Last Updated on 20 August 2023 IST: Onam Festival in Hindi: ओणम केरल में मनाए जाने वाले त्योहारों में से सबसे प्रमुख त्योहार है। ओणम केरल का राष्ट्रीय पर्व भी है। ओणम मलयाली पंचांग का पहला महीना है। प्राचीन परंपरा के अनुसार यह त्योहार हस्त नक्षत्र से शुरू होकर श्रवण नक्षत्र तक मनाया जाता है। ओणम के पहले दिन को अथम् और उत्सव के समापन यानि अंतिम दिन को थिरुओनम या तिरुओणम कहा जाता है। ओणम पर्व का सबसे खास आकर्षण होता है साद्य। ओणम के दौरान बनाए जाने वाले खाने को साद्य कहते हैं। साद्य में विशेष पकवानों से राजा बलि को प्रसन्न किया जाता है। Onam Festival 2023 के अवसर पर आज हम आपको शास्त्रानुकूल भक्ति विधि और पूर्ण परमात्मा के बारे में जानकारी देंगे।
Onam Festival in Hindi: ओणम पर्व पर जानिए
- ओणम कब है?
- ओणम का मुख्य दिन कौन सा है?
- ओणम पर प्रचलित कथा (Story)
- कौन थे बावना रूप में आए भगवान?
- ओणम क्यों मनाया जाता है?
- ओणम का महत्व क्या है?
- ओणम से संबंधित गूढ़ रहस्य।
- शास्त्र विरुद्ध पूजा वेदों अनुसार गलत है
- ओणम पर जानिए क्या है शास्त्रानुकूल साधना या असली भक्ति विधि?
Onam 2023 Festival (ओणम कब है)?
Onam Festival 2023 Hindi: ओणम श्रावण मास की त्रयोदशी से प्रारंभ होता है। इस साल यानी 2023 में ओणम (Onam) 20 अगस्त से प्रारम्भ होकर 31 अगस्त तक चलेगा। दस दिनों तक चलने वाले ओणम त्योहार का दसवां दिन यानि थिरुवोनम सबसे महत्वपूर्ण होता है तथा ओणम का मुख्य पर्व 31 अगस्त को पड़ेगा।
ओणम (Onam Festival) दस दिनों तक मनाया जाता है।
लोक मान्यताओं के अनुसार ओणम (Onam Festival) दस दिनों तक मनाया जाता है।
- अथं: पहला दिन होता है। जब राजा बली पाताल से केरल जाने की तैयारी करते हैं।
- चिथिरा: दूसरा दिन होता है। तब फूलों का कालीन जिसे पूक्क्लम कहते हैं, बनाना शुरू करते हैं।
- चोधी: तीसरे दिन होता है। पूक्क्लम में 4-5 तरह के फूलों से अगली लेयर बनाते हैं।
- विशाकम: चौथा दिन होता है। इस दिन से तरह-तरह की प्रतियोगिताएं शुरू हो जाती हैं।
- अनिज्हम : पांचवा दिन होता है। इस दिन नाव की रेस की तैयारी होती है।
- थ्रिकेता: छटवां दिन होता है। इस दिन से छुट्टियाँ शुरू हो जाती हैं।
- पूरादम: आठवां दिन होता है। तब बली और वामन की प्रतिमा घर में स्थापित की जाती है।
- उठ्रादोम: नोवां दिन होता है। इस दिन बली पाताल लोक से केरल प्रांत में प्रवेश करते हैं।
- थिरुवोनम/थिरूओनम: यह दसवां दिन होता है जिस दिन ओणम का मुख्य त्योहार मनाया जाता है।
ओणम का मुख्य दिन कौन सा है?
