November 8, 2025

Tulsi Vivah 2025: जानिए क्या है तुलसी शालिग्राम पूजा की सच्चाई तथा क्या है शास्त्रानुकूल साधना?

Published on

spot_img

Last Updated on 31 October 2025 IST: इस वर्ष तुलसी शालिग्राम विवाह या तुलसी विवाह (Tulsi Vivah in Hindi) का प्रारंभ 2 नवंबर से शुरू होकर 3 नवंबर को समापन होगा। (तुलसी विवाह एकादशी हिंदू पंचांग के अनुसार, द्वादशी तिथि का आरंभ 2 नवंबर को होगा। इस तिथि का समापन 3 नवंबर होगा।) इस प्रकार उदयातिथि के अनुसार तुलसी विवाह 2 नवंबर को किया जाएगा। इस अवसर पर जानें क्यों मनाया जाता है तुलसी विवाह एवं क्या है इसकी पौराणिक कथा। क्यों किया जाता है माता तुलसी का पत्थर शालिग्राम के साथ विवाह? क्या तुलसी विवाह जैसी क्रियाएं करने से मोक्ष संभव है? इस विशेष अवसर पर जानें कैसे करें शास्त्रानुकूल साधना? जानने के कृपया लेख को अंत तक पूरा पढ़ें।

  • तुलसी विवाह मनाया गया देव उठनी ग्यारस को मनाया जाता है।
  • भगवान विष्णु ने किया माता तुलसी का सतीत्व छल से भंग।
  • क्या लाभ है तुलसी विवाह का?
  • कैसे करें शास्त्रानुसार साधना?

तुलसी और शालिग्राम के विवाह के अवसर पर जानें क्यों की जाती है तुलसी और शालिग्राम की पूजा? तुलसी वास्तव में वृंदा नामक स्त्री की कथा है जिसका छल से भगवान विष्णु द्वारा सतीत्व भंग किया गया था। वृंदा एक सती एवं तपोबल युक्त स्त्री थी जिसका पति जलन्धर था। कहते हैं जलन्धर एक राक्षस था जिसका युद्ध भगवान विष्णु से लंबे समय से चलता रहा किन्तु भगवान विष्णु उसे पराजित नहीं कर पाए। तब भगवान विष्णु को पता चला कि जब तक वृंदा का सतीत्व भंग न किया जाए यानी वृंदा के साथ बलात्कार न किया जाए तब तक जलन्धर पराजित नहीं हो सकता। ऐसी स्थिति में भगवान विष्णु ने छल कपट के साथ वृंदा के साथ दुष्कर्म किया और उसका सतीत्व भंग किया एवं जलन्धर को परास्त किया। जब वृंदा को सच्चाई का पता चला तो उन्होंने भगवान विष्णु को श्राप दिया कि वे पत्थर बन जाएं।

भगवान विष्णु का ही रूप शालिग्राम है। वृंदा अपने पति जलन्धर के साथ सती हो गईं जिसकी राख से तुलसी का पौधा निकला। भगवान विष्णु के भीतर भी अनुराग तुलसी के लिए उत्पन्न हो चुका था इसी कारण तुलसी और शालिग्राम का विवाह कराया जाता है। इसी दिन देव उठनी ग्यारस थी अतः सदैव ही तुलसी और शालिग्राम का विवाह इस दिन कराया जाता है जो कि शास्त्रों में अनुचित बताया है।

Tulsi Vivah 2025 पर जाने तुलसी पूजा शास्त्रविरुद्ध क्यों है?

यह विचारणीय विषय है कि शास्त्रों में बताई विधि के अनुसार ही कोई भी साधना करना फलदायी होता है। यही बात गीता अध्याय 16 श्लोक 23- 24 में भी कही गई है तथा यह भी बताया गया है कि शास्त्रविधि को त्यागकर मनमाना आचरण करने वाला न सुख को प्राप्त होता है और न ही उसकी कोई गति अर्थात मोक्ष होता है। इसलिए कर्त्तव्य और अकर्त्तव्य अर्थात क्या करें एवं क्या नहीं करें कि अवस्था में शास्त्र ही प्रमाण बताए गए हैं। पूरी श्रीमद्भगवद्गीता में तुलसी पूजा, तुलसी विवाह या तुलसी- शालिग्राम विवाह का कहीं ज़िक्र नहीं मिलता है। 

तुलसी के साथ छलकपट से संबंध बनाने का आयोजन क्या उचित था?

