November 24, 2024

राधास्वामी पंथ की खुली पूरी पोल, सबकुछ है गोलमोल

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Last Updated on 5 May 2024 IST: भारत में परमेश्वर की प्राप्ति का दावा करने वाले अनेकों पंथ हैं जिनकी अलग अलग विचारधारा एवं साधना पद्धति है। ऐसे ही पंथों में है एक राधास्वामी पंथ जोकि एक प्रसिद्ध पंथ है। इस पंथ की स्थापना का श्रेय शिवदयाल जी को दिया जाता है। आज हम इस पंथ के बहुत ही चौंका देने वाले तथ्य जानेंगे, जिसका फैसला पाठक करेंगे कि यह पंथ कहाँ तक सच है।

राधास्वामी पंथ के प्रवर्तक शिवदयाल सिंह जी की जीवनी

यह जानकारी राधास्वामी पंथ की पुस्तक सार वचन राधास्वामी (वार्तिक) की भूमिका से ली गई है। इसके अतिरिक्त पुस्तक उपदेश राधास्वामी (प्रकाशक एस. एल. सौंधी, सैक्रेटरी राधा स्वामी सत्संग ब्यास जिला अमृतसर, पंजाब) तथा पुस्तक जीवन चरित्र परम् सन्त बाबा जयमल सिंह, लेखक कृपाल सिंह से जानकारी उठाई गई है।

राधास्वामी पंथ श्री शिवदयाल जी का चलाया हुआ पंथ है। शिवदयाल जी का जन्म आगरा के मुहल्ला पन्ना गली में हुआ था। शिवदयाल जी के माता पिता हाथरस वाले तुलसी साहेब जिन्होंने घट रामायण लिखी उनके भक्त थे। घट रामायण की भूमिका में ही स्पष्ट है कि तुलसी साहेब ही गोसाईं तुलसीदास वाली आत्मा थे जिन्होंने रामचरितमानस की रचना की। हाथरस वाले तुलसी साहेब का कोई गुरु नहीं था। उनका शिवदयाल जी के घर में आना जाना था। शिवदयाल जी तुलसी साहेब के प्रवचन सुनते थे। शिवदयाल जी ने कोई गुरु धारण नहीं किया था। शिवदयाल जी छह वर्ष की आयु में ही हठयोग करते थे। 42 वर्ष की आयु में उन्होंने अपना पहला सत्संग किया था। शिवदयाल जी का विवाह नारायणी से हुआ था जिन्हें वे राधा कहकर बुलाते थे।

सालगराम जी का चलाया है राधास्वामी पंथ!

सन् 1856 में बाबा जयमल सिंह जी ने श्री शिवदयाल जी से उपदेश (नाम) प्राप्त किया। श्री शिवदयाल जी (राधास्वामी) के कोई गुरु नहीं थे। इससे सिद्ध यह हुआ कि जिस समय बाबा जयमल सिंह जी को श्री शिवदयाल सिंह जी (राधास्वामी) ने नाम दान किया उस समय तक तो श्री शिवदयाल जी साधक थे। पूरे संत नहीं हुए थे, अधूरे थे क्योंकि श्री शिवदयाल जी ने साधना पूरी करके सन् 1861 में सत्संग करना प्रारम्भ किया।वचन आखिर जो शिवदयाल जी ने 1878 में शरीर छोड़ते समय कहे उनके अनुसार राधास्वामी पंथ उनका है ही नहीं यह सालगराम का चलाया हुआ है। उनका पंथ तो सतनामी एवं अनामी का था। हालांकि उसे भी चलते रहने की अनुमति उन्होंने दी (वचन आखिरी संख्या 14)। राधास्वामी ने सत्संग करने की आज्ञा तो दी किन्तु कहीं भी नामदान देने की कोई आज्ञा नहीं दी। उन्होंने श्री जयमल जी एवं श्री सालगराम जी को नाम दान करने का कोई आदेश नहीं दिया।

