August 2, 2025

Sawan Shivratri 2025: सावन शिवरात्रि पर जानिए शिवजी से लाभ प्राप्त करने की उत्तम विधि

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Last Updated on 24 July 2025 IST: हिन्दु पञ्चाङ्ग में अनुसार कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मासिक शिवरात्रि होती है। भगवान शिव के भक्त प्रत्येक मासिक शिवरात्रि को श्रद्धापूर्वक व्रत रखते हैं और शिवलिंग की पूजा-अर्चना करते हैं। शिव भक्त सावन (श्रावण) शिवरात्रि को विशिष्ट मानते हैं। इस वर्ष सावन शिवरात्रि (Sawan Shivratri 2025) 23 जुलाई 2025 को मनाई जा रही है।

Table of Contents

  • इस वर्ष सावन शिवरात्रि 23 जुलाई 2025 को मनाई जा रही है।
  • हिन्दु पञ्चाङ्ग में अनुसार कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मासिक शिवरात्रि होती है
  • श्रावण मास में आने वाली शिवरात्रि को श्रावण (सावन) शिवरात्रि के नाम से जाना जाता हैं
  • भगवान शिव की पूजा-व्रत से सभी कष्टों से मुक्ति चाहते हैं साधक  
  • श्रीमद्भगवद्गीता के अनुसार व्रत रखना शास्त्रविरुद्ध साधना हैं
  • शिवलिंग पूजा शास्त्र-आधारित नहीं बल्कि काल जाल में उलझाए रखने के लिए है 
  • जगतगुरु रामपाल जी महाराज एकमात्र पूर्ण संत हैं जो ‘ओम-तत्-सत्’ सांकेतिक मंत्र प्रदान करते हैं
  • कविर्देव के अवतार तत्त्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज से दीक्षा लेने के बाद इस मंत्र का जाप करना चाहिए

श्रावण शिवरात्रि का विशेष महत्व (Sawan Shivratri Importance) माना गया है। सावन शिवरात्रि पर भगवान शिव की पूजा विधि पूर्वक करके श्रद्धालु अपनी मनोकामनाएं पूर्ण करवाने की चाह रखते हैं। वे यह भी मानते हैं कि इस पूजा व्रत से उनको सभी कष्टों से मुक्ति मिल जाएगी।  आगे जानेंगे क्या है इन सबकी वास्तविकता?

पंचांग भिन्नता के कारण दक्षिण भारत में सावन का प्रारंभ अलग तिथि पर होता है (अमांत पंचांग अनुसार)।

कुछ समुदायों में शिवरात्रि की पूजा दोपहर या संध्या में भी होती है।

व्रत की कठोरता (निर्जल, फलाहार या सामान्य) भी स्थानीय परंपराओं पर निर्भर करती है।

हिन्दू पंचांग के अनुसार सावन माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि बुधवार, 23 जुलाई 2025 को सुबह 4:39 बजे पर शुरू होगी और इसके अगले दिन यानी 24 जुलाई, दोपहर 2:28 बजे समाप्त होगी। ऐसे में सावन शिवरात्रि का पर्व 23 जुलाई को मनाया जा रहा है। जब पाठकगण जानेंगे कि शिवजी की जन्म मृत्यु होती है और वे अन्य जीवों की तरह क्षणभंगुर है तब उनके लिए मुहूर्त का कोई महत्व नहीं रह जाएगा।

सावन शिवरात्रि (Sawan Shivratri) व्रत (Fast)

मान्यता है कि शिवरात्रि (Sawan Shivratri 2025) के पहले त्रयोदशी तिथि को भक्तों को केवल एक समय ही भोजन करना चाहिए। शिवरात्रि को प्रातः स्नान करने के उपरांत श्रद्धालुओं को व्रत करना चाहिए।

क्या व्रत उपवास करना शास्त्र सम्मत है?

