Last Updated on 20 September 2024 IST | Shradh in Hindi | Shradh in Hindi | श्राद्ध 2024 (पितृ पक्ष) | हिन्दू समाज में कई तरह की धार्मिक क्रियाएं व कर्मकांड प्रचलित हैं जिनमें से श्राद्ध आवश्यक रूप से किया जाने वाला कर्मकांड है। हिन्दू महीने भाद्रपद की शुक्ल पक्ष पूर्णिमा को श्राद्ध पूर्णिमा भी कहा जाता है। इसी दिन से पितृ पक्ष का प्रारंभ होता है। जिसमें हिंदू धर्मावलंबियों द्वारा अपने पितरों का श्राद्ध किया जाता है। इस साल श्राद्ध 17 सितंबर 2024 से लेकर 2 अक्टूबर 2024 तक मनाया जाएगा। आज लगभग हर हिन्दू परिवार में श्राद्ध किया जाता है। लेकिन फिर भी हिन्दू समाज को उनके पितरों द्वारा सम्पन्न नहीं किया जा रहा है। यही नहीं आज काफी परिवार श्राद्ध निकालने के बाद भी पितृदोष से परेशान हैं। तो श्राद्ध निकालने के बाद भी पितृदोष होने का कारण क्या है? श्राद्ध की या पितृ तर्पण की सर्वोत्तम विधि जानें।
पुराण के अनुसार श्राद्ध (Shradh (Pitru Paksha) in Hindi)
Pitru Paksha 2024: हिन्दू धर्म के मार्कण्डेय पुराण (गीता प्रेस गोरखपुर से प्रकाशित पेज 237 पर है, जिसमें मार्कण्डेय पुराण तथा ब्रह्म पुराणांक एक साथ जिल्द किया है) में भी श्राद्ध के विषय मे एक कथा का वर्णन मिलता है जिसमे एक रुची नाम का ब्रह्मचारी साधक वेदों के अनुसार साधना कर रहा था। वह जब 40 वर्ष का हुआ तब उसे अपने चार पूर्वज जो मनमाना आचरण व शास्त्र विरुद्ध साधना करके पितर बने हुए थे तथा कष्ट भोग रहे थे, वे दिखाई दिए। पितरों ने उससे श्राद्ध की इच्छा जताई।
इस पर रूची ऋषि बोले कि वेद में क्रिया या कर्म काण्ड मार्ग (श्राद्ध, पिण्ड भरवाना आदि) को मूर्खों की साधना कहा है। फिर आप मुझे क्यों उस गलत (शास्त्रविधि रहित) रास्ते पर लगा रहे हो। इस पर पितरों ने कहा कि बेटा आपकी बात सत्य है कि वेदों में पितर पूजा, भूत पूजा के साथ साथ देवी देवताओं की पूजा को भी अविद्या की संज्ञा दी है। फिर भी पितरों ने रूचि ऋषि को विवश किया एवं विवाह करने के उपरांत श्राद्ध के लिए प्रेरित करके उसकी भक्ति का सर्वनाश किया।
■ Read in English: Shradh (Pitru Paksha) date: Shradh Karma Is Against Our Holy Scriptures!
श्राद्ध 2024 (पितृ पक्ष): स्पष्ट है कि पितर खुद कह रहे हैं कि पितृपूजा वेदों के विरुद्ध है पर फिर लाभ की अटकलें खुद के मतानुसार लगा रहे हैं जिनका पालन नहीं किया जा सकता। क्योंकि ये आदेश वेदों में नहीं है, पुराणों में आदेश किसी ऋषि विशेष का है जो कि खुद के विचारों के अनुसार पितर पूजने, भूत या अन्य देव पूजने को कह रहा है। इसलिए किसी संत या ऋषि के कहने से वेदों की आज्ञा का उल्लंघन करने से हम सजा के भागी होंगे और वैसा करने पर हमें न कभी लाभ होगा न मोक्ष होगा। क्योंकि गीता अध्यय 16 के श्लोक 23 और 24 में प्रमाण है कि शास्त्रविधि त्यागकर मनमाना आचरण करने वाले न सुख प्राप्त करते हैं ना ही उनकी कोई गति होती है। कबीर साहेब जी ने अपने प्रिय शिष्य धर्मदास जी को जिंदा महात्मा के रूप में मिलकर तत्वज्ञान समझाया और तब यह कथा भी सुनाई थी।
विचार करो धर्मनी नागर , पीतर कहें वेद है सत्य ज्ञान सागर ||