शिवदयाल जी के कोई गुरु नहीं थे

यहां इतना अवश्य स्पष्ट है कि शिवदयाल जी के कोई गुरु नहीं थे। शिवदयाल जी ने राधास्वामी पंथ की स्थापना नहीं की किन्तु इसे चलते रहने की अनुमति दी। शिवदयाल जी ने किसी को भी नामदीक्षा देने के कोई आदेश नहीं दिए। श्री ठाकुर सिंह जी और श्री जयमल सिंह जी ने दीक्षा प्राप्त की सन् 1856 में। श्री शिवदयाल सिंह जी (राधा स्वामी) की मृत्यु सन् 1878 में 60 वर्ष की आयु में हुई। 

■ यह भी पढ़ें: राधास्वामी पंथ का खुलासा

श्री जयमल सिंह जी सेना से निवृत हुए सन् 1889 में अर्थात् श्री शिवदयाल सिंह जी (राधा स्वामी) की मृत्यु के 11 वर्ष पश्चात् सेवा निवृत होकर 1889 में ब्यास नदी के किनारे डेरे की स्थापना करके स्वयंभू संत बनकर नाम दान करने लगे। यदि कोई कहे कि शिवदयाल सिंह जी ने बाबा जयमल सिंह को नाम दान करने को आदेश दिया था। यह उचित नहीं है क्योंकि यदि नाम दान देने का आदेश दिया होता तो श्री जयमल सिंह जी पहले से ही नाम दान प्रारम्भ कर देते। अब आगे बढ़ते हैं।

राधास्वामी पंथ का ज्ञान क्या है?

राधास्वामी पंथ के शिवदयाल जी ने तो नामदान का कोई आदेश नहीं दिया किन्तु इनके शिष्यों ने अवश्य ही नामदान देना प्रारम्भ कर दिया। राधास्वामी पंथ के अनुसार परमात्मा निराकार है। गुरु ही प्रभु का साकार रूप है। राधास्वामी पंथ के अनुसार सचखंड यानी सतलोक में प्रकाश ही प्रकाश है जहाँ जाने पर आत्मा ऐसे मिलती है जैसे बून्द समुद्र में मिलती है। इनके अनुसार साधक को साधना करते हुए जो भी धुनें सुनाई दे रही हैं या प्रकाश दिखाई दे रहा है वही परमात्मा की प्राप्ति है।

राधास्वामी पंथ सतनाम, सचखंड पर कतई स्पष्ट नहीं है। बानगी हमने इनकी ही पुस्तकों से उठाई हैं, कृपया देखें- 

  • पुस्तक सन्तमत प्रकाश भाग 3 के अनुसार पृष्ठ 76 पर लिखा है कि सतनाम या सचखंड चौथा लोक है।
  • पेज 79 पर बताया है कि – पहले राम महाराजा दशरथ के बेटे त्रेता युग में हुए वे अवतार थे वे यहाँ आये और अपना काम करके चले गये। लेकिन अब हम को नहीं मिल सकते। हमारा काम नहीं कर सकते । दूसरा राम मन है जो घट-घट में व्यापक है। तीसरा राम ब्रह्म है जो सारी त्रिलोकी को पैदा करता पालता और नष्ट करता है। चौथा राम सतनाम है। यह असली राम है।
  • पुस्तक सार वचन वार्तिक भाग 1, प्रकाशक- एस. एल. सौंधी, सैक्रेटरी, राधा स्वामी व्यास डेरा बाबा जयमल सिंह, जिला अमृतसर, पंजाब) के पृष्ठ 3 एवं 4 पर लिखा है- 

अब समझना चाहिए की राधा स्वामी पद सबसे ऊंचा मुकाम है और यही नाम कुल मालिक और सच्चे साहिब, और सच्चे खुदा का है और इस मुकाम से दो स्थान नीचे सतनाम का मुकाम है कि जिसको संतों ने सतलोक और सच्चखण्ड और सारशब्द और सतशब्द और सतनाम और सतपुरूष करके ब्यान किया है। पृष्ठ 5 पर वचन सं. 7 में लिखा है (ज्यों का त्यों लेख)- ऊपर जिकर हुआ है कि सतनाम स्थान जिसको सतलोक और सचखंड भी कहते हैं।

