कल्पना कीजिए, एक ओर गगनचुंबी इमारतों में पार्टियों की चकाचौंध रोशनी है, दूसरी ओर किसी अंधेरी, कीचड़ भरी गली में एक माँ अपने बच्चे को पानी पिलाकर सुला रही है क्योंकि घर में अन्न का एक दाना नहीं है। एक तरफ करोड़ों का कारोबार और दूसरी तरफ एक पिता अपने बच्चों के सामने बीमारी से तिल-तिल कर मर रहा है, क्योंकि इलाज के लिए फूटी कौड़ी तक नहीं है। यह कोई फिल्मी कहानी नहीं, बल्कि हमारे समाज की वह कठोर सच्चाई है, जिसे हम अक्सर देखकर भी अनदेखा कर देते हैं।
जब सरकारी व्यवस्थाएं फाइलों में उलझ जाती हैं और इंसानियत की भावना अमीरी के बोझ तले दम तोड़ देती है, तो सवाल उठता है – इन बेबस सिसकियों को कौन सुनेगा? इनकी भूख की आग कौन बुझाएगा?
इसी निराशा और अंधकार के बीच एक ऐसी मौन क्रांति ने जन्म लिया है, जो न ढोल-नगाड़े बजाती है, न चंदा मांगती है, बल्कि चुपचाप उन घरों तक पहुँच रही है, जहाँ उम्मीद ने भी दम तोड़ दिया था। यह कहानी है जगतगुरु तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज द्वारा प्रेरित और संचालित “अन्नपूर्णा मुहिम” की। यह सिर्फ एक सेवा अभियान नहीं, बल्कि कलयुग के घोर अंधकार में सतयुग की नींव रखने वाला एक महायज्ञ है। इसका संकल्प वाक्य ही इसकी विशालता को दर्शाता है – “रोटी, कपड़ा, शिक्षा और मकान, हर गरीब को देगा कबीर भगवान।”
मानव धर्म ही सर्वोपरि: सतगुरु रामपाल जी का करुणा भरा संदेश
संत रामपाल जी महाराज जी का अपने शिष्यों के लिए संदेश व आदेश:
कबीर जी की प्यारी संगत को, विश्व की सारी संगत को दास रामपाल दास का शुभ आशीर्वाद है। परमात्मा आपको मोक्ष दे, सदा सुखी रखे, काल-कष्ट से आपकी रक्षा हो।
बच्चों, अपना नारा है:
“जीव हमारी जाति है, मानव धर्म हमारा।
हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई—धर्म नहीं कोई नारा।
सब प्राणी एक परमात्मा के बच्चे हैं।”
परमात्मा कबीर जी के बच्चे हैं, परम अक्षर ब्रह्म के, उसी को सतपुरुष कहते हैं। इसलिए हमारी जाति ‘जीव’ है। हम ‘मानव’ हैं, इसलिए हमारा धर्म ‘मानवता’ है। पशुओं का धर्म ‘पशुता’ है, मानव का धर्म ‘मानवता’ है।
सभी जीव हमारे भाई-बहन हैं। तत्वज्ञान के अभाव में हम एक-दूसरे से अलग समझते रहे। मानव धर्म का पालन करते हुए हम सबको दूसरों के दुख में दुखी होना चाहिए। दूसरों का दुख, अपना ही दुख मानना चाहिए।
संत गरीबदास जी की सूक्ष्म वेद वाणी है:
“जो अपने सो और के एक पीड़ पिछान, भूखियां भोजन देत है, वह पहुंचेंगे प्रवान।”
बच्चों, कुछ लोग दूसरों को लूटकर, ठगकर अपने परिवार का निर्वाह करते हैं। कुछ अच्छे नेक व्यक्ति भी हैं जो केवल अपना कर्म करके, अपनी नीति से जीवन जीते हैं, लेकिन वो सिर्फ अपने लिए करते हैं।
अब हम मानव हैं, हमें समझ है कि हम दो नहीं हैं, सब परमात्मा के बच्चे हैं। कोई दुखी है तो उस भगवान को भी दुख होता है। जैसे कोई दूसरों को लूटकर अपना घर भरता है, दान-धर्म नहीं करता, दया धर्म जिसकी समाप्त हो चुकी है — ऐसे को भगवान ही संभालता है क्योंकि भगवान का विधान अटल है, निष्पक्ष है। उसे उसका दंड मिलता ही है।