वेद विरुद्ध आप भक्ति कराई , तातें पितर जूनी पाई ||
रूची विवाह करवाकर श्राद्ध करवाया , करा करवाया सबै नाशाया ||
यह सब काल जाल है भाई , बिन सतगुरू कोई बच है नाहीं ||
या तो बेद पुराण कहो है झूठे , या पुनि तुमरे गुरू हैं पूठे ||
शास्त्र विरुद्ध जो ज्ञान बतावै , आपन बूडै शिष डूबावै ||
डूब मरै वो ले चुलु भर पाणी , जिन्ह जाना नहीं सारंगपाणी ||
दोहा :- सारंग कहें धनुष, पाणी है हाथा , सार शब्द सारंग है और सब झूठी बाता ||
सारंगपाणी काशी आया , अपना नाम कबीर बताया ||
हम तो उनके चेले आही , गरू क्या होगा समझो भाई ||
Shradh in Hindi | श्रीमद्भागवत गीता के अनुसार श्राद्ध
गीता भी हमें श्राद्ध के विषय मे निर्णायक ज्ञान देती है। गीता के अध्याय 9 के श्लोक 25 में कहा है कि देवताओं को पूजने वाले देवताओं को प्राप्त होते हैं, पितरों को पूजने वाले पितरों को प्राप्त होते हैं, भूतों को पूजने (पिण्ड दान करने) वाले भूतों को प्राप्त होते हैं अर्थात् भूत बन जाते हैं, शास्त्रानुकूल (पवित्र वेदों व गीता अनुसार) पूजा करने वाले मुझको ही प्राप्त होते हैं अर्थात् ब्रह्मलोक के स्वर्ग व महास्वर्ग आदि में कुछ ज्यादा समय मौज कर लेते हैं और पुण्यरूपी कमाई खत्म होने पर फिर से 84 लाख योनियों में प्रवेश कर जाते हैं।
Shradh in Hindi | गीता के इस निर्णायक ज्ञान से हमें पता चलता है कि क्यों आज देश के काफी परिवार प्रेतबाधा या पितृबाधा से परेशान हैं। अज्ञानी गुरुओं व स्वार्थी पंडितों के कारण समस्त हिन्दू समाज पितर पूजा यानी भूत पूजा में लग गया जिसके कारण समाज के लोग मौत के बाद पितर बनने लगे। फिर पितर योनि के दुख के कारण वापस उनके ही वंशजों को आकर परेशान करने लगे। वास्तव में यही ज्ञान पूर्णब्रह्म कबीर साहेब जी ने धर्मदास जी को दिया था जब वे उन्हें जिंदा महात्मा के रूप में मिले थे।
हे वैष्णव तुम पिण्ड भरो और श्राद्ध कराओ , गीता पाठ सदा चित लाओ ||
भूत पूजो बनोगे भूता , पितर पूजै पितर हुता ||
देव पूज देव लोक जाओ , मम पूजा से मोकूं पाओ ||
यह गीता में काल बतावै , जाकूं तुम आपन इष्ट बतावै || (गीता अ. 9/25)
इष्ट कह कर नहीं जैसे ,सेठ जी मुक्ति पाओ कैसे |
Shradh (Pitru Paksha) in Hindi | आत्ममंथन
श्राद्ध 2024 (पितृ पक्ष): विचार करें! मानव का शरीर 5 तत्वों का है और पितरों का भिन्न संख्या के तत्वों का है। क्या केवल 1 दिन भोजन देने पर पितर तृप्त हो सकते हैं? कभी नहीं। जब वे जीवित थे तो कम से कम दो बार अवश्य भोजन करते थे तो क्या वर्ष में एक दिन भोजन करने से वे तृप्त हो सकते हैं? कदापि नहीं। यह एक नकली कर्मकांड है जिसे नकली धर्मगुरुओं और ब्राह्मणों ने प्रारम्भ करवाया था। व्यक्ति जीवित रहते जैसे कर्म करता है उस आधार पर वह स्वर्ग नरक चौरासी लाख योनियों अथवा भूत, प्रेत या पितर बनने के पश्चात अपना कर्म फल भोगता हैं। हमारे श्राद्ध निकालने से हमारे कर्म खराब होते हैं क्योंकि ये वेद विरुद्ध साधनाएँ हैं जिन्हें वेदों एवं गीता में स्पष्ट रूप से वर्जित किया है और शास्त्र विरुद्ध कर्म करने वाले पाप के भागी होते हैं।
Shradh in Hindi: क्या श्राद्ध के दौरान बाल कटवाना ठीक है?