  • पुस्तक सार वचन वार्तिक के वचन 1 में लिखा है जीवात्मा अर्थात सुरत को रूह कहते हैं यह सबसे ऊँचे स्थान यानी सतनाम और राधस्वामी पद से उतरी है। (यहां राधास्वामी तथा सतनाम को स्थान बताया है।)
  • इसी पुस्तक के वचन 3 में पुनः सतनाम और राधास्वामी को स्थान कहा है।
  • वचन 4 में पुनः राधास्वामी को स्थान (मुकाम) कहा है व भगवान भी कहा है। अंत की पंक्तियों में कहा है कि राधास्वामी मुकान है जिसे स्थान नहीं कह सकते फिर कहा है इसे स्थान कहते हैं।
  • इसी पुस्तक के वचन 4 में सतनाम के विषय मे कहा है कि राधास्वामी से दो स्थान छोड़कर सतनाम का स्थान है। उसके बाद सतनाम, सतशब्द, सारशब्द, सतलोक और सतपुरुष एक ही बताये हैं यानी भगवान, स्थान और नाम मन्त्र सभी गड्डमड्ड कर दिए।
  • वचन 12 में कहा है सतनाम का स्थान प्रकाशवान है महानाद, सतशब्द, सतपुरुष यही है। पुनः आगे कहा है कि सन्त इसी पुरूष का अवतार है। यह स्थान दयाल पुरुष का है। इस स्थान में अत्यधिक आत्माएँ अर्थात भिन्न भिन्न द्वीपों में बसते हैं तथा सतपुरुष का दर्शन आनंद लेते हैं। (अब तक सतपुरुष स्थान था अब भगवान बताया है)
  • वचन 28 (पृष्ठ 15), वचन 52 (पृष्ठ 31), वचन 67 (पृष्ठ 45-46) में राधास्वामी को सतपुरुष बता दिया है जो सतगुरु बनकर संसार में आये।
  • पुस्तक सन्तमत प्रकाश भाग 4 के पृष्ठ 262 में सचखंड देश, सतनाम जाति, सतपुरुष धर्म बताया है।

यहां यह अति स्पष्ट है कि राधास्वामी पंथ के लिए सतनाम, सारनाम, सारशब्द, सत्पुरुष और सतलोक की अलग परिभाषाएं नहीं हैं ना ही ये उसे परिभाषित कर सकते हैं। जबकि इनकी ही पुस्तक सन्तमत प्रकाश भाग 1 में कबीर साहेब की अमृतवाणी का एक सबद लिखा है – “कर नैनों दीदार महल में प्यारा है” यह 32 कली का है। इसका अनुवाद सावन सिंह जी महाराज (जो श्री जयमल जी महाराज डेरा व्यास वाले के उत्तराधिकारी थे) उन्होंने उसका अनुवाद किया है जिसमें सभी स्थानों व लोकों का वर्णन भिन्न भिन्न लिखा है इसके बाद भी यह पंथ सतनाम, सारनाम, सत्पुरुष को लेकर स्पष्ट नहीं है। यह वाणी तो सत्यपुरुष कबीर साहेब द्वारा सैकड़ों वर्ष पूर्व कही गई है।

राधास्वामी पंथ सतनाम का मर्म नहीं जान सका!

