हैं, तना और शाखाएं कौन हैं ?

  • गीता अध्याय 15 श्लोक 1

ऊर्ध्वभूलम् अध: शाखाम् अश्वथामम् अव्यवम् ।

छंदासि यस्य पर्णामि यह तम वेद सहवेदविद् ।।

अनुवाद: (ऊर्ध्वभूलम्) ऊपर को पूर्ण परमात्मा आदि पुरुष परमेश्वर रूपी जड़ वाला (अधःशाखम्) नीचे को तीनों गुण अर्थात् रजगुण ब्रह्मा, सतगुण विष्णु व तमगुण शिव रूपी शाखा वाला (अव्ययम्) अविनाशी (अश्वत्थम्) विस्तारित पीपल का वृृक्ष है, (यस्य) जिसके (छन्दांसि) जैसे वेद में छन्द है ऐसे संसार रूपी वृृक्ष के भी विभाग छोटे-छोटे हिस्से या टहनियाँ व (पर्णानि) पत्ते (प्राहुः) कहे हैं (तम्) उस संसाररूप वृक्ष को (यः) जो (वेद) इसे विस्तार से जानता है (सः) वह (वेदवित्) पूर्ण ज्ञानी अर्थात् तत्वदर्शी है।

यानि ऊपर को जड़ रूप मूल वाले और नीचे को शाखा रूपी भगवानों की जानकारी बतायेगा वह वेद के तात्पर्य को जानने वाला संत होगा अर्थात् वह तत्वदर्शी संत होगा। तत्वदर्शी संत सभी धर्मों के पवित्र सदग्रंथों के गूढ़ रहस्यों को भगत समाज के समक्ष प्रस्तुत करता है।

  • प्रमाण के लिये देखिये यजुर्वेद अध्याय 19 का मंत्र 25

सन्धिछेदः- अर्द्ध ऋचैः उक्थानाम् रूपम् पदैः आप्नोति निविदः।

प्रणवैःशस्त्राणाम् रूपम् पयसा सोमः आप्यते।।

अनुवादः– अर्थात् जो संत महापुरूष वेदों के अधूरे वाक्यों और संकेतात्मक रहस्यों की जानकारी प्रमाण सहित कराएगा और शास्त्रों के आधार से प्रमाण सहित ज्ञान भगत समाज के समक्ष प्रस्तुत करेगा वह वेद शास्त्रों के आशय को समझाने वाला तत्वदर्शी संत होगा।

भावार्थ यही है कि जो संत महापुरुष सभी धर्मों के पवित्र सदग्रंथों के आधार से प्रमाणित ज्ञान लोगों को प्रदान करेगा वह तत्वदर्शी संत होगा। वास्तव में तत्वदर्शी संत पूर्ण परमात्मा स्वयं ही होता है जो तत्वदर्शी संत का रोल करके भक्त समाज को सच्ची राह प्रदान करने स्वयं अपने निज लोक से चलकर सहशरीर आता है। वह पूर्ण सन्त वेदों को जानने वाला कहा जाता है।

वर्तमान में तत्वदर्शी संत कौन है ?

तत्वदर्शी संत के गुणों में है कि वह सभी धर्मों के पवित्र सदग्रंथों में छिपे गूढ़ रहस्यों को उजागर करेगा और तत्वज्ञान भक्त समाज तक पहुंचाएगा। वर्तमान में तत्वदर्शी संत, संत रामपाल जी महाराज जी हैं जो सभी धर्मों के पवित्र सदग्रंथों के आधार से प्रमाण सहित तत्वज्ञान भक्त समाज तक पहुँचा रहे हैं।

संत रामपाल जी महाराज जी ने सभी धर्मों के पवित्र सदग्रंथों से यह प्रमाणित किया है कि वास्तव में अविनाशी पूर्ण परमात्मा जिसे सबका मालिक एक कहते हैं, जिसकी कभी मृत्यु नहीं होती, जिसने सृष्टि की रचना की है वह परमात्मा कबीर है जिसे पवित्र वेदों में कविर्देव की संज्ञा दी गई है। उस कविर्देव की जानकारी संत रामपाल जी महाराज जी प्रमाण सहित बताते हैं।

आइए जानते हैं पूर्ण परमात्मा कौन हैं?