वैसे तो श्राद्ध निकालना ही शास्त्र विरुद्ध मनमाना आचरण है जोकि गीता अनुसार व्यर्थ है। रही बात बाल कटवाने की, तो आप अपने बाल कभी भी कटवा सकते हैं।
श्राद्ध के दौरान क्या नहीं करना चाहिए?
वेदों में तथा वेदों के ही संक्षिप्त रूप गीता में श्राद्ध-पिण्डोदक आदि भूत व पितृ पूजा के कर्म को निषेध बताया गया है यानि इन मनमानी क्रियाओं को इस दौरान नहीं करना चाहिए, क्योंकि इन क्रियाओं के कारण हम भी भूत व पितृ बन जाते हैं और फिर दुःख उठाते हैं।
श्राद्ध को लेकर क्या मिथक है?
पितृ पक्ष में किये जाने वाले श्राद्ध, पिंडदान और तर्पण को लेकर मिथक है कि इन कर्मकांडों के करने से मृत व्यक्ति की आत्मा को शांति मिलती है और उसकी अन्य योनियों छूट जाती है जिससे उसे मानव देह मिलती है।
श्राद्ध के बारे में गीता क्या कहती है?
पवित्र गीता जी के अध्याय 9 श्लोक 25 में लिखा है कि भूत पूजने वाले भूत बनेंगे, पितरों को पूजने वाले पितरों को प्राप्त होंगे। इससे सिद्ध है कि भूत पूजा, पितर पूजा, श्राद्ध, पिंडदान यह सभी शास्त्रविरुद्ध मनमाना आचरण है। जिससे गीता अध्याय 16 श्लोक 23 के अनुसार, न सुख होगा, न कार्य सिद्धि होगी, न गति मिलेगी और न ही पूर्वजों को गति होगी।
क्या वेद श्राद्ध का निषेध करते हैं?
मार्कण्डेय पुराण में ‘‘रौच्य ऋषि के जन्म’’ की कथा में रुची नामक ऋषि को उसके पिता, दादा, परदादा तथा तीसरे दादा सब पित्तर भूत योनि में भूखे-प्यासे भटकते दिखाई दिये। एक दिन उन चारों ने रुची ऋषि को दर्शन दिए तथा कहा कि आप ने विवाह क्यों नहीं किया। विवाह करके हमारे श्राद्ध करना। रुची ऋषि ने कहा कि हे पितामहो! वेद में इस श्राद्ध आदि कर्म को अविद्या अर्थात मूर्खों का कार्य कहा है। अर्थात श्राद्ध निकालना वेद विरुद्ध कार्य है।
श्राद्ध और पिंडदान में क्या अंतर है?
लोक वेद यानि दंत कथाओं के अनुसार, पितरों के लिए श्रद्धा से किए गए मुक्ति कर्म श्राद्ध हैं, जबकि पिंडदान को मोक्ष प्राप्ति के लिए सहज और सरल मार्ग माना जाता है। परंतु दोनों सद्ग्रंथों के विपरीत मनमाना आचरण हैं।
सम्मान जीवित माता-पिता, गुरु का करें, मृतकों का नहीं
Shradh (Pitru Paksha) in Hindi | जब हिन्दू समाज में किसी की मौत होती है तो पंडितजन बताते हैं कि मृतक की अस्थियों को गंगा में डालने से मोक्ष होगा, फिर कहते हैं कि छमाही, बरसोदि से मोक्ष होगा। इतना करने के बाद जब श्राद्ध आते हैं तो पंडित बताते हैं कि तुम्हारा मरा हुआ बाप तो कौआ बन गया अब उसे श्राद्ध में खाना खिलाओ। ऐसा करने से वह तृप्त हो जाएगा। यदि हमारे माता पिता को कौआ ही बनना था तो हमसे मृत्योपरांत विभिन्न कर्मकांड क्यों करवाए गए? यह स्पष्ट रूप से ढोंग है।
आज सभी पढ़े लिखे हैं सब यह समझ सकते हैं कि आदमी को तृप्त सिर्फ एक दिन खाना खिलाने से नहीं किया जा सकता। संत रामपाल जी महाराज जी बताते हैं कि-
जीवित बाप से लट्ठम-लठ्ठा, मूवे गंग पहुँचईयाँ |
जब आवै आसौज का महीना, कऊवा बाप बणईयाँ ||
