January 23, 2025

Tulsi Vivah 2024: जानिए क्या है तुलसी शालिग्राम पूजा की सच्चाई तथा क्या है शास्त्रानुकूल साधना?

Published on

spot_img

इस वर्ष तुलसी शालिग्राम विवाह या तुलसी विवाह (Tulsi Vivah in Hindi) का प्रारंभ 12 नवंबर से शुरू होकर 13 नवंबर को समापन होगा। इस प्रकार उदयातिथि के अनुसार तुलसी विवाह 13 नवंबर को किया जाएगा। इस अवसर पर जानें क्यों मनाया जाता है तुलसी विवाह एवं क्या है इसकी पौराणिक कथा। क्यों किया जाता है माता तुलसी का पत्थर शालिग्राम के साथ विवाह? क्या तुलसी विवाह जैसी क्रियाएं करने से मोक्ष संभव है? इस विशेष अवसर पर जानें कैसे करें शास्त्रानुकूल साधना?जानने के कृपया लेख को पूरा पढ़ें।

  • तुलसी विवाह मनाया गया देव उठनी ग्यारस को मनाया जाता है।
  • भगवान विष्णु ने किया माता तुलसी का सतीत्व छल से भंग।
  • क्या लाभ है तुलसी विवाह का?
  • कैसे करें शास्त्रानुसार साधना?

तुलसी और शालिग्राम के विवाह के अवसर पर जानें क्यों की जाती है तुलसी और शालिग्राम की पूजा? तुलसी वास्तव में वृंदा नामक स्त्री की कथा है जिसका छल से भगवान विष्णु द्वारा सतीत्व भंग किया गया था। वृंदा एक सती एवं तपोबल युक्त स्त्री थी जिसका पति जलन्धर था। कहते हैं जलन्धर एक राक्षस था जिसका युद्ध भगवान विष्णु से लंबे समय से चलता रहा किन्तु भगवान विष्णु उसे पराजित नहीं कर पाए। तब भगवान विष्णु को पता चला कि जब तक वृंदा का सतीत्व भंग न किया जाए यानी वृंदा के साथ बलात्कार न किया जाए तब तक जलन्धर पराजित नहीं हो सकता। ऐसी स्थिति में भगवान विष्णु ने छल कपट के साथ वृंदा के साथ दुष्कर्म किया और उसका सतीत्व भंग किया एवं जलन्धर को परास्त किया। जब वृंदा को सच्चाई का पता चला तो उन्होंने भगवान विष्णु को श्राप दिया कि वे पत्थर बन जाएं।

भगवान विष्णु का ही रूप शालिग्राम है। वृंदा अपने पति जलन्धर के साथ सती हो गईं जिसकी राख से तुलसी का पौधा निकला। भगवान विष्णु के भीतर भी अनुराग तुलसी के लिए उत्पन्न हो चुका था इसी कारण तुलसी और शालिग्राम का विवाह कराया जाता है। इसी दिन देव उठनी ग्यारस थी अतः सदैव ही तुलसी और शालिग्राम का विवाह इस दिन कराया जाता है जो कि शास्त्रों में अनुचित बताया है।

Tulsi Vivah 2024 पर जाने तुलसी पूजा शास्त्रविरुद्ध क्यों है?

यह एक बहुत ही सरल सी बात है कि शास्त्रों में बताई विधि के अनुसार ही कोई भी साधना फलदायी होती है। यही बात गीता अध्याय 16 श्लोक 23- 24 में भी कही गई है तथा यह भी बताया है कि शास्त्रविधि को त्यागकर मनमाना आचरण करने वाला न सुख को प्राप्त होता है और न ही उसकी कोई गति अर्थात मोक्ष होता है। इसलिए कर्त्तव्य और अकर्त्तव्य अर्थात क्या करें एवं क्या नहीं करें कि अवस्था मे शास्त्र ही प्रमाण बताए गए हैं। पूरी श्रीमद्भगवद्गीता में तुलसी पूजा, तुलसी विवाह या तुलसी शालिग्राम विवाह का कहीं ज़िक्र नहीं है। 

तुलसी के साथ छल कपट से सम्बंध बनाने का आयोजन क्या उचित है?