हमें परमात्मा से डरकर जीवन जीना है। इसलिए दास का निवेदन है कि मानव धर्म का पालन करते हुए हम सर्व सृष्टि के मानव को सुखी बनाएं। परमात्मा से निवेदन करें:
“हे भगवन! हमें इतना सक्षम बनाओ कि हम आपके बच्चों को सुखी कर सकें, उन्हें हर ज़रूरत की वस्तु प्राप्त करा सकें।”
दास ने एक खबर पढ़ी थी, जिसमें एक व्यक्ति ने अपने सुसाइड नोट में कहा कि कभी खाना मिलता था, कभी नहीं। वह अपने बच्चों का पेट नहीं भर सकता था। ऐसी स्थिति हो गई कि उसने पूरे परिवार को विष दे दिया और खुद भी खा लिया। यह बात मेरे दिल को बहुत खटक रही थी।
दास चाहता है कि अगर कहीं भी कोई ऐसी परिस्थिति हो, तो एक बार हमें सूचित अवश्य करें। हम और कुछ नहीं कर सकते, तो बच्चों का पेट भरने की कोशिश अवश्य करेंगे। अपनी रोटी कम खाकर भी दूसरों को भूखा नहीं रहने देंगे।
अब परमात्मा की कृपा से मेरे बच्चे, सतभक्ति और सेवा करने से सक्षम बन गए हैं। उनके अंदर दया भर दी है।
“दया धर्म का मूल है, पाप मूल अभिमान।
तुलसी दया न छोड़ियो, जब लग घट में प्राण।”
संत गरीबदास जी कहते हैं:
“दया बिना दरवेश कसाई।”
जिसके अंदर दया नहीं है, वो साधु-संत, भक्त नहीं हो सकता — वह तो कसाई है।
बच्चों, हमने एक अन्नपूर्णा मुहिम शुरू की है, जिसके तहत हमारा नारा है:
“रोटी, कपड़ा, शिक्षा और मकान — सबको देगा कबीर भगवान।
अब सुखी होगा इंसान, धरती होगी स्वर्ग समान।”
इस मुहिम के तहत हम उन गरीब व्यक्तियों और परिवारों को खोज रहे हैं जिन तक सरकार की सहायता नहीं पहुँच सकी — किसी कानूनी अड़चन के कारण।
जैसे कोई 50 वर्ष का है, रोगग्रस्त है और काम नहीं कर सकता, तो सरकार उसकी पूरी मदद नहीं कर सकती — इलाज सिर्फ ओपीडी में ही हो सकता है। ऐसे परिवारों को जिनके पास खाने के लिए धन नहीं है, पूरा सामान भेजा जा रहा है। भेजने का आदेश दास का है।
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बच्चों की फीस, उनकी ड्रेस, कपड़े, किताबें, गैस सिलेंडर — सबका प्रबंध किया जा रहा है। बच्चों के स्कूल ड्रेस के अतिरिक्त परिवार के अन्य सदस्यों के लिए भी कपड़े खरीदकर देने हैं।
मुनिंदर धर्मार्थ ट्रस्ट, ऋषि करुणामय धर्मार्थ ट्रस्ट — हमारे कई ट्रस्ट हैं, जिनके माध्यम से सेवा की जा रही है।
बच्चों, इस मुहिम को कोई इंसान नहीं चला सकता जब तक परमात्मा की शक्ति से कनेक्ट न हो।
मान लो किसी ने 10-20-30 व्यक्तियों की कमेटी बनाकर ₹10,000 इकट्ठे कर लिए — फिर क्या हुआ? 40 आदमी मिलकर कितना कर सकते हैं? फिर आगे क्या? दिया या नहीं दिया — लेनदेन का हिसाब रह जाता है।
परमात्मा कहते हैं:
“गुरु बिन माला फेरते, गुरु बिन देते दान,
गुरु बिन इन दोनों निष्फल रहते, पूछो वेद-पुराण।”
ऐसा क्यों कहा?