Tulsi Vivah in Hindi: वर्तमान समय में मानव समाज यह कहकर अपना पल्ला झाड़ लेता है कि हिन्दू धर्म में तुलसी एवं पीपल आदि वृक्ष वैज्ञानिक रूप से उपयोगी माने गए हैं। विचार करें इस पृथ्वी पर ऐसा बहुत कुछ है जो वैज्ञानिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है और उसे भावी पीढ़ियों के लिए सहेज कर रखना भी आवश्यक है। लेकिन इसका यह अर्थ कदापि नहीं है कि हम अपने मनोभावानुसार उनका विवाह करने लग जाएं या उनका जन्मदिन मनाने लगें, या उनके नाम पर व्रत आदि उपवास रखें और न ही धार्मिक ग्रंथों के अनुकूल इस बात का कोई औचित्य है। 

■ Also Read: Shravana Putrada Ekadashi: जानें संतान सुख जैसे सर्व लाभ कैसे सम्भव हैं?

दूसरी बात यह है कि विष्णु जी द्वारा, तुलसी यानी वृंदा के साथ छलकपट से संबंध बनाया गया था। क्या ऐसा दुष्कर्म करना देवता स्वरूप विष्णु जी को शोभा देता था, पाठकगण स्वयं विचार करें। जब हमारे ईष्ट देवता का ऐसा अशोभनीय व्यवहार था तो उनका अनुसरण करने और उनकी पूजा करने वालों का आचरण कैसा होगा यह भी समाज के सामने आज स्पष्ट है।

गीता जी में व्रत और मूर्ति पूजा दोनों व्यर्थ कर्म बताए हैं 

श्रीमद्भगवद गीता में व्रत (उपवास) और मूर्ति पूजा दोनों के बारे में स्पष्ट रूप से बताया गया है कि ये साधनाएँ मोक्षदायी नहीं हैं, क्योंकि ये शास्त्रों के अनुसार नहीं की जातीं। नीचे प्रमाण सहित समझिए:

गीता अध्याय 9 श्लोक 23–24

“येऽप्यन्यदेवता भक्ताः श्रद्धयान्विताः यजन्ते श्रद्दयान्विताः तेऽपि मामेव कौन्तेय यजन्त्यविधिपूर्वकम्॥”

अर्थ: जो लोग अन्य देवताओं (मूर्ति या देवी-देवताओं) की पूजा करते हैं, वे भी मुझे ही पूजते हैं, परंतु अविधिपूर्वक, यानी शास्त्र-विरुद्ध रीति से।

यहाँ गीता ज्ञानदाता कहता है कि अन्य देवताओं की पूजा भी उसी तक जाती है, लेकिन यह पूजा विधिपूर्वक (शास्त्र के अनुसार) नहीं है, इसलिए इससे मोक्ष नहीं मिलता।

गीता अध्याय 7 श्लोक 20–23

“कामैस्तैस्तैर्हृतज्ञानाः प्रपद्यन्तेऽन्यदेवताः।”

अर्थ: जिनकी बुद्धि सांसारिक इच्छाओं से भ्रष्ट हो जाती है, वे अन्य देवताओं की शरण लेते हैं।

और आगे कहा —

“अन्तवत्तु फलं तेषां तद्भवत्यल्पमेधसाम्”

अर्थ: ऐसे भक्तों को जो फल मिलता है, वह नाशवान होता है।

यानी मूर्ति पूजा या अन्य देवताओं की आराधना से केवल अस्थायी लाभ होता है, स्थायी मुक्ति नहीं।

व्रत और तपस्या के बारे में (गीता अध्याय 17 श्लोक 5–6)

“अशास्त्रविहितं घोरं तप्यन्ते ये तपो जनाः।”