शिवरात्रि पर और श्रावण मास में प्रत्येक सोमवार को शिवजी का व्रत रखा जााता है। श्रीमद्भगवद्गीता के  अध्याय  6 श्लोक 16 में गीता ज्ञान दाता ने अर्जुन से कहा है कि परमात्मा से मिलने का योग न तो बहुत अधिक खाने वालों का सिद्ध होता है और न ही बिल्कुल न खाने वालों का सिद्ध होता है। अतएव स्पष्ट है कि व्रत रखकर साधक शास्त्रविरुद्ध साधना करते हैं।

न, अति, अश्नतः, तु, योगः, अस्ति, न, च, एकान्तम्, अनश्नतः,

न, च, अति, स्वप्नशीलस्य, जाग्रतः, न, एव, च, अर्जुन।।

ब्रह्म-काल और दुर्गा के तीन पुत्र हैं जिनका नाम भगवान ब्रह्मा, भगवान विष्णु और भगवान शिव हैं। उनकी भूमिका प्रत्येक विभाग के मंत्री के रूप में तीनों लोकों के सृजन, संरक्षण और विनाश तक सीमित है। क्षर पुरुष के एक ब्रह्मांड में एक स्वर्गलोक, पृथ्वीलोक और पाताललोक है के ये तीनों देवता विभागीय मंत्री है।

पाठकों को यह जानना चाहिए कि ज्योति निरंजन (ब्रह्म-काल) केवल इक्कीस (21) ब्रह्मांडों का स्वामी (भगवान) है। उन्हें क्षर पुरुष और धर्मराय के नाम से भी जाना जाता है। ब्रह्म ने अपने लोक में ‘ब्रह्मलोक’ नामक स्थान बनाया हुआ है। उसमें इसने तीन गुप्त स्थान बनाए हैं। रजोगुण-वर्चस्व वाले स्थान में, यह क्षर पुरुष ब्रह्मा-रूप में रहता है, महाब्रह्मा कहलाता है। इसी प्रकार सतोगुण में – वह स्थान जहां वह विष्णु-रूप में निवास करता है, महाविष्णु कहलाता है और तमोगुण में – शिव-रूप में वह जिस स्थान पर निवास करता है, उसे महाशिव / सदाशिव कहा जाता है। ये ब्रह्म ही वास्तव में दुर्गा / माया / प्रकृतिदेवी का पति हैं।

ब्रह्मा का एक दिन एक हजार चतुर्युग का है तथा इतनी ही रात्रि है। एक चतुर्युग में 43,20,000 मनुष्यों वाले वर्ष होते हैं। एक महीना तीस दिन रात का है, एक वर्ष बारह महीनों का है तथा सौ वर्ष की ब्रह्मा जी की आयु है। अतः भगवान ब्रह्मा की आयु 72000000 (सात करोड़ बीस लाख) चतुर्युग है। भगवान विष्णु की आयु भगवान ब्रह्मा से सात गुना है और भगवान शिव की आयु भगवान विष्णु की सात गुना है।

 Also Read: Brahma Vishnu Mahesh Age [Hindi]: ब्रह्मा विष्णु महेश की उम्र कितनी है?

 ऐसे 70000 (सतर हजार) त्रिलोकिय शिव की मृत्यु के उपरान्त एक ब्रह्मलोकिय महा शिव (सदाशिव अर्थात् काल) की मृत्यु होती है। एक ब्रह्मलोकिय महाशिव की आयु जितना एक युग परब्रह्म (अक्षर पुरूष) का हुआ। ऐसे एक हजार युग अर्थात् एक हजार ब्रह्मलोकिय शिव (ब्रह्मलोक में स्वयं काल ही महाशिव रूप में रहता है) की मृत्यु के बाद काल के इक्कीस ब्रह्मण्डों का विनाश हो जाता है। यहाँ पर परब्रह्म के एक दिन में एक हजार युग होते है तथा इतनी ही रात्रि होती है। 

त्रिदेव जन्म और पुनर्जन्म के चक्र में हैं जैसे सदाशिव (ब्रह्म-काल) और देवी दुर्गा है (गीता अध्याय 4 श्लोक 5 से 9), इसलिए यह गलत धारणा है कि भगवान शिव अमर हैं। भगवान शिव तमोगुण से सुसज्जित हैं, वे प्राणियों का संहार करने का कार्य करते हैं और इस प्रकार अपने पिता सदाशिव / ब्रह्म – काल के लिए भोजन तैयार करते हैं। अपना कार्यकाल पूरा करने के बाद ये त्रिलोकी भगवान ब्रह्मा, भगवान विष्णु और भगवान शिव भी मर जाते हैं। सभी मनुष्यों की तरह ये भगवान भी कर्मों में बंधते हैं प्रमाण -: गीता अध्याय 7 श्लोक 12 से 15 और श्री मद्देवीभगवत महापुराण तीसरा स्कंध अध्याय 4-5).