जैसे आप बैंक में पैसे जमा करते हैं, बैंक उसका इंटरेस्ट देता है। पैसा सुरक्षित रहता है, बैंक उसे लोन देकर ब्याज कमाता है — उसी से आपको फायदा होता है।
वैसे ही, जब आपने दान किया — परमेश्वर कबीर जी के बैंक में आपका दान जमा हो गया।
परमात्मा उसका बेनिफिट देता है — एक का हजार।
और वह क्रेडिट आपका शुरू हो गया।
अब उस धन को कहाँ लगाना है — यह देखना बैंक मैनेजर का काम होता है। दास इस परमेश्वर कबीर जी के बैंक का मैनेजर है। आपने जो पैसा जमा किया, वह दास देखेगा कि कहाँ खर्च करूं जिससे मेरे बच्चों को अधिक पुण्य मिले।
बच्चों, आप दान करते रहो, जैसे करते हो। कोई कमेटी वगैरह बनाकर काम न बिगाड़ना। परमात्मा की दया रही तो उनकी रज़ा से सफलता पाओगे।
हमारी स्कीम के तहत जिनके पास मकान नहीं है, उनके लिए मकान भी बनाएंगे। बेटियों को पहले बोझ माना जाता था, दहेज के कारण। अब दहेज खत्म कर दिया गया। ना भात, ना छूछत, ना कोथली संधारा — बेमतलब की बकवास सारी हटा दी गई। मेरे बच्चे मान गए कि यह गलत था। अब जो जीवन जी रहे हैं — वह असली जीवन है।
बच्चों, ज्यादा से ज्यादा सेवा करो। धन किसी के साथ नहीं जाएगा।
दास ने देखा था: एक प्रॉपर्टी डीलर था डबवाली, जिला सिरसा (हरियाणा) का। उसके पास कई प्लॉट थे, कोठियाँ थीं, बैंक बैलेंस भी खूब था। पूरा परिवार एक गाड़ी में दिल्ली के लिए रवाना हुआ। डबवाली से चलते ही भाखड़ा नहर के पास उनकी गाड़ी नहर में गिर गई। तीन दिन तक किसी को पता नहीं चला। तीसरे दिन जब कार पंप हाउस में अड़ी, तब लाशें मिलीं। कार में सब कुछ था — बैंक बैलेंस, ज्वेलरी, प्लॉट के कागज। क्या साथ ले गए? अब वह सब कोई और खर्च करेगा।
इसलिए परमात्मा कहते हैं:
दान-धर्म करने से ऐसी आग से भी बचोगे। एक का हजार देगा, सेठ भी बनोगे।
परमात्मा आपको सद्बुद्धि दे, हिम्मत दे, और दास के इस मिशन को सफल बनाने में दिन-रात एक करके सहयोग दे।
यह करुणा से भरा प्रेरणादायक संदेश संत रामपाल जी महाराज जी ने अपने शिष्यों को दिया, जिसके अनुपालन में सभी शिष्य अन्नपूर्णा मुहिम की सेवा में तन-मन-धन से जुट गए हैं। इस पवित्र मुहिम की एक झलक आगे प्रस्तुत है।
क्या है अन्नपूर्णा मुहिम? मानवता की सच्ची परिभाषा
संत रामपाल जी महाराज के मार्गदर्शन में चल रही अन्नपूर्णा मुहिम उन लाखों बेसहारा परिवारों के लिए जीवन रेखा बनकर उभरी है, जिनके लिए दो वक्त की रोटी, तन ढकने को कपड़ा और सिर पर एक छत किसी सपने से कम नहीं था। इस मुहिम का आधार संत रामपाल जी महाराज का वह तत्वज्ञान है जो सिखाता है कि “जीव हमारी जाति है, मानव धर्म हमारा।” यह मुहिम धर्म, जाति या पंथ के भेदभाव से कोसों दूर, सिर्फ और सिर्फ इंसानियत के नाते जरूरतमंदों की सेवा कर रही है।
इस अभियान के तहत संत रामपाल जी महाराज के शिष्य स्वयं गाँव-गाँव, गली-गली जाकर उन परिवारों को खोजते हैं, जिन तक सरकारी योजनाएँ भी नहीं पहुँच पातीं। इसके माध्यम से उन लोगों की मदद होती है जो किसी बीमारी, विकलांगता या सामाजिक उपेक्षा के कारण पूरी तरह से टूट चुके हैं।