Onam Festival in Hindi: भारत के केरल प्रान्त (राज्य) में मलयाली पंचांग के अनुसार कोलावर्षम् के प्रथम माह चिंगम जो कि अंग्रेजी पंचांग के अनुसार अगस्त से सितंबर महीने के मध्य में आता है, उत्तर भारत में हिंदू पंचांग के अनुसार कहें तो सूर्य जब सिंह राशि व श्रवण नक्षत्र में होता है तब ओणम का त्यौहार मनाया जाता है। सूर्य के इस संयोग से दस दिन पहले ही ओणम पर्व की तैयारियां शुरु हो जाती हैं। “ओणम के प्रथम दिवस को अथम् और उत्सव के समापन यानि अंतिम दिवस को थिरुवोनम या तिरुओणम कहा जाता है।” ओणम त्योहार में थिरुवोनम दिन सबसे महत्वपूर्ण होता है
ओणम का इतिहास विभिन्न कथाओं के अनुसार
राजा बली भक्त प्रहलाद के पौत्र हैं उनके पिता का नाम बैलोचन है। राजा बली केरल के राजा थे। उनके शासन काल में जनता बहुत सुखी थी। राजा बली महादानी एवं शूरवीर राजा थे। प्राचीन समय में राजा बली ने अश्वमेघ यज्ञ का आयोजन किया। उस अश्वमेघ यज्ञ में स्वयं कबीर भगवान ( सर्वसृष्टि रचनहार ) “बावन” (बौना) रूप बनाकर एक ब्राह्मण के रूप में आए और राजा बली से कहा कि हे राजन! हमें यज्ञशाला बनाने के लिए भूमि की आवश्यकता है आप हमें तीन डंग (कदम) भूमि देने की कृपा करें। राजा ने तीन पैंड (कदम) भूमि देने का वचन दे दिया ।
कबीर भगवान जब तीन कदम ज़मीन नापने लगे तो एक कदम (डंग) में उन्होंने पूरी पृथ्वी को नाप दिया तथा दूसरे पग में स्वर्ग नाप दिया और जब तीसरे के लिए स्थान माँगा तो बली ने कहा कि यह मेरी पीठ पर रखो, यह कहकर पृथ्वी पर मुख के बल लेट गया। तब प्रभु ने खुश होकर कहा कि माँग, क्या माँगता है? बली ने कहा कि मैंने इन्द्र के राज्य के लिए सौवीं (100वीं) यज्ञ की है।
Onam Festival Story in Hindi: कबीर भगवान बोले, इस इन्द्र को अपना शासनकाल पूरा करने दो, फिर आपको इन्द्रासन देंगे। आप मेरी शर्त पूरी नहीं कर पाए। इसलिए अभी इन्द्र को पद से नहीं हटा सकते। फिर भी आपने मेरे को सर्वस्व दे दिया। इसलिए इसके पश्चात् तुझ को इन्द्रासन दिया जाएगा। तब तक तुझे पाताल लोक का राजा बनाता हूँ। वहाँ राज्य करो। मैंने इन्द्र से उसका राज्य बनाए रखने का वचन दिया है। बली ने कहा कि मेरी एक शर्त है, उसके लिए वचन दें। भगवान ने कहा कि बोलो। बली ने कहा कि जब तक मैं पाताल में रहूँ तो आप इसी बावन (बौना-ठिगना) रूप में मेरे द्वार के आगे खड़े रहोगे। भगवान ने कहा तथास्तु (ऐसा ही होगा)। विस्तार से जानने के लिए पढ़ें आध्यात्मिक पुस्तक मुक्ति बोध
अन्य कथानुसार
जब राजा बली से वामनावतार रूप में आए कबीर साहेब जी ने तीन पैर यानी तीन कदम स्थान मांगा। बली ने उनकी माँग स्वीकार कर ली। इसके पश्चात् भगवान ने अपने एक कदम से पूरी पृथ्वी माप दी और दूसरे कदम से आकाश नाप लिया। अब तीसरा कदम रखना था, जिसके लिए राजा बली के पास कुछ शेष नहीं बचा था। यह देखकर महाबली ने अपना सिर वामन अवतार के सामने झुका दिया। वामन ने जैसे ही अपना तीसरा कदम राजा बली के सिर पर रखा, तो वे पाताल लोक चले गए।
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Onam Festival in Hindi: इसके पश्चात् राजा बली की प्रजा बहुत ही व्याकुल हो गई और महाबली के प्रति प्रजा का प्रेमभाव देखकर भगवान ने राजा बली को वरदान दिया कि वे साल में एक बार प्रजा से मिलने के लिए पाताल लोक से आ सकते हैं। ओणम (Onam Festival) राजा बली के स्वागत में मनाया जाता है। ओणम के दिन राजा बली अपनी प्रजा से मिलने के लिए पाताल लोक से पृथ्वी पर आते हैं। इसी उपलक्ष्य में केरल में ओणम का पर्व हर्षोल्लास से मनाया जाने लगा।
ओणम (Onam Festival) क्यों मनाया जाता है?