राधास्वामी पंथ की पुस्तक सन्तमत प्रकाश भाग 4 के पृष्ठ 261-62 पर नानक जी एवं कबीर साहेब की सतनाम सम्बंधित वाणियों का उद्धरण देने के बावजूद वे सतनाम का मर्म नहीं जान सके। जान भी नहीं सकते क्योंकि यह कार्य गुरु का होता है और यह पंथ ही बिना गुरु के प्रवर्तक का है। राधा स्वामी पंथ के अनुसार नानक जी व कबीर साहेब के दोहे और वाणियां कुछ इस प्रकार हैं-

सोई गुरु पूरा कहावै, दोय अख्खर का भेद बतावै |

एक छुड़ावै एक लखावै, तो प्राणी निज घर जावै |

वास्तव में ये ऊपर लिखी दोनो वाणियो का मर्म नही जान सके। यदि आप सतपुरुष, सतनाम, सारनाम, सारशब्द के विषय में वास्तविक जानकारी जानना चाहें तो ज़रूर पढ़ें यथार्थ कबीर पंथ की सृष्टि रचना। 

राधास्वामी पंथ की साधना पद्धति

सत्पुरुष, सतलोक, सारनाम एवं सतनाम को एक ही बताने वाले राधास्वामी पंथ द्वारा पांच नाम (औंकार, ज्योति निरंजन, ररंकार, सोहं, सत्यनाम) बताये जाते हैं व तीन अन्य नाम हैं – (अकाल मूर्ति, सत्पुरुष, शब्द स्वरूपी राम) जो बताये जाते हैं। राधास्वामी पंथ में हठयोग के द्वारा मन्त्र जाप करने के लिए कहा जाता है एवं शरीर में धुनें सुनने के लिए कहा जाता है। जिसके मन्त्र ही नकली हों, जिसका ध्येय ही स्पष्ट न हो वो कैसे धुनें सुनेगा? यदि धुनें सुनाई भी दे जाती हैं तो वे पूर्वजन्म की भक्ति का प्रतिफल होती हैं इसलिए ऐसी भक्ति निष्फल है क्योंकि इनके न तो गुरु असली न मन्त्र असली हैं। पाँच नाम कबीर साहेब ने कबीर सागर में काल के बताए हैं तथा तुलसी साहेब घट रामायण वाले ने भी काल के बताए हैं।

कबीर साहेब कहते हैं-

सोई सतगुरु सन्त कहावै, जो नैनन अलख लखावै |

आंख ना मूंदे, कान ना रूंधै ना अनहद उलझावै | जो सहज समाधी बतावै ||

ये सभी क्रियाएं जो कबीर साहेब ने गलत बताई हैं वे राधास्वामी पंथ द्वारा करवाई जाती हैं। फिर ये काल के नाम का जाप कर रहे हैं वे भी सही नहीं हैं क्योंकि असली नाम मन्त्र तो कुछ और ही हैं जो तत्वदर्शी सन्त दे सकता है।

इसके अतिरिक्त राधास्वामी पंथ, जयगुरूदेव पंथ तथा सच्चा सौदा सिरसा व जगमाल वाली पंथों में श्री शिवदयाल सिंह के विचारों को आधार बना कर सत्संग सुनाया जाता है एवं गलत नामों को जाप के लिये दिया जाता है। शिवदयाल जी चरण पूजा करवाते थे। पुस्तक जीवन चरित्र हजूर स्वामी जी महाराज शिवदयाल जी लेखक प्रताप सिंह के पृष्ठ 54-55 में स्पष्ट लिखा है कि बुक्की स्वामी जी के पैर का अंगूठा मुंह मे रखे हुए घण्टों चरणामृत का रस लेती रहती थी। और जब कोई चरणों पर मत्था टेकने को उसे हटाना चाहता तो उसे कहा दिया जाता कि तुम दूसरे चरण पर मत्था टेक लो और अब वर्तमान राधास्वामी गुरु कहते हैं कि चरण छुआने वाला गुरु नहीं होता।