जहाँ समाज और व्यवस्था ने छोड़ा साथ, वहाँ भगवान बनकर पहुँची यह अन्नपूर्णा मुहिम: सच्ची कहानियाँ जो दिल दहला देंगी
यह अभियान केवल कागजों या भाषणों तक सीमित नहीं है। इसकी असली ताकत उन जिंदगियों में हुए चमत्कारी बदलावों में दिखती है, जिनकी कहानियाँ सुनकर रूह काँप उठती है, कुछ कहानियां निम्नलिखित है:
1. सुरेंद्र जी का परिवार: कैंसर के बीच शिक्षा की नई किरण

गले के कैंसर से जूझ रहे सुरेंद्र जी काम करने में असमर्थ थे। उनकी पत्नी घरों में काम करके किसी तरह तीन बच्चों का पालन-पोषण कर रही थीं। हालात इतने खराब थे कि बच्चों की पढ़ाई रुक गई थी और परिवार को दवा और भोजन तक नसीब नहीं होता था। संत रामपाल जी महाराज की अन्नपूर्णा मुहिम के अंतर्गत बच्चों की फीस, ड्रेस, किताबें, स्टेशनरी, और राशन की व्यवस्था की गई। घर का सिलेंडर भरवाया गया और नए कपड़े भी दिए गए। बच्चों की मुस्कान लौट आई और घर में चूल्हा जलने लगा। इस मुहिम के तहत संत रामपाल जी महाराज तब तक मदद पहुँचाते रहेंगे, जब तक परिवार आत्मनिर्भर न हो जाए।
2. सोनू जी का परिवार: करंट से टूटी हिम्मत को मिला सहारा
रोहतक के सोनू जी को घर निर्माण के दौरान करंट लगने से एक हाथ निष्क्रिय हो गया, अधूरा घर और आठ सदस्यीय परिवार की जिम्मेदारी उनके लिए असहनीय हो गई। अन्नपूर्णा मुहिम के तहत घर में दरवाजे, खिड़कियाँ और बिजली फिटिंग करवाई गई। बच्चों की पढ़ाई से लेकर राशन तक की जिम्मेदारी ली गई। हर 20 दिन में पूरा राशन पहुँचाया जाता है। सोनू जी भावुक होकर कहते हैं, “संत रामपाल जी ने ही हमें नई जिंदगी दी।”
3. जगदीश जी का परिवार: 28 साल बाद दरवाजे का सुख

जसिया गाँव में जगदीश जी के घर में 1997 से अब तक दरवाजे नहीं थे। जवान बेटे की मौत के बाद परिवार गरीब और असहाय हो गया। अन्नपूर्णा मुहिम ने उनके घर में 4 नए दरवाजे लगवाए और नियमित राशन पहुँचाना शुरू किया। जगदीश जी की आँखों में आँसू थे, जब उन्होंने कहा, “28 साल बाद मेरे घर में दरवाजे लगे हैं। यह संत रामपाल जी की कृपा है।”
4. सुरेश और रोहित: तिरपाल से पक्के मकान तक का सफर

धनाना गाँव के सुरेश लकवाग्रस्त थे और उनकी झोपड़ी बारिश में ढह गई थी। वे और उनके बेटे तिरपाल के नीचे रहकर भीख माँगकर गुज़ारा करते थे। संत रामपाल जी महाराज ने अन्नपूर्णा मुहिम के अंतर्गत उनके लिए सिर्फ 15 दिन में एक पक्का मकान (कमरा, किचन, बाथरूम) तैयार कराया। राशन, कपड़े, पढ़ाई का खर्च और आवश्यक वस्तुएँ भी दी गईं। अब वे एक सम्मानजनक जीवन जी रहे हैं।
5. दो देवरानी-जेठानी: टूटी छत से मजबूत आशियाने तक
धनाना गाँव की दो महिलाएँ जर्जर घर में बच्चों के साथ रहती थीं। संत रामपाल जी महाराज ने उनकी जमीन पर दो सुंदर पक्के मकान बनवाए, जिनमें पत्थर की छत, गेट और बिजली-पानी की सुविधाएँ शामिल हैं। दोनों परिवारों को हर महीने राशन दिया जाता है। अब ये महिलाएँ अपने बच्चों के साथ सुरक्षित जीवन जी रही हैं और कहती हैं, “यह चमत्कार केवल संत रामपाल जी कर सकते थे।”
6. सतपाल जी का परिवार: सपने में हुआ दिव्य ऑपरेशन