  • पूर्ण परमात्मा की जानकारी पवित्र वेदों में से

जो पूर्ण परमात्मा होता है उसकी परवरिश कुंवारी गायों के दूध से होती है। प्रमाण के लिये देखिये ऋग्वेद मंडल नंबर 09 सुक्त 01 मंत्र 09

अभीअममघ्न्यां उत श्रीणन्तिं धेनव: शिशुम् ।

सोममिन्द्रांय् पातवे।।

भावार्थ :- उस (सोमं) सौम्यस्वभाव वाले श्रद्धालु पुरूष को (शिशुं) कुमारावस्था में ही (अभि) सब प्रकार से (अघ्न्या:) अहिंसनी़य (धेनव:) गौवें (श्रीणन्ति) तृप्त करती हैं।

अर्थात् उस परमात्मा की बाल्यावस्था में तृप्ति कुंवारी गायों के दूध से होती है वह मां के गर्भ से जन्म नहीं लेता और न ही उसका शरीर नाड़ी तंत्र, शुक्राणु से बना होता है। प्रमाण (पवित्र यजुर्वेद अध्याय 40 के मंत्र 08 में वर्णित है )।

  • पूर्ण परमात्मा कवियों की तरह आचरण करता है देखिये प्रमाण ऋग्वेद मंडल नंबर 09 सुक्त 96 मंत्र 18

ऋषिमना य ऋषिकृत स्वर्षा सहस्त्राणीथ: पदवी: कवीनाम्

तृतीयम् धाम महिष: सिषा सन्त् सोम: विराजमानु राजति स्टुप ।।

अर्थात् जो पूर्ण परमात्मा होता है वह प्रसिद्ध कवियों की पदवी धारण करता है और अपने ज्ञान को लोकोक्तियों और वाणियों के माध्यम से प्रकट करता है वह परमात्मा अपने तीसरे मुक्ति धाम यानी सतलोक से स्वयं चलकर सशरीर इस मृत्यु लोक में आता है और अपने तत्वज्ञान को मनुष्य समाज के समक्ष स्वयं प्रस्तुत करता है। वह कविर्देव है।

पूर्ण परमात्मा का नाम कविर्देव है। प्रमाण के लिये देखिये :

  • अथर्ववेद काण्ड नं.04 अनुवाक नं. 01 मंत्र नं.07

योथर्वाणं पित्तरं देवबन्धुं बहस्पतिं नमसाव च गच्छात्।

त्वं विश्वेषां जनिता यथासः कविर्देवो न दभायत् स्वधावान्।।

अर्थात् जो अविनाशी जगत पिता भक्तों का वास्तविक साथी अर्थात परमात्मा है वह इस मृत्यु लोक में आकर अच्छी आत्माओं को मिलता है और अपने तत्वज्ञान का उपदेश करता है, वह सरल स्वाभाव का है और उसका नाम कविर्देव है।

पूर्ण परमात्मा कविर्देव है, यह प्रमाण यजुर्वेद अध्याय 29 मंत्र 25 तथा सामवेद संख्या 1400 में भी है जो निम्न है:-

  • यजुर्वेद के अध्याय नं. 29 के श्लोक नं. 25

समिद्धोऽअद्य मनुषो दुरोणे देवो देवान्यजसि जातवेदः।

आ च वह मित्रामहश्चिकित्वान्त्वं दूतः कविरसि प्रचेताः।।

भावार्थ – जिस समय पूर्ण परमात्मा प्रकट होता है उस समय सर्व ऋषि व सन्त जन शास्त्र विधि त्याग कर मनमाना आचरण अर्थात् पूजा द्वारा सर्व भक्त समाज को मार्ग दर्शन कर रहे होते हैं तब वह अपने तत्वज्ञान अर्थात् स्वस्थ ज्ञान का संदेशवाहक बन कर स्वयं ही आता है वह कविर्देव अर्थात् कबीर प्रभु है।दुर्गा जी के सर्व भक्तगणों से विनम्र निवेदन है कि आप दुर्गा देवी की आराधना करने की सही भक्ति विधि जानने, सीखने और करने हेतु जगतगुरु तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज जी के सत्य प्रवचन हमारे यूट्यूब चैनल सतलोक आश्रम पर अवश्य देखें ताकि आप शास्त्र विरूद्ध भक्ति त्याग कर, शास्त्र आधारित भक्ति करके अपना जीवन सफल बना सकें।

Latest articles

International Men’s Day 2024: Empowering Men’s Health And Wellness

Last Updated on 13 November 2024 IST: International Men's Day 2024 falls annually on...

National Press Day 2024: Is the Fourth Pillar of Democracy Failing Its Duty?

National Press Day is observed annually to highlight the need for the independence of the press in a democratic nation. Know its History & Theme

Guru Nanak Jayanti 2024: Who was the Guru of Guru Nanak Sahib? See Proof in Guru Granth Sahib

Last Updated on 12 November 2024 IST | Guru Nanak Sahib is known as...
spot_img
spot_img

More like this

International Men’s Day 2024: Empowering Men’s Health And Wellness

Last Updated on 13 November 2024 IST: International Men's Day 2024 falls annually on...

National Press Day 2024: Is the Fourth Pillar of Democracy Failing Its Duty?

National Press Day is observed annually to highlight the need for the independence of the press in a democratic nation. Know its History & Theme