राधास्वामी पंथ के प्रवर्तक शिवदयाल प्रेतयोनि में हैं। मृत्यु के उपरांत राधास्वामी के प्रवर्तक शिवदयाल जी अपनी प्रिय शिष्या बुक्की में प्रविष्ट होने के बाद उपदेश दिया करते थे। पुस्तक जीवन चरित्र हजूर स्वामी जी महाराज के पृष्ठ 54-55-56 के वचन 65 में प्रमाण है कि प्रताप सिंह जी एवं सालगराम जी बुक्की के मुख से शिवदयाल जी का आदेश प्राप्त करते थे। इस पुस्तक में स्पष्ट किया है कि वे मृत्यु के पश्चात भी हुक्का व भोग की सेवा अपनी शिष्य बुक्की द्वारा ग्रहण करते थे और बुक्की में उसकी मृत्यु होने तक प्रकट रहे। कोई भी सन्त जो सतलोक जैसे सुखदायक स्थान में पहुंच गया हो उसे इस मृत्यु लोक में पुनः आने की न आवश्यकता होती है और ना ही इच्छा। 

जो सन्त शक्तियुक्त होते हैं वे स्वयं रूप लेकर आ सकते हैं उन्हें किसी अन्य शरीर के माध्यम की कोई आवश्यकता नहीं होती है। (उदाहरण के लिए कबीरपंथ के आदरणीय गरीबदास जी महाराज गांव छुड़ानी में मृत्यु के बाद उत्तरप्रदेश में भूमड़ भगत के यहां पुनः विराजमान हुए थे। उनका सतग्रन्थ साहेब भी वहीं पाया गया।) अन्य के शरीर में प्रविष्ट होकर बोलने और खाने पीने वाले प्रेत होते हैं। शिवदयाल जी प्रेत योनि में रहे हैं।  एक अन्य बात यह कि हुक्का नशा है और नशा करने वाला व्यक्ति कभी मोक्ष का अधिकारी नहीं होता। नशा करने वाले के पंथ के अनुयायियों के कितना भला सम्भव है? नशे का आदी होने के कारण शिवदयाल जी उसका स्वाद लेने प्रेत योनि में बुक्की के शरीर में पहुंच जाते थे। ऐसा पंथ वास्तविक हो ही नहीं सकता और न ही मोक्ष दिला सकता है। 

राधास्वामी पंथ एक नहीं रह सका और इसकी अनेकों शाखाएं होती गईं। धन धन सतगुरु, सच्चा सौदा, जय गुरुदेव पंथ सभी राधास्वामी पंथ की शाखाएं हैं। विवरण इस प्रकार है।

श्री शिवदयाल जी से आगे निम्न शाखाएं चली हैं :- श्री शिवदयाल जी (राधा स्वामी) जिनके तीन मुख्य शिष्य हुए 1. श्री जयमल सिंह (डेरा ब्यास) 2. जयगुरुदेव पंथ (मथुरा में) 3. श्री तारा चंद (दिनोद जि. भिवानी)। 

इनसे आगे निकलने वाले पंथ :- 

1. श्री शिवदयाल जी (राधा स्वामी) जयमल सिंह (डेरा ब्यास) श्री सावन सिंह श्री जगत सिंह 

2. श्री शिवदयाल जी (राधा स्वामी) जयगुरु देव पंथ (मथुरा में) 

3. श्री शिवदयाल जी (राधा स्वामी) श्री ताराचंद जी (दिनोद जि. भिवानी) 

4. श्री शिवदयाल जी (राधा स्वामी) जयमल सिंह (डेरा ब्यास) श्री सावन सिंह श्री खेमामल जी उर्फ शाह मस्ताना जी (डेरा सच्चा सौदा सिरसा) 

5. श्री शिवदयाल जी (राधा स्वामी) जयमल सिंह (डेरा ब्यास) श्री सावन सिंह श्री खेमामल जी उर्फ शाह मस्ताना जी (डेरा सच्चा सौदा सिरसा) श्री सतनाम सिंह जी (सिरसा)

6. श्री शिवदयाल जी (राधा स्वामी) जयमल सिंह (डेरा ब्यास) श्री सावन सिंह श्री खेमामल जी उर्फ शाह मस्ताना जी (डेरा सच्चा सौदा सिरसा) श्री मनेजर साहेब (गांव जगमाल वाली में) 