Tulsi Vivah in Hindi: वर्तमान में मानव समाज यह कहकर पल्ला झाड़ लेता है कि हिन्दू धर्म में तुलसी एवं पीपल आदि वृक्ष वैज्ञानिक रूप से अच्छे माने गए हैं। विचार करें इस पृथ्वी पर ऐसा बहुत कुछ है जो वैज्ञानिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है और उसे भावी पीढ़ियों के लिए सहेज कर रखना भी आवश्यक है। लेकिन इसका यह अर्थ नहीं है कि हम उनका विवाह करने लग जाएंगे या जन्मदिन मनाने बैठेंगे, न ही इस बात का कोई तुक है। 

■ Also Read: Shravana Putrada Ekadashi: जानें संतान सुख जैसे सर्व लाभ कैसे सम्भव हैं?

दूसरी बात यह कि तुलसी यानी वृंदा के साथ एक प्रकार से न जानते हुए, छल एवं कपट से सम्बंध बनाया गया था। यह किस श्रेणी में आता है पाठकगण समझदार हैं तथा इतना भी संज्ञान है कि यह कोई गौरव की बात नहीं है। जिस कार्य से लाभ नहीं, मोक्ष नहीं, गौरव नहीं बल्कि शास्त्रविरुद्ध है उसे यथा शीघ्र त्यागना चाहिए।

कैसे करें शास्त्रानुकूल साधना

गीता अध्याय 4 के श्लोक 34 में तत्वदर्शी सन्त की शरण में जाने और दण्डवत प्रणाम कर ज्ञान प्राप्त करने की सलाह दी गई है। बिना गुरु धारण किए कोई भी साधना की जाए वह निष्फल ही होती है। स्वयं त्रिलोकनाथ राम, कृष्ण जी ने भी गुरु धारण किये। फिर आम जीव किस भूल में है। गुरु धारण किये बिना मोक्ष असम्भव है। किन्तु गुरु कैसा हो? गुरु तत्वदर्शी सन्त ही हो जिसकी पहचान वेदों में दी गई है तथा गीता अध्याय 15 श्लोक 1- 4 में भी बताया गया है। अन्य किसी भी गुरु द्वारा बताई साधना फलदायी नहीं है। 

गुरु धारण करने के पश्चात गीता अध्याय 17 के श्लोक 23 में तीन सांकेतिक मन्त्र दिए गए हैं जिन्हें केवल तत्वदर्शी सन्त ही बता सकता है। केवल वही मन्त्र मोक्षप्राप्ति में सहायक हैं। 

पूर्ण परमेश्वर कबीर साहेब (कविर्देव)

पूर्ण परमेश्वर के उपासक को सभी देवी देवताओं द्वारा स्वतः ही लाभ मिलने लगते है इसलिए पूर्ण परमेश्वर कबीर साहेब की भक्ति के लिए शास्त्रों में कहा गया है। कबीर साहेब वेदों में कविर्देव, कविः देव के नाम से सम्बोधित किए गए हैं जो साधक को भाग्य से अधिक दे सकते हैं एवं विधि का विधान भी पलट सकते हैं। अतः ऐसी भक्ति करनी फलदायी है जिससे एक परमेश्वर की भक्ति करते हुए सभी लाभ मिलते हैं एवं पूर्ण मोक्ष भी प्राप्त होता है।