अर्थात जब तक कई इन अंध भक्ति करने वालों के माता पिता जीवित होते हैं तब तक वे अपने माता पिता को प्यार और सम्मान भी नहीं दे पाते। मृत्यु के बाद श्रद्धा दिखाते हैं। इसी पाखण्ड पूजा के बारे में गीता अध्याय 16 श्लोक 23-24 में मना किया है कि जो शास्त्र विधि त्याग कर मनमाना आचरण (पूजा) करते हैं वे न तो सुख को प्राप्त करते हैं न परमगति को तथा न ही कोई कार्य सिद्ध करने वाली सिद्धि को ही प्राप्त करते हैं अर्थात् जीवन व्यर्थ कर जाते हैं। इसलिए हे अर्जुन तेरे लिए कर्तव्य (जो साधना के कर्म करने योग्य हैं) तथा अकर्तव्य (जो साधना के कर्म नहीं करने योग्य हैं) की अवस्था में शास्त्र ही प्रमाण है।
गीता के ही अध्याय 4 के 34 श्लोक में बताया है कि तत्वदर्शी संतों की खोज करो, और कपट छोड़कर उन्हें दंडवत प्रणाम करने से वे भक्त को तत्वज्ञान का उपदेश करेंगे। आज वह संत रामपाल जी महाराज हैं जिनके बताये हुए सतमार्ग से ही हमारे पितरों की भी पितर योनि छूटेगी व सर्व साधकों को मोक्ष का मार्ग मिलेगा।
Shradh in Hindi | श्राद्ध 2024 पर ऐसे करें अपने पूर्वजों का उद्धार
सत्य साधना करने वाले साधक की 101 पीढ़ी पार होती हैं।
कबीर भक्ति बीज जो होये हंसा, तारूं तास के एक्कोतर बंशा |
सत्य साधना केवल तत्वदर्शी सन्त दे सकता है जिसकी शरण में जाने के लिए गीता अध्याय 4 श्लोक 34 में कहा गया है। वर्तमान में पूर्ण तत्वदर्शी सन्त हैं, सन्त रामपाल जी महाराज। तत्वदर्शी सन्त ही गीता अध्याय 17 में वर्णित श्लोक 23 के गुप्त मन्त्रों का उद्घाटन करता है।
पूर्ण तत्वदर्शी सन्त की शरण में भक्ति करने से न केवल स्वास्थ्य लाभ, आर्थिक लाभ एवं आध्यात्मिक लाभ प्राप्त होते हैं बल्कि भूत प्रेतों एवं पितर दोष आदि से मुक्ति मिलती है। भक्ति करने वाले साधक के सर्व पापों का नाश परमात्मा करते हैं एवं उसकी 101 पीढ़ी का उद्धार करते हैं यह पितर तर्पण की सर्वोत्तम विधि है। अधिक जानकारी के लिए अवश्य देखें सतलोक आश्रम यूट्यूब चैनल। साथ ही निशुल्क ऑर्डर करें पुस्तक जीने की राह।
कुल परिवार तेरा कुटम्ब-कबीला, मसलित एक ठहराई |
बांध पीजरी (अर्थी) ऊपर घर लिया, मरघट में ले जाई |
अग्नि लगा दिया जब लम्बा, फूंक दिया उस ठांही |
पुराण उठा फिर पंडित आए पीछे गरूड़ पढ़ाई |
प्रेत शिला पर जा विराजे, पितरों पिण्ड भराई |
बहुर श्राद्ध खाने कूं आए, काग भए कलि माहीं |
जै सतगुरु की संगति करते, सकल कर्म कटि जाई |
अमरपुरी पर आसन होता, जहाँ धूप न छांई |
Shradh (Pitru Paksha) in Hindi | FAQs श्राद्ध (पितृ पक्ष)
उ– 17 सितंबर 2024 से 2 अक्टूबर 2024.
उ– हिंदू कैलेंडर के अनुसार, श्राद्ध 16 दिनों की वह अवधि है जो भाद्रपद के महीने में शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा से शुरू होकर कृष्ण पक्ष की अमावस्या को समाप्त होता है।
उ– पवित्र श्रीमद्भागवत गीता और पवित्र वेदों के अनुसार किसी को भी (पुरुष या महिला) श्राद्ध कर्म नहीं करना चाहिए क्योंकि यह एक मनमानी क्रिया है जो भगवान के संविधान के विरुद्ध है।
उ– नहीं। इसे पवित्र वेदों और श्रीमद्भागवत गीता अध्याय 9 श्लोक 25 में व्यर्थ साधना कहा गया है। इसलिए, इसे किसी के भी द्वारा नहीं किया जाना चाहिए।