बालंद गाँव के सतपाल जी को गले का कैंसर था, और वह बोल भी नहीं सकते थे। उनका घर गिरने की कगार पर था। मकान निर्माण के दौरान हालत बिगड़ी, लेकिन उन्होंने बताया कि सपने में संत रामपाल जी ने उनका ऑपरेशन किया। स्वास्थ्य में सुधार हुआ और नया घर बनकर मिला। बच्चों की पढ़ाई और इलाज सहित पूरी देखभाल अब संत रामपाल जी महाराज के जिम्मे है।
7. कर्मवीर का संघर्ष: जब कैंसर ने तोड़ी हिम्मत, भगवान ने बढ़ाया हाथ
रोहतक के बखेता गाँव में कर्मवीर जी कैंसर और कई अन्य बीमारियों से जूझ रहे थे। घर में पाँच छोटे बच्चे थे और पत्नी गौशाला में गोबर उठाकर जैसे-तैसे गुजारा कर रही थी। घर में कई-कई दिन चूल्हा नहीं जलता था। बच्चों को बिना दूध की काली चाय पीकर सोना पड़ता था।

इस परिवार की स्थिति देखकर किसी का भी दिल दहल जाए। अन्नपूर्णा मुहिम के तहत इस परिवार को न केवल हर महीने भरपूर राशन (20 किलो आटा, चावल, दाल, चीनी, तेल, दूध पाउडर, मसाले आदि) दिया गया, बल्कि उनका गैस सिलेंडर भरवाया गया और बच्चों के कपड़े और स्कूल की जरूरतें पूरी की गईं। आज यह परिवार चिंतामुक्त होकर अपना जीवन जी रहा है, क्योंकि उन्हें पता है कि संत रामपाल जी महाराज का सहारा उनके साथ है।
8. रघुवीर जी का परिवार: राख से फिर बसा संसार

70 वर्षीय रघुवीर जी की झोपड़ी सिलेंडर फटने से जल गई। वे बकरियाँ चराकर गुजारा करते थे और आग ने उनकी पूरी दुनिया छीन ली। संत रामपाल जी महाराज ने उसी जगह उनका दो कमरों वाला पक्का घर बनवाया। कपड़े, बर्तन, बिस्तर, पंखा, सब कुछ दिया गया। आज यह बुजुर्ग जोड़ा सुरक्षित घर में रह रहा है और संत रामपाल जी को कोटि कोटि धन्यवाद दे रहा है।
9. राजेंद्र जी का परिवार: टीन के टप्पर से सतलोक जैसे आशियाने तक
भराना गाँव के राजेंद्र जी का परिवार टीन की चादरों के नीचे अस्थायी आश्रय में रह रहा था। न छत थी, न दीवारें—बच्चे बीमार, बेटी गंभीर स्थिति में, और गुजारा पुराने रिक्शे से। जब यह हालात संत रामपाल जी महाराज तक पहुँचे, उन्होंने तुरंत कदम उठाया। उनके लिए दो मंज़िला सुंदर, हवादार, मजबूत मकान तैयार कर दिया गया। इसमें हॉल, रसोई, बाथरूम, लकड़ी और लोहे की खिड़कियाँ, ऊपर की मंज़िल—सब कुछ सम्मिलित है। बीमार बेटी समीरा का इलाज प्राइवेट अस्पताल में शुरू हुआ और सभी बच्चों की शिक्षा की पूरी ज़िम्मेदारी भी उठाई गई। हर महीने राशन, सिलेंडर भरवाना, सब कुछ समय पर पहुँचता है। राजेंद्र जी भावुक होकर कहते हैं, “यह घर नहीं, सतलोक है, जो हमें संत रामपाल जी की कृपा से मिला है।”
10. विमला और रामकुमार जी: जब दान की इच्छा पर स्वयं परमात्मा ने दिए 10 रुपये
झज्जर के गोछी गाँव में रहने वाले रामकुमार जी और उनकी पत्नी विमला जी गरीब होने के बावजूद अन्नपूर्णा मुहिम के अंतर्गत राहत पा रहे थे। एक दिन संत समागम में जाने की इच्छा हुई, परंतु दान देने के लिए एक पैसा भी नहीं था। रामकुमार जी बोले, “खाली हाथ कैसे जाएँ?” तभी अचानक उन्होंने चारपाई पर 10 रुपये का नोट देखा। यह कोई संयोग नहीं था, यह परमात्मा का चमत्कार था। वे उस 10 रुपये को लेकर आश्रम पहुँचे और श्रद्धा से दान पात्र में अर्पित कर दिया। यह घटना दर्शाती है कि यदि मन सच्चा हो, तो परमात्मा स्वयं सहायता के लिए प्रकट होते हैं। संत रामपाल जी महाराज केवल राशन ही नहीं, आत्मा का भी पोषण करते है।
