बीते सोमवार को जगतगुरु तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज जी के सत्संग प्रवचनों का आयोजन वृद्धाश्रम में किया गया। जहां वृद्धजनों को बताया गया कि सनातन परम धाम यानि सतलोक (सत्यलोक) वह स्थान है जहां न तो बुढ़ापे का कष्ट है और न मृत्यु का। इसलिए मानव को सतलोक की प्राप्ति के लिए शास्त्रानुकूल भक्ति करनी चाहिए जिससे वृद्धावस्था में कोई कष्ट न हो और अंततः मोक्ष प्राप्त हो सके।
वृद्धाश्रम में हुआ संत रामपाल जी महाराज का सत्संग
मध्यप्रदेश के विदिशा जिले में स्थित श्रीहरि वृद्धाश्रम में बीते सोमवार जगतगुरु तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज जी सत्य आध्यात्मिक सत्संग का आयोजन हुआ। जिसमें संत रामपाल जी महाराज ने सत्संग श्रवण कर रहे श्रद्धालुओं को मनुष्य जीवन के मूल उद्देश्य से परिचित कराया कि मानव जीवन का मूल उद्देश्य “भक्ति करके भगवान के पास जाना है अर्थात भक्ति से भगवान तक है।”
दो प्रकार से मिलता है मानव जीवन
सत्संग में संत रामपाल जी महाराज जी ने बताया कि मनुष्य का जन्म हमें दो तरह से प्राप्त होता है प्रथम तो सतभक्ति के कारण यदि हम मोक्ष प्राप्त नहीं कर पाते तो लगातार मनुष्य जन्म भी मिल जाते हैं और दूसरा चौरासी लाख योनियों का कष्ट भोगने के बाद मनुष्य जन्म प्राप्त होता है। जोकि धर्मग्रंथों के अनुसार बड़े भाग्य से प्राप्त होता है जिसे पाने के लिए देवता भी तरसते हैं। क्योंकि मनुष्य जन्म में ही हम तत्वदर्शी संत की तलाश करके उनके बताए अनुसार सतभक्ति करके जन्म मृत्यु से सदा के लिए छुटकारा पा सकते हैं अर्थात गीता अध्याय 18 श्लोक 62 के अनुसार, परम शांति और सनातन परम धाम की प्राप्ति कर सकते हैं।
सनातन परम धाम सतलोक है सुखसागर स्थान
सतगुरु रामपाल जी महाराज जी ने सत्संग प्रवचनों में बताया कि गीता अध्याय 7 श्लोक 29 में कहा गया है कि जो व्यक्ति उस तत ब्रह्म यानि परम अक्षर ब्रह्म को जानते हैं और सम्पूर्ण अध्यात्म को जानते हैं वे केवल जरा (वृद्धावस्था) और मृत्यु के कष्ट से ही छूटने का प्रयास करते हैं। क्योंकि सनातन परम धाम सतलोक ही वह स्थान है जहां वृद्धावस्था और मृत्यु नहीं होती। जहां किसी वस्तु का अभाव नहीं है। जहां सर्व सुख और परम शांति है, इसलिए संतों ने सतलोक को सुखसागर कहा है। आदरणीय संत गरीबदास जी ने सतलोक के विषय में कहा है:
ना कोई भिक्षुक दान दे, ना कोई हार व्यवहार।
ना कोई जन्मे मरे, ऐसा देश हमार।।
जहां संखों लहर मेहर की उपजैं, कहर जहां नहीं कोई।
दासगरीब अचल अविनाशी, सुख का सागर सोई।।
सतलोक में केवल एक रस परम शांति व सुख है। जब तक हम सतलोक में नहीं जाएंगे तब तक हम परमशांति, सुख व अमृत्व को प्राप्त नहीं कर सकते। सतलोक में जाना तभी संभव है जब हम पूर्ण संत से उपदेश लेकर पूर्ण परमात्मा की आजीवन भक्ति करते रहें।
शास्त्रविरुद्ध मनमाने आचरण से जीवन होता है व्यर्थ