आत्म प्राण उद्धार ही, ऐसा धर्म नहीं और | 

कोटि अश्वमेघ यज्ञ, सकल समाना भौर ||

सन्त रामपाल जी महाराज हैं पूर्ण तत्वदर्शी सन्त

वर्तमान में पूरे विश्व में सन्त रामपाल जी महाराज पूर्ण तत्वदर्शी सन्त हैं। वेदों व शास्त्रों में दी गई तत्वदर्शी सन्त की पहचान केवल सन्त रामपाल जी महाराज पर खरी उतरती है। सन्त रामपाल जी न केवल शास्त्रानुकूल साधना बताते हैं बल्कि अन्य भौतिक लाभ भी अनुयायियों को देते हैं जिनमें आर्थिक लाभ, स्वास्थ्य लाभ आदि सम्मिलित हैं। क्योंकि भक्ति व्यक्ति तभी कर सकता है जब उसकी काया निरोगी हो एवं उसका उदर पुष्ट हो। पूर्ण परमेश्वर की भक्ति से सभी देवी देवता एवं ब्रह्मांड की महत्वपूर्ण शक्तियां न केवल साधक के पक्ष में होती हैं बल्कि साधक पूर्ण मोक्ष की ओर भी अग्रसर होता है। अर्थात इस लोक में सुख और पूर्ण मोक्ष के पश्चात सतलोक में महासुख जीवात्मा अनुभव करती है। क्योंकि सतलोक ही केवल ऐसा स्थान है, जहां जाने के बाद जीव आत्मा जन्म और मृत्यु के चक्र से हमेशा के लिए मुक्त हो जाती है। सतलोक ही हम सभी जीव आत्माओं का निज स्थान है और कबीर साहेब जी हम सभी के पिता हैं।

रामपाल जी महाराज की शरण में आकर कल्याण कराएं

वर्तमान में संत रामपाल जी महाराज ही एकमात्र ऐसे संत हैं, जो शास्त्रानुकूल साधना बता रहे हैं। उनकी बताई गई साधना करने से उनके शिष्यों को अद्भुत लाभ प्राप्त हो रहे हैं। एक ओर जहाँ एड्स, कैंसर जैसी बीमारियों के आगे साइंस भी अपने हाथ खड़े कर देती है, वहीं संत रामपाल के शिष्य मात्र उनकी बताई गई साधना करने से स्वस्थ हो जाते हैं। यथाशीघ्र सन्त रामपाल जी महाराज का ज्ञान समझें एवं उनकी शरण में आकर नाम दीक्षा लेकर सतभक्ति करके अपना कल्याण करवाएं। अधिक जानकारी के लिए देखें सतलोक आश्रम यूट्यूब चैनल।

कबीर ज्ञानी हो तो हृदय लगाई, 

मूर्ख हो तो गम न पाई ||

वर्ष 2024 में तुलसी विवाह कब है?

वर्ष 2024 में तुलसी विवाह 13 नवंबर को है।

गीता जी के कौन से अध्याय में तत्वदर्शी संत की शरण में जाने को कहा गया है?

गीता जी के अध्याय 4 के श्लोक 34 में तत्वदर्शी संत की शरण में जाने और दण्डवत प्रणाम कर ज्ञान प्राप्त करने का निर्देश दिया गया है।

गीता जी के अध्याय में सांकेतिक मंत्र बताए गए हैं?

गीता जी के अध्याय 17 के श्लोक 23 में तीन सांकेतिक मंत्र (ॐ तत् सत्) बताए गए हैं। इन मंत्रों को केवल तत्वदर्शी संत ही बता सकता है। 

हमारे सभी पवित्र शास्त्रों के अनुसार पूर्ण परमेश्वर कौन है?

हमारे सभी पवित्र शास्त्रों के अनुसार पूर्ण परमेश्वर कबीर साहेब जी हैं?

निम्नलिखित सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म पर हमारे साथ जुड़िए

WhatsApp ChannelFollow
Telegram Follow
YoutubeSubscribe
Google NewsFollow

Latest articles

Know About the Best Tourist Destination on National Tourism Day 2025

Last Updated on 23 January 2025 IST | National Tourism Day 2025: Every year...

International Day of Education 2025: Know About the Real Aim of Education

International Day of Education is celebrated on January 24 every year. Due to Sunday...

National Girl Child Day (NGCD) 2025: How Can We Ensure A Safer World For Girls?

Last Updated on 22 January 2025 | National Girl Child Day 2025: The question...
spot_img

More like this

Know About the Best Tourist Destination on National Tourism Day 2025

Last Updated on 23 January 2025 IST | National Tourism Day 2025: Every year...

International Day of Education 2025: Know About the Real Aim of Education

International Day of Education is celebrated on January 24 every year. Due to Sunday...