11. तीन परिवार (धनाना): जब एक साथ तीन घरों का हुआ निर्माण
धनाना गाँव में सुरेश जी के पास रहने वाले दो और परिवार बेहद जर्जर घरों में रह रहे थे। छतें कभी भी गिर सकती थीं, और आय का कोई स्रोत नहीं था। संत रामपाल जी महाराज ने सिर्फ सुरेश जी ही नहीं, इन तीनों परिवारों के लिए एक साथ पक्के मकानों का निर्माण शुरू किया। 15 से 20 दिन के भीतर तीनों के लिए सुंदर, सुरक्षित और सुविधा-युक्त घर तैयार कर दिए गए। गाँव वालों के अनुसार, यह कार्य मानो किसी दैवीय शक्ति ने किया हो। यह घटना प्रमाण है कि संत रामपाल जी की दृष्टि हर पीड़ित पर जाती है और वे बिना भेदभाव सभी की मदद करते हैं।
12. कर्मवीर (बखेता गाँव): जब काली चाय की जगह मिला दूध और अचार
बखेता गाँव के कर्मवीर जी कैंसर से पीड़ित हैं और बिस्तर पर हैं। पत्नी सुमति गौशाला में गोबर उठाने का काम करती थीं, जिससे पाँच बच्चों का पालन असंभव हो गया था। घर में राशन नहीं होता था, और जब बच्चे भूख से बिलखते, तो उन्हें बिना दूध की काली चाय देकर बहलाया जाता था। रिश्तेदार भी मुँह मोड़ चुके थे। संत रामपाल जी महाराज ने उनका घर राशन से भर दिया —आटा, चावल, दालें, चीनी, तेल, अचार, बच्चों के लिए सूखा दूध और यहाँ तक कि साबुन तक। गैस सिलेंडर भरवाया गया, नई चारपाई, बिस्तर, और टूटे बाथरूम की मरम्मत भी शुरू हुई। सुमति जी ने नम आँखों से कहा, “हमारी उम्र भी उनको (संत रामपाल जी को) लग जाए, जो सच में गरीब की सेवा कर रहे हैं।”
13. रविदास का परिवार (बड़ाली गाँव): जब किराए के मकान से मिला अपना घर
बड़ाली गाँव में रविदास का परिवार एक किराए के छोटे से कमरे में रह रहा था। उनकी माँ लकवाग्रस्त थीं और बेटे रविदास भी बीमार थे। पिता कर्मवीर जो मजदूरी करते, वो वे शराब में खर्च कर देते। परिवार का गुजारा मुश्किल था और ₹800 महीने का किराया एक बोझ बन चुका था। संत रामपाल जी महाराज ने उनकी अपनी जमीन पर एक सुंदर, मजबूत मकान बनवाना शुरू किया। निर्माण के दौरान भी उन्हें नियमित रूप से राशन पहुँचाया गया। अब वे जल्द ही अपने घर में रहने वाले हैं, जहाँ उन्हें किसी किराए या भूख की चिंता नहीं होगी। रविदास भावुक होकर कहते हैं, “हम पर गुरु जी की अपार कृपा हुई है, जिन्होंने हमें नई जिंदगी दी है।”
इन परिवारों के अलावा भी और दुखी परिवारों की मदद की जा रही है; ये उन जिंदगियों का दस्तावेज हैं, जिन्हें राख के ढेर से उठाकर एक नया आकाश दिया गया। यह हर उस व्यक्ति की कहानी है, जिसने हर दरवाजा खटखटाया और जब हर जगह से निराशा मिली, तो एक संत ने भगवान बनकर उनका हाथ थाम लिया। अन्नपूर्णा मुहिम इस बात का जीवंत प्रमाण है कि सच्ची मानवता और निःस्वार्थ सेवा में इतनी शक्ति होती है कि वह पत्थर को पिघला सकती है, तकदीर को बदल सकती है, और कलयुग के घोर अंधकार में भी सतयुग का दीपक जला सकती है।