7. श्री शिवदयाल जी (राधा स्वामी) जयमल सिंह (डेरा ब्यास) श्री सावन सिंह श्री कृपाल सिंह (सावन कृपाल मिशन दिल्ली) 

श्री शिवदयाल सिंह जी स्वयं भी इन्हीं पांच नामों (ररंकार, औंकार, ज्योति निरंजन, सोहं तथा सतनाम) का जाप करते थे। वे मोक्ष प्राप्त नहीं कर सके और प्रेत योनी को प्राप्त होकर अपनी शिष्या बुक्की में प्रवेश होकर अपने शिष्यों की शंका का समाधान करते थे। जिस पंथ का प्रर्वतक ही भूत बनकर अपनी शिष्या में प्रवेश कर गया तो अन्य अनुयाइयों का क्या होगा? प्रमाण के लिए अवश्य देखें ‘जीवन चरित्र स्वामी जी महाराज’’ के पृष्ठ 78 से 81। विश्वभर में राधास्वामी विचारधारा का पालन करने वाले दो करोड़ से भी अधिक लोग हैं जिनमे भी राग, द्वेष, कलह, शारीरिक और मानसिक रोग विद्यमान हैं।

कबीर, दादू धारा अगम की, सतगुरु दई बताय |

उल्ट ताही सुमरण करै, स्वामी संग मिल जाय ||

राधास्वामी वाले कहते हैं कि कबीर साहिब ने दादू साहिब को कहा कि धारा शब्द का उल्टा राधा बनाओ और स्वामी के साथ मिला लो यह राधा स्वामी मन्त्र हो गया। 

सर्वप्रथम तो यह वाणी दादू साहिब की है न कि कबीर साहिब की। और इस साखी का अर्थ बनता है कि दादू साहिब कहते हैं कि मेरे सतगुरु (कबीर साहिब) ने मुझे तीन लोक से आगे (अगम) की धारा (विधि) बताई कि तीन लोक की साधना को छोड़कर (उल्ट कर) जो सत्यनाम व सारनाम दिया है वह आपको सतपुरुष से मिला देगा। मनुष्य जन्म का मिलना अति दुर्लभ है। इसको अनजान साधनाओं में नहीं खोना चाहिए। पूरे गुरु की तलाश करें जो कि परमात्मा का भेजा तत्वदर्शी संत हो जो तीन चरणों में मोक्ष मंत्र देकर सतभक्ति करवाए।

शिवदयाल जी ररंकार, औंकार, ज्योति निरंजन, सोहं तथा सतनाम का जाप करते थे। राधास्वामी पंथ के मुखिया शिवदयाल जी का कोई गुरु नहीं था। बिना गुरु के उन्होंने अपने मन से ये नाम मनमुखी जुटा लिए, जबकि यह नाम कबीर साहिब ने कहीं भी अपने शास्त्र में वर्णन नहीं किया है। कबीर साहेब ने, नानक जी ने, दादू जी ने, आदरणीय गरीबदासजी महाराज ने अपनी वाणियों में सतनाम का प्रमाण दिया है जोकि इन नामों से जो राधास्वामी पंथ वाले देते हैं उससे सर्वथा भिन्न है। एक स्वाँस-उस्वाँस भी इस मन्त्र का जाप हो गया तो उसकी कीमत इतनी है कि एक स्वाँस-उस्वाँस के मन्त्र का एक जाप तराजू के एक पलड़े में दूसरे पलड़े में चौदह भुवनों को रख दें तथा तीन लोकों को पलड़े समान करने के लिए रख दे तो भी एक स्वाँस के (सत्यनाम) जाप की कीमत ज्यादा है। लेकिन इस मंत्र को पूर्ण संत से उपदेश प्राप्त करके नाम जाप करने से ही लाभ होगा।