भारत एक धार्मिक देश है, जहाँ सभी धर्मों (मज़हब) के लोग मिलजुल कर रहते हैं। अलग-अलग संस्कृतियों के लोग अलग-अलग त्योहार (पर्व) भी मनाते हैं। ओणम भी एक ऐसा ही पर्व (त्यौहार) है, जो भारत के केरल राज्य का प्रमुख पर्व है। फ़सलों की सुरक्षा के लिए भी ओणम मनाया जाता है। ओणम को फ़सलों का त्योहार भी कहा जाता है। इस समय दक्षिण भारत में चाय, इलायची, अदरक और धान जैसी तमाम फ़सलें पक कर तैयार हो जाती हैं और किसान फ़सलों की सुरक्षा और अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए ओणम के दिन श्रावण देवता और पुष्पदेवी की आराधना करते हैं।
ओणम (Onam Festival) मनाने का महत्व क्या है?
ओणम दस (10) दिनों तक मनाया जाने वाला त्यौहार है। केरल के साथ इसे अन्य पड़ोसी राज्यों में भी मनाया जाता है। मलयाली पंचांग के अनुसार, कोलावर्षम का पहला माह चिंगम होता है उसी महीने में ओणम उत्सव मनाया जाता है। वहीं, ग्रेगोरियन कैलेंडर के हिसाब से ये पर्व (त्योहार) अगस्त से सितंबर के बीच पड़ता है। जबकि, हिंदी पंचांग के अनुसार यह त्योहार, श्रावण मास की शुक्ल पक्ष त्रयोदशी (तेरस) को होता है।
Onam Festival in Hindi: ओणम पर जानिए गूढ़ रहस्य
- बामन (वामन) श्री विष्णु जी के पांचवें अवतार माने जाते हैं जबकि वे कबीर साहेब ( पूर्ण परमात्मा ) थे जिन्होंने विष्णुजी को महिमा दी।
- वामन रूप में आए हुए पूर्ण परमात्मा कबीर जी ने तीन कदम में पूरी पृथ्वी, स्वर्ग तथा पाताल को नाप दिया था।
- ओणम का त्योहार मनाना शास्त्रविरुद्ध पूजा है इसे करने से साधक को कोई लाभ नहीं होता। (गीता अ.16 श्लोक 23)
शास्त्रविरुद्ध पूजा करना अंधश्रद्धा भक्ति है
ओणम (Onam) पर जितनी भी शास्त्र विरुद्ध क्रियाएं करते हैं यह सब व्यर्थ साधना में गिनी जाती हैं जैसे – कई तरह के फूलों से कालीन (पुक्कालम) बनाना एवं नाचना गाना, नाव रेस और अन्य प्रतियोगिताएं आदि आयोजित करना। गीता अध्याय 16 श्लोक 23-24 में प्रमाण है कि शास्त्रविधि को त्यागकर जो साधक मनमाना आचरण करते हैं उन्हें न तो सुख प्राप्त होता है, न सिद्धि प्राप्त होती है और न ही परमगति यानि पूर्ण मोक्ष की प्राप्ति भी नहीं होती है अर्थात् व्यर्थ प्रयत्न है। (गीता अध्याय 16 श्लोक 23 ) इससे तेरे लिए अर्जुन ! कर्तव्य यानि जो भक्ति कर्म करने चाहिए और अकर्तव्य यानि जो भक्ति कर्म न करने चाहिए, उसके लिए शास्त्र ही प्रमाण हैं यानि शास्त्रों को आधार मानकर निर्णय लेकर शास्त्रों में वर्णित साधना करने योग्य है। ( गीता अध्याय 16 श्लोक 24 )।
परमेश्वर कबीर जी ने बताया है कि
गुरु बिन माला फेरते गुरु बिन देते दान।
गुरु बिन दोनों निष्फल हैं चाहे पूछो वेद पुराण।।
ओणम पर जानिए क्या है शास्त्रानुकूल साधना?
- पवित्र यजुर्वेद
यजुर्वेद अध्याय न. 40 श्लोक न. 10 (संत रामपाल दास जी महाराज द्वारा भाषा-भाष्य)
अन्यदेवाहुःसम्भवादन्यदाहुरसम्भवात्, इति शुश्रुम धीराणां ये नस्तद्विचचक्षिरे।।10।।
हिन्दी अनुवाद:- परमात्मा के बारे में सामान्यत: निराकार अर्थात् कभी न जन्म लेने वाला कहते हैं। दूसरे आकार में अर्थात् जन्म लेकर अवतार रूप में आने वाला कहते हैं। जो पूर्णज्ञानी (तत्वदर्शी संत) है वह अच्छी प्रकार बताते हैं कि परमात्मा साकार है और परमात्मा प्राप्ति की सत्य साधना विधि क्या है?