पवित्र गीता अध्याय 16 श्लोक 23 में गीता ज्ञानदाता ने कहा है कि “शास्त्रविधि को त्यागकर मनमाना आचरण करने वाले साधक को न तो सुख प्राप्त होता है, न सिद्धि प्राप्त होती है और न परम गति प्राप्त होती है।” तथा गीता अध्याय 16 श्लोक 24 में कहा गया है कि “कौन सी भक्ति साधना करनी चाहिए और कौन सी साधना नहीं करनी चाहिए उसके लिए शास्त्र ही प्रमाण हैं। जैसे शास्त्रों में लिखा है, वैसे साधना कर।” जिससे स्पष्ट है कि यदि मनुष्य जीवन प्राप्त करके भी हम शास्त्रानुसार भक्ति न करके शास्त्रविरुद्ध मनमाना आचरण करते हैं तो हमारा जीवन व्यर्थ ही चला जाता है।
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इसलिए मनुष्य को चाहिए कि वह पूर्णसंत से उपदेश प्राप्त करके शास्त्रानुकूल भक्ति करे और अपना जीवन सफल बनाये। क्योंकि सतभक्ति से मानव को वृद्धावस्था में भी परमेश्वर की दया से सुख होता है जिससे वृद्धावस्था आसानी से कट जाती है और जो सतभक्ति नहीं करता उसके लिए वृद्धावस्था कष्ट दायक होती है। वहीं संत रामपाल जी महाराज जी के सत्य आध्यात्मिक सत्संग से प्रभावित होकर सत्संग के उपरांत कुछ वृद्धजनों ने जगतगुरु तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज जी से नाम उपदेश भी प्राप्त किया।
तत्वदर्शी संत (पूर्णगुरु) की पहचान
पवित्र गीता अध्याय 4 श्लोक 34 में गीता ज्ञान दाता ने कहा है कि “उस तत्वज्ञान को तू तत्वदर्शी ज्ञानियों के पास जाकर समझ, वे परमात्म तत्त्व को भली-भांति जानने वाले ज्ञानी महात्मा तुझे उस तत्वज्ञान का उपदेश करेंगे।” और उस तत्वदर्शी संत की पहचान भी पवित्र श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 15 श्लोक 1 में बताई गई है कि “ऊपर को मूल वाले, नीचे को शाखा वाले जिस संसार रूपी पीपल के वृक्ष को अविनाशी कहते हैं, उसके सब भागों को जो तत्त्व से जानता है, वह वेद के तात्पर्य को जानने वाला तत्वदर्शी संत यानि पूर्णगुरु है।”
आपको बता दें, वर्तमान समय में संत रामपाल जी महाराज जी ही वह तत्वदर्शी संत हैं जो सर्व धर्मग्रंथों के सार ज्ञान को जानते हैं और समाज को सत्य आध्यात्मिक ज्ञान व सतभक्ति प्रदान कर रहे हैं। उन्होंने सद्ग्रंथों के आधार पर स्पष्ट करते हुए बताया है:
मूल नाम न काहू पाये। साखा पत्र गह जग लपटाये।।
डार शाख को जो हृदय धरहीं। निश्चय जाय नरकमें परहीं।।
भूले लोग कहे हम पावा। मूल वस्तू बिन जन्म गमावा।।
जीव अभागि मूल नहिं जाने। डार शाख को पुरुष बखाने।।
कबीर, अक्षर पुरूष एक पेड़ है, क्षर पुरूष वाकि डार।
तीनों देवा शाखा हैं, पात रूप संसार।।
कबीर, हम ही अलख अल्लाह हैं, मूल रूप करतार।
अनन्त कोटि ब्रह्मण्ड का, मैं ही सिरजनहार।।
पढ़े पुराण और वेद बखाने। सतपुरुष जग भेद न जाने।।
वेद पढ़े और भेद न जाने। नाहक यह जग झगड़ा ठाने।।
वेद पुराण यह करे पुकारा। सबही से इक पुरुष नियारा।
तत्वदृष्टा को खोजो भाई, पूर्ण मोक्ष ताहि तैं पाई।
कविः नाम जो बेदन में गावा, कबीरन् कुरान कह समझावा।
वाही नाम है सबन का सारा, आदि नाम वाही कबीर हमारा।।
अतः सत्य आध्यात्मिक ज्ञान को जानने के लिए जगतगुरु तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज के सत्संग Youtube Channel Sant Rampal Ji Maharaj पर देखें या साधना टीवी चैनल पर 7:30-8:30 बजे तक अवश्य देखें या आप Sant Rampal Ji Maharaj App को प्ले स्टोर से डाऊनलोड करके भी संत रामपाल जी महाराज के सत्य आध्यात्मिक ज्ञान को जान सकते हैं और उनसे नाम उपदेश लेकर अपने मानव जीवन का कल्याण करवा सकते हैं।