  • सर्वप्रथम तो राधास्वामी पंथ के प्रवर्तक शिवदयाल सिंह जी के कोई गुरु नहीं थे जबकि परमेश्वर कबीर ने गुरु प्रणाली के माध्यम से ही कलियुग में जीव तारने का संदेश कबीर सागर में दिया है तथा स्वयं उन्होंने भी गुरु बनाने की लीला की।
  • द्वितीय बात यह कि राधास्वामी पंथ के प्रवर्तक शिवदयाल सिंह जी सतनाम, सारनाम, सारशब्द, सतलोक एवं सतपुरुष में अंतर नहीं कर सके तो आगे का सारा ज्ञान तो कोरा ही है।
  • तृतीय यह कि वे हुक्का पीते थे। किसी भी नशे के आदी व्यक्तिका मोक्ष सम्भव नहीं है इसलिए वे प्रेत योनि में गए और अपनी शिष्या बुक्की के भीतर समाकर हुक्के का आनंद लेते रहे।
  • चतुर्थ उन्होंने अंतिम वचनों में यह भी स्पष्ट कर दिया है कि राधास्वामी पंथ उनका चलाया नहीं बल्कि सालगराम जी का चलाया हुआ है।
  • पंचम यह कि उनके द्वारा दिये पांचों नाम गलत हैं। गीता अध्याय 17 श्लोक 23 से लेकर कबीर परमेश्वर की वाणी, नानक जी की वाणी एवं गरीबदासजी महाराज की वाणी में तीन बार की नामदीक्षा की प्रक्रिया का प्रमाण है। यहाँ तक कि कुरान में भी एन सीन काफ के माध्यम से तीन नामों का ज़िक्र है।
  • षष्ठम यह कि वे जिस प्रकार नामदान के मन्त्र जाप करने के लिए कहते हैं वह हठयोग है एवं कबीर साहेब ने हठयोग सबसे पहले वर्जित बताया है। गरीबदास जी महाराज ने भी हठयोग वर्जित किया है।
  • सप्तम यह कि ब्रह्मांड रुपी शरीर के बने कमलों को खोलकर ही साधक त्रिकुटी तक पहुँच सकता है। पुराने ऋषियों ने हठयोग के माध्यम से इसे खोलने का प्रयास किया था। किंतु राधास्वामी पंथ ने शरीर के अन्य कमलों को खोलने का कोई जिक्र नहीं किया क्योंकि वे तो सृष्टि रचना से ही अनभिज्ञ हैं।
  • अष्टम यह कि नामदीक्षा पूर्ण सन्त ही दे सकता है और राधास्वामी पंथ में शिवदयाल जी से लेकर अब तक कोई भी पूर्ण तत्वदर्शी सन्त नहीं हुआ है।

सतलोक तो केवल पूर्ण तत्वदर्शी सन्त के माध्यम से तीन बार मे नामदीक्षा के बाद ही जाया जा सकता है जिसमें प्रथम नाम, सतनाम, सारनाम और अंत में सारशब्द के बाद ही पहुंचा जा सकता है। इस समय पूरे विश्व में केवल सन्त रामपाल जी महाराज ही तत्वदर्शी सन्त के रूप में आए हुए हैं जिन्होंने पूर्ण तत्वज्ञान दिया है एवं गूढ़तम रहस्यों को सुलझाया है। शंका समाधान के लिए देखें पूर्ण तत्वदर्शी सन्त के लक्षण। सतलोक हम सभी आत्माओं का निजस्थान है। सतलोक के तीसरे पृष्ठ पर हमारे परम् पिता परमेश्वर सर्व सृष्टि के रचनहार सत्पुरुष कबीर परमेश्वर का स्थान है। ज्ञान समझें और अतिशीघ्र सन्त रामपाल जी महाराज जी से नामदीक्षा लेकर अपना कल्याण करवाएं। अधिक जानकारी के लिए देखें सतलोक आश्रम यूट्यूब चैनल।

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