वेदों को पढें, समझें और करें पूर्ण परमात्मा की पहचान
पवित्र सामवेद संख्या 359 अध्याय 4 खंड 25 श्लोक 8 में प्रमाण है कि जो (कविर्देव) कबीर साहिब तत्वज्ञान लेकर संसार में आता है वह सर्वशक्तिमान सर्व सुखदाता और सर्व के पूजा करने योग्य है।
- ऋग्वेद मंडल 9 सुक्त 82 मंत्र 1 में लिखा है कि वह सर्वोत्पादक प्रभु , सृष्टि की रचना करने वाला, पाप कर्मों को हरण करने वाला राजा के समान दर्शनीय है अर्थात परमात्मा साकार है।
- ऋग्वेद मंडल 9 सुक्त 86 मंत्र 17 18 ,19 और 20 में प्रमाण है कि परमात्मा कबीर साहेब हैं और वही असली राम हैं।
- अथर्वेद कांड नंबर 4 अनुवाद 1 मंत्र 7 में प्रमाण है कि पूर्ण परमात्मा कबीर साहेब हैं।
- यजुर्वेद अध्याय 5 मंत्र 1, 6 और 8 में प्रमाण है कि परमात्मा साकार है।
- ऋग्वेद मंडल 9 सुक्त 82 मंत्र 1 में लिखा है कि वह परमात्मा पृथ्वी आदि लोकों के चारों तरफ शब्दायमान हो रहा है और वह अच्छी आत्मा को जो दृढ़ भक्त हैं उनको प्राप्त होता है।
- ऋग्वेद मंडल 9 सुक्त 94 श्लोक 4 में लिखा है कि वह परमात्मा अपने भक्तों को ज्ञान देने के लिए सशरीर आता है और सशरीर चला जाता है।
पूर्ण परमात्मा की प्राप्ति सूक्ष्मवेद में वर्णित विधि से होती है जिसके विषय में पवित्र श्रीमद भगवद गीता अध्याय 4 के श्लोक 34 में गीता ज्ञान दाता ने कहा है कि हे अर्जुन उस तत्वज्ञान को जो सूक्ष्म वेद में वर्णित है उस ज्ञान को तू तत्वदर्शी संत के पास जाकर समझ वह तत्वदर्शी संत तुझे उस परमात्म तत्व का ज्ञान कराएंगे। पवित्र गीता अध्याय 15 के श्लोक 4 में भी कहा है कि तत्वज्ञान की प्राप्ति के पश्चात परमेश्वर के उस परमपद की खोज करनी चाहिए जहां जाने के पश्चात साधक कभी लौटकर इस संसार में नहीं आते अर्थात पूर्ण मोक्ष प्राप्त कर लेते हैं।
आज के इस दौर में भक्त समाज के सामने पूर्ण गुरु/तत्वदर्शी सन्त की पहचान करना सबसे जटिल प्रश्न बना हुआ है। लेकिन इसका बहुत ही लघु और साधारण सा उत्तर है कि, जो गुरु शास्त्रों के अनुसार भक्ति करता है और अपने अनुयाईयों अर्थात शिष्यों द्वारा करवाता है वही पूर्ण संत है। चूंकि भक्ति मार्ग का संविधान धार्मिक शास्त्र जैसे – कबीर साहेब की वाणी, नानक साहेब की वाणी, संत गरीबदास जी महाराज की वाणी, संत धर्मदास जी साहेब की वाणी, वेद, गीता, पुराण, कुरान, पवित्र बाईबल आदि हैं। जो भी संत शास्त्रों के अनुसार भक्ति साधना बताता है और भक्त समाज को मार्ग दर्शन करता है तो वह पूर्ण संत है।
वर्तमान समय में पूर्ण व आधिकारिक गुरु जगतगुरु तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज हैं। जिन्होंने सर्व पवित्र धर्मों के पवित्र शास्त्रों से पवित्र ज्ञान सर्व भक्त समाज के समक्ष कर दिया है। पूर्ण गुरु की शरण में जाने से वास्तविक भक्ति विधि का ज्ञान होता है, पूर्ण मोक्ष और सर्वकामनाएं पूर्ण होती हैं। संपूर्ण विश्व के पाठकों व सभी धर्मों के भक्तों से निवेदन है कि वामनरूप में आए कबीर साहेब जी को पहचानने के लिए संत रामपाल जी महाराज जी के सत्संग साधना चैनल पर शाम को 7.30-8.30 बजे अवश्य सुनें क्योंकि केवल एक पूर्ण परमात्मा ही पूजा के योग्य होता है अन्य कोई नहीं।