एक वृतांत के अनुसार भगवान ब्रह्मा और भगवान विष्णु वर्चस्व की लड़ाई लड़ रहे थे। उनकी गलतफहमी को दूर करने के लिए निराकार भगवान सदाशिव / ब्रह्म-काल ने अपना स्तंभ रूप दिखाया। संपूर्ण ब्रह्मांड को भटकाने के लिए, सदाशिव ने अपने लिंग के रूप में स्तंभ का निर्माण किया। उस दिन से शिवलिंग (सदाशिव काल) की पूजा की जाती है। ज्योति निरंजन काल ब्रह्म (शैतान) ने जानबूझकर पूजा करने का गलत तरीका बताया ताकि कोई भी सही तरीके से पूजा नहीं करे।

Sawan Shivratri 2025 (सावन शिवरात्रि) शिवलिंग के चारों ओर एक योनि का आकार होता है, जिसमें ऐसा प्रतीत होता है जैसे लिंग को योनि में डाला गया है। सदाशिव अर्थात काल ब्रह्म ने भक्त समुदाय को अपने लिंग की मूर्ति की पूजा करने के लिए गुमराह किया ताकि लोग शास्त्र-आधारित पूजा से रहित रहें और काल जाल में उलझे रहें।

अनेक साधक अज्ञानवश ओम नमः शिवाय का जाप करते हैं जिसका अर्थ है’ ‘मैं भगवान शिव को नमन करता हूं’। श्रीमद्भगवद् गीता, अध्याय 16, श्लोक 23 में लिखा है कि जो पवित्र शास्त्र के अनुसार पूजा नहीं करते वे मूर्ख हैं। वे कभी भी उस उपासना से कोई यथार्थ लाभ प्राप्त नहीं कर सकते हैं। सदाशिव (ब्रह्म-काल) का प्रमाणिक मंत्र ‘ओम’ है जैसा कि शिव पुराण के साथ साथ श्रीमद्भगवद् गीता अध्याय 8 श्लोक 13, यजुर्वेद अध्याय 40 श्लोक 15, श्रीमद्देवीभागवत महापुराण सातवें स्कंध में देवी जी द्वारा राजा हिमालय को ज्ञानोपदेश नाम के अध्याय में भी वर्णित है। 

वर्तमान में, जगतगुरु रामपाल जी महाराज दुनिया में एकमात्र  पूर्ण संत हैं जो श्रीमद्भगवद् गीता अध्याय 17 श्लोक 23 के अनुसार सांकेतिक मोक्ष मंत्र ‘ओम-तत्-सत्’ प्रदान करते हैं। पूर्ण परमेश्वर कविर्देव के अवतार तत्त्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज से दीक्षा लेने के बाद इस मंत्र का जाप करना चाहिए।पाठकों को यह जानना चाहिए कि केवल सर्वशक्तिमान कविर्देव ही ब्रह्म-काल के जाल से फंसी हुई आत्माओं को मुक्त कर सकते हैं, इसलिए उन्हें ‘पापों को नष्ट करने वाला’ और ‘पवित्र यजुर्वेद अध्याय 5 श्लोक 32’ में आत्मा को क्षमा करने वाला ‘बंदीछोड़’ कहा जाता है। सर्वशक्तिमान कविर्देव ने अपने भक्तों को सुनिश्चित किया है कि

‘अमर करूं सतलोक पठाऊं, ताते बंदीछोड़ कहाऊं ||’

परम संत रामपाल जी महाराज द्वारा रचित पवित्र पुस्तक “अंध श्रद्धा भक्ति खतरा-ए-जान”  में अंध श्रद्धा का अर्थ है बिना विचार-विवेक के किसी भी प्रभु में आस्था करके उसे प्राप्ति की तड़फ में पूजा में लीन हो जाना। फिर अपनी साधना से हटकर शास्त्र प्रमाणित भक्ति को भी स्वीकार न करना। दूसरे शब्दों में प्रभु भक्ति में अंधविश्वास को ही आधार मानना। जो ज्ञान शास्त्रों के अनुसार नहीं होता, उसको सुन-सुनाकर उसी के आधार से साधना करते रहना। वह साधना जो शास्त्रों के विपरीत है, बहुत हानिकारक है। उससे अनमोल मानव जीवन नष्ट हो जाता है।

पवित्र श्रीमद्भगवत गीता अध्याय 16 श्लोक 23 में बताया है कि “जो साधक शास्त्रविधि को त्यागकर अपनी इच्छा से मनमाना आचरण करता है यानि किसी को देखकर या किसी के कहने से भक्ति साधना करता है तो उसको न तो कोई सुख प्राप्त होता है, न कोई सिद्धि यानि भक्ति की शक्ति प्राप्त होती है, न उसकी गति होती है।“