कैसे काम करती है यह अद्भुत व्यवस्था? एक संगठित और निःस्वार्थ मुहिम
अक्सर लोग यह सोचकर हैरान होते हैं कि इतना बड़ा काम बिना किसी सरकारी मदद या सार्वजनिक चंदे के कैसे हो रहा है? इसका जवाब अन्नपूर्णा मुहिम के अनूठे और अनुशासित कार्य मॉडल में छिपा है:
- निःस्वार्थ सेवादार : इस मुहिम के सेवादार संत रामपाल जी महाराज के लाखों अनुयायी हैं, जो अपने गुरुदेव के आदेश का पालन करते है और मानवता के लिए समर्पित है।
- जमीनी सर्वे और पहचान: सेवादारों की टीमें गाँव-गाँव और शहरों की मलिन बस्तियों में जाकर उन परिवारों का सर्वे करती हैं, जो वाकई में बेहद जरूरतमंद हैं। वे केवल सुनी-सुनाई बातों पर नहीं, बल्कि स्वयं जाकर स्थिति का जायजा लेते हैं।
- तत्काल और त्वरित कार्रवाई: एक बार परिवार की पहचान हो जाने के बाद मदद के लिए महीनों या सालों का इंतजार नहीं करना पड़ता। राशन और कपड़े जैसी मदद तो 24 घंटे के अंदर पहुँच जाती है और मकान बनाने जैसा बड़ा काम भी 15 से 20 दिनों के रिकॉर्ड समय में शुरू होकर पूरा कर दिया जाता है।
- गुणवत्ता से कोई समझौता नहीं: यह मदद केवल खानापूर्ति के लिए नहीं है। चाहे राशन हो या मकान बनाने की सामग्री, हर चीज उत्तम गुणवत्ता की होती है। मकानों में मजबूत लोहे के गेट, पत्थर की छत, पूरी बिजली और पानी की फिटिंग के साथ एक सम्पूर्ण और सुरक्षित घर तैयार करके दिया जाता है।
- शून्य चंदा नीति: इस मुहिम की सबसे बड़ी और हैरान करने वाली बात यह है कि इसके लिए किसी से भी एक रुपये का चंदा नहीं लिया जाता। संत रामपाल जी महाराज का सख्त आदेश है कि यह सेवा परमात्मा की दी हुई शक्ति और उनके शिष्यों के आपसी सहयोग से ही चलेगी।
- संत रामपाल जी महाराज की आध्यात्मिक शक्ति: संत रामपाल जी महाराज बताते है कि ऐसी मुहिम कबीर भगवान की दया के बिना पूरी नहीं हो सकती। संत रामपाल जी महाराज के शिष्यों के अनुसार वे वर्तमान में कबीर भगवान के साक्षात अवतार है और उनकी अद्भुत शक्ति से युक्त है इसलिए उनके लिए ऐसी मुहिम चलाना कोई बड़ी बात नहीं है।
एक मौन क्रांति: जब समाज और व्यवस्थाएं हुईं नतमस्तक
संत रामपाल जी महाराज ने अन्नपूर्णा मुहिम के माध्यम से न केवल गरीबों की मदद की है, बल्कि समाज के तथाकथित ठेकेदारों और बड़ी-बड़ी संस्थाओं को भी एक आईना दिखाया है। गाँव के सरपंच, प्रधान और अन्य सम्मानित लोग, जो पहले इन परिवारों की मदद नहीं कर पा रहे थे, आज वे भी संत रामपाल जी महाराज के इस कार्य की खुले दिल से सराहना कर रहे हैं।
एक सरपंच ने कहा, “मैंने अपने जीवन में ऐसा संत नहीं देखा, जो लेता नहीं, बल्कि सिर्फ देता है। सरकार भी इतनी जल्दी और इतनी अच्छी मदद नहीं कर सकती, जितनी संत रामपाल जी महाराज कर रहे हैं।” एक अन्य व्यक्ति ने कहा, “यह किसी इंसान का काम नहीं हो सकता, यह तो स्वयं भगवान ही किसी के माध्यम से कर रहे हैं।”