अर्थ: जो लोग शास्त्र-विहित नियमों को छोड़कर कठोर व्रत और तप करते हैं, वे मूर्ख हैं और शरीर को कष्ट देते हैं; यह तप असुर-स्वभाव का है।

यानी काल भगवान ने कहा है कि ऐसे व्रत, उपवास और तपस्या जो शास्त्रों में लिखे नहीं हैं, वे व्यर्थ हैं और भक्ति नहीं माने जाते।

गीता के अनुसार —

मूर्ति पूजा और व्रत यदि शास्त्रों में निर्दिष्ट नहीं हैं, तो वे अविद्या (अज्ञान) से किए गए कर्म हैं। इससे केवल अस्थायी फल मिलता है, मोक्ष नहीं। सच्ची भक्ति वही है जो शास्त्र-विहित नाम-जप और सतज्ञान के मार्ग से की जाए।

कैसे करें शास्त्रानुकूल साधना

गीता अध्याय 4 के श्लोक 34 में तत्वदर्शी संत की शरण में जाने और दण्डवत प्रणाम कर ज्ञान प्राप्त करने की सलाह दी गई है। बिना गुरु धारण किए कोई भी साधना की जाए वह निष्फल ही होती है। स्वयं त्रिलोकनाथ राम, कृष्ण जी ने भी गुरु धारण किये। फिर आम जीव किस भूल में है। गुरु धारण किये बिना मोक्ष पाना भी असम्भव है। स्वर्ग की प्राप्ति तो दूर की कौड़ी है। किन्तु गुरु कैसा हो? गुरु तत्वदर्शी संत हो जिसकी पहचान वेदों में दी गई है तथा गीता अध्याय 15 श्लोक 1- 4 में भी बताया गया है। अन्य किसी भी गुरु द्वारा बताई गई साधना करना फलदायी नहीं है। 

गुरु धारण करने के पश्चात गीता अध्याय 17 के श्लोक 23 में तीन सांकेतिक मंत्र बताए गए हैं जिन्हें केवल तत्वदर्शी संत ही बता सकता है। केवल वही मंत्र सर्व फलदायक और मोक्षप्राप्ति में सहायक हैं। 

पूर्ण परमेश्वर कबीर साहेब (कविर्देव)

पूर्ण परमेश्वर के उपासक को सभी देवी देवताओं द्वारा स्वतः ही लाभ मिलने लगते है इसलिए पूर्ण परमेश्वर कबीर साहेब की भक्ति के लिए शास्त्रों में कहा गया है। कबीर साहेब वेदों में कविर्देव, कविः देव के नाम से सम्बोधित किए गए हैं जो साधक को भाग्य से अधिक दे सकते हैं एवं विधि का विधान भी पलट सकते हैं। अतः ऐसी भक्ति करनी फलदायी है जिससे एक परमेश्वर की भक्ति करते हुए सभी लाभ मिलते हैं एवं पूर्ण मोक्ष भी प्राप्त होता है।

आत्म प्राण उद्धार ही, ऐसा धर्म नहीं और | 

कोटि अश्वमेघ यज्ञ, सकल समाना भौर ||

सन्त रामपाल जी महाराज हैं पूर्ण तत्वदर्शी सन्त

वर्तमान में पूरे विश्व में सन्त रामपाल जी महाराज पूर्ण तत्वदर्शी सन्त हैं। वेदों व शास्त्रों में दी गई तत्वदर्शी सन्त की पहचान केवल सन्त रामपाल जी महाराज पर खरी उतरती है। सन्त रामपाल जी न केवल शास्त्रानुकूल साधना बताते हैं बल्कि अन्य भौतिक लाभ भी अनुयायियों को देते हैं जिनमें आर्थिक लाभ, स्वास्थ्य लाभ आदि सम्मिलित हैं। क्योंकि भक्ति व्यक्ति तभी कर सकता है जब उसकी काया निरोगी हो एवं उसका उदर पुष्ट हो। पूर्ण परमेश्वर की भक्ति से सभी देवी देवता एवं ब्रह्मांड की महत्वपूर्ण शक्तियां न केवल साधक के पक्ष में होती हैं बल्कि साधक पूर्ण मोक्ष की ओर भी अग्रसर होता है।