गीता अध्याय 16 श्लोक 24 में स्पष्ट किया है कि ‘‘इससे तेरे लिए अर्जुन! कर्तव्य यानि जो भक्ति क्रियाऐं करनी चाहिए तथा अकर्तव्य यानि जो भक्ति क्रियाऐं नहीं करनी चाहिए, की व्यवस्था में शास्त्रों में वर्णित भक्ति क्रियाऐं ही प्रमाण है यानि शास्त्रों में बताई साधना कर। जो शास्त्र विपरीत साधना कर रहे हो, उसे तुरंत त्याग दो।’’

साधकों को शिवलिंग पूजा, शिवरात्रि व्रत पूजा इत्यादि में समय बर्बाद नहीं करके संत रामपाल जी महाराज की शरण में आकर सतज्ञान अर्जित करके सर्व सुख और पूर्ण मोक्ष प्राप्त करना चाहिए। अधिक जानकारी के लिए सतलोक आश्रम यूट्यूब चैनल पर जाकर सत्संग सुनना चाहिए। परम संत रामपाल जी से नाम दीक्षा लेकर अपना कल्याण कराना चाहिए

तीन देव की जो करते भक्ति उनकी कदे न होवे मुक्ति

तीन देव की भक्ति में, ये भूल पड़ो संसार |
कहें कबीर निज नाम बिना, कैसे उतरो पार |

अक्षर पुरुष एक पेड़ है, निरजंन वाकी डार |
तीनो देवा शाखा हैं, पात रूप संसार |

तज पाखण्ड सतनाम लौ लावै, सोई भव सागर से तरियां | कहें कबीर मिले गुरु पूरा, स्यों परिवार उधरियाँ |

सावन शिवरात्रि का महत्व क्या है?

सावन शिवरात्रि का महत्व भगवान शिव की पूजा और उपासना में निहित है। इसे सावन माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को मनाया जाता है। श्रद्धालु इस दिन भगवान शिव की विधिवत पूजा करके अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति की कामना करते हैं और मानते हैं कि इससे उन्हें सभी कष्टों से मुक्ति मिलती है। जबकि ये पूर्ण रूप से व्यर्थ है।

भगवान शिव के पिता कौन हैं?

भगवान शिव के पिता ब्रह्म-काल हैं और माता दुर्गा हैं। ब्रह्म-काल और दुर्गा के तीन पुत्र हैं – ब्रह्मा, विष्णु, और शिव। ये तीनों देवता सृजन, संरक्षण और विनाश के कार्य में विभागीय मंत्री हैं।

शिवलिंग की पूजा कैसे शुरू हुई?

एक वृतांत के अनुसार, भगवान ब्रह्मा और विष्णु के बीच वर्चस्व की लड़ाई को समाप्त करने के लिए निराकार भगवान सदाशिव / ब्रह्म-काल ने अपना स्तंभ रूप दिखाया। उसी दिन से शिवलिंग की पूजा शुरू हुई।

सर्वोच्च मंत्र क्या है और किससे प्राप्त करें?

श्रीमद्भगवद्गीता के अनुसार, सर्वोच्च मंत्र ‘ओम-तत्-सत्’ है। इसे जगतगुरु रामपाल जी महाराज जैसे तत्वदर्शी संत से प्राप्त किया जा सकता है। संत रामपाल जी महाराज वर्तमान में एकमात्र पूर्ण संत हैं जो शास्त्रों के अनुसार मोक्ष मंत्र प्रदान करते हैं।

शास्त्रविधि को त्यागकर मनमाना आचरण करने से क्या नुकसान होता है?

श्रीमद्भगवद्गीता के अनुसार, जो लोग शास्त्र विधि को त्यागकर मनमाना आचरण करते हैं, वे न तो सिद्धि प्राप्त करते हैं, न सुख और न ही मोक्ष। इस प्रकार की साधना अनुचित होती है और जीवन में केवल कष्ट लाती है।

संत रामपाल जी महाराज का शिवरात्रि पर क्या दृष्टिकोण है?

संत रामपाल जी महाराज के अनुसार शिवरात्रि की पूजा शास्त्रों के अनुसार नहीं है। उन्होंने शास्त्र प्रमाणित साधना पर जोर दिया है, जो सच्चे भक्ति मार्ग की ओर ले जाती है।

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