यह मुहिम उन बड़ी-बड़ी धार्मिक संस्थाओं के लिए भी एक प्रश्नचिह्न है, जिनके पास अरबों का खजाना है, लेकिन वे गरीबों की भूख और लाचारी को अनदेखा कर देते हैं। संत रामपाल जी महाराज द्वारा संचालित अन्नपूर्णा मुहिम ने साबित कर दिया है कि धर्म का असली अर्थ आडंबर नहीं, बल्कि दीन-दुखियों की सेवा है।
भौतिक मदद से परे: आत्मिक उत्थान और एक नए समाज का निर्माण
अन्नपूर्णा मुहिम का उद्देश्य केवल पेट भरना या छत देना नहीं है। इसका लक्ष्य बहुत गहरा और दूरगामी है।
- आत्म-सम्मान की बहाली: जब एक गरीब को सम्मानजनक घर और भरपूर भोजन मिलता है, तो उसका खोया हुआ आत्म-सम्मान लौट आता है। वह समाज में सिर उठाकर जी सकता है।
- नशा-मुक्ति और चरित्र निर्माण: संत रामपाल जी महाराज के ज्ञान से प्रेरित होकर लाखों लोगों ने नशा और अन्य सामाजिक बुराइयाँ छोड़कर एक सात्विक जीवन अपनाया है। यह मुहिम भी इसी चरित्र निर्माण का एक हिस्सा है।
- भविष्य की पीढ़ी का निर्माण: जब गरीब बच्चों को शिक्षा और संस्कार मिलते हैं, तो वे गरीबी के दुष्चक्र से बाहर निकलते हैं और एक बेहतर भविष्य का निर्माण करते हैं। यह मुहिम भारत की आने वाली पीढ़ी को मजबूत बना रही है।
- आध्यात्मिक जागृति: इस निःस्वार्थ सेवा को देखकर लोगों के मन में परमात्मा के प्रति आस्था और विश्वास जागृत होता है। उन्हें यह समझ आता है कि जब सारे रास्ते बंद हो जाते हैं, तब भी एक शक्ति है, जो उनकी रक्षा करती है।
निष्कर्ष: कलयुग में सतयुग का साकार होता सपना
संत रामपाल जी महाराज की अन्नपूर्णा मुहिम एक बहती हुई नदी की तरह है, जो बिना किसी भेदभाव के हर प्यासे की प्यास बुझा रही है। यह उन लाखों गुमनाम चेहरों की कहानी है, जिन्हें समाज ने बिसरा दिया था, लेकिन परमात्मा ने उन्हें अपनी शरण में ले लिया।
यह सिर्फ मकानों के बनने या परिवारों के पेट भरने की कहानी नहीं है। यह एक विचारधारा की जीत है। यह उस विश्वास की जीत है कि इंसानियत आज भी जिंदा है। यह उस संकल्प की जीत है कि यदि एक सच्चा संत राह दिखाए, तो पूरी दुनिया में बदलाव लाया जा सकता है। यह कलयुग में सतयुग के आगमन की पहली आहट है – एक ऐसा युग, जहाँ कोई भूखा नहीं सोएगा, कोई बेघर नहीं रहेगा, और हर इंसान को सम्मान से जीने का अधिकार मिलेगा। यह एक ऐसे नए भारत की नींव है, जिसका सपना हमारे महापुरुषों ने देखा था।
अन्नपूर्णा मुहिम पर FAQs
यह संत रामपाल जी महाराज द्वारा शुरू की गई सेवा मुहिम है, जिसमें गरीबों को मुफ्त में राशन, मकान, शिक्षा और चिकित्सा सहायता दी जाती है।
नहीं, इस मुहिम में किसी से भी कोई चंदा नहीं लिया जाता। यह पूरी तरह से नि:स्वार्थ सेवा है, जो संत रामपाल जी महाराज द्वारा चलती है।
ऐसे बेहद गरीब परिवार जिन्हें सरकारी योजनाओं से कोई सहायता नहीं मिलती—उन्हें इस मुहिम के अंतर्गत संपूर्ण सहायता दी जाती है।
हां, जिनके पास रहने के लिए छत नहीं है, उन्हें केवल 15 से 20 दिनों में पक्का मकान बनवाकर दिया जाता है, जिसमें बिजली, पानी और सभी सुविधाएं होती हैं।
संत रामपाल जी महाराज के सतलोक आश्रम से संपर्क करके किसी भी जरूरतमंद परिवार की जानकारी दी जा सकती है। टीम तुरंत कार्यवाही करती है।