अर्थात इस लोक में सुख और पूर्ण मोक्ष के पश्चात सतलोक में महासुख जीवात्मा अनुभव करती है। क्योंकि सतलोक ही केवल ऐसा स्थान है, जहां जाने के बाद जीव आत्मा जन्म और मृत्यु के चक्र से हमेशा के लिए मुक्त हो जाती है। सतलोक ही हम सभी जीव आत्माओं का निज स्थान है और कबीर साहेब जी हम सभी के पिता हैं।

रामपाल जी महाराज की शरण में आकर कल्याण कराएं

वर्तमान में संत रामपाल जी महाराज ही एकमात्र ऐसे संत हैं, जो शास्त्रानुकूल साधना बता रहे हैं। उनकी बताई गई साधना करने से उनके शिष्यों को अद्भुत लाभ प्राप्त हो रहे हैं। एक ओर जहाँ एड्स, कैंसर जैसी बीमारियों के आगे साइंस भी अपने हाथ खड़े कर देती है, वहीं संत रामपाल के शिष्य मात्र उनकी बताई गई साधना करने से स्वस्थ हो जाते हैं। यथाशीघ्र सन्त रामपाल जी महाराज का ज्ञान समझें एवं उनकी शरण में आकर नाम दीक्षा लेकर सतभक्ति करके अपना कल्याण करवाएं। अधिक जानकारी के लिए देखें सतलोक आश्रम यूट्यूब चैनल।

कबीर ज्ञानी हो तो हृदय लगाई, 

मूर्ख हो तो गम न पाई ||

वर्ष 2025 में तुलसी विवाह कब है?

तुलसी विवाह 2025, इस माह 2 नवंबर (देवउठनी एकादशी) को है।

गीता जी के कौन से अध्याय में तत्वदर्शी संत की शरण में जाने को कहा गया है?

गीता जी के अध्याय 4 के श्लोक 34 में तत्वदर्शी संत की शरण में जाने और दण्डवत प्रणाम कर ज्ञान प्राप्त करने का निर्देश दिया गया है।

गीता जी के अध्याय में सांकेतिक मंत्र बताए गए हैं?

गीता जी के अध्याय 17 के श्लोक 23 में तीन सांकेतिक मंत्र (ॐ तत् सत्) बताए गए हैं। इन मंत्रों को केवल तत्वदर्शी संत ही बता सकता है। 

हमारे सभी पवित्र शास्त्रों के अनुसार पूर्ण परमेश्वर कौन है?

हमारे सभी पवित्र शास्त्रों के अनुसार पूर्ण परमेश्वर कबीर साहेब जी हैं?

निम्नलिखित सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म पर हमारे साथ जुड़िए

WhatsApp ChannelFollow
Telegram Follow
YoutubeSubscribe
Google NewsFollow

Latest articles

संकट में किसानों के मसीहा बने संत रामपाल जी महाराज – 9 नवंबर को गुराना में दिया जाएगा “किसान रक्षक सम्मान” 

हरियाणा के हिसार जिले के बरवाला क्षेत्र गाँव गुराना में 9 नवंबर 2025 का...

512वाँ दिव्य धर्म यज्ञ दिवस समागम: भक्ति, सेवा और पूर्ण श्रद्धा का अद्भुत संगम

512वां दिव्य धर्म यज्ञ दिवस समागम सिर्फ एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं था — यह...
spot_img

More like this

संकट में किसानों के मसीहा बने संत रामपाल जी महाराज – 9 नवंबर को गुराना में दिया जाएगा “किसान रक्षक सम्मान” 

हरियाणा के हिसार जिले के बरवाला क्षेत्र गाँव गुराना में 9 नवंबर 2025 का...

512वाँ दिव्य धर्म यज्ञ दिवस समागम: भक्ति, सेवा और पूर्ण श्रद्धा का अद्भुत संगम

512वां दिव्य धर्म यज्ञ दिवस समागम सिर्फ एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं था — यह...